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शुक्रवार, 5 जून 2020

आ अब लौट चलें

पहले शहर छोड़ आये थे
कोरोना   से  घबराये  थे
काम और धंधे बंद पड़े थे
हम घर पर बेकार पड़े थे
ना कमाई ,कैसे खायेंगे
गाँव जायेंगे ,बच जाएंगे
सबके मन में यही हुड़क थी
देखादेखी गयी  भड़क थी
रेल ,बसें कोई न रहे चल
निकल पड़े हम घर को पैदल
रास्ते मे तकलीफें भोगी
पड़े बीमार ,हुए कुछ रोगी
रो रो काटा ,कठिन सफर को
जैसे तैसे पहुंचे घर को
सुखी हुआ मन सबसे मिलके
थोड़े दिन खुश होकर हुलसे
पर गाँवों में काम नहीं था
जीवन भी आसान नहीं था
कमा भेजते थे हम पैसे
घर चलता था जैसे तैसे
हम पहुंचे तो फरक पड़ गया
घर का खर्चा और बढ़ गया
और कमाई ना कोड़ी भर की
जिम्मेदारी सर पर, घर की
मन में उठी समस्या भीषण
यूं कैसे काटेंगे जीवन
उधर शहर की तालाबंदी
पर भी उठने लगी पाबंदी
खुली फैक्टरी और दुकाने
लोग पुराने ,लगे बुलाने
वहां जीवन आया पटरी पर
कोरोना का सभी जगह डर
ये जल्दी ना जानेवाला
करना इसके साथ गुजारा
सावधानियां रखनी होगी
तब कोई ना होगा रोगी
शहरों में इसका इलाज है
जो गाँवों में नहीं आज है
अच्छा होगा ,नहीं डरे  हम
शहर जाएँ ,ना देर करें हम
गाँवों में है नहीं गुजारा
जाना होगा शहर  दोबारा
मेहनत करें ,कमाए ,खाये
फिर से रोजी रोटी पायें
गाँवों में कुछ रोज भले हम
आओ फिर से लौट चले हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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