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एक सन्देश-
यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |
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बुधवार, 29 दिसंबर 2021
सोमवार, 20 दिसंबर 2021
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं
जब सत्ता ने दामन त्यागा
तब मेरा लड़कीपन जागा
प्रोढ़ा हुई पचास बरस की ,
तब लड़की वाला हक मांगा
सूखी नदी, मगर वर्षा में ,
फिर से कभी उमड़ सकती हूं
मैं लड़की हूं,लड़की सकती हूं
जब शासन था, लूटा जी भर
अब निर्बल, तो याद आया बल
नौ सौ चूहे मार बिलैया
ने थामा धर्मों का आंचल
जनता में भ्रम फैलाने को ,
कितने किस्से गढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
मेरा भाई युवा नेता है
अल्प बुद्धि , इक्कावन का है
बूढ़ी मां है सपन संजोये,
फिर से पाने को सत्ता है
जल गई रस्सी, पर न गया बल,
अब भी बहुत जकड़ रखती हूं
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
हुई खोखली, वंशवाद जड़
पर जनता भोली है,पागल
सेवक असंतुष्ट पुराने
चमचे नाव खे रहे केवल
बोल बोलती बड़े-बड़े में ,
अभी बहुत पकड़ रखती हूं
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
फिर से कुर्सी चढ़ सकती हूं
मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
सबसे आगे बढ़ सकती हूं
मेरा अगर ध्येय निश्चय है
तो फिर मेरी सदा विजय है
मैं उन्नति के उच्च लक्ष्य पर ,
अपने बल पर चढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं ,लड़ सकती हूं
सही राह है ,सोच सही है
और लगन की कमी नहीं है
मैं नारी हूं ,शक्ति स्वरूपा ,
निज भविष्य खुद गढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं
शिक्षा ही मेरा जेवर है
मेरे लिए खुल अवसर है
राहों की सारी बाधाएं ,
तोड़ में आगे बढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं
है संघर्ष भरा यह जीवन
तप कर अधिक निखरता कुंदन
मुझ में बल है, बहुत प्रबल मैं,
शीर्ष पदों पर चढ़ सकती हूं
मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं
सबसे आगे बढ़ सकती हूं
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 12 दिसंबर 2021
गुरुवार, 2 दिसंबर 2021
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हमारी जिंदगी
हमारी जिंदगी भी इस तरह के मोड़ लेती है
किसी अनजान के संग दिल के रिश्ते जोड़ लेती है
कभी राहों की बाधाएं और रोड़ों पर अटक जाती
कभी अनजान रस्तों पर, रुक जाती, भटक जाती
कभी दुर्गम कठिन पथ पर ,सहज से दौड़ लेती है हमारी जिंदगी भी किस तरह के मोड़ लेती है
कभी सुख में, खुशियों की, फुहारों से भिगो देती
परेशां होती ,आंखों में ,भरे आंसू ,वो रो देती
कभी मुश्किल दुखों की बाढ़ से झिंझोड़ देती है
हमारी जिंदगी भी किस तरह के मोड़ लेती है
मोह माया के फेरे में उम्र यूं ही गुजर जाती
कभी थोड़ी संवर जाती ,कभी थोड़ी बिखर जाती
बहुत सी खट्टी मीठी यादें पर वह छोड़ देती है
हमारी जिंदगी भी इस तरह के मोड़ लेती है
बड़ी मुश्किल पहेली यह कठिन है बूझना इसका
मगर उलझा ही रहता है ,दीवाना हर जना इसका
जिएं लंबा यही चाहत मौत से होड़ लेती है
हमारी जिंदगी में किस तरह के मोड़ लेती है
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुधवार, 1 दिसंबर 2021
Fwd:
e3ALEct8QpG21D6pj07NTr:APA91bEROokznBNBEdbVeP8tQxcWop8_roT7FxXtToWGewfPLTR-28A4wHqsh_3jVUYuVkh5QASrpZJ35i7tIR3TSQSr-vbHa4Qa_mSs5IWklnredqH74rKR0KxWqJLs30q-rhBC-mAR
---------- Forwarded message -
मैं अस्सी का
अब मैं बूढ़ा बैल हो गया ,नहीं काम का हूँ किसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
धीरे धीरे बदल गए सन ,और सदी भी बदल गयी
बीता बचपन,आयी जवानी ,वो भी हाथ से निकल गयी
गयी लुनाई ,झुर्री छायी ,बदन मेरा बेहाल हुआ
जोश गया और होश गया और मैं बेसुर ,बेताल हुआ
सब है मुझसे ,नज़र बचाते ,ना उसका मैं ना इसका
आज हुआ मैं हूँ अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
अनुभव में समृद्ध वृद्ध मैं ,लेकिन मेरी कदर नहीं
मैंने जिनको पाला पोसा ,वो भी लेते खबर नहीं
नहीं किसी से कोई अपेक्षा ,किन्तु उपेक्षित सा बन के
काट रहा ,अपनी बुढ़िया संग ,बचेखुचे दिन जीवन के
उन सब का मैं आभारी हूँ ,प्यार मिला जब भी जिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्म सन बय्यालीस का
बढ़ी उमरिया ,चुरा ले गयी ,चैन सभी मेरे मन का
अरमानो का बना घोंसला ,आज हुआ तिनका तिनका
यादों के सागर में मन की ,नैया डगमग करती है
राम भरोसे ,धीरे धीरे ,अब वो तट को बढ़ती है
मृत्यु दिवस तय है नियति का,कोई नहीं सकता खिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अब मैं बूढ़ा बैल हो गया ,नहीं काम का हूँ किसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
धीरे धीरे बदल गए सन ,और सदी भी बदल गयी
बीता बचपन,आयी जवानी ,वो भी हाथ से निकल गयी
गयी लुनाई ,झुर्री छायी ,बदन मेरा बेहाल हुआ
जोश गया और होश गया और मैं बेसुर ,बेताल हुआ
सब है मुझसे ,नज़र बचाते ,ना उसका मैं ना इसका
आज हुआ मैं हूँ अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
अनुभव में समृद्ध वृद्ध मैं ,लेकिन मेरी कदर नहीं
मैंने जिनको पाला पोसा ,वो भी लेते खबर नहीं
नहीं किसी से कोई अपेक्षा ,किन्तु उपेक्षित सा बन के
काट रहा ,अपनी बुढ़िया संग ,बचेखुचे दिन जीवन के
उन सब का मैं आभारी हूँ ,प्यार मिला जब भी जिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्म सन बय्यालीस का
बढ़ी उमरिया ,चुरा ले गयी ,चैन सभी मेरे मन का
अरमानो का बना घोंसला ,आज हुआ तिनका तिनका
यादों के सागर में मन की ,नैया डगमग करती है
राम भरोसे ,धीरे धीरे ,अब वो तट को बढ़ती है
मृत्यु दिवस तय है नियति का,कोई नहीं सकता खिसका
आज हुआ हूँ मैं अस्सी का ,जन्मा सन बय्यालीस का
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
शनिवार, 27 नवंबर 2021
बुढ़ापा ऐसा आया रे
लगा है जीवन देने त्रास
रहा ना कोई भी उल्लास
मन मुरझाया,तन अलसाया,
गया आत्मविश्वास
सांस सांस ने हो उदास ,
अहसास दिलाया रे
वक्त यह कैसा आया रे
बुढ़ापा तन पर छाया रे
बदलते ढंग, मोह हैभंग
समय संग,जीवन है बेरंग
व्याधियां रोज कर रही तंग
बची ना कोई तरंग ,उमंग
रही न तन की तनी पतंग ,
उमर संग ढलती काया रे
वक्त यह कैसा आया रे
बुढ़ापा तन पर छाया रे
बड़ा ही आया वक्त कठोर
श्वास की डोर हुई कमजोर
सूर्य ढलता पश्चिम की ओर
नजर आता है अंतिम छोर
तन का पौर पौर अब तो
लगता कुम्हलाया रे
वक्त यह कैसा आया रे
बुढ़ापा तन पर छाया रे
ना है विलास ना भोग
पड़ गए पीछे कितने रोग
साथ समय के साथी छूटे
लगे बदलने लोग
अपनों के बेगानेपन ने
बहुत सताया रे
वक्त ये कैसा आया रे
बुढापा हम पर छाया रे
हमारे मन में यही मलाल
रहे ना पहले से सुर ताल
हुई सेहत की पतली दाल
नहीं रख पाते अपना ख्याल
बदली चाल ढाल में अब ना
जोश बकाया रे
वक्त ये कैसा आया रे
बुढापा हम पर छाया रे
रहा ना जोश,बची ना आब
बहुत सूने सूने है ख्वाब
अकेले बैठे हम चुपचाप
बस यही करते रहे हिसाब
पूरे जीवन में क्या खोया
और क्या पाया रे
वक्त ये कैसा आया रे
बुढ़ापा हम पर छाया रे
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 14 नवंबर 2021
जिंदगी जगमग दिवाली हो गई
तूने घूंघट हटाया चंदा उगा,धूप भी अब बन गई है चांदनी
तेरे अधुरो का मधुर स्पर्श पा, शब्द हर एक बन गया है रागिनी
जब से तेरे कपोलों को छू लिया, हाथ में खुशबू गुलाबी सन गई
हुईं हलचल दिल मचलने लग गया, भावनाएं कविताएं बन गई
छू कर तेरी रेशमी सी हथेली, हरी मेहंदी, लाल रंग में रच गई
देख मुझको मुस्कुरा दी तू जरा ,सपनों की बारात मेरी सज गई
तेरी नज़दीकियों के एहसास से, मेरी सब सांसे सुहागन हो गई
फूल मन के चमन में खिलने लगे ,बावरी यह उम्र दुल्हन हो गई
ऐसे बिखरे फूल हरसिंगार के ,हवाएं मादक निराली हो गई
आशाओं के दीप रोशन हो गए, जिंदगी जगमग दिवाली हो गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
कितना बहुत होता है
संतोष जब अपनी परिधि को तोड़ता है
तो वह कुछ और पाने के लिए दौड़ता है
जब भी चाह और अभिलाषाएं बलवती होती है
तभी नए अन्वेषण और प्रगति होती है
इस और की चाह ने हमें बहुत कुछ दिया है
आदमी को चांद तक पहुंचा दिया है
अभी जितना है अगर उतना ही होता
तो विज्ञान इतना आगे नहीं बढ़ा होता
और की चाह जीवन में गति भरती है
और की कामना, कर्म को प्रेरित करती है
इसलिए आदमी को चाहिए कुछ और
यह मत पूछो कितना बहुत होता है ,
क्योंकि और का नहीं है कोई छोर
कल मेरे पास बाइसिकल थी
मुझे लगा इतना काफी नहीं है
मैंने और की कामना की
स्कूटर आइ, फिर मारुति फिर बीएमडब्ल्यू
और फरारी की चाह है
यही प्रगति की राह है
मदन मोहन बाहेती घोटू
आज ठीक से नींद ना आई
आज ठीक से नींद ना आई, रहा यूं ही में सोता जगता रहे मुझे सपने आ ठगते,मैं सपनों के पीछे भगता
नींद रही उचटी उचटी सी ,बिखरे बिखरे सपने आए खट्टी मीठी यादें लेकर, कुछ बेगाने अपने आए
कभी प्रसन्न रहा मैं हंसता ,कभी क्रोध से रहा सुलगता रात ठीक से नींद ना आई, रहा रात भर सोता जगता
जाने कहां कहां से आई ,कितनी बातें नई पुरानी
दाल माखनी सी यादें थी ,पकी खयालों की बिरयानी सपनों ने मिलकर दावत दी ,सब पकवान रहा मैं छकता राज ठीक से नींद ना आई,रहा रात भर सोता जगता
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुधवार, 10 नवंबर 2021
Keep in touch and New fashion bags for 2022 !
Dear bahetimmtara1:
Good morning. how are you doing?
This is bruce from Yiwu zhijian bags Co.,LTD which was SMETA(4 pillar SEDEX) audited plants in CHINA. It is been a long time not hearing from you side since the Globalsources/Alibaba/121 Canton fair/MEGA SHOW, did you have any Purchase plans for the bags in 2022 ?
Along with the new style bag as we developed,here we collecting some of them in catalouge to you as referencea s closed here, any interested intems.welcome to contact us any time.
Sincerely yours.
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सोमवार, 8 नवंबर 2021
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रविवार, 7 नवंबर 2021
Re:
Wah tauji :D
Ekdum zaikedar poem hai
On Sun, Nov 7, 2021, 12:13 PM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
आयुष का इंदौरी प्यारनाश्ते में प्यार के पोहे जलेबी,सेव मिक्चर जीरावन नींबू मिलाकेलंच में उल्फत के घी में तरमतर जो ,वो मुलायम बाफले खाता दबाकेसाथ में मीठा तेरी बातों के जैसा,चूरमा है केसरी मन को लुभाताशाम को मैं मोहब्बत से भरी पेटिस,नर्म भुट्टो का सुहाना किस मैं पाताबहुत दिन के बाद ये पकवान पाएप्यारा का मौसम त्योंहारी हो गया हैचाह छप्पन भोग की पूरी हुई है,आजकल यह मन इंदौरी हो गया हैघोटू
आयुष का इंदौरी प्यार
नाश्ते में प्यार के पोहे जलेबी,
सेव मिक्चर जीरावन नींबू मिलाके
लंच में उल्फत के घी में तरमतर जो ,
वो मुलायम बाफले खाता दबाके
साथ में मीठा तेरी बातों के जैसा,
चूरमा है केसरी मन को लुभाता
शाम को मैं मोहब्बत से भरी पेटिस,
नर्म भुट्टो का सुहाना किस मैं पाता
बहुत दिन के बाद ये पकवान पाए
प्यारा का मौसम त्योंहारी हो गया है
चाह छप्पन भोग की पूरी हुई है,
आजकल यह मन इंदौरी हो गया है
घोटू
शनिवार, 30 अक्टूबर 2021
नटखट
सब कहते जब मैं बच्चा था ,मैं शैतान बड़ा नटखट था
कभी चैन से नहीं बैठता, करता रहता उलट पलट था
सभी चीज कर जाता था चट
मैं था नटखट, नटखट नटखट
बढ़ा हुआ पत्नी कहने पर नाचा करता बनकर नट मैं
नहीं चैन पलभर भी पाया,फंसा गृहस्थी की खटपट में
काम सभी करता था झटपट
मैं था नटखट ,नटखट नटखट
अब बूढ़ा हूं ,मेरे अस्थिपंजर के ढीले हैं सब नट
लेटा रहता पड़ा खाट पर, मुझसे ना होती है खटपट
हर एक उम्र में झंझट झंझट
रहा उमरभर,नटखट नटखट
मदन मोहन बाहेती घोटू
आलू
आलू आलू आलू मसाले वाले आलू
आलू बिन ना भावे, मैं कैसे खाना खा लूं
आलू है बेटे धरती के
आलू शालिग्राम सरीखे
गोलमोल है प्यारे प्यारे
इन्हें प्यार करते हैं सारे
घुंघट जैसे पतले छिलके
अंदर गौर वर्ण तन झलके
बसे हुए जन जन जीवन में
मौजूद है हर एक भोजन में
गरम परांठा, आलू वाला
संग बेड़मी, स्वाद निराला
आलू भरा मसाला डोसा
आलू बिन ना बने समोसा
बड़ा पाव ,आलू के दम पर
पावभाजी में आलू जी भर
आलू युक्त बटाटा पोहा
खाने वाले का मन मोहा
बड़े ठाठ से रहते आलू
हरेक चाट में रहते आलू
गरम करारी ,आलू टिक्की
दही सोंठ संग लागे निक्की
गोलगप्पों में भर लो आलू
फ्राय तवे पर करलो आलू
आलू टिक्की वाला बर्गर
आलू है पेटिस के अंदर
आलू का कटलेट निराला
फ्रेंच फ्राय में आलू आला
भुने हुऐआलू सबसे बढ़
स्वाद लगे,आलू के पापड़
बीकानेरी आलू भुजिया
मन भाता,आलू का हलवा
हर मौसम में मिलते आलू
हर सब्जी संग खिलते आलू
मटर साथ रस्से के आलू
दही डाल लो,खट्टे आलू
मेथी आलू ,सूखी सब्जी
आलू पालक, हर लेता जी
बैंगन के संग ,आलू बैंगन
आलू गोभी खा हरसे मन
सूखे आलू, जीरा आलू
आलू दम,कश्मीरा आलू
चख कर देखो, आलू अचारी
आलू सब पर पड़ते भारी
आलू सबसे मिलकर राजी
स्वाद भरी है,पूरी भाजी
चिप्स बना कर , खाओ जी भर
बहुत स्वाद,आलू के वेफर
राज हर तरफ है आलू का
बिन आलू के भोजन सूखा
जित देखो आलू ही आलू
आलू खा ,भोजन सुख पालूं
आलू की कचौड़ी,पकोड़े बना लूं
आलू आलू आलू, मसाले वाले आलू
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021
मेरी बुजुर्गियत
मेरी बुजुर्गियत
बन गई है मेरी खसूसियत
और परवान चढ़ने लगी है ,
मेरी शख्सियत
हिमाच्छादित शिखरों की तरह मेरे सफेद बाल
उम्र के इस सर्द मौसम में ,लगते हैं बेमिसाल
पतझड़ से पीले पड़े पत्तों की तरह ,
मेरे शरीर की आभा स्वर्णिम नजर आती है
आंखें मोतियों को समेटे ,मोतियाबिंद दिखाती है
नम्रता मेरे तन मन में इस तरह घुस गई है
कि मेरी कमर ही थोड़ी झुक गई है
मधुमेह का असर इस कदर चढ गया है
कि मेरी वाणी का मिठास बढ़ गया है
अब मैं पहाड़ी नदी सा उछलकूद नहीं करता हूं
मैदानी नदी सा शांत बहता हूं
मेरा सोच भी नदी के पाट की तरह,
विशाल होकर ,बढ़ गया है
मुझ पर अनुभव का मुलम्मा चढ़ गया है
अब मैं शांत हो गया हूं
संभ्रांत हो गया हूं
कल तक था सामान्य
अब हो गया हूं गणमान्य
बढ़ गई है मेरी काबलियत
मेरी बुजुर्गियत
निखार रही है मेरी शक्सियत
मुझमें फिर से आने लगी है,
वो बचपन वाली मासूमियत
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुधवार, 20 अक्टूबर 2021
नया दौर
उम्र का कैसा गणित है
भावनाएं भ्रमित हैं
शांत रहता था कभी जो,
बड़ा विचलित हुआ चित है
पुष्प विकसित था कभी, मुरझा रहा है
जिंदगी का दौर ऐसा आ रहा है
ना रही अब वह लगन है
हो गया कुछ शुष्क मन है
लुनाई गायब हुई है,
शुष्क सा सारा बदन है
जोश और उत्साह बाकी ना रहा है
जिंदगी का दौर एसा आ रहा है
जवानी जो थी दिवानी
बन गई बीती कहानी
एक लंगडी भिन्न जैसी,
हो गई है जिंदगानी
प्रखर सा था सूर्य, अब ढल सा रहा है
जिंदगी का दौर एसा आ रहा है
मदन मोहन बाहेती घोटू
मुझे डायबिटीज है
मैं ,जलेबी सा टेढ़ा मेढ़ा,
गुलाब जामुन सा रंगीला
गजक की तरह खस्ता,
चिक्की की तरह चटकीला
बर्फी की तरह सादा ,
पेड़े की तरह घोटा हुआ
रबड़ी की तरह लच्छेदार
कढ़ाई दूध की तरह ओटा हुआ
मोतीचूर सा सहकारी ,
रसगुल्ले सा मुलायम
बालूशाही सा शाही,
हलवे सा नरम गरम
मीठी मीठी बातें हैं,
मीठी सी मुस्कान है
मेरा यह मन तो ,
हलवाई की दुकान है
पर मेरे मन में एक टीस है
कि मुझे डायबिटीज है
मदन मोहन बाहेती घोटू
हम हैं अस्सी ,मीठी लस्सी
हम तो भुट्टे ,सिके हुए हैं
तेरे प्यार में बिके हुए हैं
तू टॉनिक सी ताकत देती,
बस दवाई पर टिके हुए हैं
मन की पीड़ा किस संग बांटे
साठे थे जब ,हम थे पाठे
उम्र भले ही अब है अस्सी
हम अब भी है मीठी लस्सी
हाथ पाव सब ही ढीले हैं
पर तबीयत के रंगीले हैं
खट्टे मीठे कितने अनुभव ,
कुछ सुख के, कुछ दर्दीले हैं
देखी रौनक और सन्नाटे
साठे थे जब , हम थे पाठे
उम्र भले ही अब है अस्सी
हम अब भी है मीठी लस्सी
ढलने को अब आया है दिन
आभा किंतु शाम की स्वर्णिम
रह रह हमें याद आते हैं ,
गुजरे वो हसीन पल अनगिन
बाकी दिन अब हंसकर काटे
साठे थे जब, हम थे पाठे
उम्र भले ही अब है अस्सी
हम अब भी है मीठी लस्सी
मदन मोहन बाहेती घोटू
चालिस पार ,ढलती बहार
लगा उड़ने तन से , जवानी का पालिश
उमर भी है चालिस,कमर भी है चालिस
कनक की छड़ी सी कमर आज कमरा
रहा पहले जैसा ,नहीं नाज नखरा
गए दिन मियां फाख्ता मारते थे
बचाकर नजर जब सभी ताड़ते थे
नहीं मिलने की कोई करता गुजारिश
उमर भी है चालिस, कमरभीहै चालिस
बेडौल सा तन,हुआ ढोल जैसा
बुढ़ापे का आने लगा है अंदेशा
हंसी की खनक भी बची है नहीं अब
वो रौनक वो रुदबा, हुआ सारा गायब
मोहब्बत की घटने लगी अब है ख्वाइश
उमर भी है चालिस, कमर भी है चालिस
हनुमान चालीसा पढ़ना पढ़ाना
और राम में मन अपना रमाना
चेहरे की रौनक खिसकने लगी है
जाती जवानी सिसकने लगी है
गए चोंचले सब ,झप्पी नहीं किस
उमर भी यह चालिस, कमरभी है चालिस
न मौसम बसंती ,न मौंजे न मस्ती
जुटो काम में और संभालो गृहस्थी
नहीं अब बदन में बची वो लुनाई
सफेदी भी बालों में पड़ती दिखाई
जलवे जवानी के हैं टाय टाय फिस
उमर भी है चालिस, कमर भी है चालिस
मदन मोहन बाहेती घोटू
मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021
नेता मेरे देश के
मेरे देश में नेताओं की इतनी सारी किस्मे है
रत्ती भर भी देशभक्ति पर ना उसमें ना इसमें है
ये सब के सब जहरीले हैं और तरबतर विष में है
गिने चुने हैं देशभक्ति का थोड़ा जज्बा जिसमें है
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे
मस्जिद में अल्ला कहते है और मंदिर में राम हैं
इनका कोई धरम नहीं है, ना कोई ईमान है
ये मन के अंदर काले हैं बस उजला परिधान हैं
इन पर नहीं भरोसा करना ये तो नमक हराम है
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे
अरे देश को गिरवी रख दें, ये लालच में अंधे हैं
लूट खसोट, रिश्वतें लेना ,इनके गोरखधंधे हैं
इनका मन भी साफ नहीं है और इरादे गंदे हैं
जहां रहे दम ,वही रहे हम, ये तो बस ऐसे बंदे हैं
मेरा है यह कहना रे
इनसे बचकर रहना रे
नहीं वतन के रक्षक है ,ये वतन लूटने वाले हैं
तुम्हें सफेदी पोते दिखते पर यह कौवे काले हैं
खुद ही की सेवा करने का भाव हृदय में पाले हैं
इतने सालों इनकी करतूतें हम देखे भाले हैं
मेरा है यह कहना रे
इनसे बचकर रहना रे
एक बार जो राजनीति में जैसे तैसे सेट हुए
रिश्वत और दलाली खाकर ,इनके मोटे पेट हुए
कल गरीब थे, कुर्सी पाई, अब ये धन्ना सेठ हुए
बाइसिकल पर चलने वालों के अब अपने जेट हुए
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे
नहीं भरोसे काबिल है ये बातें कोरी करते हैं
वोट मांगने तुम्हें मनाने हाथाजोड़ी करते हैं
कट्टर से कट्टर दुश्मन से भी गठजोड़ी करते है
कैसे भी सत्ता हथियालें, भागादोड़ी करते हैं
मेरा है यह कहना रे
इनसे बचकर रहना रे
आते नजर चुनाव दिनों में ये मेंढक बरसाती है
नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को जाती है
इनकी जाति धर्म की चाले लोगों को भड़काती है
ये मतलब के यार हैं केवल,नहीं किसी के साथी हैं
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे
मुफ्त मुफ्त की खैरातें दे ये तुमको ललचाएंगे
साम दाम और दंड भेद से ,अपना चक्र चलाएंगे
कैसे भी दंद फंद करेंगे ,वोट आपका पाएंगे
और जो कुर्सी पाएंगे तो भूल तुम्हें यह जाएंगे
मेरा है यह कहना रे
इनसे बचकर रहना रे
जाए भाड़ में देश तरक्की,पहले अपनी करते हैं
जनता भूखी रहे पेट ये पहले अपना भरते हैं
छुपी बगल में छुरी भले ही मुख से राम सुमरते हैं
सत्ता पाकर बने निरंकुश नहीं किसी से डरते हैं
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे
रंगे हुए सियार है ये सब इनसे बचकर रहना रे
इनकी मीठी मीठी बातें ,वादों में मत बहना रे
बाकी समझदार तो सब है हमको इतना कहना रे
पांच साल तक वरना मुश्किल तुम्हें पड़ेगी सहना रे
इसीलिए यह कहना रे
इन से बच कर रहना रे
जब भी आएगा चुनाव
तुम वोट समझ कर देना रे
मदन मोहन बाहेती घोटू
सोमवार, 4 अक्टूबर 2021
उड़ परिंदे उड़
उड़ परिंदे उड़
रोज होने वाली जीवन की
गतिविधियों से जुड़
उड़ परिंदे उड़
देख है कितना दिन चढ़ा
सोच रहा क्या पड़ा पड़ा
पंख तू अपने फड़फड़ा
कदम लक्ष्य की और बढ़ा
अपना आलस झाड़ कर
दाना पानी जुगाड़ कर
जीने को ये करना पड़ता
और पेट है भरना पड़ता
कोई मदद को ना आएगा
तू भूखा ही मर जाएगा
इसलिए ऊंची उड़ान भर,
तू पीछे मत मुड़
उड़ परिंदे उड़
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 3 अक्टूबर 2021
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
कुछ खाने से परहेज नहीं ,कुछ पीने से परहेज नहीं उल्टी-सीधी हरकत करने से भी है कोई गुरेज नहीं करती परहेज बुजुर्गों से, क्यों नई उमर की नई फसल
जबकि मालूम उन्हें उनकी भी ये ही हालत होनी कल
आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की
तुम इज्जत करो बुजुर्गो की
जो सोचे सदा तुम्हारा हित, हैं खेरख्वाह सोते जगते
जिनके कारण तुम काबिल हो, वो नाकाबिल तुमको लगते
उनके विचार संकीर्ण नहीं उनकी भी सोच आधुनिक है
वो है भंडार अनुभव का,और प्यार भरा सर्वाधिक है दिल उनका अब भी है जवान, मत देखो बूढ़ी हुई शकल
करती परहेज बुजुर्गों से क्यों नई उमर की नई फसल
आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
यह सच है कि उनमें तुमने अंतर आया एक पीढ़ी का
पर ऊंचा तुम्हें उठाने उनने, काम किया है सीढ़ी का
वह संरक्षक है, शिक्षक है ,वह पूजनीय सन्मान करो
उनके आशीर्वादो से तुम, निज जीवन का उत्थान करो
तुम खुश किस्मत हो कि उनका साया है तुम्हारे सर पर
करती परहेज बुजुर्गों से ,क्यों नई उमर की नई फसल
आवश्यक बहुत हिफाजत है संस्कृति के इन दुर्गों की
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
मदन मोहन बाहेती घोटू
क्या होगा
जब डॉक्टर ही बिमार पड़े तो फिर मरीज का क्या होगा जब पत्नीजी दिन रात लड़े तो पति गरीब का क्या होगा
जब मुंह के दांत ही आपस में, हरदम टकराते रहते हैं, तो दो जबड़ों के बीच फंसी, मासूम जीभ का क्या होगा
हमने उनपे दिल लुटा दिया और उनसे मोहब्बत कर बैठे पर उनने ठुकरा दिया हमेअब इस नाचीज़ का क्या होगा
वह दूर दूर बैठे, घंटों , जब आंख मटक्का करते हैं किस्मत ने मिला दिया जो तो,मंजर करीब का क्या होगा
अरमानों से पाला जिनको, कर रहे तिरस्कृत वह बच्चे बूढ़े होते मां बाप दुखी, उनकी तकलीफ का क्या होगा
कहते हाथों की लकीरों में, किस्मत लिखता ऊपरवाला मेहनत से घिसें लकीरे तो, उनके नसीब का क्या होगा
महंगाई से तो ना लड़ते,लड़ते कुर्सी खातिर नेता ,
होगा कैसे उन्नत यह देश , इसके भविष्य का क्या होगा
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 30 सितंबर 2021
लकीरे
चित्रकार के हाथों जब लकीरे उकरती है
तो कैनवास पर जागृत हो जाती है एक सूरत
किसी नक्शे की लकीरे,जब दीवारें बन कर उगती है
तो खड़ी हो जाती है एक इमारत
लकीरों की ज्यामिति के बल पर ही ,
इंसान चांद तक पहुंच पाता है
पगडंडी सी लकीरे ,जब प्रगति करती है
तो राजमार्ग बन जाता है
नारी की मांग में सिंदूर की लकीर
उसके सुहागन होने की निशानी है
परंपरा की लकीरों पर चलकर ही,
हमें अपनी संस्कृति बचानी है
महाजनों के पदचिन्हों की लकीरें
हमारी प्रगति के लिए पथ प्रदर्शक है
नारी के तन की वक्ररेखाएं
उसे बनाती बहुत आकर्षक है
परेशानी में आदमी के माथे पर
चिंता की लकीरें खिंच जाती है
हमारे सलोने चेहरे पर झुर्रियों की लकीरें
बढ़ती हुई उम्र का अहसास कराती है
हमारी हथेली में लकीरों में
भगवान ने लिख कर भेजी हमारी तकदीर है
आप माने ना माने मगर यह सच है
कि हर बंदा लकीर का फकीर है
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुधवार, 29 सितंबर 2021
गुब्बारे
भैया हम गुब्बारे हैं
भरी हवा है, फूल रहे हम मगर गर्व के मारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं
अभी जवानी है, तनाव है,चमक दमक चेहरे पर है
उड़े उड़े हम फिरते, जैसे लगे हुए हम पर, पर हैं
बच्चे हम संग खेल रहे ,हम बच्चों का मन बहलाते
शुभअवसर पर, साज सजावट में हम सबके मनभाते संग हवा के उड़ते रहते, हम निरीह बेचारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं
दिखने की ढब्बू है लेकिन हम तन के कमजोर बड़े
जाते फूट,अगर छोटा सा कांटा भी जो हमें गढ़े
यूं भी धीरे-धीरे हवा निकल जाती, मुरझाते हम
क्षणभंगुर है जीवन फिर भी रहते हैं मुस्काते हम
प्राणदायिनी हवा ,हवा में बसते प्राण हमारे हैं
भैया हम गुब्बारे हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
मेरी दादी
आज अचानक याद आ गई मुझको मेरी दादी की
नेह भरी, प्यारी, मुस्काती, निश्चल सीधी-सादी की
गोरा चिट्टा गोल बहुत था, जब हंसती मुस्कुराती थी
तो हाथों से मुंह ढक अपने, टूटे दांत छुपाती थी
दादाजी थे स्वर्ग सिधारे ,जब बाबूजी नन्हे थे
पालपोस कर बड़ा किया,दुख कितने झेले उनने थे
वात्सल्य की मूरत थी वो, सब के प्रति था प्यार भरा बच्चों खातिर,सबसे भिड़ती,डर था मन में नहीं जरा
हर मुश्किल से टक्कर लेती, उनमें इतनी हिम्मत थी
संघर्षों से खेली थी वह ,बड़ी जुझारू, जीवट थी
मुझे सुला अपनी गोदी में, मेरा सर सहलाती थी
किस्से और कहानी कहती,अक्सर मुझे सुलाती थी
मैं शैतानी करता कोई ,अगर शिकायत आती थी
तो बाबूजी की पिटाई से, दादी मुझे बचाती थी
नन्हें हाथों से दादी की, पीठ खुजाया करता मैं
तो बदले में दादी से ,एक पैसा पाया करता मैं
पांव दुखा करते दादी के, उन्हें गूंधता में चढ़कर
दो पांवों के दो पैसे ,दादी से लेता मैं लड़ कर
सब पर स्नेह लुटानेवाली ,सबके मन को भाती की
आज अचानक याद आगई ,मुझको मेरी दादी की
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 26 सितंबर 2021
क्यों
जिसमें होती अक्ल जरा कम ,
उसे कम अक्ल कहते हैं सब,
तो क्यों मंद अक्ल वाले को
कहते अकलमंद और ज्ञानी
कलम रखो वह कलमदान है,
फूल रखो वह फूल दान है ,
पास फटकने ना दे मच्छर
क्यों कहलाती मच्छरदानी
जिसका चेहरा भाव शून्य हो
लगती हो पत्थर की मूरत
आती जिसको कभी हंसी ना,
मगर हसीना वह कहलाती
जोर नहीं कमजोर ठीक है,
होती जिसमें कोई कमी ना ,
मगर कमीना कहलाता है
बात समझ में यह ना आती
घोटू
प्रतिबंधित जीवन
प्रतिबंधों के परिवेश में ,जीवन जीना बहुत कठिन है
बात बात में ,मजबूरी के ,आंसूं पीना बहुत कठिन है
रोज रोज पत्नीजी हमको ,देती रहती सीख नयी है
इतना ज्यादा ,कंट्रोल भी ,पति पर रखना ठीक नहीं है
आसपास सुंदरता बिखरी ,अगर झांक लूं ,क्या बिगड़ेगा
नज़र मिलाऊँ ,नहीं किसी से ,मगर ताक लूं ,क्या बिगड़ेगा
पकती बिरयानी पड़ोस में ,खा न सकूं ,खुशबू तो ले लूं
सुन सकता क्या नहीं कमेंट्री ,खुद क्रिकेट मैच ना खेलूं
चमक रहा ,चंदा पूनम का ,कर दूँ उसकी अगर प्रशंसा
क्या इससे जाहिर होता है ,बिगड़ गयी है मेरी मंशा
खिले पुष्प ,खुशबू भी ना लूं ,बोलो ये कैसे मुमकिन है
प्रतिबंधों के परिवेश में ,घुट घुट जीना बहुत कठिन है
शायद तुमको डर तुम्हारे ,चंगुल से मैं निकल जाऊँगा
यदि ज्यादा कंट्रोल ना रखा ,मैं हाथों से फिसल जाऊँगा
मुझे पता ,इस बढ़ी उमर में ,एक तुम्ही पालोगी मुझको
कोई नहीं जरा पूछेगा ,तुम्ही घास डालोगी मुझको
खुले खेत में जा चरने की ,अगर इजाजत भी दे दोगी
मुझमे हिम्मत ना चरने की ,कई रोग का ,मैं हूँ रोगी
तरह तरह के पकवानो की ,महक भले ही ललचायेगी
मुझे पता ,मेरी थाली में ,घर की रोटी दाल आएगी
मांग रहा आजादी पंछी ,बंद पींजरे से लेकिन है
प्रतिबंधों के परिवेश में ,घुट घुट जीना बहुत कठिन है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू ;
घर
केवल ईंट और गारे का, ढांचा ना घर होता है
घर वो जिसमें घर वालों में प्रेम परस्पर होता है
वह घर असली घर जिसमें सब मिलजुल कर साथ रहे
जहां प्रेम और सद्भावों की, गंगा जमुना सदा रहे
घर वो जिसमें मेल जोल हो ,भाईचारा भरा रहे
जिसमें हरदम चहल-पहल हो, जो खुशियों से हरा रहे
सुख की हो बरसात जहां पर ,समृद्धि के फूल खिले
जहां अतिथि का स्वागत हो, बांह पसारे सभी मिले
सहनशीलता लोगों में हो, साथ निभाना सब जाने
करें सलाह ,मार्गदर्शन ले ,बात बड़ों की सब माने
घर वह जिसमें देव विराजे, भक्ति भाव हो पूजन हो जहां बुजुर्गों की सेवा हो ,आदर हो और वंदन हो
जहां पिरंडे की पूजा हो, अग्नि जहां जिमाते हो
गौ माता को अर्पित पहली रोटी यहां पकाते हो
राम लखन जैसे भाई हो, बहू रहे सीता जैसी
सास बहू को बेटी माने, सब में प्रीत रहे ऐसी
अच्छे संस्कार से शिक्षित ,हर बच्चे का बचपन हो
इर्षा बैर ना हो आपस में, सब में बस अपनापन हो
ननंद भोजाई ,देरानी और जेठानी में प्यार रहे
दादी बच्चों को बैठा कर, नई कहानी रोज कहे
वह घर,घर संतोष जहां पर नहीं कोई स्पर्धा हो
एक दूसरे की इज्जत, घर का हर प्राणी करता हो
हो हर रात दिवाली जैसी ,सब दिन हो उल्लास भरे वह घर,घर ना स्वर्ग तुल्य है , वहां देवता वास करें
मदन मोहन बाहेती घोटू
सोमवार, 20 सितंबर 2021
अहम ब्रह्म
करो व्यवस्थित अपना जीवन
रखो सुरक्षित अपना तन मन
रहो सभी के तुम अपने बन
तभी पाओगे तुम अपनापन
जियो जीवन सीधा-सादा
तभी मिलेगी खुशियां ज्यादा
स्वच्छ संतुलित खाना पीना
तब ही स्वस्थ जिंदगी जीना
मुंह में राम बगल छुरी है
ऐसी आदत बड़ी बुरी है
अपनी कमियां सभी सुधारो
छुपे हुए रावण को मारो
अगर न निर्मल, मन जमुना जल
छुपा कालिया नाग कहीं पर
उसका मर्दन करो कृष्ण बन
तभी सफल होगा यह जीवन
मोह माया का हिरण्यकश्यप
तम्हें सताता रहता जब तब
सहन मत करो, मारो उसको
बन नरसिंह, संहारो उसको
रूप विराट नहीं दिखलाओ
तुम वामन स्वरूप बन जाओ
भू, पाताल और नभ सर्वस
तीन पगों में नापोगे बस
जीवन के समुद्र मंथन में
रखो आस रत्नों की मन में
किंतु हलाहल भी मिलता है
शंकर बन पीना पड़ता है
होते तुम निराश यूं क्यूं हो
प्रभु तुममें ,तुम स्वयं प्रभु हो
चलते जाओ, नहीं थको तुम
जीतोगे, विश्वास रखो तुम
मन में हो जो अटल इरादा
राह न रोक सकेगी बाधा
रखो हौसला, लक्ष्य पाओगे
तुम मंजिल पर पहुंच जाओगे
मदन मोहन बाहेती घोटू
शनिवार, 18 सितंबर 2021
आलोचना
आजकल हर जना
जरूरत से ज्यादा होशियार है बना
अपने गिरेबान में झांकना नहीं ,
करता है औरों की आलोचना
सोच नकारात्मक है
दृष्टिकोण भ्रामक है
जो सिर्फ औरों की कमियां ही दिखाता है
उसे आधा भरा हुआ नहीं ,
बाकी जो खाली है वह आधा गिलास नजर आता है लोगों की अच्छाइयां नहीं दिखती
उनकी बुराइयां ही खोजता है
कोकिला की तरह आम्र तरु पर नहीं,
कौवे की तरह सीधा नीम तक ही पहुंचता है
किसी की गलतियां ढूंढना बड़ा आसान है
गलतियां तो करता ही रहता है इंसान है
अरे इंसान क्या कई बार ,
भगवान से भी गलती हो जाती है
किसी किसी के हाथ में ,
पांच के बदले छह उंगलियां पाई जाती है
गलतियां उसी से होती है जो कुछ करता है
निठल्ले का जीवन तो व्यर्थ ही गुजरता है
कभी अपने अंदर झांकोगे,
तो अपनी भी कई कमियां देख पाओगे
पहले उन्हें सुधारोगे,
तब दूसरों पर उंगली उठाओगे
आत्मविवेचन सबसे बड़ा उपचार है
जो बदल देता आदमी का व्यवहार है
ऐसा करके तुम अपनी जिंदगी संवार सकोगे
खुद सुधरोगे , तभी औरों को सुधार सकोगे
इसलिए सिर्फ गलतियों को मत तलाश करो
कोई गलती नजर आए ,
तो उसे सुधारने का प्रयास करो
इससे तुम्हारी गरिमा बढ़ेगी
तुम्हारी छवि और भी निखरेगी
अपने जीवन को सार्थक करिए
आलोचक नहीं, सुधारक बानिये
मदन मोहन बाहेती घोटू
शुक्रवार, 17 सितंबर 2021
बदलते मौसम
तू जो ना संग, लगती सर्दी,
बढ़ जाती है तन में ठिठुरन
तू पास आती, बढ़ती ऊष्मा ,
होता गर्मी वाला मौसम
तू मिल जाती ,फूल महकते,
खिलता मौसम, बासंती बन
मिलन हमारा बारिश जैसा,
प्यार बरसता रिमझिम रिमझिम
कभी गर्म तू सूरज जैसी,
कभी चांदनी सी शीतल है
जब भी साथ तेरा मिलता है ,
मौसम जाते बदल बदल है
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 16 सितंबर 2021
परहेज
डॉक्टर कहता डायबिटीज है,
जीवन जियो ,सीधा-सादा
मीठे से परहेज करो तुम ,
और नमक ना खाओ ज्यादा
तुम्ही बताओ कैसे छोडूं,
स्वाद तेरे नमकीन बदन का
नहीं मिठास छोड़ सकता हूं ,
तेरे प्यार भरे चुम्बन का
मुझसे यह परहेज ना होगा,
कम ना होगा नेह हमारा
कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा
कैसे भी, मधुमेह हमारा
2
डॉक्टर कहता ब्लड प्रेशर है
रहो शांति से, बरतो संयम
पर जब तुम पास आती हो तो,
बढ़ जाती है दिल की धड़कन
तुमसे दूर रहूं यह प्रेशर
बढ़ा रहा मेरा ब्लड प्रेशर
यह दबाव सब दब जाएगा
बंधन में बाहों के बंध कर
तेरे संग उन्मुक्त प्यार का,
पर आनंद, न तज सकता मैं
लाख डॉक्टर मना करे पर
यह परहेज ,न रख सकता मैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
जियो आत्मा सम्मान से
जब तक जीवन है तुम जियो शान से
समझौता मत करो आत्मसम्मान से
अगर आत्मविश्वास हृदय में खास है
धीरज की पूंजी, जो तुम्हारे पास है
रखो हौसला ,लड़ लोगे तूफान से
समझौता मत करो आत्म सम्मान से
औरों में क्या कमियां है यह मत ताको
पहले अपने गिरेबान में तुम झांको
उन्हें सुधारो , जियोगे आसान से
समझौता मत करो आत्मसम्मान से
लोग कहेंगे क्या, इस पर तुम ध्यान न दो
बकवासों पर दुनिया की तुम कान न दो
सुनो ,निकालो उसे दूसरे कान से
समझौता मत करो आत्मसम्मान से
आसपास की हर हरकत पर नजर रखो
चौकन्ने से रहो ,सभी की खबर रखो
क्या होता है ,रहो नहीं अनजान से
समझौता मत करो आत्मसम्मान से
नहीं किसी से बैर कोई भी मन में हो
मिलनसारिता, प्रेम भाव जीवन में हो
करो मदद कमजोरों की, जी जान से
समझौता मत करो आत्मसम्मान से
सार हीन संसार ,करो सत्कर्म सदा
परोपकार को मानो अपना धर्म सदा
नाम तुम्हारा होगा अच्छे काम से
समझौता मत करो आत्मसम्मान से
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 9 सितंबर 2021
जीवन शैली
यदि खुद पर विश्वास करोगे
नहीं किसी से आस करोगे
जीत लिया जो तुमने भय है
तो तुम्हारी सदा विजय है
रहो सभी के तुम अपने बन
वही करो, जो कहता है मन
ख्याल रखोगे जो तुम सबका
तुम जीतोगे ,यह है पक्का
नहीं सफलता में संशय है
तो तुम्हारी सदा विजय है
अगर लड़ोगे हिम्मत के संग
बनो जुझारू, जीतोगे जंग
सकारात्मक ,सोच रखोगे
तो तुम आगे बहुत बढ़ोगे
जब जागोगे ,तभी सुबह है
तो तुम्हारी सदा विजय है
मदन मोहन बाहेती घोटू
मेरी चाहत
नहीं चाहिए हीरा मोती, नहीं चाहिए बंगला कोठी
बस अपना कर सकूं गुजारा, चाहूं नहीं कमाई खोटी जब तक जीयूं स्वस्थ रहूं मैं,मुझको अच्छी सेहत देना
सबके साथ रहूं हिलमिल कर,प्रभु प्यार की दौलत देना
तूने जब जीवन ये दिया है ,तो सुख दुख भी बांटे होंगे
कभी फूल बरसाए होंगे ,कभी चुभाये कांटे होंगे
सब विपदायें झेल सकूं मैं,मुझको इतनी हिम्मत देना
सबके साथ रहूं हिलमिल कर, प्रभु प्यार की दौलत देना
ऐसा मेरा हृदय बनाना ,भरा हुआ जो संवेदन से दुखियारों के काम आ सकूं,मैं तन से मन से और धन से
श्रद्धा रखूं ,बुजुर्गों के प्रति, मेरे मन में इज़्जत देना
सबके साथ रहूं हिलमिल कर, प्रभु प्यार की दौलत देना
रहे नम्रता भरा आचरण और घमंड भी जरा नहीं हो
मेरे हाथों कभी किसी का, भूले से भी, बुरा नहीं हो
मन में भक्ति, तन में शक्ति और सब के प्रति चाहत देना
सब के साथ रहूं हिलमिल कर ,प्रभु प्यार की दौलत देना
मदन मोहन बाहेती घोटू
सफेदी का चमत्कार
सफेदी की चमकार
बार-बार
लगातार
जी हां ,हम सबको है सफेदी से प्यार
सफेद चूने से पोत कर रखते हैं घर की दरो दीवार
रोज ब्रश करते हैं रखने को दांतों की सफेदी बकरार
मेहनत करके,टैक्स भर के ,
सफेद कमाई की जाती है
वर्षों के अनुभव के बाद सर पर सफेदी आती है
सफेद रंग में चीनी का मिठास है
सफेद रंग में नमक का स्वाद है
सफेद रंग में वाष्प की गरमाई है
सफेद रंग में बर्फ़ की ठंडाई है
सफेद रंग में दूध की पौष्टिकता है
सफेद रंग में रुई की कोमलता है
सफेद रंग झरनो की तरह निर्मल है
सफेद रंग हिमालय की तरह सुदृढ़ है
सफेद रंग शांति का द्योतक है
सफेद रंग में धूप की चमक है
सफेद कबूतर उड़ा के शांति का संदेश दिया जाता है
तो क्यों कुछ लोगों का खून सफ़ेद पड़ जाता है
तो क्यों कुछ सफेदपोश नेता काली कमाई करते हैं
सफेद दाढ़ी वाले कुछ बाबाओं की काली करतूतें है
तो क्यों लोग सफेद बगुला भगत बने शिकार करते हैं
तो क्यों कुछ लोग सफेद झूठ बोलने से नहीं डरते हैं
कई लोग जो खुद को बतलाते दूध के धुले हैं
वे सब सफेद रंग को बदनाम करने में तुले हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 5 सितंबर 2021
गुरु गुड़, चेला शक्कर
गुरुजी तो रह गए लघु जी, चेले गुरु घंटाल हो गए
गुरु जी अब भी फटे हाल है, चेले मालामाल हो गए
गुरुजी रहे सिखाते अ आ इ ई क ख ,एबीसीडी
वह अब भी नीचे है ,चेले चढ़े तरक्की की हर सीढ़ी खड़ा बेंच पर किया गुरु ने, वो है अब कुर्सी पर बैठे
वह अब ऐंठे ऐंठे रहते ,कान गुरु ने जिनके ऐंठे
जिनको गुरुजी ने पीटा था,जमकर पैसे पीट रहे हैं बहुत बड़े वह ढीठ आजकल ,बचपन से जो ढीठ रहे हैं
गुरु थे मुर्गा जिन्हें बनाते, वह मुर्गा हलाल हो गए
गुरु जी अब भी फटे हाल हैं,चेले मालामाल हो गए
गुरुजी की गई मास्टरी,चेले मास्टर बहुत बड़े हैं
जिन्हें क्लास से बाहर करते,दफ्तर बाहर आज खड़े हैं
लंगडी भिन्न सिखाई जिनको, भिन्न हुई उनकी बोली है
गुरुजी गुड़ की डली रह गए, चेले शक्कर की बोरी है
जिनको बारह खड़ी सिखाई, उनके आज हुए पौबारा
कोई नेता कोई अफसर ,कोई बड़ी फैक्ट्री वाला
दो दूनी चार भुलाया उनने, दो के कई हजार हो गए
गुरुजी तो अब भी फटेहाल हैं,चेले मालामाल हो गए
मदन मोहन बाहेती घोटू
शिक्षक दिवस पर धन्यवाद ज्ञापन
है धन्यवाद टीचर ,तुमने मुझे पढ़ाया
पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया
करता था काम चोरी ,आदत मेरी सुधारी
गालों पर चपत मारी ,हाथों पर बेंत मारी
देकर के सजा अक्सर ,मुर्गा मुझे बनाया
पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया
मुझे डाटते थे अक्सर, कहते थे मैं गधा हूं
उपकार आपका ये, मै मानता सदा हूं
मेरा गधत्व जागा ,जो अब है काम आया
पग पग पर सीख देकर ,जीना मुझे सिखाया
कक्षा में बेंच ऊपर ,करके खड़ा सजा दी
उपहास सहते रहना, आदत मेरी बना दी
निर्लज्ज हंसते रहना, चिकना घड़ा बनाया
पग पग पर सीख देकर, जीना मुझे सिखाया
साहब की बात मानूं, बीबी की बात मानूं
बच्चों की बात मानूं,मैं सब की बात मानूं
ऑबिडिएंट इतना ,तुमने मुझे बनाया
पग पग पे हाथ सीख देकर, जीना मुझे सिखाया
ट्रेनिंग ये आपकी अब, मेरे काम आ रही है
डाट और डपट का कोई ,होता असर नहीं है
मैं ढीठ बना सहता,जाता हूं जब सताया
पग पग पे सीख देकर, जीना मुझे सिखाया
है धन्यवाद टीचर, तुमने मुझे पढ़ाया
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 2 सितंबर 2021
चुहुलबाजियां
चिढ़ा चिढ़ा कर तुम्हें सताना, मेरे मन को बहुत सुहाता
यूं ही चुहुलबाजियों में बस,अपना वक्त गुजर है जाता
हम दोनों ही बूढ़े प्राणी ,इस घर में रह रहे इकल्ले कामकाज कुछ ना करना है,बैठे रहते यूं ही निठल्ले
कब तक बैठे देखें टीवी ,बिन मतलब की गप्पें मारे
सचमुच,बड़ा कठिन होता है, कैसे अपना वक्त गुजारें
इसीलिए हम तू तू,मैं मैं, करते मजा बहुत हैआता
यूं ही चुहुलबाजियों में बस,अपना वक्त गुजर है जाता
कई बार तू तू मैं मैं जब ,झगड़े में परिवर्तित होती
बात बिगड़ती,मैं इस करवट और तू है उस करवट सोती
तेरा रूठना,मेरा मनाना, यह भी होता है एक शगल है
यूं ही मान मनौव्वल में बस,जाता अपना वक्त निकल है
हिलमिल फिर हम एक हो जाते,तू हंसती मैंभीमुस्कुराता
यूं ही चुहुलबाजियों में बस ,अपना वक्त गुजर है जाता
इसी तरह मेरी तुम्हारी, आपस में चलती है झकझक
जबतक हम तुम संगसंग है तबतक इस घर में है रौनक
तुम कितनी ही रूठ जाओ पर भाग्य हमारा कभी न रुठे
अपनी जोड़ी रहे सलामत ,साथ हमारा कभी न छूटे ईश्वर रखे बनाकर हरदम ,सात जन्म का अपना नाता
यूं ही चुहुलबाजियों में बस, अपना वक्त गुजर है जाता
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 29 अगस्त 2021
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मुहावरों का चिड़ियाघर
यह मुहावरों का चिड़ियाघर ,जानवरों से जुड़ा हुआ है
उनकी आदत और स्वभाव केअनुभव से ये भरा हुआ है
जिसकी लाठी भैंस उसीकी,यह होता देखा है अक्सर
ज्ञान बांटते फिरते जिनको, काला अक्षर भैंस बराबर
अकल बड़ी या भैंस याकि जो भैंस के आगे बीन बजाए
रहे हाथ मलता बेचारा ,चली भैंस पानी में जाए
नौ सौ चूहे मार के कोई, बिल्ली जैसा हज को जाता
कोई से गलती होती तो ,वह भीगी बिल्ली बन जाता
मेरी बिल्ली मुझसे ही जब म्याऊं करती ,बात बिगड़ती
बिल्ली गले कौन बांधेगा, घंटी सारी दुनिया डरती
हो जो अपनी गली, शेर फिर कुत्ता भी बन जाया करता
धोबी का कुत्ता बेचारा , न तो घाट ना घर का रहता
जो कुत्ते भोंका करते हैं अक्सर नहीं काटते हैं वो
दुम मालिक आगे हिलती है उनके पैर चाटते हैं वो
कर लो कोशिश लाख पूंछ ना,उनकी सीधी है हो पाती
और गीदड़ की भभकी ,लोगों को अक्सर है बहुत डराती
समय कभी जब पड़ता बांका,लोग गधे को काका कहते
और गधे के सींग की तरह मौके पर है गायब रहते
दिन भर खटता रहे आदमी ,काम गधे की तरह कर रहा गधा धूल में कभी लोटता, कभी रेंकता घास चर रहा आता ऊंट पहाड़ के नीचे ,तो अपनी औकात जानता
ऊंट कौन करवट बैठेगा ,यह कोई भी नहीं जानता नेताओं को कुछ भी दे दो, होता ऊंट मुंह में जीरा
ऊंची गर्दन ,पूंछ है छोटी, रेगिस्तानी जहाज रंगीला
घोड़ा अगर घास से यारी ,कर लेगा तो क्या खाएगा
घोड़े बेच कोई सोएगा, तो सोता ही रह जाएगा
हाथी चलता ही रहता है कुत्ते सदा भोंकते रहते
दांत हाथी के, खाने के कुछ ,और दिखाने के कुछ रहते
घुड़की सदा दिखाएं बंदर ,स्वाद अदरक का जान न पाए
भूले नहीं गुलाटी मारना, बूढ़ा कितना भी हो जाए
खैर मनाएगी बकरे की अम्मा बोलो तुम ही कब तक
काटी ना जाती है मुर्गी ,सोने का अंडा दे जब तक
शेर न कभी घास खाता है, चाहे भूखा ही मर जाए
हैं खट्टे अंगूर लोमड़ी,यदि उन तक वह पहुंच न पाए
बगुला भगत मारता मछली, कौवा चाल हंस की चलता
मोर नाचता है जंगल में, कोई न देखे ,मन को खलता
कांव-कांव कौवे की ,कोई के आने की सूचक होती कोयल अंबिया, काग निबौली, और हंस है चुगता मोती
रंगा हुआ सियार साथियों के, संग करता हुआ हुआ है
यह मुहावरों का चिड़ियाघर ,जानवरों से जुड़ा हुआ है
मदन मोहन बाहेती घोटू
शनिवार, 28 अगस्त 2021
संतानों से
जिनने अपना पूरा जीवन, तुम पर जी भर प्यार लुटाया भूले भटके, मात-पिता से प्यार कर लिया करो कभी तो
मर जाने के बाद याद तुम करो ना करो फर्क नहीं पड़ता जबतक जिंदा है उनको तुम याद करलिया करो कभीतो
कैसे हैं किस हाल में है वह जीवित है या गुजर गए हैं
उनकी मौजूदा हालत का ख्याल कर लियाकरो कभी तो
मरने बाद श्राद्ध पंडित को खिलवाना या मत खिलवाना,
अभी तो नहीं भूखे यह पड़ताल कर लिया करो कभी तो
उनमे गैरत है, न तुम्हारे आगे हाथ पसारेंगे वो
लेकिन उनकी जरूरतों का ख्याल कर लिया करो कभी तो
नहीं चाहिए उनको कुछ भी ,बस दो मीठे बोल ,बोल दो उनके प्रति श्रद्धा दिखला सन्मान कर लिया करो कभी तो
अरे आज है कल ना रहेंगे कितने दिन जीना है उनको बूढ़े हैं ,उनकी थोड़ी संभाल कर लिया करो कभी तो
तुम जैसे भी हो मरते दम तक वो तुम्हें दुआएं देंगे
तुमभी उनके संग अच्छा व्यवहार कर लिया करो कभी तो
मदन मोहन बाहेती घोटू
शुक्रवार, 27 अगस्त 2021
मुहावरों की महिमा
ये मुहावरे, बड़े बावरे, इनका खेल समझ ना आता
किंतु रोजमर्रा के जीवन ,से है इनका गहरा नाता
अगर दाल में कुछ काला है तो वह साफ नजर आता है
थोड़ी सी असावधानी से ,गुड़ का गोबर बन जाता है
हींग लगे ना लगे फिटकरी, फिर भी रंग आता है चोखा
लेकिन टेढ़ी खीर हमेशा, हमको दे जाती है धोखा
कोई छीछालेदर करता ,कोई रायता फैलाता है
बात न कुछ होती राई का लेकिन पर्वत बन जाता है
कई बार हम पहाड़ खोदते, चूहा मगर निकल आता है
चूहे को चिन्दी मिल जाती, तो बजाज वो बन जाता है
नहीं बाप ने मारा मेंढक, बेटा तीरंदाज बन गया
कल खेला करता रुपयों से,वह ठन ठन गोपाल बन गया
कोई आंख में धूल झोंकता, कोई खिचड़ी अलग पकाता
और अकल के मारा कोई, भैंस के आगे बीन बजाता
किस्मतवाले कुछ अंधों के हाथ बटेर जब लग जातीहै
अंधा अगर रेवड़ी बाटे ,अपनों को ही मिल पाती है
कुछ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते, लठ्ठ धूल में मारे
कोई अपने पांव कुल्हाड़ी मारे अपना काम बिगाड़े
कोई उंगली पकड़ पकड़ कर पहुंचे तलक पहुंच जाते हैं
कोई छेद उसी में करते ,जिस थाली में वो खाते हैं
अगर ओखली में सिर डाला, मूसल से फिर डरा जाता
कई बार कंगाली में भी ,आटा है गीला हो जाता
कहीं छलकती अधजल गगरी कहीं भरे गागर में सागर
कोई चिकना घड़ा, डूबता कोई पानी में चुल्लू भर
कोई टस से मस ना होता ,कोई झक्क मारता रहता
कोई ढोल की पोल छुपाता, तिल का ताड़ बनाता रहता
दाल किसी की ना गलती है, कोई है थाली का बैंगन
और किसी की पांचो उंगली ,घी में ही रहती है हरदम
कोई नाकों चने चबाता, कोई होता नौ दो ग्यारह
पापड़ कई बेलने पड़ते, तब ही होती है पौबारह
कोई मक्खी मारा करता, कोई भीगी बिल्ली रहता
कोई धोबी के कुत्ते सा ,घर का नहीं घाट का रहता
नौ मन तेल न राधा नाचे,नाच न जाने , टेढ़ा आंगन
कल तक जिसकी तूती बजती,चुप है जबसे बदला मौसम
और नक्कारखाने में तूती की आवाज न सुन पाते हम
हरदम रहे मस्त मौला जो ,भादौ हरा न सूखे सावन
बरसो रखो भोगली में पर,सीधी ना हो पूंछ श्वान की
अक्सर दांत गिने ना जाते,बछिया हो जो अगर दान की
छोटी-छोटी बात भले पर,गागर में सागर भर आता
ये मुहावरे बड़े बावरे ,इनका खेल समझ ना आता
मदन मोहन बाहेती घोटू
मुहावरों की महिमा
ये मुहावरे, बड़े बावरे, इनका खेल समझ ना आता
किंतु रोजमर्रा के जीवन ,से है इनका गहरा नाता
अगर दाल में कुछ काला है तो वह साफ नजर आता है
थोड़ी सी असावधानी से ,गुड़ का गोबर बन जाता है
हींग लगे ना लगे फिटकरी, फिर भी रंग आता है चोखा
लेकिन टेढ़ी खीर हमेशा, हमको दे जाती है धोखा
कोई छीछालेदर करता ,कोई रायता फैलाता है
बात न कुछ होती राई का लेकिन पर्वत बन जाता है
कई बार हम पहाड़ खोदते, चूहा मगर निकल आता है
चूहे को चिन्दी मिल जाती, तो बजाज वो बन जाता है
नहीं बाप ने मारा मेंढक, बेटा तीरंदाज बन गया
कल खेला करता रुपयों से,वह ठन ठन गोपाल बन गया
कोई आंख में धूल झोंकता, कोई खिचड़ी अलग पकाता
और अकल के मारा कोई, भैंस के आगे बीन बजाता
किस्मतवाले कुछ अंधों के हाथ बटेर जब लग जातीहै
अंधा अगर रेवड़ी बाटे ,अपनों को ही मिल पाती है
कुछ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते, लठ्ठ धूल में मारे
कोई अपने पांव कुल्हाड़ी मारे अपना काम बिगाड़े
कोई उंगली पकड़ पकड़ कर पहुंचे तलक पहुंच जाते हैं
कोई छेद उसी में करते ,जिस थाली में वो खाते हैं
अगर ओखली में सिर डाला, मूसल से फिर डरा जाता
कई बार कंगाली में भी ,आटा है गीला हो जाता
कहीं छलकती अधजल गगरी कहीं भरे गागर में सागर
कोई चिकना घड़ा, डूबता कोई पानी में चुल्लू भर
कोई टस से मस ना होता ,कोई झक्क मारता रहता
कोई ढोल की पोल छुपाता, तिल का ताड़ बनाता रहता
दाल किसी की ना गलती है, कोई है थाली का बैंगन
और किसी की पांचो उंगली ,घी में ही रहती है हरदम
कोई नाकों चने चबाता, कोई होता नौ दो ग्यारह
पापड़ कई बेलने पड़ते, तब ही होती है पौबारह
कोई मक्खी मारा करता, कोई भीगी बिल्ली रहता
कोई धोबी के कुत्ते सा ,घर का नहीं घाट का रहता
नौ मन तेल न राधा नाचे,नाच न जाने , टेढ़ा आंगन
हरदम रहे मस्त मौला जो ,भादौ हरा न सूखे सावन बरसो रखो भोगली में पर,सीधी ना हो पूंछ श्वान की
अक्सर दांत गिने ना जाते,बछिया हो जो अगर दान की छोटी-छोटी बात भले पर,गागर में सागर भर आता
ये मुहावरे बड़े बावरे ,इनका खेल समझ ना आता
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 26 अगस्त 2021
तू मेरी तकदीर बन गई
मैं सीधा सा भोला भाला
पर तूने घायल कर डाला
गई चीर जो मेरे दिल को ,
नजर तेरी शमशीर बन गई
मैं स्वच्छंद विचरता रहता
अपने मनमाफिक था बहता
तूने प्यार जाल में बांधा,
जुल्फ तेरी जंजीर बन गई
मैं रेतीला राजस्थानी
मिला प्यार का तेरे पानी
तन मन में हरियाली छाई
मेरी छवि कश्मीर बन गई
मैं एक पत्ता हरा भरा था
तूने छुआ रंग निखरा था
मेहंदी हाथ रचाई तूने,
लाल मेरी तस्वीर बन गई
मैं चावल का अदना दाना
पाया तेरा साथ सुहाना
तूने अपने साथ उबाला,
स्वाद भरी फिर खीर बन गई
हाथों में किस्मत की रेखा
लेकिन जब से तुझको देखा
तू और तेरी वर्क रेखाएं
ही मेरी तकदीर बन गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
बुधवार, 25 अगस्त 2021
मिलन पर्व
रूप तुम्हारा मन को भाया,
तुमने भी कुछ हाथ बढ़ाया
बंधा हमारा गठबंधन और ,
मिलन पर्व हैअब जब आ
सांसो से सांसे टकराई
और प्रीत परवान चढ़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
तुमने जब एक अंगड़ाई ली,
फैला बांह ,बदन को तोड़ा
देखा उस सुंदर छवि को तो,
सोया मन जग गया निगोड़ा
फिर जो तेरे अलसाये से ,
तन की मादक खुशबू महकी
मेरे तन मन और बदन में,
एक चिंगारी जैसी दहकी
पहले वरमाला, बांहों की,
माला फिर थी गले पड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
मैंने जब तुमको सहलाया ,
प्यार तुम्हारा भी उमड़ाया
बात बड़ी आगे, अधरों ने ,
जब अधरों का अमृत पाया
हम तुम दोनों एक हो गए,
बंध बाहों के गठबंधन में
सारा प्यार उमड़ कर आया
और सुख सरसाया जीवन में
मैं न रहा मैं, तुम न रही तुम,
ऐसी हमने प्रीत जुड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
मंगलवार, 24 अगस्त 2021
शाश्वत सच
मैं चौराहे पर खड़ा हुआ
क्योंकि मुश्किल में पड़ा हुआ
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं,
यह प्रश्न सामने खड़ा हुआ
एक तरफ जवानी के जलवे
जिनमें मैं डूबा था अब तक
एक तरफ बुढ़ापा बुला रहा
देता है बार-बार दस्तक
मैं किधर जाऊं, क्या निर्णय लूं
मन में उलझन, शंशोपज है
आएगा बुढ़ापा निश्चित है
क्योंकि ये ही शाश्वत सच है
कोई चिर युवा नहीं रहता
यह सत्य हृदय को खलता है
दिन भर जो सूरज रहे प्रखर,
वह भी संध्या को ढलता है
रुक पाता नहीं क्षरण तन का,
मन किंतु बावरा ना माने
इसलिए लगा हूं बार-बार
मैं अपने मन को समझाने
तू छोड़ मोह माया सारी
अब आया समय विरक्ती का
जी भर यौवन में की मस्ती,
अब वक्त प्रभु की भक्ति का
एक वो ही पार लगाएंगे,
तेरा बेड़ा भवसागर में
तू भूल के सांसारिक बंधन
अब बांधले बंधन ईश्वर से
मदन मोहन बाहेती घोटू
मिलन पर्व
रूप तुम्हारा मन को भाया, तुमने भी कुछ हाथ बढ़ाया
बंधा हमारा गठबंधन और मिलन पर्व हैअब जब आया
सांसो से सांसे टकराई और प्रीत परवान चढ़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
तुमने जब एक अंगड़ाई ली, फैला बांह ,बदन को तोड़ा
देखा उस सुंदर छवि को तो सोया मन जग गया निगोड़ा
फिर जो तेरे अलसाये से ,तन की मादक खुशबू महकी
मेरे तन मन और बदन में, एक चिंगारी जैसी दहकी
और फिर मुझे सताने तुमने करवट बदली और मुड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
मैंने जब तुमको सहलाया ,प्यार तुम्हारा भी उमड़ाया
बात बड़ी आगे अधरों ने ,जब अधरों का अमृत पाया
हम तुम दोनों एक हो गए, बंध बाहों के गठबंधन में सारा प्यार उमड़ कर आया और सुख सरसाया जीवन में
मैं न रहा मैं, तुम न रही तुम, ऐसी हमने प्रीत जुड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई
मदन मोहन बाहेती घोटू
रविवार, 22 अगस्त 2021
रक्षाबंधन नया विचार
जब भी आता है हर साल,
रक्षाबंधन का त्योहार
बहन भाई को बांध के राखी
जतलाती है अपना प्यार
जागृत हो जाता है मन में ,
बचपन का वह लाड़ दुलार
जबकि मनौती मांगे बहना,
जिये भाई उसका सौ साल
यह प्यारा त्यौहार हर्ष का,
आए हर बरस सावन में
भाई बहन के प्यारे रिश्ते
आ जाते नवजीवन में
रक्षा सूत्र कलाई में जब,
भाई की बांधा जाता
बहन भाई से ले लेती है,
अपनी रक्षा का वादा
हर राखी पर मेरे मन में
उठता है यह सोच जरा
भाई भाई में क्यों ना होती
रक्षा की यह परंपरा
छोटा भाई बड़े भाई को
रक्षा सूत्र अगर बांधे
भाई भाई के सारे झगड़े,
रह जाएंगे फिर आधे
अगर भाई अपने भाई को
राखी बांधेगा हर बार
भाई भाई में फिर से जीवित
होगा बचपन वाला प्यार
मदन मोहन बाहेती घोटू
शनिवार, 21 अगस्त 2021
बहन से
(राखी के अवसर पर विशेष )
एक डाल के फल हम बहना
संग संग सीखा,सुखदुख सहना
एक साथ थे ,जब कच्चे थे
मौज मनाते ,सब बच्चे थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
एक दूजे पर ,प्यार लूटना ,
याद आता वो मिलजुल रहना
एक डाली के फल हम बहना
ना कोई चिन्ता , जिम्मेदारी
बचपन की सब बातें न्यारी
कितनी सुखकर,कितनी प्यारी
तितली सा उन्मुक्त उछलना ,
शीतल मंद पवन सा बहना
एक डाल के फल हम बहना
पके समय संग ,टूटे,बिछड़े
पाया स्वाद ,मधुर हो निखरे
अलग अलग होकर सब बिखरे
हमने अपना काम संभाला ,
और तुम बनी ,किसी का गहना
एक डाल के फल हम बहना
एक डोर बांधे जो माँ थी
दूजी डोर बांधती राखी
प्रेम का बंधन ,अब भी बाकी
मिलकर,सुख दुःख बांटा करना ,
दिल की अपने , बातें कहना
एक डाल के फल हम बहना
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(राखी के अवसर पर विशेष )
एक डाल के फल हम बहना
संग संग सीखा,सुखदुख सहना
एक साथ थे ,जब कच्चे थे
मौज मनाते ,सब बच्चे थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
एक दूजे पर ,प्यार लूटना ,
याद आता वो मिलजुल रहना
एक डाली के फल हम बहना
ना कोई चिन्ता , जिम्मेदारी
बचपन की सब बातें न्यारी
कितनी सुखकर,कितनी प्यारी
तितली सा उन्मुक्त उछलना ,
शीतल मंद पवन सा बहना
एक डाल के फल हम बहना
पके समय संग ,टूटे,बिछड़े
पाया स्वाद ,मधुर हो निखरे
अलग अलग होकर सब बिखरे
हमने अपना काम संभाला ,
और तुम बनी ,किसी का गहना
एक डाल के फल हम बहना
एक डोर बांधे जो माँ थी
दूजी डोर बांधती राखी
प्रेम का बंधन ,अब भी बाकी
मिलकर,सुख दुःख बांटा करना ,
दिल की अपने , बातें कहना
एक डाल के फल हम बहना
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
शुक्रवार, 20 अगस्त 2021
जाओ चाय बना कर लाओ
बूढ़े बुढ़िया, मियां बीबी, बैठ बुढ़ापे में क्या करते
तनहाई में गप्प मारते ,अपना वक्त गुजारा करते
दुनिया भर की, इधर उधर की, बहुत ढेर सारी है बातें
कई बार जागृत हो जाती, पिछली धुंधली धुंधली यादें
मुझे देखने आए थे तुम ,पत्नी जी ने पूछा हंसकर
ऐसा मुझ में क्या देखा था, जो तुम रीझ गए थे मुझ पर
क्या वह मेरी रूप माधुरी थी या था वो खिलता चेहरा
या मेरी मासूम निगाहें, जिन पर पड़ा लाज का पहरा
या फिर मेरा खिलता यौवन,या मतवाली मुस्कुराहट थी
चोरी-चोरी तुम्हें देखना या फिर मेरी घबराहट थी
कुछ तो था जो तुम सकुचाए,रहे देखते मुझे एकटक
बढ़ी हुई थी मेरी धड़कन, धड़क रहा मेरा दिल धक धक
न तो बात की ना कुछ पूछा ना कुछ बोले नही कुछ कहा
यूं ही फुसफुसा,मां कानों में, तुमने झट से कर दी थी हां
मैं बोला सच कहती हो तुम,मै था बिल्कुल भोला भाला
पहली बार किसी लड़की को पास देखकर था मतवाला
यूं कॉलेज में ,यार दोस्त संग हम लड़की छेड़ा करते थे
लेकिन बात बिगड़ ना जाए ,हम घबराते और डरते थे
पहली बार तुम्हें देखा था जीवन साथी चुनने खातिर
तुम सुंदर थी भोली भाली रूप तुम्हारा था ही कातिल
तुम्हें देख कर परख रहा था ,पत्नी बनी लगोगी कैसी
फिर तुम्हारी शर्माहट और सकुचाहटभी थी कुछ ऐसी
तुम जो ट्रे में लिए चाय के ,प्याले आई थी घबराते
हाथों के कंपन के कारण, चाय भरे प्याले टकराते उनकी टनटन का वह मधु स्वर मेरे मन को रिझा गयाथा
दिया चाय का प्याला जिसमें अक्स तुम्हारा समा गया था
यह प्यारा अंदाज तुम्हारा, लूट ले गया मेरा मन था पहली चुस्की नहीं चाय की,वह मेरा पहला चुंबन था फिर आगे क्या हुआ पता है तुमको और मालूम मुझे है
पति पत्नी बन जीवन काटा,मस्ती की और लिऐ मजे हैं
अपनी पहली मुलाकात को, एक बार फिर से दोहराओ
वक्त हो गया, तलब लगी है जाओ चाय बना कर लाओ
मदन मोहन बाहेती घोटू
मंगलवार, 17 अगस्त 2021
शांति का अस्त्र मोबाइल
याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में
पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम, तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
दूर-दूर हम बैठे रहते ,
नहीं किसी से कुछ भी कहते
अपने अपने मोबाइल से ,
हम दोनों ही चिपके रहते
फुर्सत नहीं हमें की देखें
एक दूजे को उठाकर नजरें
अपनी अपनी ही दुनिया में ,
खोए रहते हम बेखबरे
आपस में हम बात करें क्या
,कोई टॉपिक नजर ना आता
मेरा वक्त गुजर जाता है,
वक्त तुम्हारा भी कट जाता
बात शुरू यदि कोई होती,
तू तू मैं मैं बढ़ जाती है
मेरे हरेक काम में तुमको ,
कोई कमी नजर आती है
इसीलिए शांति से जीने
का पाया यह रस्ता सुंदर
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,
मोबाइल से खेलो दिनभर
यह तुम्हारी सुन लेता है ,
दो आदेश ,काम करता है
उंगली से तुम इसे नचाती ,
चुप रहता, तुम से डरता है
मैं ये सब ना कर सकता था
इस कारण होता था झगड़ा
हम तुम बहुत सुखी है जब से,
हाथों में मोबाइल पकड़ा
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,
टोका टाकी मिट जाती है
नोकझोंक सब बंद हो जाती,
घर में शांति पसर जातीहै
मौन भावना पर हो जाती,
रह जाती है दिल की दिल में
तुम खुश अपने मोबाइल में,
मैं कुछ अपने मोबाइल में
मदन मोहन बाहेती घोटू
शांति का अस्त्र मोबाइल
याद जमाना आता जब हमजो कुछ पल भी थे नामिलते
बेचैनी सी छा जाती थी ,और चलती थी छुरियां दिल में
पर कुछ ऐसा पलटा मौसम, बदल गया है सारा आलम,
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं खुश अपने मोबाइल में
दूर-दूर हम बैठे रहते ,नहीं किसी से कुछ भी कहते अपने अपने मोबाइल से ,हम दोनों ही चिपके रहते फुर्सत नहीं हमें की देखें एक दूजे को उठाकर नजरें अपनी अपनी ही दुनिया में ,खोए रहते हम बेखबरे आपस में हम बात करें क्या,कोई टॉपिक नजर ना आता
मेरा वक्त गुजर जाता है, वक्त तुम्हारा भी कट जाता
बात शुरू यदि कोई होती, तू तू मैं मैं बढ़ जाती है
मेरे हरेक काम में तुमको ,कोई कमी नजर आती है इसीलिए शांति से जीने का पाया यह रस्ता सुंदर
व्यस्त रहो और मस्त रहो तुम ,मोबाइल से खेलो दिनभर
यह तुम्हारी सुन लेता है ,दो आदेश काम करता है
उंगली से तुम इसे नचाती ,चुप रहता, तुम से डरता है
मैं ये सब ना कर सकता था इस कारण होता था झगड़ा
हम तुम बहुत सुखी है जब से, हाथों में मोबाइल पकड़ा
मोबाइल ना शांति यंत्र यह,टोका टाकी मिट जाती है
नोकझोंक सब बंद हो जातीघरमेंशांतिपसरजातीहै मौन भावना पर हो जाती,रह जाती है दिल की दिल में
तुम खुश अपने मोबाइल में, मैं कुछ अपने मोबाइल में
मदन मोहन बाहेती घोटू
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2025 में विवाह मुहूर्त कब है ? - Marriage dates in 20252025 में विवाह मुहूर्त कब है ? [image: Marriage dates in 2025] भारतवर्ष में हिंदू धर्म में प्रत्येक मांगलिक कार्यों में शुभ मुहूर्त ...2 माह पहले
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पाँच लघुकथाएँ - ऋता शेखर - 1. असर कहाँ तक "मीना अब बड़ी हो गई है। उच्च शिक्षा लेने के बाद नौकरी भी करने लगी है। कोई ढंग का लड़का मिल जाये तो उसके हाथ पीले कर दें !" चाय पीते हुए सरला...2 माह पहले
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हम सभी बेचैन से हैं न - अभी कुछ दिनों से मैं अपनी कजिन के घर आई हुई हूं, वजह कुछ खास नहीं बस अपनी खामखाह की बैचेनी को की कुछ कम करने का इरादा था और अपने मन को हल्का करना था। अब वाप...2 माह पहले
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किन भावों का वरण करूँ मैं? - हर पल घटते नए घटनाक्रम में, ऊबड़-खाबड़ में, कभी समतल में, उथल-पुथल और उहापोह में, किन भावों का वरण करूँ मैं ? एक भाव रहता नहीं टिककर, कुछ नया घटित फिर ह...2 माह पहले
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गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ - कोहरे का घूंघट, हौले से उतार कर। चम्पई फूलों से, रूप का सिंगार कर। अम्बर ने प्यार से, धरती को जब छुआ। गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ। धूप गुनगुनाने ...2 माह पहले
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किताब मिली - शुक्रिया - 22 - दुखों से दाँत -काटी दोस्ती जब से हुई मेरी ख़ुशी आए न आए जिंदगी खुशियां मनाती है * किसी की ऊंचे उठने में कई पाबंदियां हैं किसी के नीचे गिरने की कोई भी हद ...3 माह पहले
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बचपन के रंग - - बहुत पुरानी , घोर बचपन की बातें याद आ रही है. मुझसे पाँच वर्ष छोटे भाई का जन्म तब तक नहीं हुआ था. पिताजी का ट्रांस्फ़र होता रहता था - उन दिनों हमलोग तब ...3 माह पहले
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क्या अमेरिकन समाज स्त्रीविरोधी है? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी - क्या अमेरिकन समाज स्त्रीविरोधी है? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी अमेरिका के चुनाव परिणाम की मेरी भविष्यवाणी पुनः सत्य हुई। लोग मुझे पूछते और बहुधा हँसते भी हैं क...4 माह पहले
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शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२६) - * बेशक कोई रिश्ता हमें जन्म से मिलता है परंतु उस रिश्ते से जुड़ाव हमारे मनोभाव पर निर्भर करता है । जन्म मर...5 माह पहले
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अनजान हमसफर - इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। गैस खिड़कियाँ ...5 माह पहले
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पुरानी तस्वीर... - कल से लगातार बारिश की झड़ी लगी है। कभी सावन के गाने याद आ रहे तो कभी बचपन की बरसात का एहसास हो रहा है। तब सावन - भादो ऐसे ही भीगा और मन खिला रहता था। ...6 माह पहले
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बीज - मंत्र . - शब्द बीज हैं! बिखर जाते हैं, जिस माटी में , उगा देते हैं कुछ न कुछ. संवेदित, ऊष्मोर्जित रस पगा बीज कुलबुलाता फूट पड़ता , रचता नई सृष्टि के अंकन...6 माह पहले
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रामलला का करते वंदन - कौशल्या दशरथ के नंदन आये अपने घर आँगन, हर्षित है मन पुलकित है तन रामलला का करते वंदन. सौगंध राम की खाई थी उसको पूरा होना था, बच्चा बच्चा थ...1 वर्ष पहले
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ज़िन्दगी पुरशबाब होती है - क्या कहूँ क्या जनाब होती है जब भी वो मह्वेख़्वाब होती है शाम सुह्बत में उसकी जैसी भी हो वो मगर लाजवाब होती है उम्र की बात करने वालों सुनो ज़िन्दगी पुरशबाब ह...2 वर्ष पहले
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अब पंजाबी में - सिन्धी में कविता के अनुवाद के बाद अब पंजाबी में "प्रतिमान पत्रिका" में मेरी कविता " हाँ ......बुरी औरत हूँ मैं " का अनुवादप्रकाशित हुआ है सूचना तो अमरज...3 वर्ष पहले
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Bayes Theorem and its actual effect on our lives - मित्रों आज बेज़ थियरम पर बात करुँगी। बहुत ही महत्वपूर्ण बात है - गणित के शब्द से परेशान न हों - पूरा पढ़े, गुनें, और समझें। हम सभी ने बचपन में प्रोबेबिलिटी ...5 वर्ष पहले
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कविता : खेल - शहर के बीच मैदान जहाँ खेलते थे बच्चे और उनके धर्म घरों में खूँटी पर टँगे रहते थे जबसे एक पत्थर लाल हुआ तो दूसरे ने ओढ़ी हरी चादर तबसे बच्चे घरों में कैद...5 वर्ष पहले
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दोहे "रंगों की बौछार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') - *होली का त्यौहार* *-0-0-0-0-0-* *फागुन में अच्छी लगें, रंगों की बौछार।* *सुन्दर, सुखद-ललाम है, होली का त्यौहार।।* *--* *शीत विदा होने लगा, चली बसन्त बयार।*...5 वर्ष पहले
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कांच के टुकड़े - सुनो मेरे पास कुछ कांच के टुकड़े हैं पर उनमें प्रतिबिंब नहीं दिखता पर कभी फीका महसूस हो तो उन्हें धूप में रंग देती हूं चमक तीक्ष्ण हो जाते तो दुबारा ...5 वर्ष पहले
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बचपन की यादें - कल अपने भाई के मुख से कुछ पुरानी बातों कुछ पुरानी यादों को सुनकर मुझे बचपन की गालियाँ याद आ गयीं। जिनमें मेरे बचपन का लगभग हर इतवार बीता करता था। कितनी...5 वर्ष पहले
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मॉर्निंग वॉक- एक सुरक्षित भविष्य - जीवन में चलते चलते कभी कुछ दिखाई दे जाता है, जो अचानक दिमाग में एक बल्ब जला देता है , एक विचार कौंधता है, जो मन में कुनमुनाता रहता है, जब तक उसे अभिव्यक...5 वर्ष पहले
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2019 का वार्षिक अवलोकन (सत्ताईसवां) - डॉ. मोनिका शर्मा का ब्लॉग Search Results Web results परिसंवाद *आपसी रंजिशों से उपजी अमानवीयता चिंतनीय* अमानवीय सोच और क्रूरता की कोई हद नहीं बची ह...5 वर्ष पहले
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जियो सेट टॉप बॉक्स - महा बकवास - जियो फ़ाइबर सेवा धुंआधार है, और जब से इसे लगवाया है, लाइफ़ है झिंगालाला. आज तक कभी ब्रेकडाउन नहीं हुआ, बंद नहीं हुआ और स्पीड भी चकाचक. ऊपर से लंबे समय से...5 वर्ष पहले
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परमेश्वर - प्रार्थना के दौरान वह मुझसे मिला उसे मुझसे प्रेम हुआ उसकी मैली कमीज के दो बटन टूटे थे टिका दिया उसने अपना सर मेरे कंधे पर वह युद्ध में हारा सैनिक था शायद!...5 वर्ष पहले
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Aakhir kab ? आखिर कब ? - * आखिर कब ? आखिर क्यों आखिर कबतक यूँ बेआबरू होती रहेंगी बेटीयाँ आखिर कबतक हवाला देंगे हम उनके पहनावे का उनकी आजादी का उनकी नासमझी और समझदारी का क्यों ...5 वर्ष पहले
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तुम्हारा स्वागत है - 1 तुम कहती हो " जीना है मुझे " मैं कहती हूँ ………… क्यों ? आखिर क्यों आना चाहती हो दुनिया में ? क्या मिलेगा तुम्हे जीकर ? बचपन से ही बेटी होने के दंश ...5 वर्ष पहले
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ना काहू से दोस्ती .... - *पुलिस और वकील एक ही परिवार के दो सदस्य से होते हैं, दोनों के लक्ष समाज को क़ानून सम्मत नियंत्रित करने के होते हैं, पर दिल्ली में जो हुआ या हो रहा है उस...5 वर्ष पहले
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Kritidev to Unicode Converter - [image: Real Time Font Converter] DL-Manel-bold. (ã t,a udfk,a fnda,aâ) Unicode (යුනිකෝඩ්) ------------------------------ © 2011 Language Technology R...5 वर्ष पहले
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इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...5 वर्ष पहले
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राजू उठ ... चल दौड़ लगाने चल - राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल पानी गरम कर दिया है दूध गरम हो रहा है राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल दूर नहीं अब मंजिल पास खड़े हैं सपने इक दौड़ लगा कर जीत...5 वर्ष पहले
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काया - काया महकाई सतत, लेकिन हृदय मलीन। चहकाई वाणी विकट, प्राणी बुद्धिविहीन। प्राणी बुद्धिविहीन, भरी है हीन भावना। खिसकी जाय जमीन, न करता किन्तु सामना। पाकर उच्चस्...5 वर्ष पहले
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कविता और कुछ नहीं... - कविताएं और कुछ नहीं आँसू हैं लिखे हुए.... खुशी की आँच कि दुखों के ताप के अतिरेक से पोषित लयबद्ध हुए... #कविताक्याहै5 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes atau dompo - *cara mengobati herpes atau dompo* - Kita harus mengetahui apa Gejala Penyakit Herpes Dan Pengobatannya, agar ketika kita terjangkiti penyakit herpes, kit...6 वर्ष पहले
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तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात - तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी .. तुमसे मिलने के बाद पर समय को किसने थामा है आज तक हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर बहुत दूर चलने के लिए पर रस्ते ...6 वर्ष पहले
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अरे अरे अरे - आ गईं तुम आना ही था तुम्हे देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था, आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी। वह भीगी हुई चने की दाल और हरी मिर्च जो तोते के लिये...6 वर्ष पहले
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यह विदाई है या स्वागत...? - एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है | अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं पह...6 वर्ष पहले
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मन के अंदर चल रहा निरंतर संघर्ष कठिन यह मानव के ... - इच्छाओं के चक्रवात से निरंतर जूझ रहा यह मानव मन उड़ जाता है अशक्त आत्मबलरहित तिनके के माफिक। इधर उधर बेचैन कहीं भी, बिना छोर और बिना ठिकाना दरबदर भटकता व्...6 वर्ष पहले
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BIJASAN DEVI - विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय - [image: Navratri 2018: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय] *मध्यप्रदेश बिजासन देवी धाम को आज कौन नहीं जानता। कई लोगों की कुलदेव...6 वर्ष पहले
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पापा तुम क्यों चले गए ? - पापा ……………………………….. तुम्हारी साँसों में धडकन सी थी मैं , जीवन की गहराई में बचपन सी थी मैं । तुम्हारे हर शब्द का अर्थ मैं , तुम्हारे बिना व्यर्थ मैं , ...6 वर्ष पहले
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कविता- " इक लड़की" 8 मार्च- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर - *इक लड़की* *मुस्कराहट, * *उसकी आँखों से उतर;* *ओठों को दस्तक देती;* *कानों तक फ़ैल गई थी.* *जो* *उसकी सच्चाई की जीत थी. * *और * *उसकी उपलब्धि से आई थी.* *वो ...7 वर्ष पहले
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मेरी कविता - जीवन - *जीवन* *चित्र - google.com* *जीवन* * तुम हो एक अबूझ पहेली, न जाने फिर भी क्यों लगता है तुम्हे बूझ ही लूंगी. पर जितना तुम्हे हल करने की कोशिश कर...7 वर्ष पहले
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“ रे मन ” - *रूह की मृगतृष्णा में* *सन्यासी सा महकता है मन* *देह की आतुरता में* *बिना वजह भटकता है मन* *प्रेम के दो सोपानों में* *युग के सांस लेता है मन* *जीवन के ...7 वर्ष पहले
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मन का टुकड़ा मनका बनाकर - मन का टुकड़ा मनका बनाकर मनबसिया का ध्यान करूं | प्रेम की राह बहुत ही जटिल है ; चल- चल कर आसान करूं | (१५ जुलाई २०१७, रात्रि )7 वर्ष पहले
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ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है? - जात-पात न धर्म देखा, बस देखा इंसान औ कर बैठी प्यारछुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकारहाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपातनाम डुबो दिया,...7 वर्ष पहले
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हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...3 - गत अंक से आगे.....हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रारम्भिक दौर बहुत ही रचनात्मक था. इस दौर में जो भी ब्लॉगर ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह इस माध्यम के प्रति ...7 वर्ष पहले
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प्रेम करती हूँ तुमसे - यमुना किनारे उस रात मेरे हाँथ की लकीरों में एक स्वप्न दबाया था ना उस क्षण की मधुस्मृतियाँ तन को गुदगुदाती है उस मनभावन रुत में धडकनों का मृदंग बज उ...7 वर्ष पहले
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गाँधी जी...... - गाँधी जी...... --------- चौराहॆ पर खड़ी,गाँधी जी की प्रतिमा सॆ,हमनें प्रश्न किया, बापू जी दॆश कॊ आज़ादी दिला कर, आपनॆं क्या पा लिया, बापू आपके सारॆ कॆ सारॆ सि...7 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...8 वर्ष पहले
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आप अदालत हैं - अपना मानते हैं जिन्हें वही नहीं देते अपनत्व। पक्षपात करते हैं सदैव वे पुत्री के आँसुओं का स्वर सुन। नहीं जाना उन्होंने मेरी कटुता को न ही मेरी दृष्टि में बन...8 वर्ष पहले
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फिर अंधेरों से क्यों डरें! - प्रदीप है नित कर्म पथ पर फिर अंधेरों से क्यों डरें! हम हैं जिसने अंधेरे का काफिला रोका सदा, राह चलते आपदा का जलजला रोका सदा, जब जुगत करते रहे हम दीप-बा...8 वर्ष पहले
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चलो नया एक रंग लगाएँ - लाल गुलाबी नीले पीले, रंगों से तो खेल चुके हैं, इस होली नव पुष्प खिलाएँ, चलो नया एक रंग लगाएँ । मानवता की छाप हो जिसमे, स्नेह सरस से सना हो जो, ऐसी होली खू...9 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...9 वर्ष पहले
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विचार शून्यता। - विचार , कई बार बहते है हवा से, छलकते है पानियों से, झरते है पत्तियों से और कई बार उठते है गुबार से घुटते है, उमड़ते है, लीन हो जाते है शून्य में फिर यह...9 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...9 वर्ष पहले
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एक रामलीला यह भी - एक रामलीला यह भी यूं तो होता है रामलीला का मंचन वर्ष में एक बार पर मेरे शरीर के अंग अंग करते हैं राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के पात्र जीवन्त. देह की सक...9 वर्ष पहले
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मन गुरु में ऐसा रमा, हरि की रही न चाह - ॐ श्री गुरुवे नमः *ॐ ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।* * द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् । ...9 वर्ष पहले
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गुरु पूर्णिमा - आज गुरु पूर्णिमा है ! अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का दिवस ,गुरु शब्द का अर्थ होता है अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला ,अज्ञान ज्ञान की और ले...9 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...10 वर्ष पहले
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क्रिकेट विश्व कप 2015 विजय गीत - धोनी की सेना निकली दोहराने फिर इतिहास अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस | शास्त्री की रणनीति भी है और विराट का शौर्य , धोनी की तो धूम मची है विश्व ...10 वर्ष पहले
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'मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से' - मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से… मेरे कान फ़ट चुके हैं सवेरे से लाउड वाहियत गाने सुनकर और फ़ुर्र हो चुका है गर्व। ये कौनसा रंग है मेरे देश का? बिल्कुल ऐसा ...10 वर्ष पहले
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कथा सुनो शबाब की - *कथा सुनो शबाब की* *सवाल की जवाब की* *कली खिली गुलाब **की* *बड़े हसीन ख़ाब की* * नया नया विहान था* * घ...10 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...10 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...10 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...10 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...10 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
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रंग रंगीली होली आई. - [image: Friends18.com Orkut Scraps] रंग रंगीली होली आई.. रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...11 वर्ष पहले
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भ्रष्ट आचार - स्वतंत्र भारत की नीव में उस समय के नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रख दिये थे भ्रष्ट आचार फिर देश से कैसे खत्म हो भ्रष्टाचार ?11 वर्ष पहले
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अन्त्याक्षरी - कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इ...11 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर - 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्...11 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...12 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...12 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
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Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar - Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the...12 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...13 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...13 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...13 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...13 वर्ष पहले
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अब बक्श दे मैं मर मुकी - चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी, मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी, मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख के ढेर दिल मैं कहीं, सुलग सुलग के आय...13 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
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दरिन्दे - बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ। ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ ढूँढो शयद वह ज़िन...14 वर्ष पहले
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