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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

दीवाना दीवान

        दीवाना  दीवान

जो भी आता ,मुझमे बैठ पसर जाता है
मारता गप्पे है ,मस्ती से पीता , खाता है
कोई जल्दी में रहता है ,कोई फुरसत  से
मगर मैं ,इन्तजार ,करता जिसका शिद्द्त से
वो हंसीं ,मखमली ,कोमल गुलाबी जिस्म लिए
लबों में शरबती मिठास और तिलस्म  लिए
जिसके अहसास से मुझमे गरूर आ जाए
समा के अपने  में ,मुझमे  सरूर  आ जाए
जी ये करता है उसकी खुशबू बसा लूँ  खुद में
   जिसके स्पर्श से ही  हुआ करता , बेसुध मैं       
 जिसकी तहजीब ,जिसकी खिलखिलाती प्यारी हँसी     
,जिसकी चूड़ी की खनक ,देर तलक ,दिलमे बसी
जिसको गोदी में लिए ,बावरा मैं ,पागल सा
 मज़ा जीवन का उठाता हूँ पूरा, पल पल का
इतना खो जाता ,भीनी खुशबू वाले बालों में
डूब जाता हूँ ,इस कदर में उसके ख्यालों में
वो कब आई,कब गयी ,पता नहीं चलता
फिर वो ही सूनापन ,विरहा की अगन में जलता
हमेशा ,बाहें ,मैं अपनी पसार बैठा हूँ
कर रहा ,उनका ही बस इन्तजार,बैठा हूँ
अपना ये जिस्मोजिगरबस उन्ही को सौंपा हूँ
उनका दीवाना हूँ, दीवान हूँ, मैं  सोफ़ा   हूँ
आपके घर की ,सबसे शानदार ,रौनक हूँ
हुकुम मे आपके ,हाज़िर ,गुलाम , सेवक हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं

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