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शनिवार, 1 जुलाई 2023

साठ के पार 

साठ बरस की उम्र एक ऐसा पड़ाव है 
जब बुढ़ापा आता दबे पांव है 
पर आदमी जब होता है पिचोहत्तर के पार 
तब खुल्लम-खुल्ला बनता है उम्र का त्यौहार अनुभव की गठरी साथ होती है 
तब बूढ़ा होना गर्व की बात होती है 
भले ही बालों में सफेदी हो या झुर्रियां हो तन में 
मैंने एक अच्छा जीवन जिया है ,संतोष होता है मन में 
लेकिन जब धीरे-धीरे उम्र और बढ़ती जाती है 
उम्र जन्य कई बीमारियां हमें सताती है 
तन में शिथिलता व्याप्त होती है 
थोड़ी थोड़ी याददाश्त खोती है 
फिर भी लंबा जीने की तमन्ना बढ़ती जाती है 
जैसे बुझने के पहले दीपक की लौ फड़फड़ाती है
नहीं छूटती है माया मोह और आसक्ति 
जब की उम्र होती है करने की ईश्वर की भक्ति सचमुच को होता है बड़ा अचंभा 
आदमी बुढ़ापे से तौबा करता है,
 फिर भी चाहता है जीना लंबा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बुढ़ापे का आलम 

आजकल अपने बुढ़ापे का यह आलम है 
नींद तो आती कम है 
तरह तरह के ख्याल आते है
 ख्याल क्या बवाल आते हैं 
 पुराने जमाने की हीरोइने सारी 
 याद आती है बारी बारी
 जैसे कल ही मैंने सपने में देखा 
 सजी-धजी सी *उमरावजान की रेखा *
 मुझको लुभा रही थी 
 वो गाना गा रही थी 
 *दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए *
 *बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए*
  मेरी हो रही थी फजीहत 
  उसका कहा मानने की बची ही कहां है हिम्मत 
उसकी मांग जबरदस्त थी
  पर मेरी हिम्मत पस्त थी 
  मैंने झट चादर से अपना मुंह ढक डाला 
  तभी सामने आ गई *संगम की वैजयंतीमाला* 
उसका रूप था बड़ा सुहाना 
 और वह शिकायत भरे लहजे में गा रही थी गाना 
*मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया *
 सकपकाहट से मेरा मुंह सिल गया 
 मैं घबराया , शरमाया, सकुचाया
 कुछ भी नहीं बोल पाया 
 मैंने अपने ध्यान को इधर उधर भटकाया 
 पर सुई थी वही पर गई अटक 
 और मेरे सामने *पाकीजा की मीना कुमारी *हो गई प्रकट 
 और मुझे देख कर मुस्कुराने लगी 
 और मुझको चिढ़ाने लगी
  *ठाड़े रहियो ओ बांके यार *
  *मैं तो कर लूंगी थोड़ा इंतजार *
  मैंने कहा मैडम 
  इन हड्डियों में नहीं बचा है इतना दम 
 जवानी वाले हालात नहीं है 
ज्यादा देर तक खड़े रहना मेरे बस की बात नहीं है 
झेल कर इस तरह की मानसिक यातना 
मेरा मन हो जाता है अनमना 
मैं होने लगता हूं विचलित 
ऊपर से पूछती है *खलनायक की माधुरी दीक्षित* 
*चोली के पीछे क्या है *
*चुनरी के नीचे क्या है *
अब आप ही बताइए 
मुझे से खेले खाये खिलाड़ी से यह पूछना कहां तक है उचित 
यह सब है बुढ़ापे का त्रास 
मुझे लगता है सब उड़ाती है मेरा उपहास
इसलिए आजकल खाने लगा हूं 
बाबा रामदेव का च्यवनप्राश

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भगवान से सीधी बात 

भगवान मुझे तू बतला दे अब क्या है तेरे एजेंडे में 
मेरी सारी अर्जी को तू, रख देता बस्ते ठंडे में 

तू तो है सबका परमपिता ,और मैं भी तेरा बच्चा हूं
थोड़ा जिद्दी हूं नटखट हूं लेकिन मैं मन का सच्चा हूं 
जो भी मेरी जरूरत होगी पापा से ही मनवाऊंगा 
पीछे पड़ करके जिद अपनी, सारी पूरी करवाऊंगा 
 तुझको पूरा करना होगा 
 मेरी झोली भरना होगा 
 मैं नहीं आऊंगा कैसे भी आश्वासन के हथकंडे में 
भगवान मुझे तू बतला दे अब क्या है तेरे एजंडे में
 
 ना मेरे पास पता तेरा, ना ही है मोबाइल नंबर अपनी ईमेल आईडी दे ,फिर चैट करूंगा मैं जी भर 
 मैं सभी समस्या का अपनी, तुझसे निदान करवाऊंगा 
और स्वीगी और जोमैटो से ,तुझ पर प्रसाद चढ़वाऊंगा 
मैं डायरेक्ट अपनी मांगें
रख दूंगा सब तेरे आगे 
विश्वास रहा ना अब मेरा तेरे पंडित या पंडे में भगवान मुझे तू बतला दे ,अब क्या है तेरे एजेंडे में

तेरी पूजा सेवा पानी ,करते यह जीवन गया गुजर 
तूने सुख मुझको भी बहुत दिए और दुख भी बांटे रह रहकर 
यह बचाकुचा जितना जीवन, हंसकर तू सुख से जीने दे 
अब नहीं बीमारी कोई रहे ,मनचाहा खाने पीने दे 
जपते जपते मैं राम नाम 
आ पहुंचूं तेरे पुण्य धाम 
बस दे देना तू मोक्ष मुझे, ना फंसू चौरासी फंदे में 
भगवान मुझे तू बतला दे कि क्या है तेरे एजेंडे में

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 29 जून 2023

बूढ़ा बंदर 

वह छड़ी सहारे चलती है, 
मैं भी डगमग डगमग चलता 
फिर भी करते छेड़ाखानी, 
हमसे न गई उच्छृंखलता  

याद आती जब बीती बातें,
हंसते हैं कभी हम मुस्कुराते 
भूले ना भुलाई जाती है ,
वह मधुर प्रेम की बरसाते 
मन के अंदर के बंदर में ,
फिर से आ जाती चंचलता 
वो छड़ी सहारे चलती है ,
मैं भी डगमग डगमग करता 

आ गया बुढ़ापा है सर पर 
धीरे-धीरे बढ़ रही उमर 
लेकिन वो जवानी के किस्से 
है मुझे सताते रह-रहकर 
वह दिन सुनहरे बीत गए, 
रह गया हाथ ही मैं मलता 
वो छड़ी सहारे चलती है ,
मैं भी डगमग डगमग करता 

मुझको तड़फा ,करती पागल 
ये प्यार उमर का ना कायल
उसकी तिरछी नजरें अब भी,
कर देती है मुझको घायल 
कोशिश नियंत्रण की करता ,
बस मेरा मगर नहीं चलता
वो छड़ी सहारे चलती है,
मैं भी डगमग डगमग चलता 

हम दो प्राणी ,सूना सा घर 
एक दूजे पर हम हैं निर्भर 
है प्यार कभी तो नोकझोंक 
बस यही शगल रहता दिनभर 
वह चाय बनाकर लाती है ,
और गरम पकोड़े मैं तलता 
वो छड़ी सहारे चलती है,
मैं भी डगमग डगमग करता

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ग़ज़ल

मेरा स्वप्न पूरा हुआ चाहिए बस 
मुझे दोस्तों की दुआ चाहिए बस 
मेरी जिंदगी में जो ला दे बहारें, 
हसीं ऐसी एक दिलरुबा चाहिए बस 
उसकी मुलायम नरम उंगलियों से,
हाथों को मेरे ,छुआ चाहिए बस 
आंखों में बिजली, गालों पर लाली,
 हंसी चेहरे पर सदा चाहिए बस 
 मस्ती से खेऊंगा जीवन की किश्ती,
 मौसम जरा खुशनुमा चाहिए बस 
 हर एक मुसीबत में हिम्मत बंधा दे,
 "घोटू" मेहरबां खुदा चाहिए बस

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 25 जून 2023

नए-नए चलन 

आजकल बड़े अजीब अजीब चलन चल गए हैं रोज नए नए फैशन बदल रहे हैं 
लोग परिवार के साथ समय  में मजा नहीं पाते हैं कहीं किसी के साथ जाकर *क्वालिटी टाइम* बिताते हैं 
घर की रोटी दाल का बवाल इन्हे नहीं सुहाता है बाहर होटल में *फाइन डाइनिग* में जाने में मजा आता है 
छुट्टियां गुजारना अच्छा नहीं लगता अपनों के बीच में 
जाकर *चिल* करते हैं गोवा के *बीच* में 
फैशन का भूत ऐसा सर पर चढ़ रहा है 
फटे हुए *जींस* पहनने का रिवाज़ बढ़ रहा है 
ढीले ढाले *ओवरसाइज टॉप* पहनने का चलन में है 
चोली की पट्टी दिखाते रहना फैशन में है 
पश्चिम सभ्यता अपनाने का यह अंजाम हो गया है *लिविंग इन रिलेशनशिप* में रहना आम हो गया है आजकल *वर्किंग कपल* घर पर खाना नहीं पकाते हैं 
*स्वीगी* को फोन कर खाना मंगाते हैं 
या दो मिनट की  *मैगी नूडल* से काम चलाते हैं आजकल चिट्ठी पत्री का चलन बंद है 
मोबाइल पर मैसेज देना सबको पसंद है 
आदमी मोबाइल सिरहाने रख कर सोता है 
बच्चे के हाथ में झुनझुना नहीं *मोबाइल* होता है
कानों पर चिपका रहता है मोबाईल रात दिन
 सारे काम होने लगे हैं* ऑनलाइन*
 अब आदमी लाइन में नहीं लगता,पर *ऑन लाइन *जीता है
 जानें हमे कहां तक ले जाएगी,ये आधुनिकता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
फेरे में 

मैं होशियार हूं पढ़ी लिखी,
 सब काम काज कर सकती हूं ,
 तुम करके काम कमा लाना ,
 मैं भी कुछ कमा कर लाऊंगी 
 
हम घर चलाएंगे मिलजुल कर,
 तुम झाड़ू पोंछा कर लेना, 
 रोटी और दाल पका लेना,
 पर छोंका में ही लगाऊंगी 
  
तुमने थी मेरी मांग भरी ,
लेकर के रुपैया चांदी का ,
उसके बदले अपनी मांगे,
 हरदम तुमसे मनवाऊंगी
 
तुमने बंधन में बांधा था ,
पहना के अंगूठी उंगली में,
 उंगली के इशारे पर तुमको ,
 मैं जीवन भर नचवाऊंगी 
 
अग्नि को साक्षी माना था 
और तुमने दिये थे सात वचन,
उन वचनों को जैसे तैसे ,
जीवन भर तुमसे निभवाऊंगी 

तुमने थे फेरे सात लिए 
और मुझको लिया था फेरे में,
 घेरे में मेरे फेरे के 
 चक्कर तुमसे कटवाऊंगी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दृष्ट सहस्त्र चंद्रो 

मैंने इतने पापड़ बेले, तब आई समझदारी मुझ में 
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ में 

जब साठ बरस की उम्र हुई ,सब कहते थे मैं सठियाया 
और अब जब अस्सी पार हुआ ,कोई ना कहता असियाया 
मैंने जीवन में कर डाले, एक सहस्त्र चंद्र के दर्शन है 
अमेरिका का राष्ट्रपति ,मेरा हम उम्र वाइडन है 
है दुनिया भर की चिंतायें ,फिर भी रहता हरदम खुश मैं 
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ कुछ मैं 

चलता हूं थोड़ा डगमग पर, है सही राह का मुझे ज्ञान 
तुम्हारी कई समस्याओं, का कर सकता हूं समाधान 
नजरें कमजोर भले ही हो ,पर दूर दृष्टि में रखता हूं 
अब भी है मुझ में जोश भरा, फुर्ती है ,मैं ना थकता हूं
मेरे अनुभव की गठरी में ,मोती और रत्न भरे कितने 
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं

लेकिन यह पीढ़ी नई-नई ,गुण ज्ञान पारखी ना बिल्कुल 
लेती ना लाभ अनुभव का , मुझसे ना रहती है मिलजुल 
मेरी ना अपेक्षा कुछ उनसे ,उल्टा में ही देता रहता 
वो मुझे उपेक्षित करते हैं, मैं मौन मगर सब कुछ सहता 
सच यह है अब भी बंधा हुआ, मैं मोह माया के बंधन में 
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 21 जून 2023

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सुनहरे सपने 

मैं एक वृद्ध, बूढ़ा, सीनियर सिटीजन 
एक ऐसा चूल्हा खत्म हो गया हो जिसका इंधन 
पर बुझी हुई राख में भी थोड़ी गर्मी बाकी है 
ऐसे में जब कोई हमउम्र बुढ़िया नजर आती है 
उसे देख उल्टी गिनती गिनने लगता है मेरा मन 
ये कैसी दिखती होगी ,जब इस पर छाया रहा होगा यौवन
इसके ये सफेद बाल ,कभी सावन की घटा से लहराते होंगे 
इसके गाल गुलाबी होते होंगे, जुलम ढाते होंगे 
तना तना, कसा कसा बदन लेकर जब चलती होगी 
कितनों के ही दिलों में आग जलती होगी 
आज चश्मे से ढकी आंखें ,कभी चंचल कजरारी होती होंगी 
प्यार भरी जिनकी चितवन कितनी प्यारी होती होगी 
जिसे ये एक नजर देख लेती होगी वो पागल हो जाता होगा 
कितने ही हसीन ख्वाबों में खो जाता होगा  
देख कर इस की मधुर मधुर मुस्कान 
कितने ही हो जाया करते होंगे इस पर कुर्बान और जब यह हंसती होगी फूल बरसते होंगे इसकी एक झलक पाने को लोग तरसते होंगे इसकी अदाएं हुआ करती होगी कितनी कातिल 
मोह लिया करती होगी कितनों का ही दिल 
इसे भी अपने रूप पर नाज होता होगा 
बड़ा ही मोहक इसका अंदाज होता होगा 
जिस गुलशन का पतझड़ में भी ऐसा अच्छा हाल 
तो जब बसंत रहा होगा तो होगा कितना कमाल 
खंडहर देखकर इमारत की बुलंदी की कल्पना करता हूं 
और आजकल इसी तरह वक्त गुजारा करता हूं 
कभी सोचता हूं काश मिल जाती ये जवानी में 
तो कितना ट्विस्ट आ जाता मेरी कहानी में 
जाने कहां कहां भटकता रहता है मन पल पल 
वक्त गुजारने के लिए यह है एक अच्छा शगल 
फिर मन को सांत्वना देता हूं कि काहे का गम है 
तेरी अपनी बुढ़िया भी तो क्या किसी से कम है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 15 जून 2023

बुढ़ापा कैसा होता है 

आदमी हंसता तो कम है आदमी ज्यादा रोता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

नज़र से थोड़ा कम दिखता ,बदन में है सुस्ती छाती 
कदम भी डगमग करते हैं ,नींद भी थोड़ा कम आती 
जलेबी ,रबड़ी और लड्डू ,देखकर ललचाता है दिल
बहुत मन करता खाने को, पचाना पर होता मुश्किल 
परेशां रहता है अक्सर, चैन मन अपना खोता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

बसाते बेटे अपना घर ,जब उनकी हो जाती शादी 
बेटियों को हम ब्याह देते हैं ,चली ससुराल वो जाती 
अकेले रह जाते हैं हम, बड़ी मुश्किल से लगता मन 
वक्त काटे ना कटता है ,खटकता है एकाकीपन 
बच्चों का व्यवहार भी न पहले जैसा होता है 
बुढापा कैसा होता है , बुढापा ऐसा होता है

उजड़ने लगती है फसलें, माथ पर काले बालों की 
दांत भी हिलने लगते हैं ,न रहती रौनक गालों की 
कभी ब्लड प्रेशर बढ़ जाता , कभी शक्कर बढ़ जाती है 
बिमारी कितनी ही सारी ,घेर कर हमें सताती है 
बदलते हालातों से हम ,किया करते समझौता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू
आशीर्वाद
1
मैंने गुरु सेवा करी ,बहुत लगन के साथ 
हो प्रसन्न गुरु ने कहा, मांगो आशीर्वाद 
मांगो आशीर्वाद ,कहा प्रभु दो ऐसा वर 
सुख और शांति मिले ,मुझे पूरे जीवन भर 
कहा तथास्तु गुरु ने , मैं प्रसन्न हो गया 
पाया आशीर्वाद गुरु का धन्य हो गया 
2
लेकिन फिर ऐसा हुआ कुछ कुछ मेरे साथ 
शादी की बातें चली ,बनी नहीं पर बात 
बनी नहीं पर बात,दुखी मन मेरा डोला 
गया गुरु के पास, शिकायत की और बोला 
गुरुवर फलीभूत ना आशीर्वाद तुम्हारा 
सुखी नहीं में दुखी ,अभी तक बैठा कुंवारा
3
गुरु बोले शादी करो ,खो जाता है चैन
पत्नी की फरमाइशें, लगी रहे दिन रेन
लगी रहे दिन रेन ,रोज की होती किच-किच
 सास बहू के झगड़े में इंसां जाता पिस
 मेरे वर ने रोक रखी तेरी बरबादी 
सुख शांति से जी, या फिर तू कर ले शादी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

हंसी खुशी से मौज मनाते, अभी तलक जीवन जिया है 
यही सोचता रहता मैंने ,क्या अच्छा ,क्या बुरा किया है 
बीती यादों के बस्ते पर, धूल चढ़ी ,कब तलक बुहारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं

करने को ना काम-धाम कुछ, दिन भर बैठा रहूं निठल्ला 
कब तक टीवी रहूं देखता ,मन बहलाता रहूं इकल्ला 
इधर-उधर अब ताक झांक कुछ ,करने वाली नजर ना रही 
मौज और मस्ती सैर सपाटा ,करने वाली उमर ना रही 
लोग क्या कहेंगे, करने के पहले , सोचूं और विचारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं

पहले वक्त गुजर जाता था ,पत्नी से तू तू मैं मैं कर 
अब पोते पोती सेवा में ,वह रहती है व्यस्त अधिकतर 
झगड़े की तो बात ही छोड़ो ,उसे प्यार का वक्त नहीं है 
बाकी समय भजन कीर्तन में, वह मुझसे अनुरक्त नहीं है 
भक्ति भाव का भूत चढ़ा है ,उस पर ,कैसे उसे उतारूं 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

अब तो बीती,खट्टी मीठी ,यादें ही है एक सहारा 
बार-बार जिनको खंगाल कर,करता हूं मैं वक्त गुजारा 
मित्रों के संग गपशप करके, थोड़ा वक्त काट लेता हूं 
दबी हुई भड़ास ह्रदय की, सबके साथ बांट लेता हूं 
एकाकीपन में जो बहती ,कैसे अश्रु धार संभालू 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 11 जून 2023

मामूली आदमी 

मैं एक मामूली आदमी हूं
पहले मैं खुद को आम आदमी कहता था 
संतोषी और सुखी रहता था 
पर जब से केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई है 
आम आदमी बनने का नाटक कर ,
आम आदमी की खिल्ली उड़ाई है 
कहीं आम आदमी की,अपने घर को 
सुधारने के लिए छियांलिस करोड़ रुपए
खर्च करने की औकात होती है 
पर इन नेताओं की अलग ही जात होती है 
गले में मफलर डालने भर से 
कोई आम आदमी नहीं बन जाता 
पर जनता को बरगलाने के लिए ,
यह नाटक है किया जाता 
यूं भी आजकल आम के दाम 
छू रहे हैं आसमान 
आम खाना, आम आदमी की पहुंच से 
बाहर हो रहा है 
इसलिए आम आदमी ,आम आदमी नहीं रहा है 
आजकल आम आदमी की पहुंच में है मूली इसलिए आम आदमी ,बन गया है मामूली 
मेरी औकात भी मूली पर आकर है थमी 
और मैं बन गया हूं मामूली आदमी 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 10 जून 2023

विचार गंगा

 हम शब्दों को छू ना पाते, शब्द हमें छू जाते हैं दृष्टिकोण अलग होता है, पास सभी के आंखें हैं
 
करनी तो सब ही करते हैं,लेकिन करनी करनी में, 
फर्क बहुत होता,जीवन में जिससे सुख दुख आते हैं 
आती हमें नजर है झट से, क्या कमियां है औरों में
 लेकिन अपनी कमियों को हम, कभी देख ना पाते हैं 
सब हमें पता है ,तुम्हें पता है ,सबको जाना है एक दिन ,
लंबे जीवन की आशा में ,हम खुद को बहलाते हैं

हमें जिंदगी बस गुजारनी नहीं ,जिंदगी जीनी है,
नहीं गटागट, घूंट घूंट जो पीते ,मजा उठाते हैं

अपनीअपनी पड़ी सभी को, दुख में साथ नहीं देते 
रिश्ते ,नाते ,प्यार वफ़ा सब ,यह तो कोरी बातें हैं

 सबको है मालूम ,साथ में कुछ भी ना जाने वाला
 लेकिन मोह माया बंधन में हम बंधते ही जाते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 5 जून 2023

मोदी ही मोदी 
1
न रुदबा बचा है , न कुर्सी ,कमीशन,
 परेशान है सारे नेता विरोधी 
 सत्ता में आया है जब से ये मोदी, 
 उसने तो उनकी है लुटिया डुबो दी 
 पड़े लाले, घोटाले वालों के सारे ,
 आये हाशिए पर ,है पहचान खो दी 
 इधर देखो मोदी, उधर देखो मोदी 
 देश और विदेशों में मोदी ही मोदी  
 2
गरीबों को छत दीऔर भूखों को राशन
 घर घर में बिजली, किये काम अनगिन 
 बिछा जाल सुंदर सुहानी सड़क का ,
 पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण 
 हरे क्षेत्र में बढ़ रहे हम हैं आगे ,
 तरक्की मेरा देश करता दिनों दिन 
 विदेशों में भारत का डंका बजा है ,
 अगर जो है मोदी, सभी कुछ मुमकिन

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 4 जून 2023

जीने की चाहत 

मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 
अधिक लंबा जीने की चाहत हुई है 

बिमारी ने लंबी ,किया मुझको बेकल 
घिरने लगे थे निराशा के बादल 
मगर खेरख्वाओं ने हिम्मत बढ़ाई 
किरण रोशनी की मुझे दी दिखाई 
सुधर फिर से अच्छी सी सेहत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

मेरा ख्याल रखती मेरी हमसफर है 
आसां हुई जिंदगी की डगर है 
कदम मेरे अब ना रहे डगमगा है 
नया आत्मविश्वास मुझ में जगा है 
बड़े अच्छे मित्रों की संगत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

दुआओं ने सबकी असर यह दिखाया 
बुझा था जो चेहरा ,वह फिर मुस्कुराया 
फिर से नया जोश ,जज्बा मिला है 
पुराना शुरू हो गया सिलसिला है 
बुलंद हौसला और हिम्मत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

सोये थे अरमान ,सब जग गए हैं 
उड़ूं आसमां में अब पर लग गए हैं 
तमन्ना है सारे मजे मैं उठा लूं 
सभी खुशियां जीवन की ख़ुद में समालू  
ललक मौज मस्ती की जागृत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 30 मई 2023

तू तू मैं मैं 

अगर काटना है यह जीवन जो मस्ती में 
बहुत जरूरी पति-पत्नी में तू तू मैं मैं 

तू तू मैं मैं ना होगी, तकरार ना होगी 
जीत किसी की और किसी की हार न होगी 
नहीं रूठना होगा और ना मान मनौव्वल
होगा प्यार ही प्यार अगर जीवन में केवल 
मजा ना देगी ,भरी मिठाई , थाली पूरी 
स्वाद चाहिए ,संग होना, नमकीन जरूरी 
इसी तरह यदि बीच प्यार के, हो जो झगड़ा 
देता है जीवन में सुख को और भी बढ़ा 
बिन लड़ाई के ये जीवन है सूना सूना 
लड़कर प्यार करो ,आनंद आता है दूना
लड़ती है जबआंखें, होता तभी प्यार है 
बिन पतझड़ के कभी नहीं आती बहार है
नहीं एकरसता चाहते हो यदि जीवन में 
बहुत जरूरी ,पति-पत्नी में ,तू तू मैं मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू
जवानी फिर से मिल जाए 

बीते हुए जवान दिनों की जब आती है याद 
दोनों हाथ उठा ईश्वर से करता में फरियाद 
ऐसा चमत्कार दिखला दो भगवान अबकी बार 
सूख रहा यह गुलशन फिर से हो जाए गुलजार 
मुरझाए इस दिल की कलियां फिर से खिल जाए 
 भगे बुढ़ापा दूर जवानी फिर से मिल जाए 

तन की सुस्ती हटे और फिर चुस्ती आ जाए 
नहीं रहे वीरानापन और मस्ती आ जाए 
तन में जोश भरे ,चेहरे पर ऐसी रंगत आय
साथ हसीनों का फिर से में कर पाऊं इंजॉय 
वह मुझको मिल जाए हमेशा जिस पर दिलआए 
भगे बुढ़ापा दूर ,जवानी फिर से मिल जाए

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कन्यादान वरदान 

खत्म हुई शादी की धूम धाम 
उपहारों का आदान-प्रदान 
मनाने को हनीमून 
दूल्हा और दुल्हन 
चले गए हिल स्टेशन 
एक दिन लड़का लड़की के मां-बाप 
डिनर पर बैठे साथ-साथ 
कर रहे थे वार्तालाप 
लड़की की मां ने कहा, हमने अपनी प्यारी 
नाज़ों से पाली 
बेटी का कर दिया है कन्यादान 
हमें विश्वास है आप रखेंगे उसका ध्यान 
लड़के की मां ने कहा, आपने किया है कन्यादान तो हमने भी किया है वर का दान 
हमारा बेटा अब हमारे हाथ से निकल जाएगा अपनी बीवी की सुनेगा और उसके गुण गाएगा 
अपनी पत्नी के इशारों पर नाचेगा 
हमारी ओर ध्यान कब देगा 
आजकल 
नव युगल 
अपनी जिंदगी अपने ढंग से,
 मनाने को होते हैं बेकल 
 हमारा लाडला 
 पराया है हो चला 
 आज नहीं तो कल ,
 बना लेगा अपना अलग घोंसला 
 हमारा घर छोड़ कर उड़ जाएगा 
 अपनी दुनिया अपने ढंग से बसायेंगा 
 शायद यही सोचकर ,
 आपने पहले से ही इंतजाम कर दिया है 
एक फ्लैट दहेज में बेटी के नाम कर दिया है 
हमारा आशिर्वाद
हमेशा है उनके साथ 
वे जहां भी रहे ,जैसे भी रहे ,फले फूले 
पर अपने मां बाप को ना भूले 
यही तसल्ली क्या कम है हमारे लिए 
वे भी चैन से जिए और हम भी चैन से जिएं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 25 मई 2023

बदला छोड़ो ,खुद को बदलो

 तुमने मुझ को गाली दी है,
 मैं भी तुमको गाली दूंगा 
 तुमने पीटा, मैं पीटूंगा,
  तुमसे पूरा बदला लूंगा 
  एक दूसरे के आगे हम ,
  लेकर के तलवार खड़े हैं 
  यही भावनाएं बदले की 
  युद्ध कराती बड़े बड़े हैं 
  इसीलिए तुम थोड़ा संभलो
  बदला छोड़ो, खुद को बदलो 
  
यदि जो तुम खुद को बदलोगे 
बदला बदला जगत लगेगा 
नफरत की बदली छट कर के
 प्यार भरा सूरज चमकेगा 
 सदभावों के फूल खिलेंगे ,
 जीवन की बगिया महकेगी 
 कांव-कांव का शोर हटेगा
  कुहू कुहू कोयल कूकेगी
  गुस्सा भूलो,थोड़ा हंस लो 
  बदला छोड़ो ,खुद को बदलो 
  
अपशब्द अगर कोई बोले 
चुपचाप सुनो ,मन शांत रखो 
कोई कितना भी उकसाये,
 व्यवहार मगर संभ्रांत रखो 
 कितनी भी विकट परिस्थितियां
  तुम्हारे जीवन में आए 
  तुम पार करोगे हर मुश्किल,
  विश्वास डगमगा ना पाये 
  मत अपने गले मुसीबत लो
बदला छोड़ो ,खुद को बदलो 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
प्रेम संकेत 

तूने अपनी नजर झुका ली 
छाई कपोलों पर भी लाली 
बादल यह संकेत दे रहे ,
अब बारिश है होने वाली 

हल्की पवन, मंद मुस्काए 
आंख गुलाबी डोरे, छाये
ढलक गया सीने से आंचल,
लाज शर्म कुछ भी ना आए 
अंग अंग पर रंग चढ़ा है ,
हुई बावली ,तू मतवाली 
बादल यह संकेत दे रहे 
अब बारिश है होने वाली 

बढ़ी हुई है दिल की धड़कन 
हुआ मिलन को आतुर है मन 
सोंधी सोंधी खुशबू तन की ,
मौन,दे रही है आमंत्रण 
तन का रोम-रोम आनंदित,
 मन मस्ती ना जाए संभाली 
 बादल यह संकेत दे रहे ,
 अब बारिश है होने वाली

मदन मोहन बाहेती घोटू
नेत्रदान 

आंख मैंने दान कर दी, बस इसी उम्मीद से ,
मर के भी करता रहूंगा, हुस्न का दीदार मैं
करके आंखें चार ,कोई संग डूबूं प्यार में ,
और किसी की जिंदगी को कर सकूं गुलजार मैं

घोटू 
सात जन्म का साथ

मुझको पंडित जी ने बोला ,जो करेगा दान तू अप्सराएं स्वर्ग में पाएगा संगत के लिए 

मौलवी ने भी बताया करेगा खैरात तो 
तुझे जन्नत में मिलेगी हूरें खिदमत के लिए 

स्वर्ग पहुंचा तो खड़ी थी बीबी स्वागत के लिऐ,
स्वर्ग में भी,फिर वही,अफसोस था इस बात का 
बोली मैंने भी किया था दान ,आई हूं यहां ,
सात जन्मों का मुझे तुम संग निभाना साथ था 

घोटू 
जीवन संध्या 

सर की खेती उजड़ गई है 
तन की चमड़ी सिकुड़ गई है 
मुंह में दांत हो गए हैं कम 
आंखों से दिखता है मध्यम
 सहमी सहमी चाल ढाल है 
 याददाश्त का बुरा हाल है 
 नींद आती है उचट उचट कर 
 सोते, करवट बदल-बदल कर 
 बीमारी का जोर हुआ है 
 पाचन भी कमजोर हुआ है 
 कांटे वक्त नहीं है कटता 
 बार-बार मन रहे उचटता 
 हाथ पांव में बचा नहीं दम 
 थोड़ी मेहनत कर थकते हम 
 बढ़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर 
 मीठा खा लो, बढ़ती शक्कर 
 चाट पकोड़े खाना वर्जित 
 खाओ दवाई ,पियो टॉनिक 
 खेल बुढ़ापे ने है खेला 
 आई जीवन संध्या बेला 
 किंतु बुलंद हौसले फिर भी 
 मस्ती से हम जीते फिर भी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 19 मई 2023


मेरी बीवी , मेरी डॉक्टर 

तेरी मीठी मीठी बातें ,
नहीं बढ़ाती मेरी शुगर 
तेरा थोड़ा प्यार दिखाना ,
कंट्रोल करता ब्लड प्रेशर 

तू हल्का सा प्यार दिखाती,
सर का दर्द, दूर हो जाता 
तू हल्का सा मुस्कुरा देती
सारा डिप्रेशन हट जाता 

प्यार भरी नजरों से जब तू 
मुझे देखती ,टेंशन गायब 
और लिपटती सीने से जब
 मुझको खुशियां मिल जाती सब 
 
 तेरे हाथ पकाए भोजन 
 में सब मिनरल और विटामिन 
 तेरे आगे घुटने टेकूं,
 दर्द नहीं होता कोई दिन 
 
 तेरे साथ चाय प्याली पी
 मिट जाती सारी थकान है 
 तुझे नमन कर ,कमर दर्द का 
 मेरे हो जाता निदान है 
 
 मेरी नब्ज,हाथ में तेरे 
 तू ही वैद्य है, तू ही डॉक्टर 
 मेरे दिल की हर धड़कन में 
 तेरा नाम लिखा है, दिलवर 
 
 मेरी सारी बीमारी का 
 तू इलाज करने में सक्षम 
 तेरे पीछे मेड हुए हम ,
 मैडम तुझमें है दम ही दम 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 17 मई 2023

सुनिए सबकी ,करिए मन की

कुंजी यही सफल जीवन की 
सुनिए सबकी, करिए मन की 

परेशानियां हो या सुख दुख 
रायचंद आ जाते सन्मुख 
दे सलाह तुमको समझाते
जितने मुंह हैं,उतनी बातें 
सबके अपने अपने अनुभव 
पर लेना है तुमको निर्णय 
आगा पीछा सभी देख के
अपनी बुद्धि और विवेक से 
भला बुरा परिणाम सोच कर
 निर्णय लेना होगा श्रेयकर
 मन मस्तक में बना संतुलन 
 वही करो जो कहता है मन 
 सीमा में अपने साधन की 
 सुनिए सबकी ,करिए मन की 
 
हमने यह देखा है अक्सर 
असफल जो होते जीवन भर 
वह बन जाते सलाहकार हैं 
और उनमें हिम्मत अपार है 
मुफ्त सलाह बांटते रहते 
अपना समय काटते रहते 
उनके चक्कर में मत पड़ना
 ऐसे सलाहकार से बचना 
 वह जो कहते उनकी सुनिए 
 लेकिन सही रास्ता चुनिए 
 जो मन बोले ,माने मस्तक 
 निर्णय होगा वही सार्थक 
 कृपा दृष्टि होगी भगवन की 
 सुनिए सबकी ,करिए मन की

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मां की ममता 

प्यार उमड़ता है आंखों से,वात्सल्य है ,अपनापन है 
मां, तू ममता की देवी है ,तुझ को सौ सौ बार नमन है 

तूने मुझे कोख में पाला, नौ महीने तक बोझ उठाया 
मैं जन्मा ,सीने से लिपटा, तूने अपना दूध पिलाया 
मेरे गालों की पुच्ची ली ,मेरे माथे को सहलाया 
तिल तिल मुझको बड़ा किया है ,पल पल अपना प्यार लुटाया
मैं यदि करता, गीला बिस्तर ,तू सूखे में मुझे सुलाती 
मुझे प्यार से चादर ओढ़ा, गीले में थी खुद सो जाती 
मीठे बोल सदा बोलूं मैं ,यही कामना लेकर मन में 
चांदी के सिक्के से लेकर ,माता शहद चटाई तूने 
जब मैं बोला ,सबसे पहले ,नाम लिया तेरा मां कह कर
मैंने आगे बढ़ना सीखा ,घुटने घुटने ,खिसक खिसक कर 
और फिर तूने उंगली थामी,मुझे सिखाया पग पग चलना 
तेरी गोदी का सुख देता, मेरा रोना और मचलना 
तूने अक्षर ज्ञान कराया ,मेरी उंगली पकड़ पकड़ कर 
इस दुनिया में कौन गुरु मां, हो सकता है तुझसे बढ़कर 
अपने हाथ ,दूध में रोटी चूर, निवाला देती थी तू 
मेरा रोना थम जाता था ,जब बाहों में लेती थी तू 
बुरी नजर से मुझे बचाती , माथ लगा काजल का टीका 
अच्छा क्या है और बुरा क्या, मां मैंने तुझसे ही सीखा 
मां ,तूने मुझ पर जीवन भर कितने ही एहसान किए हैं 
तूने अपनी आशिषों से ,मुझे सदा वरदान दिए हैं 
मैं जो कुछ भी आज बना हूं,वह तेरा लालन-पालन है 
मां ,तू ममता की देवी है ,तुझ को सौ सौ बार नमन है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चिल बेबी चिल 

चिल होने से,टल जाती है,कितनी ही मुश्किल चिल बेबी चिल 
बात बात पर ,गर्मी खाना ,अच्छी बात नहीं है झगड़ा कर लेने का मतलब घूसे लात नहीं है 
अगर क्रोध थोड़ा सा पी लो, होती नहीं लड़ाई फिर से हाथ मिला लेने में, रहती सदा भलाई खटपट सारी हट जाती है ,मिल जाते हैं दिल 
चिल बेबी चिल 
चिल्डबियर या कोल्डड्रिंक की लज्जत होती प्यारी 
नहीं गरम पानी पीने से, मिटती प्यास हमारी
गुस्सा कर लेने से अक्सर ,बढ़ जाता ब्लड प्रेशर 
इसीलिए हर सिचुएशन में ,चिल रहना ही बेहतर 
दूर टेंशन ,मन में शांति, सबको जाती मिल 
 चिल बेबी चिल
 लड़ने पर आमादा कोई हो ,मत बात बढ़ाओ 
शांत रहो चुपचाप रहो तुम बस थोड़ा मुस्काओ  
तुम्हारी मुस्कान करेगी ऐसा असर निराला 
देखोगे कुछ पल में होगा, शांत सामने वाला शिकवे गिले दूर हो जाएंगे आपस में मिल 
 चिल बेबी चिल

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 11 मई 2023

कल की चिंता 

मुझे पता ना, कब जाऊंगा,
तुम्हें पता ना कब जाओगे 
सबके जाने का दिन तय है,
जब जाना है तब जाओगे 
कल जाने की चिंता में क्यों,
अपना आज बिगाड़ रहे हो 
हरी-भरी जीवन की बगिया 
को तुम व्यर्थ उजाड़ रहे हो 

लंबे जीवन की इच्छा में ,
कई सुखों से तुम हो वंचित 
यह मत खाओ ,वह मत खाओ
 कितने व्यंजन है प्रतिबंधित 
 कई दवाई की गोली तुम,
  नित्य गटकते,टानिक पीते 
  खुद को बांधा, अनुशासन में ,
  बहुत नियंत्रित जीवन जीते 
  इच्छा माफिक, कुछ ना करते ,
  अपने मन को मार रहे हो 
  कल जाने की चिंता में क्यों 
  अपना आज बिगाड़ रहे हो 
  
मौत सभी को ही आनी है 
कटु सत्य है यह जीवन का 
तो फिर जब तक जीवन जियें,
क्यों न करें हम अपने मन का 
हर एक बात में ,इससे ,उससे 
क्यों करते हैं हम समझौता 
खुद को तरसा तरसा जीते ,
यह भी कोई जीना होता 
हो स्वतंत्र तुम खुल कर जियो,
 क्या तुम सोच विचार रहे हो 
 कल जीने की चिंता में क्यों 
 अपना आज बिगाड़ रहे हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 
प्यार की प्यास 

मोहता है मोहतरमा का अगर मुखड़ा कोई,
मन मुताबिक मोह में पड़कर मोहब्बत कीजिए

दिल किसी पर आगया तो दिल्लगी मत समझना,
उसको अपना दिल लगाकर बना दिलवर लीजिए
  
अगर प्यासा हो तुम्हारा मन किसी के प्यार का, 
बना करके यार उसको पियो पानी प्रेम का ,

उसको अपना बनाकर ,अपनाओ सारी जिंदगी, 
जान उसको जानेमन, तुम जान उस पर दीजिए

घोटू 

सोमवार, 8 मई 2023

छुट्टी ही छुट्टी 

बुढ़ापा ऐसा आया है ,
हो गई प्यार की छुट्टी 
रोज हीअब तो लगती है,
हमें इतवार की छुट्टी 

झगड़ते ना मियां बीवी,
बड़े ही प्यार से रहते ,
हुई इसरार की छुट्टी 
हुई इंकार की छुट्टी 

जरा सी मेहनत करते,
फूलने सांस लगती है ,
खतम अब हो गया दमखम,
 हुई अभिसार की छुट्टी 
 
जरा कमजोर है आंखे,
और धुंधला सा दिखता है ,
इसी कारण पड़ोसन के 
हुई दीदार की छुट्टी 

लगी पाबंदी मीठे पर 
और खट्टा भी वर्जित है 
जलेबी खा नहीं सकते 
हुई अचार की छुट्टी 

गए ऐसे बदल मौसम 
रिटायर हो गए हैं हम 
न दफ्तर रोज का जाना,
है कारोबार की छुट्टी 

बचा जितना भी है जीवन 
करें हम राम का स्मरण 
पता ना कब ,कहां ,किस दिन ,
मिले संसार की छुट्टी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
यह मत सोचो कल क्या होगा 

यह मत सोचो कल क्या होगा 
जो भी होगा अच्छा होगा 

सोच सकारात्मक जो होगी 
तो बारिश होगी खुशियों की 
जो तुम खुद का ख्याल रखोगे 
गलत सलत यदि ना सोचोगे 
तब ही तो वह ऊपर वाला 
रख पाएगा ख्याल तुम्हारा 
और तन सेहतमंद रहेगा 
मन में भी आनंद रहेगा 
हंसी खुशी से रहो हमेशा 
जीवन जियो पहले जैसा 
सोचो हर दिन ,मैं हूं बेहतर 
प्यार लुटाओ सबपर,मिलकर 
प्यार पाओगे आत्म जनों का 
जो भी होगा ,अच्छा होगा 
यह मत सोचो ,कल क्या होगा

घोटू 

शनिवार, 6 मई 2023

पड़ी है सबको अपनी अपनी

कोई तुम्हारा साथ ना देता ,
पड़ी है सबको अपनी अपनी 
सारा जीवन, सुख में ,दुख में,
साथ निभाती ,केवल पत्नी 

तू था कभी कमाया करता 
घर का खर्च उठाया करता 
खूब कमाता था मेहनत कर 
परिवार था तुझ पर निर्भर 
बच्चे तेरे बड़े हुए सब 
अपने पैरों खड़े हुए सब 
अच्छा खासा कमा रहे हैं 
मौज और मस्ती उड़ा रहे हैं 
अब बूढ़ा लाचार हुआ तू 
उनके सर पर भार हुआ तू 
सबने तुझको भुला दिया है 
पीड़ा ,दुख से रुला दिया है 
मतलब नहीं रहा ,बंद कर दी
तेरे नाम की माला जपनी
पड़ी है सबको अपनी अपनी 

देती दूध गाय है जब तक 
चारा उसे मिलेगा तब तक 
अब तेरी कुछ कदर नहीं है 
जीवन का कटु सत्य यही है 
जिन पर तूने जीवन वारा
वो ना देते तुझे सहारा 
तेरा ख्याल में रखते किंचित 
करते रहते सदा उपेक्षित
हर घर की है यही हकीकत 
वृद्ध हुए ,घट जाती कीमत 
तू चुप रह कर सब कुछ सह ले 
थोड़ा नाम प्रभु का ले ले 
काम, राम का नाम आएगा ,
जिंदगी अब ऐसे ही कटनी 
पड़ी है सबको अपनी-अपनी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
मां की याद 

बहुत आशिषे ,पाईं मैंने, मां छू चरण तुम्हारे 
तेरी सेवा करी ,मिल गए ,पुण्य जगत के सारे 

तेरी आंखों में लहराता था ममता का सागर 
तेरी शिक्षा से ही मेरा, जीवन हुआ उजागर 
मैंने पग पग चलना सीखा उंगली थाम तुम्हारी सदा स्नेह छलकाती रहती ,तेरी आंखें प्यारी 
जब भी कोई ,मुश्किल आई ,तूने रखा संभाले बहुत आशिषे,पाई मैंने , मां छू चरण तुम्हारे 

तूने पूरे परिवार को ,बांधे रखा हमेशा 
सब पर प्यार लुटाने वाला कोई न तेरे जैसा 
तेरी एक एक बातें मां , रह रह याद करूं मैं 
कोई गलत काम करने से, बचकर रहूं,डरूं मैं 
धर्म और सत्कर्म करो तुम ,थे आदर्श निराले 
बहुत आशिषे,पाई मैंने , मां छू चरण तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जोरू के गुलाम 

बहुत बेहया,हम तो भैया, खुद की पोल खोलते हैं 
पत्नी जी के डर के मारे ,कुछ भी नहीं बोलते हैं 

हम तो लल्लू के लल्लू हैं ,पर स्मार्ट घरवाली है 
घर की सत्ता , उसने अपने हाथों रखी संभाली है 
कुछ भी अच्छा होता उसका सारा श्रेय स्वयं लेती 
और जो बुरा ,कुछ हो जाए, सारा ब्लेम हमें देती 
पत्नी जी के आगे पीछे, रहते सदा डोलते हैं 
बहुत बेहया, हम तो भैया खुद की पोल खोलते हैं

हमें उंगलियों पर नचवाती और हम नाचा करते हैं 
खुल्ले आम कबूल कर रहे, हम बीबी से डरते हैं 
उड़ा रही वह निज मर्जी से ,मेहनत कर हम कमा रहे 
हम सब सहते ,खुश हो ,घर में प्रेम भाव तो बना रहे 
यस मैडम,यस मैडम ही हम ,डर कर सदा बोलते हैं 
बहुत बेहया, हम तो भैया ,खुद की पोल खोलते हैं

हर घर का बस हाल यही है ,मर्द बहुत कुछ सहते हैं 
बाहर शेर,मगर बन भीगी ,बिल्ली घर पर रहते हैं 
प्यार का लॉलीपॉप खिलाकर, बीबी उन्हें पटाती है 
ऐसा जादू टोना करती ,मनचाहा करवाती है 
घुटते रहते हैं मन ही मन ,पर मुंह नहीं खोलते हैं 
बहुत बेहया ,हम तो भैया, खुद की पोल खोलते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 30 अप्रैल 2023

भूलने की बिमारी

बुढ़ापे में मुश्किल यह भारी हुई है 
मुझे भूलने की बीमारी हुई है

नहीं याद रखा रहता ,कहां क्या रखा है 
याददाश्त देने लगी अब दगा है 
किसी का पता और नाम भूल जाता 
करने को निकला वह काम भूल जाता 
समय पर दवा लूं, नहीं याद रहता 
मस्तिष्क , मन में है अवसाद रहता 
यूं ही मुश्किलें ढेर सारी हुई है 
मुझे भूलने की बीमारी हुई है 

मगर याद रहती है बातें पुरानी 
वो बचपन के किस्से ,वो यादें पुरानी 
जवानी के दिन भी ,भुलाए न जाते 
वो जब याद आते ,बहुत याद आते 
अकेले में होती है यादें सहारा 
इन्हीं से गुजरता समय है हमारा 
घटनायें कितनी ही प्यारी हुई है 
मुझे भूलने की बीमारी हुई है 

नहीं भूल पाता वह ममता का आंचल 
मुझे याद आता ,पिताजी का वो डर
याद आती बचपन की शैतानियां सब 
गुजरे दिनों की वो नादानियां सब 
भाई बहन की , वो तू तू , वो मैं मैं
खुल्ली छतों पर , वो सोना मजे में 
बुढ़ापे में यादों से यारी हुई है 
मुझे भूलने की बीमारी हुई है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
किसी का मजाक मत उड़ाओ

अगर नहीं होना चाहते हो जीवन में परेशान 
तो कभी भी किसी का मजाक मत उड़ाओश्रीमान

 किसी की बोलचाल का 
 किसी की चाल ढाल का 
 किसी के भोलेपन का 
 किसी के मोटे तन का 
 किसी की काठी कद का 
 किसी के नीचे पद का 
 किसी के गंजेपन का 
 या किसी भी निर्धन का 
 कभी भी मजाक मत उड़ाओ 
 क्योंकि उसमें यह जो खामियां है 
 सब कुछ ईश्वर ने ही दिया है 
 और इनका मजाक है ईश्वर का अपमान 
 इसलिए किसी का मजाक मत उड़ाओ श्रीमान
 
 कई बार तुम्हारे व्यंग 
 किसी को चुभ जाए तो 
कर सकते हैं तुम्हे तंग 
द्रौपदी का एक व्यंग ,
 कि अंधों का बेटा भी होता है अंधा 
 भरी सभा में द्रोपदी को करवा सकता है नंगा इसी मजाक के कारण 
 हुआ था महाभारत का रण 
 लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक काट कर
  उड़ाया था उसका उपहास 
  और झेलना पड़ा था सीता हरण का त्रास आपका कोई भी मजाक
  कब किस के दिल को ठेस पहुंचा दे 
  पता ही नहीं लगता 
  शब्दों का व्यंग बाण बहुत गहरा है चुभता इसलिए सोच समझकर इस्तेमाल करो अपनी जुबान
  और किसी का मजाक मत उड़ाओ श्रीमान

मदन मोहन बाहेती घोटू

कर्म करो 

जो होना है ,वह है होता 
करो नहीं तुम ,यह समझौता 
तुम तकदीर बदल सकते हो ,
भाग्य जगा सकते हो सोता 

सिर्फ भाग्य का रोना रोकर ,
अगर कर्म करना छोड़ोगे 
बिन प्रयास के आस करोगे 
तो अपना ही सर फाेड़ोगे 
सच्ची मेहनत और लगन से ,
अगर प्रयास किया है जाता 
बाधाएं सारी हट जाती 
ना मुमकिन ,मुमकिन हो जाता 
उसको कुछ भी ना मिल पाता,
 भाग्य भरोसे जो है सोता 
 जो होना है ,वह है होता 
 करो नहीं ,तुम यह समझौता 
 
सच्चे दिल से कर्म करोगे,
 तुम्हें मिलेगा फल निश्चय ही 
 मेहनत करके जीत मिलेगी 
 आज नहीं तो कल निश्चय ही 
 रखो आत्मविश्वास ,सफलता ,
 तब चूमेगी चरण तुम्हारे 
 वो ही सदा जीत पाते हैं ,
 कभी नहीं जो हिम्मत हारे 
 निश्चय उसे विजय श्री मिलती 
 कभी नहीं जो धीरज खोता
  जो होना है ,वह है होता 
  करो नहीं तुम यह समझौता 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
तारा जी के जन्मदिवस पर 

तुम छिहत्तर, मैं इक्यासी
 प्यार हमारा, हुआ न बासी
 
 प्रिय, तुमने मुझको जीवनभर 
 दिए खुशी के कितने ही पल 
 
 आज तुम्हारे जन्मदिवस पर 
 चाहूं लौटाना , दूने कर 
 
 ऐसा कुछ दूं,जो मन भाए 
 तुम्हारा श्रृंगार बढ़ाएं 
 
 जिसे देख कर मन हर्षाये 
 और खुशी चेहरे पर छाये
 
 हीरक हार , भेंट है तुमको 
 मेरा प्यार ,भेंट है तुमको
 
 गोरे तन पर स्वर्ण दमकता
 हर हीरे में, प्यार चमकता 
 
 जैसे गले लगाया मुझको
 गले लगा कर रखना इसको

मदन मोहन बाहेती 

सोमवार, 24 अप्रैल 2023

लकीरों का खेल 

कोई अमीर है ,कोई गरीब है 
कोई पास है ,कोई फेल है 
यह सब किस्मत की लकीरों का खेल है 
कहते हैं आपका हाथ, जगन्नाथ है,
पर असल में हाथ नहीं, हाथ की लकीरें जगन्नाथ होती है 
जो आपकी जिंदगी में आपका भविष्य संजोती है 
कुछ लकीरें  सीधी तो कुछ  वक्र होती है 
ये हाथों की लकीरें ही जीवन का चक्र होती है 
जो पूर्व जन्म के कर्मों के से हाथ पर बनती है 
और इस जन्म के कर्मों के अनुसार बनती और बिगड़ती है 
कहते हैं किसी भी आदमी के अंगूठे की सूक्ष्म लकीरें ,
दुनिया के किसी अन्य आदमी से नहीं मिलती है 
जीवन पथ की लकीरें टेढ़ी-मेढ़ी ऊंची नीची हुआ करती है ,
जो कई मोड़ से गुजरती है 
ये लकीरें गजब की चीज है ,
चिंता हो तो माथे पर लकीरें खिंच जाती हैं 
बुढ़ापा हो तो शरीर पर झुर्रियां बनकर बिछ जाती है 
औरत की मांग में भरी सिंदूर की लकीर
 सुहाग का प्रतीक है 
 नयनों को और कटीला बनाती काजल की लीक है 
 कुछ लोगों के लिए पत्नी की आज्ञा पत्थर की लकीर होती है 
 नहीं मानने पर बड़ी पीर होती है 
 लक्ष्मण रेखा को पार करने से, हो जाता है सीता का हरण 
 मर्यादा की रेखा में रहना ,होता है सुशील आचरण 
 कुछ लोग लकीर के फकीर होते हैं 
 पुरानी प्रथाओं का बोझ जिंदगी भर ढोते हैं 
 कुछ लोग सांप निकल जाता है पर लकीर पीटते रहते हैं 
 कुछ पुरानी लकीरों पर खुद को घसीटते रहते हैं भाई भाई जो साथ-साथ पलकर बड़े होते हैं 
 धन दौलत और जमीन के विवाद में उनमें जब लकीर खिंच जाती है ,
 तो अदालत में एक दूसरे के सामने खड़े होते हैं 
 ये लकीरें बड़ा काम आती है 
 बड़े-बड़े प्रोजेक्ट का नक्शा लकीरें ही बनाती है दुनिया के नक्शे में लकीरें सरहद बनाती है 
 नारी के शरीर की वक्र रेखाएं,
 उसे बड़ी मनमोहक बनाती है 
 अच्छा यह है कि हम 
 भाई बहनों के बीच 
 यार दोस्तों के बीच
 पति-पत्नी के बीच 
 विवाद की कोई लकीर खींचने से बचें 
 और चेहरे पर मुस्कान की लकीर लाकर 
 सुख से रहें और हंसे

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 22 अप्रैल 2023

म की महिमा 

बच्चा जब बोलना सीखता है 
तो सबसे पहले वो म सीखता है 
पाकर मां की ममता और दुलार 
पिता और भाई बहनों का प्यार 
मिलजुल कर रहने का भाव हम सीखता है 
बच्चा सबसे पहले जब बोलना सीखता है 
तो सबसे पहले म सीखता है 

फिर वह सीखता है बारहखड़ी 
पढ़कर किताबें फिर बड़ी-बड़ी 
उसका मैं जागृत हो जाता है 
और वह अहम सीखता है 
बच्चा जब बोलना सीखता है 
तो सबसे पहले वह म सीखता है 

फिर जब जगती किसी के प्रति चाह
 और हो जाता है उसका विवाह 
 तो वह मां की ममता का म भुला देता है 
 भाई बहन के प्यार का हम भुला देता है 
 यहां तक की अपना मैं याने अहम भुला देता है पत्नी के आगे पीछे डोलता है 
और बस यस मैडम यस मैडम ही बोलता है 
बच्चा जब बोलना सीखता है
तो सबसे पहिले वह म सीखता है 

और जब बुढ़ापा आ जाता है 
तो फिर कोई भी म काम नहीं आता है 
और एक ही म करता है मुक्ति देने का काम 
और वह होता है राम का नाम 
बचपन की मां के नाम के साथ सीखा म,
राम के नाम के म में बदल जाता है 
और यह म ही अन्त समय काम आता है
बच्चा जब बोलना सीखता है
तो सबसे पहले वह म सीखता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
घोटू के पद 

साधो, मान बात निज मन की 
वही करो जिसको मन माने और लगे जो ढंग की साधो,मान बात निज मन की

बहुत सलाहे देने वाले ,मिल जाएंगे तुमको 
लेकिन तुम्हें परखना होगा गुण को और अवगुण को 
कई बार मन और मस्तक में ,होगी खींचातानी 
पर जो सोच समझ निर्णय लें, वह है सच्चा ज्ञानी 
भाव वेग में बहने देते ,हैं जो अपनी नैया
कभी भंवर में फंस जाते तो मिलता नहीं खिवैया 
सद्बुद्धि ही पार कराती है नदिया जीवन की 
साधो,मान बात निज मन की

 घोटू 
शिकायत पत्नी की 

प्रिय मुझको बिल्कुल ना पसंद 
तुम्हारे दोहरे मापदंड 

जब आई तुम्हारी देहरी थी 
मैं दुबली और छरहरी थी 
मैं लगती प्यारी तुम्हें बड़ी 
तुम मुझको कहते कनक छड़ी 
फिर मुझे प्यार आहार खिला 
तुमने तन मेरा दिया फुला 
बढ़ गए बदन के सब घेरे 
और तंग हुए कपड़े मेरे 
तो मोटी मोटी कह कर के 
करते रहते हो मुझे तंग 
प्रिय मुझको बिल्कुल ना पसंद 
तुम्हारे दोहरे मापदंड 

जुल्फें मेरी काली काली 
लगती है तुमको मतवाली 
मोहती है इनकी छटा तुम्हें 
कहते हो काली घटा इन्हे
पर गलती से यदि एक बार 
इन जुल्फों का जो एक बाल
आ जाए दाल में अगर नजर 
तो मुझे कोसते हो जी भर 
तुम थाली छोड़ चले जाते 
मुझको देते इस तरह दंड 
प्रिय मुझको बिल्कुल नापसंद 
तुम्हारे दोहरे मापदंड 

है मेरी ननंद बड़ी प्यारी 
लगती है बहना तुम्हारी 
तुम उसे चिढ़ाते रहते हो 
और उल्टा सुल्टा कहते हो 
लेकिन मेरी बहना प्यारी 
जो लगती तुम्हारी साली 
तुम जान लुटाते हो उस पर 
आधी घरवाली कह अक्सर 
उसके संग फ्लर्टिंग करते हो 
क्या अच्छे हैं यह रंग ढंग
प्रिय मुझको बिल्कुल ना पसंद 
तुम्हारे दोहरे मापदंड

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

प्यार

बीमार हुआ जब से ,रखती है ख्याल पत्नी,
पलकों पर बिठा मुझको,पल-पल वो पालती है

 इंतहा है प्यार की यह ,चलती है छड़ी लेकर,
 खुद तो संभल न पाती, मुझको संभालती है

घोटू 

रविवार, 16 अप्रैल 2023

मेरी बेटी 

मेरी बेटी ,मुझे खुदा की ,बड़ी इनायत 
हर एक बात में, मेरी करती रहे हिमायत

कितनी निश्चल ,सीधी साधी, भोली भाली 
हंसती रहती, उसकी है हर बात निराली 
कुछ भी काम बताओ ,करने रहती तत्पर
कुछ भी कह दो,नहीं शिकन आती चेहरे पर 
सच्चे दिल से ,मेरा रखती ख्याल हमेशा 
नहीं प्यार करता है कोई उसके जैसा 
कितनी ममता भरी हुई है उसकी चाहत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की बड़ी नियामत 

जितना प्यार दिया बचपन में मैंने उसको 
उसे चोगुना करके ,बांट रही है सबको 
चुस्ती फुर्ती से करती सब काम हमेशा 
उसके चेहरे पर रहती मुस्कान हमेशा 
कुछ भी काम बता दो ,ना कहना, ना सीखा 
सब को खुश रखने का आता उसे तरीका 
हर एक बात पर ,देती रहती मुझे हिदायत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की ,बड़ी इनायत 

मैके,ससुराल का रखती ख्याल बराबर 
दोनों का ही रखती है बैलेंस बनाकर 
सबके ही संग बना रखा है रिश्ता नाता 
कब क्या करना ,कैसे करना ,उसको आता जिंदादिल है खुशमिजाज़ है लगती अच्छी 
मुझको गौरवान्वित करती है मेरी बच्ची 
होशियार है ,उसमें है भरपूर लियाकत 
मेरी बेटी ,मुझे खुदा की बड़ी इनायत 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बुजुर्ग साथियों से 

हम बुजुर्ग हैं अनुभवी हैं और वरिष्ठ हैं 
पढ़े लिखे हैं, समझदार, कर्तव्यनिष्ठ है 
 बच्चों जैसे, क्यों आपस में झगड़ रहे हम
 अपना अहम तुष्ट करने को अकड़ रहे हम 
 हम सब तो ढलते सूरज, बुझते दिये हैं 
 बड़ी शान से अब तक हम जीवन जिये हैं 
 किसे पता, कब कौन बिदा ले बिछड़ जाएगा कौन वृक्ष से ,फूल कौन सा ,झड़ जाएगा 
 इसीलिए जब तक जिंदा , खुशबू फैलाएं 
 मिल कर बैठे हंसी खुशी आनंद मनाएं 
 आपस की सारी कटुता को आज भुलाएं 
 रहें प्रेम से और आपस में हृदय मिलाएं 
 अबकी बार हर बुधवार 
 ना कोई झगड़ा ना तकरार 
 केवल बरसे प्यार ही प्यार
चवन्नी की पीड़ा 

कल मैंने जब गुल्लक खोली 
एक कोने में दबी दबी सी, सहमी एक चवन्नी बोली 
कल मैंने जब गुल्लक खोली 

आज तिरस्कृत पड़ी हुई मैं,इसमें मेरी क्या गलती थी 
मुझे याद मेरे अच्छे दिन ,जोर शोर से मैं चलती थी 
मेरी क्रय शक्ति थी इतनी, अच्छा खानपान होता था 
सवा रुपए की परसादी में ,मेरा योगदान होता था 
अगली सीट सिनेमाघर की ,क्लास चवन्नी थी कहलाती 
सस्ते में गरीब जनता को ,पिक्चर दिखला, दिल बहलाती 
जब छुट्टा होती तो मिलते चार इकन्नी , सोलह पैसे 
मेरी बड़ी कदर होती थी ,मेरे दिन तब ना थे ऐसे 
मार पड़ी महंगाई की पर, आकर मुझे अपंग कर दिया 
मेरी वैल्यू खाक हो गई ,मेरा चलना बंद कर दिया 
अब सैया दिल नहीं मांगते,ना उछालते कोई चवन्नी 
और भिखारी तक ना लेते, मुझे देखकर काटे कन्नी
पर किस्मत में ऊंच-नीच का चक्कर सदा अड़ा रहता है 
कभी बोलती जिसकी तूती, वह भी मौन पड़ा रहता है 
भोग रही मैं अपनी किस्मत ,जितना रोना था वह रो ली 
एक कोने में दबी दबी सी , सहमी एक चवन्नी बोली 
कल मैंने जब गुल्लक खोली

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चिंतन 

कल की बातें, कड़वी खट्टी ,याद करोगे, दुख पाओगे 
आने वाले ,कल क्या होगा, यदि सोचोगे ,
घबराओगे 
जो होना है , सो होना है ,व्यर्थ नहीं चिंता में डूबो,
भरसक मजा ,आज का लो तुम , तभी चैन से जी पाओगे

घोटू 

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