पत्ते की जीवनयात्रा
एक बरस पहले फूटे थे मेरे अंकुर ,
नरम रेशमी ,नन्हे किसलय बन मुस्काये
टहनी में मातृत्व जगा ,फिर विकसे बढ़ कर
मस्त हवा के झोंकों में नाचे, लहराये ,
भाई बंधू कितने ही मिल ,पले साथ में ,
सूखा था जो तरु ,हरित होकर हर्षाया
नीड़ बना बस गए वहाँ कितने ही पंछी ,
थके पथिक को छाया देकर ,सुख पहुँचाया
ग्रीष्म ऋतू में प्रखर ताप सूरज का झेला ,
भीगे पानी में ,जब था मौसम बरसाती
और कंपकंपाती सर्दी मे भी ठिठुरे हम ,
फिर भी जलती रही हमारी ,जीवन बाती
पर जब पतझड़ आया तो डाली से बिछुड़े ,
और गिर गए,एक सुहानी याद बन गए
इधर उधर उड़ गए हवा के संग कितने ही ,
साथ समय के ,बाकी ,गल कर,खाद बन गए
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक बरस पहले फूटे थे मेरे अंकुर ,
नरम रेशमी ,नन्हे किसलय बन मुस्काये
टहनी में मातृत्व जगा ,फिर विकसे बढ़ कर
मस्त हवा के झोंकों में नाचे, लहराये ,
भाई बंधू कितने ही मिल ,पले साथ में ,
सूखा था जो तरु ,हरित होकर हर्षाया
नीड़ बना बस गए वहाँ कितने ही पंछी ,
थके पथिक को छाया देकर ,सुख पहुँचाया
ग्रीष्म ऋतू में प्रखर ताप सूरज का झेला ,
भीगे पानी में ,जब था मौसम बरसाती
और कंपकंपाती सर्दी मे भी ठिठुरे हम ,
फिर भी जलती रही हमारी ,जीवन बाती
पर जब पतझड़ आया तो डाली से बिछुड़े ,
और गिर गए,एक सुहानी याद बन गए
इधर उधर उड़ गए हवा के संग कितने ही ,
साथ समय के ,बाकी ,गल कर,खाद बन गए
मदन मोहन बाहेती'घोटू'