मै
स्वप्न खरीदने निकला ,
एक
दिन , स्वप्नों के बाज़ार में ,
बड़ी
भीड़ थी ,
ठसाठस
भरे थे खरीदार ,
रंगीले
स्वप्न , रसीले स्वप्न ,
स्वप्नों
की मंडी में स्वप्न ही स्वप्न ,
सब
नींद में थे ,
जागना
भी नहीं चाहते ,
स्वप्न
साकार करने की हिम्मत नहीं थी ना ,
दरअसल
स्वप्न साकार करने के बजाय ,
स्वप्न
खरीदना आसान लगता है ,
समय
है किसके पास ,
सब
व्यस्त है स्वप्न खरीदने में ,
स्वप्न
खरीदने में जितना समय लगता है ,
उससे
कम समय साकार होने में ,
करके
तो देखो ,
स्वप्न
की मंडी मे दिग्भ्रमित हो जाओगे ,
स्वप्नों
की दुनिया से निकल कर यथार्थ मे ,
जीकर
देखो
विनोद
भगत
सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम प्रविष्टि पर स्वागत है.
सच कहा है आपने,आजकल इस दुनिया में सब कुछ बिकता है |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..