बुढ़ापे की रात
देखो बूढ़े बुढ़िया कैसे रात बिताते हैं
नींद नहीं आती है तो रह रह बतियाते हैं
यह मत पूछो कैसे उनकी रात गुजरती है,
कोशिश करते सोने की पर सो ना पाते हैं
एक दूजे की सभी शिकायत शिकवे जो भी है,
सभी रात को आपस में निपटाए जाते हैं
कभी झगड़ना,गुस्साहोना और मनाना फिर ,
सोने की कोशिश करते,भरते खर्राटे है
कभी पुराने किस्से की फाइल जब खुलती है, भूली बिसरी यादों का आनंद उठाते हैं
मन प्रपंच से हटा, भूल सब बीती बातों को,
बीत गई सो बीत गई ,खुद को समझाते हैं
सुबह आयेगी, खुशी लायेगी, ये उम्मीद लिए,
कुछ पल को सपनों की दुनिया में खो जाते है
देखो बूढ़े बुढ़िया कैसे रात बिताते हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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