पड़ी है सबको अपनी अपनी
कोई तुम्हारा साथ ना देता ,
पड़ी है सबको अपनी अपनी
सारा जीवन, सुख में ,दुख में,
साथ निभाती ,केवल पत्नी
तू था कभी कमाया करता
घर का खर्च उठाया करता
खूब कमाता था मेहनत कर
परिवार था तुझ पर निर्भर
बच्चे तेरे बड़े हुए सब
अपने पैरों खड़े हुए सब
अच्छा खासा कमा रहे हैं
मौज और मस्ती उड़ा रहे हैं
अब बूढ़ा लाचार हुआ तू
उनके सर पर भार हुआ तू
सबने तुझको भुला दिया है
पीड़ा ,दुख से रुला दिया है
मतलब नहीं रहा ,बंद कर दी
तेरे नाम की माला जपनी
पड़ी है सबको अपनी अपनी
देती दूध गाय है जब तक
चारा उसे मिलेगा तब तक
अब तेरी कुछ कदर नहीं है
जीवन का कटु सत्य यही है
जिन पर तूने जीवन वारा
वो ना देते तुझे सहारा
तेरा ख्याल में रखते किंचित
करते रहते सदा उपेक्षित
हर घर की है यही हकीकत
वृद्ध हुए ,घट जाती कीमत
तू चुप रह कर सब कुछ सह ले
थोड़ा नाम प्रभु का ले ले
काम, राम का नाम आएगा ,
जिंदगी अब ऐसे ही कटनी
पड़ी है सबको अपनी-अपनी
मदन मोहन बाहेती घोटू
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