जीवन संध्या
सर की खेती उजड़ गई है
तन की चमड़ी सिकुड़ गई है
मुंह में दांत हो गए हैं कम
आंखों से दिखता है मध्यम
सहमी सहमी चाल ढाल है
याददाश्त का बुरा हाल है
नींद आती है उचट उचट कर
सोते, करवट बदल-बदल कर
बीमारी का जोर हुआ है
पाचन भी कमजोर हुआ है
कांटे वक्त नहीं है कटता
बार-बार मन रहे उचटता
हाथ पांव में बचा नहीं दम
थोड़ी मेहनत कर थकते हम
बढ़ा हुआ रहता ब्लड प्रेशर
मीठा खा लो, बढ़ती शक्कर
चाट पकोड़े खाना वर्जित
खाओ दवाई ,पियो टॉनिक
खेल बुढ़ापे ने है खेला
आई जीवन संध्या बेला
किंतु बुलंद हौसले फिर भी
मस्ती से हम जीते फिर भी
मदन मोहन बाहेती घोटू
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