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एक सन्देश-
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शनिवार, 31 जनवरी 2015
रंग-ए-जिंदगानी: कविता- आज़ादी अभी अधूरी है
रंग-ए-जिंदगानी: कविता- आज़ादी अभी अधूरी है: गड़तंत्र दिवस हर साल मनाने मज़बूरी हैं। रात अभी अँधेरी है, आज़ादी अभी अधूरी है। सवाल दो वक़्त की रोटी का जबाव जलेबी है। दिन-रा...
शुक्रवार, 30 जनवरी 2015
शादी-चार चित्र
शादी-चार चित्र
१
एक खाली होता हुआ घोसला ,
एक चुसा हुआ आम
एक मधु विहीन छत्ता
फिर भी मुस्कान ओढ़े हुए ,
एक निरीह इंसान
दुल्हन का बाप
२
वर का पिता
गर्व की हवा से भरा गुब्बारा
रस्मो के नाम पर ,अधिकारिक रूप से,
भीख मांगता हुआ ,दंभ का मारा
एक ऐसा प्राणी ,
जिसका पेट बहुत भर चुका है पर
फिर भी कुछ और खाने को मिल जाए,
इसी जुगाड़ में तत्पर
सपनो में डूबा हुआ इंसान
मन में दादा बनने का लिए अरमान
३
बेंड बाजे के साथ ,
मस्ती में नाचते हुए ,उन्मादी
व्यंजनों से भरी प्लेटों को ,
कचरे में फेंकते हुए बाराती
४
दहेज़ के नाम पर,
अपने बेटे का सौदा कर
अच्छी खासी लूट खसोट के बाद
खुश था दूल्हे का बाप
लड़कीवालों ने अपने दामाद को ,
दहेज़ में दी है एक बड़ी कार
और बहू के नाम ,एक अच्छा फ्लेट दिया है ,
शायद वो अनजान थे कि उन्होंने ने,
इनके परिवार में,
विभाजन का बीज बो दिया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
१
एक खाली होता हुआ घोसला ,
एक चुसा हुआ आम
एक मधु विहीन छत्ता
फिर भी मुस्कान ओढ़े हुए ,
एक निरीह इंसान
दुल्हन का बाप
२
वर का पिता
गर्व की हवा से भरा गुब्बारा
रस्मो के नाम पर ,अधिकारिक रूप से,
भीख मांगता हुआ ,दंभ का मारा
एक ऐसा प्राणी ,
जिसका पेट बहुत भर चुका है पर
फिर भी कुछ और खाने को मिल जाए,
इसी जुगाड़ में तत्पर
सपनो में डूबा हुआ इंसान
मन में दादा बनने का लिए अरमान
३
बेंड बाजे के साथ ,
मस्ती में नाचते हुए ,उन्मादी
व्यंजनों से भरी प्लेटों को ,
कचरे में फेंकते हुए बाराती
४
दहेज़ के नाम पर,
अपने बेटे का सौदा कर
अच्छी खासी लूट खसोट के बाद
खुश था दूल्हे का बाप
लड़कीवालों ने अपने दामाद को ,
दहेज़ में दी है एक बड़ी कार
और बहू के नाम ,एक अच्छा फ्लेट दिया है ,
शायद वो अनजान थे कि उन्होंने ने,
इनके परिवार में,
विभाजन का बीज बो दिया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 26 जनवरी 2015
ये औरतें कैसी होती है ?
ये औरतें कैसी होती है ?
यूं तो सुबहो शाम ,
अपने पति से झगड़ती रहती है
पर पति कुछ दिनों भी ,
किसी काम से बाहर जाते है ,
तो उनके बिना ,
वो समय नहीं काट पाती ,बोअर होती है
ये औरतें कैसी होती है ?
सुबह पति से कहती है ,
घर में कपडे हो गए बहुत है
उन्हें रखने के लिए ,
एक नयी अलमारी की जरुरत है
और शाम को जब पार्टी में,
जाने को तैयार होने लगती है
तो क्या पहनू,मेरे पास तो कपडे ही नहीं है,
ये शिकायत करती है
सभी की ये आदत,एक जैसी होती है
ये औरतें भी कैसी होती है ?
यूं तो पतिजी की 'डाइबिटीज'पर
पूरा कंट्रोल दिखाती है
पर जब गाजर का हलवा बनाती है ,
तो बड़े चम्मच से पति को चखाती है
मीठी मीठी बातों की चाशनी से ,
पति के दिल को भिगोती है
ये औरते कैसी होती है?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
यूं तो सुबहो शाम ,
अपने पति से झगड़ती रहती है
पर पति कुछ दिनों भी ,
किसी काम से बाहर जाते है ,
तो उनके बिना ,
वो समय नहीं काट पाती ,बोअर होती है
ये औरतें कैसी होती है ?
सुबह पति से कहती है ,
घर में कपडे हो गए बहुत है
उन्हें रखने के लिए ,
एक नयी अलमारी की जरुरत है
और शाम को जब पार्टी में,
जाने को तैयार होने लगती है
तो क्या पहनू,मेरे पास तो कपडे ही नहीं है,
ये शिकायत करती है
सभी की ये आदत,एक जैसी होती है
ये औरतें भी कैसी होती है ?
यूं तो पतिजी की 'डाइबिटीज'पर
पूरा कंट्रोल दिखाती है
पर जब गाजर का हलवा बनाती है ,
तो बड़े चम्मच से पति को चखाती है
मीठी मीठी बातों की चाशनी से ,
पति के दिल को भिगोती है
ये औरते कैसी होती है?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
यू टर्न
यू टर्न
हुआ करता था कुछ ऐसा ,हमारी नींद का आलम,
ख्वाब भी पास आने पर ,जरा सा हिचकिचाते थे
यूं ही बस बैठे बैठे ही ,झपकियाँ हमको आती थी,
कभी हम आँख मलते थे,कभी गर्दन झुलाते थे
खराटोँ की ही धुन से नींद का आगाज़ होता था,
और अंजाम ये था ,पास वाला सो न पाता था,
पड़े रहते थे बेसुध ,नहीं कुछ भी होश रहता था ,
हमें रावण का भैया ,कह के ,घरवाले बुलाते थे
लड़ी है आँख तुमसे जबसे है आँखे नहीं लगती ,
मुई उल्फत ने जबसे दिल में आ के डेरा डाला है
तुम्हारी याद आती ,ख्वाब आते ,नींद ना आती ,
हमारी आदतों ने इस तरह 'यू टर्न' मारा है
घोटू
हुआ करता था कुछ ऐसा ,हमारी नींद का आलम,
ख्वाब भी पास आने पर ,जरा सा हिचकिचाते थे
यूं ही बस बैठे बैठे ही ,झपकियाँ हमको आती थी,
कभी हम आँख मलते थे,कभी गर्दन झुलाते थे
खराटोँ की ही धुन से नींद का आगाज़ होता था,
और अंजाम ये था ,पास वाला सो न पाता था,
पड़े रहते थे बेसुध ,नहीं कुछ भी होश रहता था ,
हमें रावण का भैया ,कह के ,घरवाले बुलाते थे
लड़ी है आँख तुमसे जबसे है आँखे नहीं लगती ,
मुई उल्फत ने जबसे दिल में आ के डेरा डाला है
तुम्हारी याद आती ,ख्वाब आते ,नींद ना आती ,
हमारी आदतों ने इस तरह 'यू टर्न' मारा है
घोटू
चाय पर चर्चा
चाय पर चर्चा
मोदी जी ने ओबामा जी को भारत बुलाया
आत्मीयता दिखा कर ,अपना दोस्त बनाया
देश के हित में ,अमेरिका से कई करार किये
चाय पर चर्चा कर ,आपसी सम्बन्ध सुधार लिये
ये चाय पर चर्चा का मुद्दा तो,
अब लोगों को नज़र आया है
पर मैंने तो इसी चाय की चर्चा के सहारे ,
हंसी खुशी से अब तक अपना जीवन बिताया है
हम मिया बीबी ,सुबह की चाय पर ,
दिनभर क्या करना है,इसकी चर्चा करते है
और शाम की चाय की चर्चा में,
दिन भर क्या क्या किया,
एक दूसरे को बतलाया करते है
इस चाय की चुस्की के साथ हमें बहुत कुछ मिला है
हमें एक दूजे से ,न कोई शिकवा है ,न ग़िला है
इसी सामंजस्य के कारण हमारी केमेस्ट्री ठीक है ,
और हम मिया बीबी में अच्छी पटती है
चैन से नींद आती है और रात मज़े से कटती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मोदी जी ने ओबामा जी को भारत बुलाया
आत्मीयता दिखा कर ,अपना दोस्त बनाया
देश के हित में ,अमेरिका से कई करार किये
चाय पर चर्चा कर ,आपसी सम्बन्ध सुधार लिये
ये चाय पर चर्चा का मुद्दा तो,
अब लोगों को नज़र आया है
पर मैंने तो इसी चाय की चर्चा के सहारे ,
हंसी खुशी से अब तक अपना जीवन बिताया है
हम मिया बीबी ,सुबह की चाय पर ,
दिनभर क्या करना है,इसकी चर्चा करते है
और शाम की चाय की चर्चा में,
दिन भर क्या क्या किया,
एक दूसरे को बतलाया करते है
इस चाय की चुस्की के साथ हमें बहुत कुछ मिला है
हमें एक दूजे से ,न कोई शिकवा है ,न ग़िला है
इसी सामंजस्य के कारण हमारी केमेस्ट्री ठीक है ,
और हम मिया बीबी में अच्छी पटती है
चैन से नींद आती है और रात मज़े से कटती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 24 जनवरी 2015
केजरीवाल-४ विपरीत परिस्तिथियाँ
केजरीवाल-४
विपरीत परिस्तिथियाँ
अरविन्द याने की कमल ,
दोनों समानार्थी ,
याने कि भाई,भाई
पर दिल्ली की राजनीति में,
दोनों की लड़ाई
सुबह सुबह ,
सूरज की किरणों के पड़ने से,
'अरविन्द' खिलता है
पर प्रकृति का यह नियम,
दिल्ली की राजनीतिमें ,
उल्टा ही दिखता है
यहाँ पर ,दो किरणे ,
एक किरण वालिया और
एक किरण बेदी ,
जब से मैदान में उतरी है ,
अरविंद थोड़ा घबराने लगा है
सर पर टोपी और गले में मफलर बाँध,
खुद को किरणों से बचाने लगा है
थोड़ा कुम्हलाने लगा है
कमल जब तक कीचड़ में है ,
झुग्गी झोंपड़ियों में है ,
अपनी सुन्दर छवि से ,
सबको लुभाता है
पर कमल ,लक्ष्मीजी का प्रिय है,
उस पर लक्ष्मीजी विराजती है,
और उनकी पूजा में,
उन पर चढ़ाया जाता है
लक्ष्मी और कमल का भी ,
ऐसा ही नाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
विपरीत परिस्तिथियाँ
अरविन्द याने की कमल ,
दोनों समानार्थी ,
याने कि भाई,भाई
पर दिल्ली की राजनीति में,
दोनों की लड़ाई
सुबह सुबह ,
सूरज की किरणों के पड़ने से,
'अरविन्द' खिलता है
पर प्रकृति का यह नियम,
दिल्ली की राजनीतिमें ,
उल्टा ही दिखता है
यहाँ पर ,दो किरणे ,
एक किरण वालिया और
एक किरण बेदी ,
जब से मैदान में उतरी है ,
अरविंद थोड़ा घबराने लगा है
सर पर टोपी और गले में मफलर बाँध,
खुद को किरणों से बचाने लगा है
थोड़ा कुम्हलाने लगा है
कमल जब तक कीचड़ में है ,
झुग्गी झोंपड़ियों में है ,
अपनी सुन्दर छवि से ,
सबको लुभाता है
पर कमल ,लक्ष्मीजी का प्रिय है,
उस पर लक्ष्मीजी विराजती है,
और उनकी पूजा में,
उन पर चढ़ाया जाता है
लक्ष्मी और कमल का भी ,
ऐसा ही नाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 19 जनवरी 2015
उचटी नींद
उचटी नींद
जब नींद कभी उड़ जाती है
तो कितनी ही भूली बिसरी ,यादें आकर जुड़ जाती है
फिरने लगते है एक एक कर, मन की माला के मनके
तो सबसे पहले याद हमें ,आने लगते दिन बचपन के
गोबर माटी से पुता हुआ ,वह घर छोटा सा, गाँव का
गर्मी की दोपहरी में भी वो सुख पीपल की छाँव का
वह बैलगाड़ियों पर चलना,वो रामू तैली की घानी
मंदिर की कुइया पर जाकर ,वो हंडों में भरना पानी
करना इन्तजार आरती का,लेने प्रसाद की एक चिटकी
रौबीली डाट पिताजी की ,माताजी की मीठी झिड़की
वो गिल्ली ,डंडे ,वो लट्टू,वो कंचे ,वो पतंग बाज़ी
भागू हलवाई की दूकान की गरम जलेबी वो ताज़ी
निश्चिन्त और उन्मुक्त सुहाना ,प्यारा बचपन मस्ती का
बस पलक झपकते बीत गया,जब आया बोझ गृहस्थी का
रह गया उलझ कर यह जीवन,फिर दुनिया के जंजालों में
कुछ दफ्तर में ,कुछ बच्चों में,कुछ घरवाली,घरवालों में
कुछ नमक तैल के चक्कर में ,कुछ दुःख ,पीड़ा ,बिमारी में
प्रतिस्पर्धा आगे बढ़ने की ,कुछ झंझट ,जिम्मेदारी मे
पग पग पर नित संघर्ष किया ,तब जाकर कुछ उत्कर्ष हुआ
मन चाही मिली सफलता तो ,इस जीवन में कुछ हर्ष हुआ
सुख तो आया ,उपभोग मगर ,कर पाऊं ,नहीं रही क्षमता
हो गया बदन था जीर्ण क्षीर्ण ,कठिनाई से लड़ता लड़ता
कुछ घेर लिया बिमारी ने ,आ गया बुढ़ापा कुछ ऐसा
कुछ बेगानी संतान हुई ,जब सर पर चढ़ ,बोला पैसा
कुछ यादें शूलों सी चुभती ,तो कुछ यादें सहलाती है
जब नींद कभी उड़ जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब नींद कभी उड़ जाती है
तो कितनी ही भूली बिसरी ,यादें आकर जुड़ जाती है
फिरने लगते है एक एक कर, मन की माला के मनके
तो सबसे पहले याद हमें ,आने लगते दिन बचपन के
गोबर माटी से पुता हुआ ,वह घर छोटा सा, गाँव का
गर्मी की दोपहरी में भी वो सुख पीपल की छाँव का
वह बैलगाड़ियों पर चलना,वो रामू तैली की घानी
मंदिर की कुइया पर जाकर ,वो हंडों में भरना पानी
करना इन्तजार आरती का,लेने प्रसाद की एक चिटकी
रौबीली डाट पिताजी की ,माताजी की मीठी झिड़की
वो गिल्ली ,डंडे ,वो लट्टू,वो कंचे ,वो पतंग बाज़ी
भागू हलवाई की दूकान की गरम जलेबी वो ताज़ी
निश्चिन्त और उन्मुक्त सुहाना ,प्यारा बचपन मस्ती का
बस पलक झपकते बीत गया,जब आया बोझ गृहस्थी का
रह गया उलझ कर यह जीवन,फिर दुनिया के जंजालों में
कुछ दफ्तर में ,कुछ बच्चों में,कुछ घरवाली,घरवालों में
कुछ नमक तैल के चक्कर में ,कुछ दुःख ,पीड़ा ,बिमारी में
प्रतिस्पर्धा आगे बढ़ने की ,कुछ झंझट ,जिम्मेदारी मे
पग पग पर नित संघर्ष किया ,तब जाकर कुछ उत्कर्ष हुआ
मन चाही मिली सफलता तो ,इस जीवन में कुछ हर्ष हुआ
सुख तो आया ,उपभोग मगर ,कर पाऊं ,नहीं रही क्षमता
हो गया बदन था जीर्ण क्षीर्ण ,कठिनाई से लड़ता लड़ता
कुछ घेर लिया बिमारी ने ,आ गया बुढ़ापा कुछ ऐसा
कुछ बेगानी संतान हुई ,जब सर पर चढ़ ,बोला पैसा
कुछ यादें शूलों सी चुभती ,तो कुछ यादें सहलाती है
जब नींद कभी उड़ जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पिताजी
पिताजी
पिताजी ,
सख्त थे ,दांतों तरह,
जिनके अनुशासन में बंध ,
हम जिव्हा की तरह ,
बोलते,हँसते, गाते,मुस्कराते रहे
चहचहाते रहे
और टॉफियों की तरह जिंदगी का
स्वाद उठाते रहे
वो,लक्ष्मणरेखा की तरह ,
हमें अपनी हदें पार करने को रोकते थे,
बार बार टोकते थे
और कई बार हम,
उनकी सख्ती को,कोसते थे
पर कभी भी ,जब सख्त से सख्त दांतों में,
दर्द और पीड़ा होती है,
तो वह दर्द कितना असहनीय होता है,
ये वो ही महसूस कर पाता है ,
जिसके दांतों में दर्द होता है
मुझे ,उनके चेहरे पर ,
वही पीड़ा दिखी थी
जब शादी के बाद ,
मेरी बहन बिदा हुई थी,
या थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद,
मैं और मेरे बच्चे ,
वापस अपनी अपनी नौकरी पर लौटते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पिताजी ,
सख्त थे ,दांतों तरह,
जिनके अनुशासन में बंध ,
हम जिव्हा की तरह ,
बोलते,हँसते, गाते,मुस्कराते रहे
चहचहाते रहे
और टॉफियों की तरह जिंदगी का
स्वाद उठाते रहे
वो,लक्ष्मणरेखा की तरह ,
हमें अपनी हदें पार करने को रोकते थे,
बार बार टोकते थे
और कई बार हम,
उनकी सख्ती को,कोसते थे
पर कभी भी ,जब सख्त से सख्त दांतों में,
दर्द और पीड़ा होती है,
तो वह दर्द कितना असहनीय होता है,
ये वो ही महसूस कर पाता है ,
जिसके दांतों में दर्द होता है
मुझे ,उनके चेहरे पर ,
वही पीड़ा दिखी थी
जब शादी के बाद ,
मेरी बहन बिदा हुई थी,
या थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद,
मैं और मेरे बच्चे ,
वापस अपनी अपनी नौकरी पर लौटते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
माँ से
माँ से
माँ !
तुमने नौ महीने तक ,
अपने तन में मेरा भार ढोया
प्रसव पीड़ा सही और
मुझे दुनिया में लाने के,
सपनो को संजोया
मुझे भूख लगी तो,
मुझे छाती से लिपटा दूध पिलाया
मैं रोया तो ,
मुझे गोदी में ले दुलराया
मुझे सूखे में सुला कर ,
खुद गीले बिस्तर पर सोई
दर्द मुझे हुआ ,
और तुम रोई
शीत की सिहरती रात में,
तुमने बन कम्बल ,
मुझे सम्बल दिया
बरसात के मौसम में,
अपने आँचल का साया दे,
मुझे भीगने नहीं दिया
गर्मी की दोपहरी में ,
अपने आँचल का पंखा डुलाती रही
अपनी छत्रछाया में ,
हमेशा मुझे परेशानियों से बचाती रही
माँ,जिस ममता,वात्सल्य से ,
तुमने मुझे पाला है
तुम्हारा वो प्यार अद्भुत और निराला है
मैं इतना लाड प्यार और कहाँ से पाउँगा ?
क्या मैं कभी इस ऋण को चुका पाउँगा ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
माँ !
तुमने नौ महीने तक ,
अपने तन में मेरा भार ढोया
प्रसव पीड़ा सही और
मुझे दुनिया में लाने के,
सपनो को संजोया
मुझे भूख लगी तो,
मुझे छाती से लिपटा दूध पिलाया
मैं रोया तो ,
मुझे गोदी में ले दुलराया
मुझे सूखे में सुला कर ,
खुद गीले बिस्तर पर सोई
दर्द मुझे हुआ ,
और तुम रोई
शीत की सिहरती रात में,
तुमने बन कम्बल ,
मुझे सम्बल दिया
बरसात के मौसम में,
अपने आँचल का साया दे,
मुझे भीगने नहीं दिया
गर्मी की दोपहरी में ,
अपने आँचल का पंखा डुलाती रही
अपनी छत्रछाया में ,
हमेशा मुझे परेशानियों से बचाती रही
माँ,जिस ममता,वात्सल्य से ,
तुमने मुझे पाला है
तुम्हारा वो प्यार अद्भुत और निराला है
मैं इतना लाड प्यार और कहाँ से पाउँगा ?
क्या मैं कभी इस ऋण को चुका पाउँगा ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दुबे जी
दुबे जी
एक दुबे वो होते है जो होते तो थे चौबे पर,
छब्बे बनने के चक्कर में ,रहे सिर्फ दुबे बन के
और दूसरे दुबे वो जो 'डूबे'रहते मस्ती में ,
इंग्लिश उच्चारण का चक्कर ,डूबे है दुबे बनके
'दुइ'का मतलब हिन्दी में 'दो','बे' होता दो गुजराती में,
दुइ से जब 'बे'मिल जाता,दो दूनी चार 'दुबे बन के ,
घर में पत्नी से रहें दबे ,दाबे मन की पीड़ाओं को,
है दबी हंसीं पर हंसा रहे ,सबको दबंग 'दुबे बन के
घोटू
एक दुबे वो होते है जो होते तो थे चौबे पर,
छब्बे बनने के चक्कर में ,रहे सिर्फ दुबे बन के
और दूसरे दुबे वो जो 'डूबे'रहते मस्ती में ,
इंग्लिश उच्चारण का चक्कर ,डूबे है दुबे बनके
'दुइ'का मतलब हिन्दी में 'दो','बे' होता दो गुजराती में,
दुइ से जब 'बे'मिल जाता,दो दूनी चार 'दुबे बन के ,
घर में पत्नी से रहें दबे ,दाबे मन की पीड़ाओं को,
है दबी हंसीं पर हंसा रहे ,सबको दबंग 'दुबे बन के
घोटू
बुधवार, 14 जनवरी 2015
वाइब्रंट गुजरात
वाइब्रंट गुजरात
छोड़ कर यू पी की मथुरा ,गये गुजरात जब कान्हा,
वहां पर द्वारका के धीश बन कर हुए आभूषित
गए घनश्याम बालक छोड़ घर,गुजरात ,यूपी से ,
बन गए स्वामिनारायण ,हो गए विश्व में पूजित
बडी वाइब्रंट ,उपजाऊ ,धरा गुजरात की है ये ,
यहाँ हर बीज होता पल्ल्वित ,धन धान्य देता है
वहीँ की तो उपज है ये ,हमारे नरेंदर मोदी ,
आज जो देश ही ना विश्व के गणमान्य नेता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
छोड़ कर यू पी की मथुरा ,गये गुजरात जब कान्हा,
वहां पर द्वारका के धीश बन कर हुए आभूषित
गए घनश्याम बालक छोड़ घर,गुजरात ,यूपी से ,
बन गए स्वामिनारायण ,हो गए विश्व में पूजित
बडी वाइब्रंट ,उपजाऊ ,धरा गुजरात की है ये ,
यहाँ हर बीज होता पल्ल्वित ,धन धान्य देता है
वहीँ की तो उपज है ये ,हमारे नरेंदर मोदी ,
आज जो देश ही ना विश्व के गणमान्य नेता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
केजरीवाल -३
केजरीवाल -३
तुम्हारे कान पर मफलर ,तुम्हारे हाथ में झाड़ू,
समझ में ये नहीं आता ,तुम्हारी शक्सियत क्या है
आदमी ,आम है सो आम है ,क्यों लिख्खा टोपी पर ,
समझ में ये नहीं आता ,तुम्हारी कैफ़ीयत क्या है
तुम अपने साथ फोटो खिचाने का लेते हो पैसा ,
पता इससे ही लग जाता ,तुम्हारी ये नियत क्या है
आप के साथ में हम बैठ कर के खा सके खाना,
आदमी आम हम इतने ,हमारी हैसियत क्या है
चुना था हमने पिछली बार भी पर टिक न पाये तुम ,
चुने जाने की अबकी बार फिरसे जरूरत क्या है
न अन्ना के ही रह पाये, न हो पाये हमारे तुम ,
बोलते कुछ हो करते कुछ तुम्हारी असलियत क्या है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तुम्हारे कान पर मफलर ,तुम्हारे हाथ में झाड़ू,
समझ में ये नहीं आता ,तुम्हारी शक्सियत क्या है
आदमी ,आम है सो आम है ,क्यों लिख्खा टोपी पर ,
समझ में ये नहीं आता ,तुम्हारी कैफ़ीयत क्या है
तुम अपने साथ फोटो खिचाने का लेते हो पैसा ,
पता इससे ही लग जाता ,तुम्हारी ये नियत क्या है
आप के साथ में हम बैठ कर के खा सके खाना,
आदमी आम हम इतने ,हमारी हैसियत क्या है
चुना था हमने पिछली बार भी पर टिक न पाये तुम ,
चुने जाने की अबकी बार फिरसे जरूरत क्या है
न अन्ना के ही रह पाये, न हो पाये हमारे तुम ,
बोलते कुछ हो करते कुछ तुम्हारी असलियत क्या है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मै केजरीवाल आया हूँ-२
मै केजरीवाल आया हूँ-२
सुनाने हाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मैं ऊंचे बोल लाया हूँ
बजाने ढोल लाया हूँ
चिपक कुर्सी पे बैठूंगा,
मैं 'फेविकोल 'लाया हूँ
पांच वर्षों तक सत्ता का ,
ले मन में ख्याल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मैं पानी सस्ता कर दूंगा
मैं बिजली सस्ती करदूंगा
छीन ली झाड़ू मोदी में ,
साफ़ हर बस्ती कर दूंगा
मैं रिश्वतखोर लोगों की ,
खींचने खाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मोदीजी कहते है ना,
खाऊंगा,खाने नहीं दूंगा ,
मगर मैं खाऊंगा और,
खाने के पैसे वसूलूंगा
बीस हज्जार की थाली ,
में रोटी ,दाल लाया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
कमाई करने का अपना ,
तरीका होगा कुछ ऐसा
मेरे संग फोटो का पैसा
मेरे संग खाने का पैसा
मैं बनिया हूँ,कैसे भी बस,
कमाने माल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुनाने हाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मैं ऊंचे बोल लाया हूँ
बजाने ढोल लाया हूँ
चिपक कुर्सी पे बैठूंगा,
मैं 'फेविकोल 'लाया हूँ
पांच वर्षों तक सत्ता का ,
ले मन में ख्याल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मैं पानी सस्ता कर दूंगा
मैं बिजली सस्ती करदूंगा
छीन ली झाड़ू मोदी में ,
साफ़ हर बस्ती कर दूंगा
मैं रिश्वतखोर लोगों की ,
खींचने खाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मोदीजी कहते है ना,
खाऊंगा,खाने नहीं दूंगा ,
मगर मैं खाऊंगा और,
खाने के पैसे वसूलूंगा
बीस हज्जार की थाली ,
में रोटी ,दाल लाया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
कमाई करने का अपना ,
तरीका होगा कुछ ऐसा
मेरे संग फोटो का पैसा
मेरे संग खाने का पैसा
मैं बनिया हूँ,कैसे भी बस,
कमाने माल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंगलवार, 13 जनवरी 2015
Good Day.
Greetings to you and your family, before I proceed I am very sorry to encroach into your privacy in this manner; please accept my apology. I am Mr. Badaru Amor, chartered chief auditor with BANK OF AFRICA of Burkina Faso Ouagadougou West Africa. I got your contact address from your country through online directory. You're impressive and managerial records made me to solicit for your partnership in these regards.
I would like to know if this proposal will be worth while for your acceptance. I have a Foreign Customer, Manfred Hoffman from Germany who was an Investor here, in Crude Oil Merchant and Federal Government Contractor, here in Burkina Faso he was a victim of Concord Air Line, flight AF4590 crashed in killing 113 people on 13 July 2000 near Paris France leaving a closing balance of Fifteen Million Five Hundred Thousand Dollars ($15.5 Million Dollars) In one of his Private US dollar Account that was been managed by me as his Account Officer in Bank Of Africa Burkina Faso.
Base on my security report, these funds can be claimed without any hitches as no one is aware of the funds and it's closing balance except me and the customer who is (Now Deceased) therefore, I can present you as the Next of Kin and we will work out the modalities for the claiming of the fund in accordance with the law. If you are interested and really sure of your trustworthy, accountability and confidentiality on this transaction without any disappointment, please contact me through my email for further details.
I expect your reply letter towards this. Our sharing ratio will be 50% for me and 40% for you, while 10% will be for the necessary expenses that might occur along the line during the transaction.
I expect your reply
Sincerely
Mr. Badaru Amor.
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Mr. Badaru Amor.
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सोमवार, 12 जनवरी 2015
उठो - खड़े होओ - आगे बढ़ो....
हां, बिलकुल सही है
चोट लग जाने के बाद
सोच समझकर चलना,
दूध से जल जाने के बाद
छाछ भी फूंक - फूंक कर पीना...
लेकिन वो रास्ता ही छोड़ देना
जहां लगी हो चोट?
पीना ही छोड़ देना
दूध ही नहीं छाछ भी?
फिर कैसे जियोगे भला
सबकुछ छोड़ कर जिन्दगी?
चोट लगनी है तो
लग जायेगी कहीं भी - कैसे भी,
जलना है तो जल जाओगे
कहीं भी - कभी भी - कैसे भी,
चाहे जितने रहो सतर्क
चाहे जितने रहो चौकन्ने...
तो क्या बहुत ज्यादा सोचना
क्या बहुत ज्यादा विचारना
क्या बहुत ज्यादा पछताना
क्या बहुत ज्यादा दुखी होना
क्या बहुत ज्यादा उदास होना...
बड़े से बड़े हादसों के बावजूद
जिन्दगी की रफ्तार
हो सकता है कि थोड़ी धीमी हो जाये
जिन्दगी खुद थोड़ी लड़खड़ा जाये
पर रुकती कभी नहीं,
क्योंकि अगर रुक गई तो फिर
जिन्दगी जिन्दगी नहीं रहती...
इसलिये उठो -
खड़े होओ - आगे बढ़ो
एक सुनहरा कल बेताब है
तमाम खुशियां - तमाम सुकून
तमाम जश्न और तमाम मुस्कुराहटें,
तुम्हारे लिये साथ लिये...
- विशाल चर्चित
रविवार, 11 जनवरी 2015
शादीशुदा जिंदगी
शादीशुदा जिंदगी
बड़ी तीखी कुरमुरी सी
स्वाद से लेकिन भरी सी
जिंदगी शादीशुदा की,
है पकोड़ी चरपरी सी
मज़ा लेकर सभी खाते ,
भले खाके करते सी सी
सभी के मन को सुहाती,
चाट है ये चटपटी सी
जलेबी सी है रसीली ,
भले टेढ़ी ,अटपटी सी
पोल कितनी भी भले हो,
मगर बजती बांसुरी सी
मुंह जलाती सभी मिर्चे ,
लाल,काली या हरी सी
लगी मुंह से नहीं छूटे ,
सर्दियों में मूंगफली सी
कैसी भी हो,प्यार करती ,
बीबियाँ, लगती परी सी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बड़ी तीखी कुरमुरी सी
स्वाद से लेकिन भरी सी
जिंदगी शादीशुदा की,
है पकोड़ी चरपरी सी
मज़ा लेकर सभी खाते ,
भले खाके करते सी सी
सभी के मन को सुहाती,
चाट है ये चटपटी सी
जलेबी सी है रसीली ,
भले टेढ़ी ,अटपटी सी
पोल कितनी भी भले हो,
मगर बजती बांसुरी सी
मुंह जलाती सभी मिर्चे ,
लाल,काली या हरी सी
लगी मुंह से नहीं छूटे ,
सर्दियों में मूंगफली सी
कैसी भी हो,प्यार करती ,
बीबियाँ, लगती परी सी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 10 जनवरी 2015
गुरुवार, 8 जनवरी 2015
ये उत्तर प्रदेश है
ये उत्तर प्रदेश है
ये मेरा देश है ,उत्तर प्रदेश है
जन्मभूमि यह श्रीकृष्ण की ,यहीं पे जन्मे राम है
मथुरा ,वृन्दावन काशी है और अयोध्या धाम है
गंगा जमुना बहती रहती ,सरयू भी अविराम है
धर्म कर्म शिक्षा संस्कृती का ,यहीं हुआ उत्थान है
दिया बुद्ध ने ,सारनाथ मे,यहीं ज्ञान संदेश है
ये मेरा देशहै, उत्तर प्रदेश है
शस्यश्यामला है ये धरती ,सभी तरफ हरियाली है
है समृद्ध, यहाँ के वासी, सुख,शांति, खुशहाली है
खेत लहलहाते है फसलों से, फलों लदी हर डाली है
रहन सहन और खानपान में ,इसकी बात निराली है
प्रगति पथ पर बढ़ता जाता,बदल रहा परिवेश है
ये मेरा देश है ,उत्तरप्रदेश है
हस्तशिल्प उद्योग यहाँ पर ,गाँव गाँव में विकसित है
हर बच्चा ,अब कंप्यूटर में ,शिक्षित और प्रशिक्षित है
सड़क ,रेल का जाल बिछा है ,वातावरण सुरक्षित है
नए नए उद्योग यहाँ पर ,रोज हो रहे विकसित है
आमंत्रण, सरकार दे रही ,सुविधा कई विशेष है
ये मेरा देश है,उत्तर प्रदेश है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
ये मेरा देश है ,उत्तर प्रदेश है
जन्मभूमि यह श्रीकृष्ण की ,यहीं पे जन्मे राम है
मथुरा ,वृन्दावन काशी है और अयोध्या धाम है
गंगा जमुना बहती रहती ,सरयू भी अविराम है
धर्म कर्म शिक्षा संस्कृती का ,यहीं हुआ उत्थान है
दिया बुद्ध ने ,सारनाथ मे,यहीं ज्ञान संदेश है
ये मेरा देशहै, उत्तर प्रदेश है
शस्यश्यामला है ये धरती ,सभी तरफ हरियाली है
है समृद्ध, यहाँ के वासी, सुख,शांति, खुशहाली है
खेत लहलहाते है फसलों से, फलों लदी हर डाली है
रहन सहन और खानपान में ,इसकी बात निराली है
प्रगति पथ पर बढ़ता जाता,बदल रहा परिवेश है
ये मेरा देश है ,उत्तरप्रदेश है
हस्तशिल्प उद्योग यहाँ पर ,गाँव गाँव में विकसित है
हर बच्चा ,अब कंप्यूटर में ,शिक्षित और प्रशिक्षित है
सड़क ,रेल का जाल बिछा है ,वातावरण सुरक्षित है
नए नए उद्योग यहाँ पर ,रोज हो रहे विकसित है
आमंत्रण, सरकार दे रही ,सुविधा कई विशेष है
ये मेरा देश है,उत्तर प्रदेश है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
संक्रांति-मिलन पर्व
संक्रांति-मिलन पर्व
मैं तिल छोटा, मेरे दिल में , तैल है प्यार का लेकिन
डली गुड की हो तुम मीठी, हमारा मेल है मुमकिन
मिलें हम एक रस होकर,गज़क,तिलपपड़ी जाएँ बन
चिपक कर हर तरफ तुमसे ,रहूँ बन रेवड़ी हरदम
या दलहन सा दला जाकर ,कोई मैं दाल बन जाऊं
रूपसी चाँवलों सी तुम, तुम्हारा संग यदि पाऊं
मिलेंगे जब भी हम और तुम ,पकेगी खिचड़ी प्यारी
जले जब आग लोढ़ी की ,मिलन की होगी तैयारी
सूर्य जब उत्तरायण हो,मिलेगा प्यार का उत्तर
उड़ेंगे हम पतंगों से ,और चूम आएंगे अम्बर
मिलें तिलगुड या खिचड़ी से ,ह्रदय में शांति फिर होगी
मिलन का पर्व तब होगा,नयी संक्रांति फिर होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं तिल छोटा, मेरे दिल में , तैल है प्यार का लेकिन
डली गुड की हो तुम मीठी, हमारा मेल है मुमकिन
मिलें हम एक रस होकर,गज़क,तिलपपड़ी जाएँ बन
चिपक कर हर तरफ तुमसे ,रहूँ बन रेवड़ी हरदम
या दलहन सा दला जाकर ,कोई मैं दाल बन जाऊं
रूपसी चाँवलों सी तुम, तुम्हारा संग यदि पाऊं
मिलेंगे जब भी हम और तुम ,पकेगी खिचड़ी प्यारी
जले जब आग लोढ़ी की ,मिलन की होगी तैयारी
सूर्य जब उत्तरायण हो,मिलेगा प्यार का उत्तर
उड़ेंगे हम पतंगों से ,और चूम आएंगे अम्बर
मिलें तिलगुड या खिचड़ी से ,ह्रदय में शांति फिर होगी
मिलन का पर्व तब होगा,नयी संक्रांति फिर होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंगलवार, 6 जनवरी 2015
प्यार का अंदाज
प्यार का अंदाज
हमारे प्यार करने पर ,गज़ब अंदाज है उनका,
दिखाती तो झिझक है पर,मज़ा उनको भी आता है
कभी जब रूठ वो जाते,चाहते हम करें मिन्नत,
वो मुस्काते है मन में जब,उन्हें जाया मनाता है
संवर कर और सज कर जब ,पूछते,कैसे लगते है,
समझते हम निमंत्रण है,रहा हमसे न जाता है
उन्हें बाहों में भर कर के,हम उन्हें प्यार जब करते,
खफा होते जब ,होठों से , लिपस्टिक छूट जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हमारे प्यार करने पर ,गज़ब अंदाज है उनका,
दिखाती तो झिझक है पर,मज़ा उनको भी आता है
कभी जब रूठ वो जाते,चाहते हम करें मिन्नत,
वो मुस्काते है मन में जब,उन्हें जाया मनाता है
संवर कर और सज कर जब ,पूछते,कैसे लगते है,
समझते हम निमंत्रण है,रहा हमसे न जाता है
उन्हें बाहों में भर कर के,हम उन्हें प्यार जब करते,
खफा होते जब ,होठों से , लिपस्टिक छूट जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुलहनामा -बुढ़ापे में
सुलहनामा -बुढ़ापे में
हमें मालूम है कि हम ,बड़े बदहाल,बेबस है,
नहीं कुछ दम बचा हम में ,नहीं कुछ जोश बाकी है ,
मगर हमको मोहब्बत तो ,वही बेइन्तहां तुमसे ,
मिलन का ढूंढते रहते ,बहाना इस बुढ़ापे में
बाँध कर पोटली में हम,है लाये प्यार के चांवल,
अगर दो मुट्ठी चख लोगे,इनायत होगी तुम्हारी,
बड़े अरमान लेकर के,तुम्हारे दर पे आया है ,
तुम्हारा चाहनेवाला ,सुदामा इस बुढ़ापे में
ज़माना आशिक़ी का वो ,है अब भी याद सब हमको,
तुम्हारे बिन नहीं हमको ,ज़रा भी चैन पड़ता था ,
तुम्हारे हम दीवाने थे,हमारी तुम दीवानी थी,
जवां इक बार हो फिर से ,वो अफ़साना बुढ़ापे में
भले हम हो गए बूढ़े,उमर तुम्हारी क्या कम है ,
नहीं कुछ हमसे हो पाता ,नहीं कुछ कर सकोगी तुम ,
पकड़ कर हाथ ही दो पल,प्यार से साथ बैठेंगे ,
चलो करले ,मोहब्बत का ,सुलहनामा ,बुढ़ापे में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हमें मालूम है कि हम ,बड़े बदहाल,बेबस है,
नहीं कुछ दम बचा हम में ,नहीं कुछ जोश बाकी है ,
मगर हमको मोहब्बत तो ,वही बेइन्तहां तुमसे ,
मिलन का ढूंढते रहते ,बहाना इस बुढ़ापे में
बाँध कर पोटली में हम,है लाये प्यार के चांवल,
अगर दो मुट्ठी चख लोगे,इनायत होगी तुम्हारी,
बड़े अरमान लेकर के,तुम्हारे दर पे आया है ,
तुम्हारा चाहनेवाला ,सुदामा इस बुढ़ापे में
ज़माना आशिक़ी का वो ,है अब भी याद सब हमको,
तुम्हारे बिन नहीं हमको ,ज़रा भी चैन पड़ता था ,
तुम्हारे हम दीवाने थे,हमारी तुम दीवानी थी,
जवां इक बार हो फिर से ,वो अफ़साना बुढ़ापे में
भले हम हो गए बूढ़े,उमर तुम्हारी क्या कम है ,
नहीं कुछ हमसे हो पाता ,नहीं कुछ कर सकोगी तुम ,
पकड़ कर हाथ ही दो पल,प्यार से साथ बैठेंगे ,
चलो करले ,मोहब्बत का ,सुलहनामा ,बुढ़ापे में
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 5 जनवरी 2015
रेखा
रेखा
इधर उधर जो भटका करती ,रेखा वक्र हुआ करती है
परिधि में जो बंध कर रहती ,रेखा चक्र हुआ करती है
कितने ही बिंदु मिलते है ,तब एक रेखा बन पाती है
अलग रूप में,अलग नाम से ,किन्तु पुकारी सब जाती है
अ ,आ,इ ,ई ,ए ,बी ,सी ,डी ,सब अपनी अपनी रेखाएं
रेखाएं आकार अगर लें ,हंसती, रोती छवि बनाये
संग रहती पर मर्यादित है, रेल पटरियों सी रेखाएं
भले कभी ना खुद मिल पाती ,कितने बिछुड़ों को मिलवाए
कितनी बड़ी कोई रेखा हो ,वो भी छोटी पड़ जाती है
उसके आगे ,उससे लम्बी ,जब रेखाएं खिंच जाती है
मर्यादा की रेखाओं में , ही रहना शोभा देता है
लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन ,सीता हरण करा देता है
इन्सां के हाथों की रेखाओं में उसका भाग्य लिखा है
नारी मांग ,सिन्दूरी रेखा में उसका सौभाग्य लिखा है
चेहरे पर डर की रेखाएं ,तुमको जुर्म बता देती है
तन पर झुर्री की रेखाएं, बढ़ती उम्र बता देती है
सबसे सीधी रेखा वाला ,रस्ता सबसे छोटा होता
सजा वक्र रेखाओं में जो ,नारी रूप अनोखा होता
जब भी पड़े गुलाबी डोरे जैसी रेखाएं आँखों में
मादकमस्ती भाव मिलन का,तुमको नज़र आये आँखों में
कुछ रेखा 'भूमध्य 'और कुछ रेखा ' कर्क' हुआ करती है
इधर उधर जो भटका करती ,रेखा वक्र हुआ करती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इधर उधर जो भटका करती ,रेखा वक्र हुआ करती है
परिधि में जो बंध कर रहती ,रेखा चक्र हुआ करती है
कितने ही बिंदु मिलते है ,तब एक रेखा बन पाती है
अलग रूप में,अलग नाम से ,किन्तु पुकारी सब जाती है
अ ,आ,इ ,ई ,ए ,बी ,सी ,डी ,सब अपनी अपनी रेखाएं
रेखाएं आकार अगर लें ,हंसती, रोती छवि बनाये
संग रहती पर मर्यादित है, रेल पटरियों सी रेखाएं
भले कभी ना खुद मिल पाती ,कितने बिछुड़ों को मिलवाए
कितनी बड़ी कोई रेखा हो ,वो भी छोटी पड़ जाती है
उसके आगे ,उससे लम्बी ,जब रेखाएं खिंच जाती है
मर्यादा की रेखाओं में , ही रहना शोभा देता है
लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन ,सीता हरण करा देता है
इन्सां के हाथों की रेखाओं में उसका भाग्य लिखा है
नारी मांग ,सिन्दूरी रेखा में उसका सौभाग्य लिखा है
चेहरे पर डर की रेखाएं ,तुमको जुर्म बता देती है
तन पर झुर्री की रेखाएं, बढ़ती उम्र बता देती है
सबसे सीधी रेखा वाला ,रस्ता सबसे छोटा होता
सजा वक्र रेखाओं में जो ,नारी रूप अनोखा होता
जब भी पड़े गुलाबी डोरे जैसी रेखाएं आँखों में
मादकमस्ती भाव मिलन का,तुमको नज़र आये आँखों में
कुछ रेखा 'भूमध्य 'और कुछ रेखा ' कर्क' हुआ करती है
इधर उधर जो भटका करती ,रेखा वक्र हुआ करती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सब्र की शिद्दत
सब्र की शिद्दत
हमें है याद बचपन में ,बड़े बेसब्रे होते थे,
नहीं जिद पूरी होती तो,बड़े बेचैन हो जाते
जवानी में भी बेसब्री ,हमारी कुछ नहीं कम थी,
बिना उनसे मिले पल भर ,अकेले थे न रह पाते
सब्र का इस बुढ़ापे में ,हमारे अब ये आलम है,
प्रतीक्षा भोर से करते ,रात तब ख्वाब है आते
नमूना सब्र करने का ,न होगा इससे कुछ बेहतर ,
नशा जो परसों करना है ,आज अंगूर हम खाते
घोटू
हमें है याद बचपन में ,बड़े बेसब्रे होते थे,
नहीं जिद पूरी होती तो,बड़े बेचैन हो जाते
जवानी में भी बेसब्री ,हमारी कुछ नहीं कम थी,
बिना उनसे मिले पल भर ,अकेले थे न रह पाते
सब्र का इस बुढ़ापे में ,हमारे अब ये आलम है,
प्रतीक्षा भोर से करते ,रात तब ख्वाब है आते
नमूना सब्र करने का ,न होगा इससे कुछ बेहतर ,
नशा जो परसों करना है ,आज अंगूर हम खाते
घोटू
शनिवार, 3 जनवरी 2015
हमें बस केक खानी है
हमें बस केक खानी है
हमारी अपने बचपन से ,यही आदत पुरानी है
बहाना कुछ भी लेकर के ,हमें खुशियां मनानी है
है सर्दी जो अगर ज्यादा ,गरम हलवा हमें भाता ,
अगर बारिश जो हो जाए,पकोड़ी हमको खानी है
कहीं म्यूजिक अगर बजता ,थिरकने पैर लगते है,
जनम दिन हो किसी का भी ,हमें बस केक खानी है
निकलती जब भी बारातें ,बेंड की धुन पर हम नाचे,
हम अब्दुल्ला दीवाने है ,भले शादी बेगानी है
कभी गम को गलत करने ,ख़ुशी का या जशन करने ,
बहाना कुछ भी लेकर के ,दारु, पीनी पिलानी है
ख़ुशी हो चाहे,चाहे गम, रहे हँसते हमेशा हम ,
जिंदगी चार दिन की है ,खुशी से ही बितानी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हमारी अपने बचपन से ,यही आदत पुरानी है
बहाना कुछ भी लेकर के ,हमें खुशियां मनानी है
है सर्दी जो अगर ज्यादा ,गरम हलवा हमें भाता ,
अगर बारिश जो हो जाए,पकोड़ी हमको खानी है
कहीं म्यूजिक अगर बजता ,थिरकने पैर लगते है,
जनम दिन हो किसी का भी ,हमें बस केक खानी है
निकलती जब भी बारातें ,बेंड की धुन पर हम नाचे,
हम अब्दुल्ला दीवाने है ,भले शादी बेगानी है
कभी गम को गलत करने ,ख़ुशी का या जशन करने ,
बहाना कुछ भी लेकर के ,दारु, पीनी पिलानी है
ख़ुशी हो चाहे,चाहे गम, रहे हँसते हमेशा हम ,
जिंदगी चार दिन की है ,खुशी से ही बितानी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पुरानी इमारत
न टूटे जोड़ ईंटों के, नहीं उखड़ा पलस्तर है
दरो दीवार इस घर की ,अभी तक सब सलामत है
नहीं वीरानगी इसमें ,बसावट तेरी यादों की ,
लखोरी ईंटों वाली ये ,बड़ी पुख्ता इमारत है
पुरानी प्यार की बातें , खुशबूयें वो जवानी की,
यहाँ पर हर तरफ बिखरी मोहब्बत ही मोहब्बत है
नज़ारे कितने ही रंगीनियों के , इनने देखे है ,
छुपा कर राज़ सब रखना ,दीवारों की ये आदत है
भले दिखती पुरानी है ,चमक आ जाएगी इनमे ,
ज़रा सा रंग रोगन बस ,कराने की जरुरत है
न तो ये खंडहर होगी ,न ही स्मारक बनेगी ये,
बनेगी 'हेरिटेज होटल',पुरानी शान शौकत है
हो गए हम भी है बूढ़े ,पुरानी इस इमारत से ,
साथ यादों के जी लेंगे ,हमें फुरसत ही फुरसत है
नहीं दो रूम वाले फ्लेट की इस संस्कृति में हम,
कभी हो पाएंगे फिट ,हमें तो बंगले की आदत है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
न टूटे जोड़ ईंटों के, नहीं उखड़ा पलस्तर है
दरो दीवार इस घर की ,अभी तक सब सलामत है
नहीं वीरानगी इसमें ,बसावट तेरी यादों की ,
लखोरी ईंटों वाली ये ,बड़ी पुख्ता इमारत है
पुरानी प्यार की बातें , खुशबूयें वो जवानी की,
यहाँ पर हर तरफ बिखरी मोहब्बत ही मोहब्बत है
नज़ारे कितने ही रंगीनियों के , इनने देखे है ,
छुपा कर राज़ सब रखना ,दीवारों की ये आदत है
भले दिखती पुरानी है ,चमक आ जाएगी इनमे ,
ज़रा सा रंग रोगन बस ,कराने की जरुरत है
न तो ये खंडहर होगी ,न ही स्मारक बनेगी ये,
बनेगी 'हेरिटेज होटल',पुरानी शान शौकत है
हो गए हम भी है बूढ़े ,पुरानी इस इमारत से ,
साथ यादों के जी लेंगे ,हमें फुरसत ही फुरसत है
नहीं दो रूम वाले फ्लेट की इस संस्कृति में हम,
कभी हो पाएंगे फिट ,हमें तो बंगले की आदत है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शुक्रवार, 2 जनवरी 2015
पैसा और पानी
पैसा और पानी
नहीं हाथ में बिलकुल टिकता,निकल उँगलियों से बहता है
पैसा पानी सा रहता है
पानी तब ही टिक पाता है,रखो बर्फ सा इसे जमा कर
पैसा भी तब ही टिकता है,रखो बैंक में इसे जमा कर
ज्यादा गर्मी पाकर पानी ,बनता वाष्प और उड़ जाता
लोगों की जब जेब गरम हो, पैसा खूब उड़ाया जाता
पानी जब बनता समुद्र है ,तो खारापन आ जाता है
अक्सर ,ज्यादा पैसे वालों में घमंड सा छा जाता है
पानी सींच एक दाने को ,कई गुना कर ,फसल उगाता
लगता जब पैसा धंधे में ,तो वह दिन दिन बढ़ता जाता
जैसा पात्र ,उसी के माफिक, पानी अपना रूप बदलता
रूप बदल जाता लोगों का ,जब उनका सिक्का है चलता
पानी जब बन बहे पसीना ,मेहनत कर पैसा आता है
पैसे वालों के चेहरे पर ,अक्सर पानी आ जाता है
जैसे जल होता है जीवन,पैसा भी होता है जीवन
पानी कलकल कर बहता है ,तो पैसा चलता है खनखन
पैसा लक्ष्मी सा चंचल है ,पानी भी चंचल बहता है
पैसा पानी सा रहता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
नहीं हाथ में बिलकुल टिकता,निकल उँगलियों से बहता है
पैसा पानी सा रहता है
पानी तब ही टिक पाता है,रखो बर्फ सा इसे जमा कर
पैसा भी तब ही टिकता है,रखो बैंक में इसे जमा कर
ज्यादा गर्मी पाकर पानी ,बनता वाष्प और उड़ जाता
लोगों की जब जेब गरम हो, पैसा खूब उड़ाया जाता
पानी जब बनता समुद्र है ,तो खारापन आ जाता है
अक्सर ,ज्यादा पैसे वालों में घमंड सा छा जाता है
पानी सींच एक दाने को ,कई गुना कर ,फसल उगाता
लगता जब पैसा धंधे में ,तो वह दिन दिन बढ़ता जाता
जैसा पात्र ,उसी के माफिक, पानी अपना रूप बदलता
रूप बदल जाता लोगों का ,जब उनका सिक्का है चलता
पानी जब बन बहे पसीना ,मेहनत कर पैसा आता है
पैसे वालों के चेहरे पर ,अक्सर पानी आ जाता है
जैसे जल होता है जीवन,पैसा भी होता है जीवन
पानी कलकल कर बहता है ,तो पैसा चलता है खनखन
पैसा लक्ष्मी सा चंचल है ,पानी भी चंचल बहता है
पैसा पानी सा रहता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
गुरुवार, 1 जनवरी 2015
रंग-ए-जिंदगानी: तलाश जारी हैं...
रंग-ए-जिंदगानी: तलाश जारी हैं...: चलती हुई बस चलाता हुआ बस चालक यात्रियों के बीच बेठा हुआ एक अच्छा आदमी सहयात्री, सहपाठी या अलग-थलग लगता है या हैं..... अचा...
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पुस्तक लोकार्पण एवं नवगीत परिचर्चा - 19 जनवरी, 2025 को राजकीय लाइब्रेरी, एल.टी. कॉलेज वाराणसी में नवगीत कुटुंब समूह के बैनर तले पुस्तक लोकार्पण एवं राष्ट्रीय गोष्ठी का आयोजन किया गया। समार...23 घंटे पहले
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परी नहीं बेटी - हिन्दू धर्म की एक प्रसिद्ध उक्ति है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जिसे हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा बहुत ही जोर शोर से उच्चारित किया जाता...1 दिन पहले
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नये साल की एक भोर - नये साल की एक भोर वादा किया था उस दिनएक नयी भोर का लो ! आज ही वह भोर मुस्कुराती हुई आ गई है गगन लाल है पावन बेला सितारों ने ले ली है विदा दूर तक फैला है ...1 दिन पहले
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फुटपाथ .... - कानों में गूँजती अनगिनत स्वर लहरियों के साथ कहीं रास्ते पर चलते कदम अक्सरठिठक कर रुक जाते हैं जब नज़रों के सामने फुटपाथ आ जाते हैं। हाँ सड़क किनारे के वही फु...2 दिन पहले
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सेल डीड रजिस्टर नहीं होने तक अचल संपत्ति का स्वामित्व ट्रांसफर नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट - संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 (Transfer of Property Act ) की धारा 54 का हवाला देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने कहा कि प्र...2 दिन पहले
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आठवां वेतन आयोग: खुशी के झूले, जलन के शोले - *आठवां वेतन आयोग: खुशी के झूले, जलन के शोले* आठवां वेतन आयोग घोषित होते ही सरकारी कर्मचारियों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। गुप्ता जी, जो अब तक गुमसुम ...3 दिन पहले
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पतंजलि अष्टांग योग के प्रारंभिक दो अंग - पतंजलि योग दर्शन में अष्टांगयोग भाग - 02 , यम एवं नियम पिछले अंक में पतंजलि अष्टांगयोग के निम्न अंगों की परिभाषाओं को देखा गया और अब यहां इन अंगों में...4 दिन पहले
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अवनीश सिंह चौहान की तीन लघुकथाएँ - *चित्र :डॉ श्रद्धांजलि सिंह से साभार * ------------------------------ *लघुकथा-1: भविष्य* उस दिन विश्वविद्यालय के एडमीशन सेल में बड़ी भीड़ थी। नर्सिंग में डिप...4 दिन पहले
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2025 में विवाह मुहूर्त कब है ? - Marriage dates in 20252025 में विवाह मुहूर्त कब है ? [image: Marriage dates in 2025] भारतवर्ष में हिंदू धर्म में प्रत्येक मांगलिक कार्यों में शुभ मुहूर्त ...1 हफ़्ते पहले
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1445 - *लौट आओ * * - सुशीला शील स्वयंसिद्धा* त्योहारों की रौनको लौट आओ ! कितनी सूनी है मन की गलियाँ बरसों से नहीं चखी लोकगीतों की मिठास ...1 हफ़्ते पहले
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पाँच लघुकथाएँ - ऋता शेखर - 1. असर कहाँ तक "मीना अब बड़ी हो गई है। उच्च शिक्षा लेने के बाद नौकरी भी करने लगी है। कोई ढंग का लड़का मिल जाये तो उसके हाथ पीले कर दें !" चाय पीते हुए सरला...1 हफ़्ते पहले
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हम सभी बेचैन से हैं न - अभी कुछ दिनों से मैं अपनी कजिन के घर आई हुई हूं, वजह कुछ खास नहीं बस अपनी खामखाह की बैचेनी को की कुछ कम करने का इरादा था और अपने मन को हल्का करना था। अब वाप...1 हफ़्ते पहले
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787. तुम्हें जीत जाना है - तुम्हें जीत जाना है *** जीवन की हर रस्म निभाने का समय आ गया है उस चक्रव्यूह में समाने का समय आ गया है जिसमें जाने के रास्तों का पता नहीं न बाहर निकलने का...1 हफ़्ते पहले
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किन भावों का वरण करूँ मैं? - हर पल घटते नए घटनाक्रम में, ऊबड़-खाबड़ में, कभी समतल में, उथल-पुथल और उहापोह में, किन भावों का वरण करूँ मैं ? एक भाव रहता नहीं टिककर, कुछ नया घटित फिर ह...2 हफ़्ते पहले
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गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ - कोहरे का घूंघट, हौले से उतार कर। चम्पई फूलों से, रूप का सिंगार कर। अम्बर ने प्यार से, धरती को जब छुआ। गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ। धूप गुनगुनाने ...3 हफ़्ते पहले
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गुम हो गये सफ़हे - *गुम हो गये सफ़हे * *वक्त की किताब से * *ढूँढे से नहीं मिलते * *वो जो लोग थे नायाब से * *आब तो थी * *लश्करे-आफ़ताब सी * *ओझल हो गया वही चमन * *जिसक...3 हफ़्ते पहले
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अकेली हो? - पति के गुजर जाने के बाद दिन पहाड़ से लगते हैं रातें हो जाती है लंबी से भी लंबी दूर तक नजर नहीं आती सूरज की कोई किरण मशीन बन जाता है शरीर खाने, पीने की ...1 माह पहले
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किताब मिली - शुक्रिया - 22 - दुखों से दाँत -काटी दोस्ती जब से हुई मेरी ख़ुशी आए न आए जिंदगी खुशियां मनाती है * किसी की ऊंचे उठने में कई पाबंदियां हैं किसी के नीचे गिरने की कोई भी हद ...1 माह पहले
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बचपन के रंग - - बहुत पुरानी , घोर बचपन की बातें याद आ रही है. मुझसे पाँच वर्ष छोटे भाई का जन्म तब तक नहीं हुआ था. पिताजी का ट्रांस्फ़र होता रहता था - उन दिनों हमलोग तब ...1 माह पहले
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क्या अमेरिकन समाज स्त्रीविरोधी है? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी - क्या अमेरिकन समाज स्त्रीविरोधी है? : (डॉ.) कविता वाचक्नवी अमेरिका के चुनाव परिणाम की मेरी भविष्यवाणी पुनः सत्य हुई। लोग मुझे पूछते और बहुधा हँसते भी हैं क...2 माह पहले
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शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२६) - * बेशक कोई रिश्ता हमें जन्म से मिलता है परंतु उस रिश्ते से जुड़ाव हमारे मनोभाव पर निर्भर करता है । जन्म मर...3 माह पहले
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अनजान हमसफर - इंदौर से खरगोन अब तो आदत सी हो गई है आने जाने की। बस जो अच्छा नहीं लगता वह है जाने की तैयारी करना। सब्जी फल दूध खत्म करो या साथ लेकर जाओ। गैस खिड़कियाँ ...3 माह पहले
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पुरानी तस्वीर... - कल से लगातार बारिश की झड़ी लगी है। कभी सावन के गाने याद आ रहे तो कभी बचपन की बरसात का एहसास हो रहा है। तब सावन - भादो ऐसे ही भीगा और मन खिला रहता था। ...4 माह पहले
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बीज - मंत्र . - शब्द बीज हैं! बिखर जाते हैं, जिस माटी में , उगा देते हैं कुछ न कुछ. संवेदित, ऊष्मोर्जित रस पगा बीज कुलबुलाता फूट पड़ता , रचता नई सृष्टि के अंकन...4 माह पहले
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गुमशुदा ज़िन्दगी - ज़िन्दगी कुछ तो बता अपना पता ..... एक ही तो मंज़िल है सारे जीवों की और वो हो जाती है प्राप्त जब वरण कर लेते हैं मृत्यु को , क्यों कि असल मंज़िल म...8 माह पहले
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रामलला का करते वंदन - कौशल्या दशरथ के नंदन आये अपने घर आँगन, हर्षित है मन पुलकित है तन रामलला का करते वंदन. सौगंध राम की खाई थी उसको पूरा होना था, बच्चा बच्चा थ...11 माह पहले
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क्यों बदलूं मैं तेवर अपने मौसम या दस्तूर नहीं हूँ - ग़ज़ल मंज़िल से अब दूर नहीं हूँ थोड़ा भी मग़रूर नहीं हूँ गिर जाऊँ समझौते कर लूँ इतना भी मजबूर नहीं हूँ दूर हुआ तू मुझसे फिर भी तेरे ग़म से चू...1 वर्ष पहले
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ज़िन्दगी पुरशबाब होती है - क्या कहूँ क्या जनाब होती है जब भी वो मह्वेख़्वाब होती है शाम सुह्बत में उसकी जैसी भी हो वो मगर लाजवाब होती है उम्र की बात करने वालों सुनो ज़िन्दगी पुरशबाब ह...2 वर्ष पहले
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अब पंजाबी में - सिन्धी में कविता के अनुवाद के बाद अब पंजाबी में "प्रतिमान पत्रिका" में मेरी कविता " हाँ ......बुरी औरत हूँ मैं " का अनुवादप्रकाशित हुआ है सूचना तो अमरज...2 वर्ष पहले
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Bayes Theorem and its actual effect on our lives - मित्रों आज बेज़ थियरम पर बात करुँगी। बहुत ही महत्वपूर्ण बात है - गणित के शब्द से परेशान न हों - पूरा पढ़े, गुनें, और समझें। हम सभी ने बचपन में प्रोबेबिलिटी ...4 वर्ष पहले
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कविता : खेल - शहर के बीच मैदान जहाँ खेलते थे बच्चे और उनके धर्म घरों में खूँटी पर टँगे रहते थे जबसे एक पत्थर लाल हुआ तो दूसरे ने ओढ़ी हरी चादर तबसे बच्चे घरों में कैद...4 वर्ष पहले
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दोहे "रंगों की बौछार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') - *होली का त्यौहार* *-0-0-0-0-0-* *फागुन में अच्छी लगें, रंगों की बौछार।* *सुन्दर, सुखद-ललाम है, होली का त्यौहार।।* *--* *शीत विदा होने लगा, चली बसन्त बयार।*...4 वर्ष पहले
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कांच के टुकड़े - सुनो मेरे पास कुछ कांच के टुकड़े हैं पर उनमें प्रतिबिंब नहीं दिखता पर कभी फीका महसूस हो तो उन्हें धूप में रंग देती हूं चमक तीक्ष्ण हो जाते तो दुबारा ...4 वर्ष पहले
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बचपन की यादें - कल अपने भाई के मुख से कुछ पुरानी बातों कुछ पुरानी यादों को सुनकर मुझे बचपन की गालियाँ याद आ गयीं। जिनमें मेरे बचपन का लगभग हर इतवार बीता करता था। कितनी...4 वर्ष पहले
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मॉर्निंग वॉक- एक सुरक्षित भविष्य - जीवन में चलते चलते कभी कुछ दिखाई दे जाता है, जो अचानक दिमाग में एक बल्ब जला देता है , एक विचार कौंधता है, जो मन में कुनमुनाता रहता है, जब तक उसे अभिव्यक...5 वर्ष पहले
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2019 का वार्षिक अवलोकन (सत्ताईसवां) - डॉ. मोनिका शर्मा का ब्लॉग Search Results Web results परिसंवाद *आपसी रंजिशों से उपजी अमानवीयता चिंतनीय* अमानवीय सोच और क्रूरता की कोई हद नहीं बची ह...5 वर्ष पहले
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जियो सेट टॉप बॉक्स - महा बकवास - जियो फ़ाइबर सेवा धुंआधार है, और जब से इसे लगवाया है, लाइफ़ है झिंगालाला. आज तक कभी ब्रेकडाउन नहीं हुआ, बंद नहीं हुआ और स्पीड भी चकाचक. ऊपर से लंबे समय से...5 वर्ष पहले
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परमेश्वर - प्रार्थना के दौरान वह मुझसे मिला उसे मुझसे प्रेम हुआ उसकी मैली कमीज के दो बटन टूटे थे टिका दिया उसने अपना सर मेरे कंधे पर वह युद्ध में हारा सैनिक था शायद!...5 वर्ष पहले
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Aakhir kab ? आखिर कब ? - * आखिर कब ? आखिर क्यों आखिर कबतक यूँ बेआबरू होती रहेंगी बेटीयाँ आखिर कबतक हवाला देंगे हम उनके पहनावे का उनकी आजादी का उनकी नासमझी और समझदारी का क्यों ...5 वर्ष पहले
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तुम्हारा स्वागत है - 1 तुम कहती हो " जीना है मुझे " मैं कहती हूँ ………… क्यों ? आखिर क्यों आना चाहती हो दुनिया में ? क्या मिलेगा तुम्हे जीकर ? बचपन से ही बेटी होने के दंश ...5 वर्ष पहले
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ना काहू से दोस्ती .... - *पुलिस और वकील एक ही परिवार के दो सदस्य से होते हैं, दोनों के लक्ष समाज को क़ानून सम्मत नियंत्रित करने के होते हैं, पर दिल्ली में जो हुआ या हो रहा है उस...5 वर्ष पहले
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Kritidev to Unicode Converter - [image: Real Time Font Converter] DL-Manel-bold. (ã t,a udfk,a fnda,aâ) Unicode (යුනිකෝඩ්) ------------------------------ © 2011 Language Technology R...5 वर्ष पहले
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जल्दी आना ओ चाँद गगन के ..... - *करवा चौथ* *मैं यह व्रत करती हूँ* * अपनी ख़ुशी से बिना किसी पूर्वाग्रह के करती हूँ अपनी इच्छा से अन्न जल त्याग क्योंकि मेरे लिए यह रिश्ता .... इनसे भी ज़...5 वर्ष पहले
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इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...5 वर्ष पहले
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राजू उठ ... चल दौड़ लगाने चल - राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल पानी गरम कर दिया है दूध गरम हो रहा है राजू उठ भोर हुई चल दौड़ लगाने चल दूर नहीं अब मंजिल पास खड़े हैं सपने इक दौड़ लगा कर जीत...5 वर्ष पहले
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काया - काया महकाई सतत, लेकिन हृदय मलीन। चहकाई वाणी विकट, प्राणी बुद्धिविहीन। प्राणी बुद्धिविहीन, भरी है हीन भावना। खिसकी जाय जमीन, न करता किन्तु सामना। पाकर उच्चस्...5 वर्ष पहले
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कविता और कुछ नहीं... - कविताएं और कुछ नहीं आँसू हैं लिखे हुए.... खुशी की आँच कि दुखों के ताप के अतिरेक से पोषित लयबद्ध हुए... #कविताक्याहै5 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes atau dompo - *cara mengobati herpes atau dompo* - Kita harus mengetahui apa Gejala Penyakit Herpes Dan Pengobatannya, agar ketika kita terjangkiti penyakit herpes, kit...5 वर्ष पहले
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तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात - तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी .. तुमसे मिलने के बाद पर समय को किसने थामा है आज तक हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर बहुत दूर चलने के लिए पर रस्ते ...5 वर्ष पहले
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अरे अरे अरे - आ गईं तुम आना ही था तुम्हे देहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था, आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी। वह भीगी हुई चने की दाल और हरी मिर्च जो तोते के लिये...5 वर्ष पहले
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यह विदाई है या स्वागत...? - एक और नया साल...उफ़्फ़ ! इस कमबख़्त वक्त को भी जाने कैसी तो जल्दी मची रहती है | अभी-अभी तो यहीं था खड़ा ये दो हज़ार अठारह अपने पूरे विराट स्वरूप में...यहीं पह...6 वर्ष पहले
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मन के अंदर चल रहा निरंतर संघर्ष कठिन यह मानव के ... - इच्छाओं के चक्रवात से निरंतर जूझ रहा यह मानव मन उड़ जाता है अशक्त आत्मबलरहित तिनके के माफिक। इधर उधर बेचैन कहीं भी, बिना छोर और बिना ठिकाना दरबदर भटकता व्...6 वर्ष पहले
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BIJASAN DEVI - विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय - [image: Navratri 2018: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय] *मध्यप्रदेश बिजासन देवी धाम को आज कौन नहीं जानता। कई लोगों की कुलदेव...6 वर्ष पहले
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पापा तुम क्यों चले गए ? - पापा ……………………………….. तुम्हारी साँसों में धडकन सी थी मैं , जीवन की गहराई में बचपन सी थी मैं । तुम्हारे हर शब्द का अर्थ मैं , तुम्हारे बिना व्यर्थ मैं , ...6 वर्ष पहले
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कविता- " इक लड़की" 8 मार्च- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर - *इक लड़की* *मुस्कराहट, * *उसकी आँखों से उतर;* *ओठों को दस्तक देती;* *कानों तक फ़ैल गई थी.* *जो* *उसकी सच्चाई की जीत थी. * *और * *उसकी उपलब्धि से आई थी.* *वो ...6 वर्ष पहले
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मेरी कविता - जीवन - *जीवन* *चित्र - google.com* *जीवन* * तुम हो एक अबूझ पहेली, न जाने फिर भी क्यों लगता है तुम्हे बूझ ही लूंगी. पर जितना तुम्हे हल करने की कोशिश कर...7 वर्ष पहले
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“ रे मन ” - *रूह की मृगतृष्णा में* *सन्यासी सा महकता है मन* *देह की आतुरता में* *बिना वजह भटकता है मन* *प्रेम के दो सोपानों में* *युग के सांस लेता है मन* *जीवन के ...7 वर्ष पहले
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मन का टुकड़ा मनका बनाकर - मन का टुकड़ा मनका बनाकर मनबसिया का ध्यान करूं | प्रेम की राह बहुत ही जटिल है ; चल- चल कर आसान करूं | (१५ जुलाई २०१७, रात्रि )7 वर्ष पहले
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ये कैसा संस्कार जो प्यार से तार-तार हो जाता है? - जात-पात न धर्म देखा, बस देखा इंसान औ कर बैठी प्यारछुप के आँहे भर न सकी, खुले आम कर लिया स्वीकारहाय! कितना जघन्य अपराध! माँ-बाप पर हुआ वज्रपातनाम डुबो दिया,...7 वर्ष पहले
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हिन्दी ब्लॉगिंग : आह और वाह!!!...3 - गत अंक से आगे.....हिन्दी ब्लॉगिंग का प्रारम्भिक दौर बहुत ही रचनात्मक था. इस दौर में जो भी ब्लॉगर ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय थे, वह इस माध्यम के प्रति ...7 वर्ष पहले
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प्रेम करती हूँ तुमसे - यमुना किनारे उस रात मेरे हाँथ की लकीरों में एक स्वप्न दबाया था ना उस क्षण की मधुस्मृतियाँ तन को गुदगुदाती है उस मनभावन रुत में धडकनों का मृदंग बज उ...7 वर्ष पहले
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गाँधी जी...... - गाँधी जी...... --------- चौराहॆ पर खड़ी,गाँधी जी की प्रतिमा सॆ,हमनें प्रश्न किया, बापू जी दॆश कॊ आज़ादी दिला कर, आपनॆं क्या पा लिया, बापू आपके सारॆ कॆ सारॆ सि...7 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...8 वर्ष पहले
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आप अदालत हैं - अपना मानते हैं जिन्हें वही नहीं देते अपनत्व। पक्षपात करते हैं सदैव वे पुत्री के आँसुओं का स्वर सुन। नहीं जाना उन्होंने मेरी कटुता को न ही मेरी दृष्टि में बन...8 वर्ष पहले
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फिर अंधेरों से क्यों डरें! - प्रदीप है नित कर्म पथ पर फिर अंधेरों से क्यों डरें! हम हैं जिसने अंधेरे का काफिला रोका सदा, राह चलते आपदा का जलजला रोका सदा, जब जुगत करते रहे हम दीप-बा...8 वर्ष पहले
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चलो नया एक रंग लगाएँ - लाल गुलाबी नीले पीले, रंगों से तो खेल चुके हैं, इस होली नव पुष्प खिलाएँ, चलो नया एक रंग लगाएँ । मानवता की छाप हो जिसमे, स्नेह सरस से सना हो जो, ऐसी होली खू...8 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
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विचार शून्यता। - विचार , कई बार बहते है हवा से, छलकते है पानियों से, झरते है पत्तियों से और कई बार उठते है गुबार से घुटते है, उमड़ते है, लीन हो जाते है शून्य में फिर यह...9 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...9 वर्ष पहले
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एक रामलीला यह भी - एक रामलीला यह भी यूं तो होता है रामलीला का मंचन वर्ष में एक बार पर मेरे शरीर के अंग अंग करते हैं राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के पात्र जीवन्त. देह की सक...9 वर्ष पहले
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मन गुरु में ऐसा रमा, हरि की रही न चाह - ॐ श्री गुरुवे नमः *ॐ ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।* * द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ॥ एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् । ...9 वर्ष पहले
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गुरु पूर्णिमा - आज गुरु पूर्णिमा है ! अपने गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का दिवस ,गुरु शब्द का अर्थ होता है अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला ,अज्ञान ज्ञान की और ले...9 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
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क्रिकेट विश्व कप 2015 विजय गीत - धोनी की सेना निकली दोहराने फिर इतिहास अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस | शास्त्री की रणनीति भी है और विराट का शौर्य , धोनी की तो धूम मची है विश्व ...9 वर्ष पहले
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'मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से' - मेरा मन उचट गया है त्यौहारों से… मेरे कान फ़ट चुके हैं सवेरे से लाउड वाहियत गाने सुनकर और फ़ुर्र हो चुका है गर्व। ये कौनसा रंग है मेरे देश का? बिल्कुल ऐसा ...9 वर्ष पहले
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कथा सुनो शबाब की - *कथा सुनो शबाब की* *सवाल की जवाब की* *कली खिली गुलाब **की* *बड़े हसीन ख़ाब की* * नया नया विहान था* * घ...10 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...10 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...10 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...10 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...10 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
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रंग रंगीली होली आई. - [image: Friends18.com Orkut Scraps] रंग रंगीली होली आई.. रंग - रंगीली होली आई मस्तानों के दिल में छाई जब माह फागुन का आता हर घर में खुशियाली...10 वर्ष पहले
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भ्रष्ट आचार - स्वतंत्र भारत की नीव में उस समय के नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रख दिये थे भ्रष्ट आचार फिर देश से कैसे खत्म हो भ्रष्टाचार ?11 वर्ष पहले
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अन्त्याक्षरी - कभी सोचा नहीं था कि इसके बारे में कुछ लिखूँगी: बचपन में सबसे आमतौर पर खेला जाने वाला खेल जब लोग बहुत हों और उत्पात मचाना गैर मुनासिब। शायद यही वजह है कि इ...11 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
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रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर - 'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्...11 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...12 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
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Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar - Pujya Tapaswi Sri Jagjivanjee Maharaj Chakchu Chikitsalaya, Petarbar is a Charitable Eye Hospital which today sets an example of a selfless service to the...12 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...13 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...13 वर्ष पहले
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अब बक्श दे मैं मर मुकी - चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी, मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी, मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख के ढेर दिल मैं कहीं, सुलग सुलग के आय...13 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
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दरिन्दे - बारूद की गन्ध फैली है, माहौल है धुआँ-धुआँ कपड़ों के चीथड़े, माँस के लोथड़े फैले हैं यहाँ-वहाँ। ये छोटा चप्पल किसी मासूम का पड़ा है यहाँ ढूँढो शयद वह ज़िन...14 वर्ष पहले
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