पडी कुछ इस तरह सर्दी
बताये हाल हम कल का
रुइ से बादलों की रजाई मे
सूर्य जा दुबका
हो गया सर्द था मौसम
बढ गई इस कदर ठिठुरन
रजाई से न वो निकला
रजाई से न निकले हम
नयन स्वयं को देखते न
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नयन स्वयं को देखते न हम हमीं को ढूँढते हैं पूछते फिरते कहाँ हो ?हम हमीं को
ढूँढते हैं पूछता ‘मैं’ ‘तुम’ कहाँ हो ?खेल कैसा है रचाया अश्रु हर क्योंकर
बहाया, ...
17 घंटे पहले
सुन्दर प्रस्तुति
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