मां की ममता
प्यार उमड़ता है आंखों से,वात्सल्य है ,अपनापन है
मां, तू ममता की देवी है ,तुझ को सौ सौ बार नमन है
तूने मुझे कोख में पाला, नौ महीने तक बोझ उठाया
मैं जन्मा ,सीने से लिपटा, तूने अपना दूध पिलाया
मेरे गालों की पुच्ची ली ,मेरे माथे को सहलाया
तिल तिल मुझको बड़ा किया है ,पल पल अपना प्यार लुटाया
मैं यदि करता, गीला बिस्तर ,तू सूखे में मुझे सुलाती
मुझे प्यार से चादर ओढ़ा, गीले में थी खुद सो जाती
मीठे बोल सदा बोलूं मैं ,यही कामना लेकर मन में
चांदी के सिक्के से लेकर ,माता शहद चटाई तूने
जब मैं बोला ,सबसे पहले ,नाम लिया तेरा मां कह कर
मैंने आगे बढ़ना सीखा ,घुटने घुटने ,खिसक खिसक कर
और फिर तूने उंगली थामी,मुझे सिखाया पग पग चलना
तेरी गोदी का सुख देता, मेरा रोना और मचलना
तूने अक्षर ज्ञान कराया ,मेरी उंगली पकड़ पकड़ कर
इस दुनिया में कौन गुरु मां, हो सकता है तुझसे बढ़कर
अपने हाथ ,दूध में रोटी चूर, निवाला देती थी तू
मेरा रोना थम जाता था ,जब बाहों में लेती थी तू
बुरी नजर से मुझे बचाती , माथ लगा काजल का टीका
अच्छा क्या है और बुरा क्या, मां मैंने तुझसे ही सीखा
मां ,तूने मुझ पर जीवन भर कितने ही एहसान किए हैं
तूने अपनी आशिषों से ,मुझे सदा वरदान दिए हैं
मैं जो कुछ भी आज बना हूं,वह तेरा लालन-पालन है
मां ,तू ममता की देवी है ,तुझ को सौ सौ बार नमन है
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।