मंहगाई का त्रास
बहुत मंहगा हो गया हर ग्रास अब है
हो रहा मंहगाई का अहसास अब है
बिकता पानी बंद होकर बोतलों में ,
बहुत मंहगी हो गई ये प्यास अब है
दाल मोतीचूर से भी अधिक मंहगी,
सब्जियों ने भी मचाया त्रास अब है
अरसे से हमने नहीं ली है डकारें ,
पेट ये पिचका बिचारा ,पास अब है
अंतड़ियां ये पूछती है ,क्या पचाएं ,
क्या चबाएं ,पूछते सब दांत अब है
भूखे रह कर ,सूखते ही जा रहे है ,
हो रहा ,अकाल का आभास अब है
बादलों ,बरसो ,धरा को तृप्त करदो,
एक तुम ही से बची कुछ आस अब है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बहुत मंहगा हो गया हर ग्रास अब है
हो रहा मंहगाई का अहसास अब है
बिकता पानी बंद होकर बोतलों में ,
बहुत मंहगी हो गई ये प्यास अब है
दाल मोतीचूर से भी अधिक मंहगी,
सब्जियों ने भी मचाया त्रास अब है
अरसे से हमने नहीं ली है डकारें ,
पेट ये पिचका बिचारा ,पास अब है
अंतड़ियां ये पूछती है ,क्या पचाएं ,
क्या चबाएं ,पूछते सब दांत अब है
भूखे रह कर ,सूखते ही जा रहे है ,
हो रहा ,अकाल का आभास अब है
बादलों ,बरसो ,धरा को तृप्त करदो,
एक तुम ही से बची कुछ आस अब है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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