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सोमवार, 15 जून 2020

कोरोना की कोपदृष्टी

सारी फुर्ती फुर्र हो गयी आलस ने डाला डेरा
कोरोना की कोपदृष्टी से ,बैठ गया भट्टा  मेरा
सारा बेड़ा गर्क कर दिया ,ऐसा मारा मंदी ने
कामो पर कसदी लगाम,इस लम्बी तालाबंदी ने
लकवे जैसा मार गया कुछ ,जोश गया पानी लेने
मालगाड़ी की चाल चल रही थी जो एक्सप्रेस ट्रेने
कोई सांप सा सूंघ गया है ,ऐसी मन में दहशत है
हुये हौंसले पस्त, बची ना ,थोड़ी सी भी हिम्मत है
हर कोई है खौफ़जदा और सहमा सहमा सा मन में
कभी कल्पना भी ना थी वो, हुआ हादसा जीवन में
बार बार भूकम्प आरहे ,सीमा पर हड़कंप  मचा
किये गुनाह कौनसे हमने ,जिनकी मिलती हमें सजा
पिछले तीन माह में हमको ,क्याक्या ना दिखलाया है
हे प्रभु क्या है ,तेरे मन में ,ये  तेरी  क्या  माया है
तूफानों में ,फसी नाव है ,डगमग डगमग भटक रही
तू ही इसको पार लगा दे ,दिखा रास्ता ,सही सही
या फिर ले अवतार मिटा दे ,कोरोना की हस्ती को
पहले सा खुशहाल बना दे ,नगर ,गाँव हर बस्ती को

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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