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बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

बकरीद

              घोटू के छंद
                  बकरीद

सुबह सुबह पत्नी ने ,प्यार से जगाया हमें ,
                        गालों पे दी पप्पी और मुस्कान प्यारी थी
बेड टी के बाद हमें ,मिले सुबह नाश्ते में,
                         जलेबी थी गरम गरम ,चीजें ढेर सारी थी
खाने में खीर मिली ,खुश थी वो खिली खिली ,
                          बोली शाम बाहर चलें ,सेल लगी भारी थी
हमारी  समझ आया ,इतना खिलापिलाया,
                          बकरा हलाल करने की पूरी तैयारी  थी

घोटू        

गुरु घंटाल

          गुरु घंटाल

स्वयं को घोषित किया ,भगवान जिस इंसान ने ,
                 समर्पण के नाम पर ,व्यभिचार जो करता रहा
मोह माया छोड़ दो का ,बांटता जो ज्ञान था ,
                  लोभ का मारा ,तिजोरी ,स्वयं की भरता रहा
नन्ही नन्ही बच्चियों की ,लूटता था अस्मतें ,
                    भोले भाले भक्तजन को ,लूटने में दक्ष था
हिरणकश्यप की तरह ,कहता था वो भगवान है ,
                      पुत्र पर प्रहलाद जैसा नहीं,पर हिरण्याक्ष था
बाप और बेटे ने मिल कर ,बहुत से नाटक किये ,
                      कृष्ण बन कर ,गोपियों के संग रचाया रास था
एक पीड़ित बालिका ने ,रूप धर नरसिंह जैसा ,
                       बताया दुनिया को कितना दुष्ट वो बदमाश था
धीरे धीरे ,उसके सारे  कच्चे चिठ्ठे , खुल गए ,
                          शेर की था खाल ओढ़े ,वो छुपा था  भेड़िया
एक दिन फंस ही गया ,कानून के वो जाल में,
                            सैकड़ों ही बच्चियों का ,जिसने था शोषण किया
बनाया था  गुरु, निकला वो गुरु घंटाल था  ,
                              धीरे धीरे सभी लोगों को गया ये लग पता
इससे मेरे दोस्तों,मिलती हमें या सीख है,
                                 धर्म अच्छा है मगर अच्छी नहीं धर्मान्धता

घोटू      

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

''तुलना''

दोस्तों 

चांद को दूसरे अर्थो में समझने का एक अदना सा प्रयास मैने भी किया था 
जिसे आपके आशिर्वाद के लिये यहां प्रस्तुत कर रहा हूं 

''तुलना''

उस दिन अनजाने ही 
तुतने खुद अपनी तुलना 
चाँद से की थी 
तो सकपका गया था मैं
तुम्हारे अभिमान पर
मुझे नहीं दिख सका था
तुम्हारा गहन विस्तार
पर अब सोचता हूं
सचमुच चाँद जैसी ही हो तुम
वही चमक
वही शीतलता
वही धवलता
और वही बदलता स्वरूप्
आज खुश होकर चाँदनी बिखेरना
और कल बादलों के पीछे छिपकर
अठखेलियां करना
बादल न भी हों
तो भी बडा सहज है तुम्हारे लिये
अपने स्वरूप को बदल लेना
क्योंकि चेहरा बदलने का
ऐसा हुनर है तुममें
जिसे मैं कभी नहीं पा सकता
क्योंकि तुम्हारी यातनाओं का
दहकता हुआ गोल सूरज हूं मैं

सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

एक कथा-एक व्यथा

                घोटू के छंद
           एक कथा-एक व्यथा
                         १
एक नट रोज रोज ,खेल जब दिखाता तो,
                          बेटी थी जवान जिसे रस्सी पे चलाता था 
अगर गिरी तो तेरी ,गधे से कर दूंगा शादी ,
                           बार बार बिटिया को ,डर ये दिखाता  था 
कभी तो गिरेगी बेटी,शादी होगी उसके संग, 
                            नट का गधा बेचारा ,आस ये लगाता  था
बस इसी लालच में ही,थोड़ा सा ही भूसा खाकर ,
                             दिन भर ,ढेर सारा ,बोझा वो उठाता  था
                          २
नट के ही खेल जैसा ,आज का है राज काज ,  
                              सूखा भूसा खाते ,कब पेट भर के खायेंगे
सहे मंहगाई बोझ,नट के गधे से रोज,
                               आस हम लगा के बैठे ,अच्छे दिन आयेंगे
नट की बेटी की तरह ,गिरेगी ये 'गवर्नमेंट '
                                 खुशियों से होगी शादी ,हम मुस्कायेंगे
बड़े ही गधे थे हम , खाते अब है ये  कसम ,
                                  नट के झांसे में नहीं ,और अब  आयेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

नीरस जीवन

          घोटू की कुण्डलियाँ
             नीरस जीवन
                       १
बूढा भंवरा क्या करे ,कोई दे बतलाय
ना तो कलियाँ 'लिफ्ट'दे,फूल न गले लगाय
फूल न गले लगाय ,जनम से रस का लोभी
नहीं मिले रस तो उसकी क्या हालत होगी
कह 'घोटू'कविराय हो गया ,उसका कूड़ा
ना घर का ना रहा घाट  का,भंवरा बूढा 
                         २
जीवन का सब रस गया ,मन में नहीं उमंग
बदल गया है इस तरह ,इस जीवन का रंग
इस जीवन का रंग,सोचता है वो मन में
रहा नहीं वो जोश ,आजकल है गुंजन में
किया 'टेंशन'दूर तभी 'घोटू'ने मन का
कहा'खुशबुएँ सूंघ ,मज़ा बस ये जीवन का'
घोटू

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