जोरू के गुलाम
बहुत बेहया,हम तो भैया, खुद की पोल खोलते हैं
पत्नी जी के डर के मारे ,कुछ भी नहीं बोलते हैं
हम तो लल्लू के लल्लू हैं ,पर स्मार्ट घरवाली है
घर की सत्ता , उसने अपने हाथों रखी संभाली है
कुछ भी अच्छा होता उसका सारा श्रेय स्वयं लेती
और जो बुरा ,कुछ हो जाए, सारा ब्लेम हमें देती
पत्नी जी के आगे पीछे, रहते सदा डोलते हैं
बहुत बेहया, हम तो भैया खुद की पोल खोलते हैं
हमें उंगलियों पर नचवाती और हम नाचा करते हैं
खुल्ले आम कबूल कर रहे, हम बीबी से डरते हैं
उड़ा रही वह निज मर्जी से ,मेहनत कर हम कमा रहे
हम सब सहते ,खुश हो ,घर में प्रेम भाव तो बना रहे
यस मैडम,यस मैडम ही हम ,डर कर सदा बोलते हैं
बहुत बेहया, हम तो भैया ,खुद की पोल खोलते हैं
हर घर का बस हाल यही है ,मर्द बहुत कुछ सहते हैं
बाहर शेर,मगर बन भीगी ,बिल्ली घर पर रहते हैं
प्यार का लॉलीपॉप खिलाकर, बीबी उन्हें पटाती है
ऐसा जादू टोना करती ,मनचाहा करवाती है
घुटते रहते हैं मन ही मन ,पर मुंह नहीं खोलते हैं
बहुत बेहया ,हम तो भैया, खुद की पोल खोलते हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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