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रविवार, 23 अगस्त 2015

वर्षा का पानी

           वर्षा का पानी

बरस बरस वर्षा का पानी ,सबके मन को हर्षाता है
पर जब शैतानी पर आता ,तो सड़कों पर भर जाता है   
नन्हे नन्हे छोटे बच्चे ,जब उसमे छप छप करते है,
भरते निश्छल सी किलकारी,तो उसको प्यारे लगते है
वो जब खुश हो भीगा करते ,इसका मन भी मुस्काता है
बरस बरस वर्षा का पानी,सबके मन को  हर्षाता  है
कई सुंदरी और सुमुखियां,संभल संभल कर आती,जाती
अपने वस्त्रों को ऊँचा कर,निज पिंडली दर्शन करवाती
नारी तन स्पर्श उसे जब मिलता ,पागल  हो जाता है
बरस बरस वर्षा का पानी ,सबके मन को हर्षाता है
कुछ मंहगे ,गर्वीले वाहन,तेज गति से है जब आते
कोशिश करते ,करें पार हम ,आसपास छींटे उड़वाते
बेचारे ठप होते जब ये ,साइलेंसर में घुस जाता  है
बरस बरस वर्षा का पानी सबके मन को हर्षाता है
बरसा करता जब ऊपर से ,मानव छतरी ले बचता है
पर सड़कों पर बच ना पाता ,वो नंगे पैरों चलता है
तरह तरह के देख नज़ारे ,उसको बड़ा मज़ा आता है
बरस बरस वर्षा का पानी ,सबके मन को हर्षाता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

चार दिन

                     चार दिन
 
चार दिनों के लिये चांदनी ,फिर अंधियारा ,
               यही सिलसिला पूरे जीवन भर चलता है
उमर चार दिन लाये ,दो दिन करी आरज़ू ,
                बाकी दो दिन इन्तजार की व्याकुलता  है
चार दिनों के लिए ,अचानक पति देवता,
                जाय अकेले ,कहीं घूमने ,ना खलता है
चार दिनों तक छुट्टी करले,अगर न आये ,
                बाई कामवाली तो काम नहीं चलता है

घोटू 

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

डिजिटल ज़माना

         डिजिटल ज़माना
ये जमाना अब डिजिटल हो गया है
वो भी तेरह मेगापिक्सल हो गया है
पहले होता बॉक्स वाला कैमरा था,
         ब्लेक एंड व्हाइट सदा तस्वीर खिंचती
हुई शादी ,तब हुआ रंगीन जीवन ,
         कलरफुल थी तब हमारी छवि दिखती
कैमरे की रील के छत्तीस फोटो,
         जब तलक खिंचते नहीं थे,धुल न पाते
और फिर दो तीन दिन में प्रिंट मिलते ,
          तब कहीं हम फोटुओं को देख पाते
कौन अच्छा,कौन धुंधला ,छाँट कर के,
            एल्बम में उन्हें जाता था सजाया
कोई आता,खोल कर एल्बम ,उनको,
            था बड़े उत्साह से जाता  दिखाया
अब तो मोबाइल से फोटो खींच,देखो,
            नहीं अच्छा आये तो डिलीट कर दो
अच्छा हो तो फेसबुक में पोस्ट कर दो,
    या कि फिर 'व्हाट्सऐप'में तुम फीड करदो   
जब भी जी चाहे स्वयं की सेल्फ़ी लो ,
    मेमोरी में कैद हर पल हो गया  है
    ये जमाना अब डिजिटल हो गया है
याद अब भी आता है हमको जमाना ,
           होता था इवेंट  जब फोटो खिचाना
खूब सजधज कर के स्टुडिओ जाना,
         फोटोग्राफर ,चीज बोले,मुस्कराना
सबसे पहला हमारा फोटो खिंचा था,
         जब हमारा जन्मदिन पहला मनाया
फॉर्म हाई स्कूल के एग्जाम का जब ,
          भरा था, तब दूसरा फोटो   खिंचाया   
तीसरा फोटो हमारा तब खिंचा था,
          बात शादी की हमारी  जब चली थी   
बड़े सज धज ,चौथा फोटो खिंचाया जब,
        बीबी की फरमाइशी  चिट्ठी मिली थी
और जब से हुई शादी ,उसी दिन से ,
        रोज ही खिंच रही है फोटो  हमारी
गनीमत है फोन अब स्मार्ट आया ,
       हो गयी है जिंदगी ,खुशनुमा ,प्यारी
बात करलो,देखो दुनिया के नज़ारे ,
दोस्त अब तो अपना गूगल  हो गया है
जमाना तो अब डिजिटल हो गया है
वो भी तरह मेगापिक्सल हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 16 अगस्त 2015

मैं अब भी हूँ तुमसे डरता

  मैं अब भी हूँ तुमसे डरता

आया बुढ़ापा ,बिगड़ी सेहत
मुझसे अब ना होती मेहनत
 मैं ज्यादा भी ना चल पाता
और जल्दी ही हूँ थक जाता
जब से काटे अग्नि चक्कर
स्वाद प्यार का तेरे चख कर 
बना हुआ तब से घनचक्कर
आगे पीछे   काटूं   चक्कर
इसी तरह बस जीवन भर मैं
नाचा खूब इशारों पर मैं
मुझमे अब सामर्थ्य नहीं
लेकिन इसका अर्थ नहीं है
मेरा प्यार हो गया कुछ कम
हाजिर  सेवा में हूँ  हरदम
इस चक्कर से नहीं उबरता 
मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
अब भी हूँ मैं तुम पर मोहित
अब भी तुम पर पूर्ण समर्पित
वैसा ही पगला दीवाना
आशिक़ हूँ मैं वही पुराना
 भले हो गयी कम तत्परता 
तुम बिन मेरा काम न चलता
पका तुम्हारे हाथों  खाना
अब भी लगता मुझे सुहाना
स्वाद तुम्हारे हाथों में है
मज़ा तुम्हारी  बातों में है
तुम्हारी मुस्कान वही है
रूप ढला ,पर शान वही है
अब भी तुम उतनी ही प्यारी
पूजा  करता  हूँ    तुम्हारी
नित्य वंदना भी हूँ करता 
मैं अब भी हूँ तुम से डरता
साथ जवानी ने है छोड़ा
अब मैं बदल गया हूँ थोड़ा
सर पर चाँद निकल आयी है
काया भी कुछ झुर्रायी है
और तुम भी तो बदल गयी हो
पहले जैसी रही नहीं हो
हिरणी जैसी चाल तुम्हारी
आज हुई हथिनी सी प्यारी
ह्रष्ट पुष्ट और मांसल है तन
और ढलान पर आया यौवन
रौनक ,सज्जा साज नहीं है
 जीने का अंदाज  वही  है
वो लावण्य रहा ना तन पर
लेकिन फिर भी तुम्हे देख कर 
ठंडी ठंडी  आहें भरता
मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
भले पड गयी तुम कुछ ढीली
पर उतनी ही  हो रौबीली
चलती हो तुम वही अकड़ कर
काम कराती सभी झगड़ कर
मैं झुकता  तुम्हारे आगे
पूरी करता सारी  मांगें 
 कभी कभी ज्यादा तंग होकर
जब गुस्से से जाता हूँ भर
उभरा करते विद्रोही स्वर
तो करीब तुम मेरे आकर
अपने पास सटा  लेती हो
करके प्यार,पटा  लेती हो
झट से पिघल पिघल मैं जाता 
तुम्हारे  रंग में   रंग जाता 
 चाल  पुरानी पर हूँ चलता
मै अब भी हूँ तुमसे डरता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सेल्फ़ी

             सेल्फ़ी

कोई दूसरा जब लेता है ,फोटो खिंच जाना कहते है
खुद अपनी फोटो जब लेते,उसे सेल्फ़ी हम कहते है
अपना काम कोई जब करता,नहीं किसी पर हो अवलम्बित
मदद दूसरों की लेने की ,नहीं जरुरत पड़ती किंचित
सेल्फ़ी जैसे मन मर्जी से ,खुद ही पकाओ ,खुद ही खाओ
औरों से फोटो खिंचवाना ,  जैसे होटल में जा खाओ
अपने आसपास वाले भी ,सब निग्लेक्ट हुआ करते है
खुद कैसे हो बस ये दिखता,आप आत्म दर्शन  करते है
फेमेली फोटो होती था ,जब सब रहते संग में मिलजुल
अब एकल परिवार सिमट कर,हुआ सेल्फ़ी जैसा बिलकुल
सेल्फ़ी में वो ही आ पाता ,जितनी दूर हाथ है जाते
सेल्फ़ी बड़ी सेल्फिश होती ,आस पास वाले कट जाते
होता है संकीर्ण दायरा ,सेल्फ़ी के कुछ लिमिटेशन है
आत्मकेंद्रित हम होते है,फिर भी सेल्फ़ी का फैशन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

हम दोनों

         हम दोनों
अहंकार से एक भरा ,एक है चारा चोर
पहला है छप्पन छुरी ,और दूजा मुंहजोर
एक भालू उल्टा चढ़े,एक गुर्राता  बाघ,
एक पीना चाहे शहद,और एक सत्ताखोर
दोनों ही घबरा रहे,आया बब्बर शेर ,
इसीलिए है हो गया ,दोनों में गठजोड़
बिल्ली मौसी खा गयी,बुरी तरह से मात ,
वो भी है संग आ गयी,सभी हेकड़ी छोड़ 
एक खुद को चदन कहे,और दूजे को सांप ,
दोनों ही विष उगलते ,मचा रहे है शोर
एक दूजे को गालियां,देते थे जो रोज,
शुरू हो गया दोस्ती ,का अब उनमे दौर
दोनों ही है पुराने ,घुटे हुए और घाघ ,
राजनीति डी.एन.ऐ.,दोनों का कमजोर
उत्तर गए मैदान में,सबने  कसी लंगोट,
सब के सब है कह रहे'ये दिल मांगे मोर'

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कैसे कह दें हम है स्वतंत्र ?

       कैसे कह दें हम है स्वतंत्र  ?

बचपन में मात पिता बंधन,
               मस्ती करने पर मार पड़े
फिर स्कूल के अनुशासन में,
               हम बेंचों पर भी हुए खड़े
जब बढे हुए तो पत्नी संग ,
               बंध  गया हमारा गठबंधन
 बंध कर बाहों के बंधन में ,
           करदिया समर्पित तन और मन  
उनके बस एक इशारे पर ,
           नाचा करते थे सुबह शाम
वो जो भी कहती,हम करते ,
          इस कदर हो गए गुलाम    
फिर फंसे गृहस्थी चक्कर में ,
          और काम काज में हुए व्यस्त
कोल्हू के बैल बने,घूमे,
           मेहनत कर कर के हुए पस्त
फिर बच्चों का लालन पालन ,
           उनकी पढ़ाई और होम वर्क
बंध  गए इस तरह बंधन में,
            बेडा ही अपना हुआ गर्क
जब हुए वृद्ध तो है हम पर 
            लग गए सैंकड़ो  प्रतिबन्ध
डॉक्टर बोला है डाइबिटीज ,
             खाना मिठाई अब हुई बंद
बंद हुआ तला खानापीना ,
              हम ह्रदय रोग से ग्रस्त हुए
उबली सब्जी और मूंग दाल ,
             हमरोज रोज खा त्रस्त हुए
आँखे धुंधलाई ,सुंदरता का ,
                    कर सकते दीदार नहीं
चलते तो सांस फूलती है,
              कुछ करने तन तैयार नहीं
तकलीफ हो गयी घुटनो में,
              और तन के बिगड़े सभी तंत्र
बचपन से लेकर मरने तक,
               बतलाओ हम कब है स्वतंत्र
थोड़े बंधन थे सामाजिक,
                तो कुछ बंधन  सांसारिक थे
कुछ बंधन बंधे भावना के,
                कुछ बंधन पारिवारिक थे
हरदम ही रहा कोई बंधन ,
                हम अपनी मर्जी चले नहीं
और तुम कहते ,हम हैं स्वतंत्र ,
                ये बात उतरती   गले नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

पापी पेट के लिए

        पापी पेट के लिए
वो अच्छा खासा इंजीनियर ,
अच्छी नौकरी,ढेर सी कमाई
उमर भी तीस के करीब होने आयी
घर के बूढ़े,बड़े ,माँ बाप और दादी
पीछे लगे है करवाने को शादी
पर उसने साफ़ कर दिया इंकार
बोला जिस दिन दिल की घंटी बजेगी ,
हो जाएगा ,शादी को तैयार
अच्छे खाने पीने का शौक़ीन
कामं में रहता है इतना तल्लीन
इतना है कमाता
पर ठीक से खाना भी नहीं खा पाता
किसी ने पूछा दिनरात काम ही काम ,
बिलकुल नहीं आराम ,आखिर किसके लिये
उसने दिया उत्तर 'पापी पेट के लिए'
किस्मत से उसकी पोस्टिंग हो गयी विदेश
चौगुनी तनख्वाह,ऐश ही ऐश
माँ बाप से बात होती कभी
पूछ लिया करते ,घंटी बजी
वो ना कहता ,माँ बाप मजबूर थे
इतनी दूर थे
एक दिन उसने माँ को फोन किया ,
आप मेरे लिए लड़की ढूंढ सकती है
पर ऐसी जो पाकशास्त्र में प्रवीणता रखती है
मैं शादी कर लूँगा उसी के संग
क्योंकि बर्गर ,पीज़ा खाखा के आ गया हूँ तंग   
इतना कमाता हूँ
पर गरम गरम पूड़ी,और ,
पराठों के लिए तरस जाता हूँ
मम्मी  हंसी
बोली देर से ही सही ,तेरी घंटी तो बजी
घंटी ने बजने में कितने दिन लगा दिए
लड़के ने हंस कर,दिया उत्तर,
घंटी वंटी कुछ नहीं बजी ,
मैं तो शादी करना चाहता हूँ ,
पापी पेट के लिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फरक नहीं पड़ता

            फरक नहीं पड़ता

चाहे कितनी भी बदल  जाए वेषभूषाएं ,
               किसी इंसान में कोई फरक नहीं पड़ता
पहन ले 'मोनोलिसा' साडी या स्कर्ट कोई,
               उसकी मुस्कान में कोई फरक नहीं पड़ता
भले ही हो सितार ,सारंगी या इकतारा ,
               सुरों की तान में कोई फरक नहीं पड़ता
तबाही करना ही फितरत है,नाम कुछ भी दो,
               किसी तूफ़ान में कोई फरक  नहीं पड़ता
विरोधी दल का काम,धरना ,नारेबाजी है ,
                उनके इस काम मे कोई फरक नहीं पड़ता
पा के सत्ता भी नहीं बदलता है डी एन ऐ,
                 उनकी पहचान में कोई फरक नहीं पड़ता
  रूप  मोहताज नहीं ,साज सज्जा ,गहनो का  ,
                हुस्न की शान में कोई फरक नहीं पड़ता  ,
चाहे तुम राम कहो,गॉड कहो या अल्लाह ,
                मगर भगवान में कोई फरक नहीं पड़ता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
               

प्रतिकार

            प्रतिकार
आपने हमसे निभाई दोस्ती ,
                प्यार हमने दे दिया प्रतिकार में
लेने देने का यही तो सिलसिला ,
               चल रहा है ,युगों से  ,संसार में
  देते दिल तो बदले में मिलता है दिल ,
 मोहब्बत के बदले मिलती मोहब्बत ,
और नफरत लाती है नफरत सिरफ ,
                  मिलता झगड़ा है सदा तकरार में
किसी का तुम भला करके देखिये,
 सच्चे मन से मिलेगी तुमको दुआ ,
मदद करना किसी जरूरतमंद की ,
                     पुण्य है सबसे बड़ा  संसार में                          
कर्म जो तुम करते हो इस जन्म में ,
उसका फल मिलता है अगले जन्ममे,
बस यही  तो कर्म का सिद्धांत  है ,
                      मोक्ष है,सद्कर्म ,सद्व्यवहार में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ

         ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ

कहा धरा ने आसमान से,ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ
मेरा अंतर सूख रहा है,तेरा प्यार मिले तो जी लूँ
तेरे मन की पीर घुमड़ती ,
                   बन कर काले काले बादल
कभी रुदन कर गरजा करती ,
                   कभी कड़कती बिजली चंचल
बूँद बूँद कर आंसूं जैसी ,
                    बरसा  करती है रह रह कर
मैं भी अपनी प्यास बुझालूं,कर थोड़ी अपने मन की लूँ
कहा धरा   ने आसमान  से , ला मैं  तेरे  आंसू  पी  लूँ
तिमिर हटे ,छंट जाएँ बादल,
                         जीवन में उजियारा छाये
तेरे प्यारे सूरज ,चन्दा ,
                         मेरे आँगन  को चमकाएं
मेरी माटी,पिये  प्रेम रस,
                         सोंधी सोंधी सी गमकाये
फूल खिले मन की बगिया में ,महके,मैं उनकी सुरभि लूँ
कहा धरा ने आसमान   से  ,ला ,मैं  तेरे   आंसूं   पी लूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 9 अगस्त 2015

हार का दर्द

           हार का दर्द

मिली शिकस्त ,हुआ पस्त ,बड़ा त्रस्त दुखी,
            हो गया अस्त व्यस्त ,ऐसा लगा झटका है
बड़ी बेदर्द , बड़ी बेवफा  ,ये   पब्लिक है ,
            अर्श से फर्श पर लाकर के कहाँ  पटका है
कभी पुश्तैनी जो होती थी कुर्सी सत्ता की ,
           ध्यान पी एम की कुर्सी पे अब भी अटका है
हार का दर्द क्या  ,पूछे ये कोई राहुल से ,
          मन में मोदी का सदा ,बना रहता  खटका है

घोटू

छुवन

           छुवन

नन्हा बच्चा जब रोता है ,
माँ उसे थपथपाती है
माँ के हाथों की छुवन ,
उसे चुप कर,सुलाती है
बड़ा होने पर ,जब भी माता पिता के,
चरण छूकर , सर नमाता है
ढेरों आशीर्वाद पाता  है
और जवानी में किसी लड़की की छुवन
कर देती है उसके पूरे तन में सिहरन
इस छुवन के भी कई रंग है ,कई ढंग है
हाथ ,जब गालों को छूकर सहलाता  है ,
तो मन में भरता  उमंग है
वो ही हाथ जब तेजी से,
 गालों पर पड जाता है  
तमाचा कहलाता है
कई बार एक दूजे को छू
लोग करीब आते है
 कबड्डी के खेल में ,ज़रा सा छूने पर ,
आउट हो जाते है
गुरूजी के ज्ञान की ऊर्जा ,
उनके चरण छूने पर ,
हमें प्राप्त होती है,जीवन संवारती है
तो बिजली के तारों में ,प्रभावित ऊर्जा ,
जरा सा छूने पर,करंट मारती है
कलम कागज़ को छूकर जब चलती है,
महाकाव्य रचा करती है
और कलाकार की तूलिका ,
जब कैनवास को छूती है
तो अनमोल पेंटिंग सजा करती है
कई बातें ,बिना स्पर्श किये ही,
दिल को छू जाती है
आँखे भी बिना छूए ही ,
एक दूसरे से मिल जाती है
इस छुवन का भी ,
बड़ा अजीब चलन होता है
हाथ को हाथ छूते  है तो दोस्ती होती है,
होंठ को होंठ छूते है तो चुम्बन होता है
दूर क्षितिज में,आसमान ,
धरती को छूता  हुआ नज़र आता है
पर क्या धरती और आसमान  का,
कभी मिलन हो पाता है 
आकाश की ऊंचाइयों को छूने का ,
मन में लेकर अरमान
जब सच्ची लगन से कोशिश करता इंसान
तो उसके कदमो को छूती  सफलता है
छुवन से ही जीवन है,जगती है ,प्रकृति है,
छुवन के बिना कुछ काम नहीं चलता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

संवदेनशीलता

        संवदेनशीलता

थोड़ी सी बारिश हुई,और हम भीग गए ,
      थोड़ी सी सर्दी पडी ,और हम ठिठुराये
थोड़ी सी गर्मी में ,पसीने में तर हुए,
       लू के थपेड़ों से ,हम झट से कुम्हलाये
थोड़ी सी पीड़ा ने ,विचलित हमें किया ,
       आँखों ने नम होकर ,आंसू भी बरसाए
खबर कोई अच्छी सी ,अगर कहीं से आयी ,
      हुआ मन आनंदित  ,खुश हो हम  मुस्काये
हम उनको पाने की,कोशिशें करते है ,
      वो हमको हो जाते ,जब तक हासिल  नहीं
नहीं अगर वो मिलते ,टूट टूट जाता दिल,
          और तुम कहते हम,संवेदनशील   नहीं 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेसबुक स्टेटस

       फेसबुक स्टेटस

गोल चेहरा
रंग गहरा
मेरा फेसबुक स्टेटस
जस का तस
मजबूर और बेबस
फिर भी कभी कभी,
लेता हूँ हंस
मंहगाई के मौसम के ,
थपेड़े सहता हूँ
मैं बूढा बरगद पर,
हरा भरा रहता हूँ
मेरी शाखाओं पर
पंछियों ने ,
बसा रखे है अपने घर
सुबह शाम,
 जब वो चहकते है,
मैं भी चहकता हूँ
बहती हवाओं के,
संग संग बहता हूँ
मन की भावनाओं को,
शब्दों के उकेर कर
फेसबुक के पन्नो पर
कभी कभी कर देता हूँ पोस्ट
उन्हें जब पढ़ते है दोस्त
कोई कॉमेंट देता है,
कोई लाइक करता है
 आजकल जीवन ,
कुछ ऐसे ही गुजरता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बचपन-कल और आज

      बचपन-कल और आज

अगर मिटटी में नहीं खेले
धूल में सन कर,नहीं हुए मैले
बारिश में भीग कर नहीं नहाये
बहते पानी में उछल कर,नहीं छपछपाये
शैतानी करते हुए नहीं दौड़े
साइकिल सीखते हुए,घुटने नहीं फोड़े  
रो रो कर चिल्ला,अपनी जिद ना मनवाई
फ्रिज से चुरा कर ,मिठाई ना खायी
नानी,दादी की ,कहानियां नहीं सुनी
पेड़ों पर पत्थर फेंक,जामुने नहीं चुनी
स्कूल नहीं जाने के बहाने नहीं बनाये
दरख्तों पर चढ़,आम नहीं खाये 
अपने छोटे भाई बहनो को तंग नहीं किया
तो फिर हमने  बचपन क्या  जिया ?
कॉपी किताबों से भरा स्कूलबेग ,
कंधे पर लाद  स्कूल गए
लौट कर होमवर्क में जुट गए
अपने माँ बाप की अपेक्षाएं,
 पूरी करने की दौड़ में
सबसे अव्वल आने की होड़ में
कई बार डाट खाई
और  करते रहे बस पढाई ही पढाई
न उछलकूद ,न शैतानी,न मस्ती मनाना
 टाइमटेबल के हिसाब से पल पल बिताना
और तो और ,,छुट्टियों में भी पढाई का,
ऐसा ही सिलसिला हो गया है
आजकल बच्चों का ,
बचपन कहाँ खो गया है ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

हम दोनों-दिल्लीवाले

      हम दोनों-दिल्लीवाले
                   १
क़ाबलियत से ज्यादा,कोई जब पा जाता ,
         पचा नहीं पाता है और पगला जाता है
गर्व से फूल फूल,हैसियत जाता भूल,
         हरकतें ऊल जलूल ,करता कराता है
उससे भी बुरा हाल ,उसका भी होता है,
         सत्ता से जिसका कि पत्ता कट जाता है
पाकर जो बौराता ,कहलाता केजरीवाल,
       खोकर जो बौराता ,राहुल कहलाता  है
                      २
एक लड़े एल जी से ,एल लड़े मोदी से ,
              एक पोस्टर लगवाता,एक करता हंगामा
दोनों ही बेमिसाल ,दोनों का बुरा हाल,
              दोनों ही रोज रोज ,करते है कुछ ड्रामा
एक सत्ता पा पागल,एक सत्ता खो पागल ,
              एक असर,उल्टा पर,दोनों का अफ़साना
तेल तिलों में कितना ,प्यार दिलों में कितना ,
               जनता के खातिर है,जनता ने अब जाना

''घोटू'   
                       

हुस्नवाले -एक ग़ज़ल

        हुस्नवाले -एक ग़ज़ल

हुस्न वालो के भी सीने में धड़कता दिल है
बड़ा ही नाजुक है,नायाब,पाना मुश्किल है
बड़े ही सलीके से ,छुपा कर के रखते हैं,
प्यार उनका बड़ी किस्मत से होता हासिल है
बड़ा ही खूबसूरत जिस्म,गजब का जलवा ,
उनकी हर एक अदा ,तारीफों के काबिल है
वो यूं ही मुस्करा के ,कितने कत्ल करते है ,
हमेशा जालिम ही होता नहीं हर कातिल है
गोरी पगथलियां भी ,पांवों में दबी है उनके ,
शान से गाल पे बैठा हुआ, काला तिल है
देख कर उनको ये दिल बल्लियों उछलता है ,
उस पे करने में काबू होती बड़ी मुश्किल है
उनकी 'ना ना' में ही मंजूरी छुपी रहती  है ,
उनके मुंह से 'हाँ 'कहलाना ,बड़ी मुश्किल है
बड़ी मुद्दत से उनकी  आरजू में  बेकल  है ,
बड़ी सूनी पडी'घोटू' ये दिल की महफ़िल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दुनिया-सब्जीमंडी

         दुनिया-सब्जीमंडी

ये दुनिया सब्जीमंडी है और हम सब सब्जी भाजी है
बासी  है  कोई  सूख  रही ,तो कोई  एकदम  ताज़ी है
कोई बिन पेंदे का बेंगन ,जो एक जगह ना टिकता है
वह जाता भुना आग में है और उसका भुड़ता बनता है
है कांटेदार कोई कटहल ,लसलसी,चिपचिपी है भीतर
तो किसी खेत की मूली है, कोई ,उजली,दुबली  सुन्दर
है कोई हरी हरी मिरची  चरपरी,तेज,तीखी तीखी
मुंह जलता ,बड़े प्रेम से पर ,सब खाते है ,करते सी सी
कोई पत्ता  गोभी जैसी ,है जिसकी थाह बड़ी मुश्किल
हर परत दर परत पत्ते है,अंदर ना मिल पाता है दिल
कोई जमीन से जुडी हुई,  सीधी सादी और   मामूली 
वो हरदम काटी जाती है ,जैसे कटते गाजर,मूली
है कोई मटर ,छिलके   छूटे  ,दाने दाने है हो जाती 
कट कोई प्याज सी आँखों में ,आंसू भरती पर मनभाती 
कितने ही भरे विटामिन हो,हो स्वाद भले ही वो कितनी
बस कट जाना और पक जाना,सब्जी की नियति है इतनी
कोई  कद्दू सी गोलमोल ,कोई तरोई सी  है कमसिन  
 तो कोई आलू के जैसी ,है काम न चलता जिसके बिन
जिसके संग मिलने जुलने में ,हर सब्जी रहती राजी है
ये दुनिया सब्जी मंडी है ,और हम सब सब्जी भाजी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दो क्षणिकाएँ

         दो क्षणिकाएँ
                  १
वो दूरदृष्टा हैं ,पर उनकी ,
दूर की दृष्टी है कमजोर
उनके चश्मे का नंबर है ,
माइनस फोर
                  २
मैंने छोटे बेटे से कहा ,
पिया करो दूध
इससे ताक़त मिलती है ,
बदन होता है मजबूत
बेटा ने कहा ये बात है झूठ
मेरे दूध के दांत ,
कितनी जल्दी गए सब टूट

घोटू

सोमवार, 3 अगस्त 2015

दिल्ली का बवाल -पांच दोहे

       दिल्ली का बवाल -पांच दोहे
                        १
दिल्ली में है कर रहे ,ये दो लोग बवाल
एक तो राहुल भाई है,एक केजरीवाल
                        २
एक सत्ता पाकर हुआ,पागल और मदमस्त
दूजा सत्ताच्युत हुआ  ,त्रस्त और  है  पस्त
                          ३ 
एक 'पोस्टर वार ' कर, मचा रहा उत्पात
एक बौखला रहा है, जब  से  खायी  मात
                          ४
एक ने थे वादे किये , कर ना  पाया  पूर्ण
बाँट  रहा  है  दूसरा  , नव वादों का चूर्ण
                           ५
एक पदयात्रा करे, एक सब में टांग अड़ाय
'लाइम लाइट ' में  रहें,  दोनों  करते 'ट्राय '

घोटू

रविवार, 2 अगस्त 2015

गर दोस्तों का साथ रहे.......... जिन्दगी जिन्दाबाद रहे..........

एकाएक हो जाती हैं
हमारी कई आंखें  
हमारे कई हाथ,
बढ़ जाती है ताकत
बढ़ जाता है कई गुना
हमारा हौसला,
हो जाती है एकाएक
बहुत दूर तक हमारी  
हमारी पहुंच,
इसतरह आसान हो जाते हैं
हमारे तमाम काम
और बहुत आसान सी 
हो जाती है जिन्दगी हमारी,
जब हो जाते हैं 
कुछ अच्छे दोस्त हमारे साथ...
हम न होकर भी हो जाते हैं 
डॉक्टर-इंजीनियर-मैनेजर
वकील-पुलिस ऑफीसर
या फिर राजनीतिज्ञ,
क्योंकि हमारे दोस्त हैं न ये सब?!
कोई भी दिक्कत हो
कोई भी अड़चन हो,
बस दोस्त को फोन घुमाना है
कोई भी - कैसी भी समस्या हो
समाधान फटाफट हो जाना है...

गर दोस्तों का साथ रहे
जिन्दगी जिन्दाबाद रहे...

- विशाल चर्चित

शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

गुड़ और गुलगुले

    गुड़ और गुलगुले

कहते है खाने के बाद
गुड़ की एक डली,
खाई जाय ,लेकर के स्वाद
तो वो पाचन क्रिया में सहयोग देती है
और शक्कर कम खानी  चाहिए,
क्योंकि वो रोग देती है
मैं डाइबिटीज का मरीज ,
अक्सर जाता  हूँ खीज
जब लोग देते है उपदेश
गुड़ खाओ पर गुलगुलों से रखो परहेज
अरे हमारे रोज के खाने में ,
आटा भी होता है ,घी भी होता है
और ऊपर से गुड़ खालो तो चलता है
पर इन्ही तीन चीजों से तो गुलगुला बनता है
गुड़ के पानी में आटा घोल कर,जब जाता है तला
तो बनता है गुलगुला
तो फिर मेरी समझ में ये नहीं आता है
गुड़ खाने की मनाही नहीं है ,
प र गुलगुले से परहेज किया जाता है
इसके जबाब में किसी ने समझाया
शहद गुणकारी है,अगर जाय खाया
और घी खाने से बढ़ जाता बल है
पर शहद और घी ,बराबर मात्रा में मिल जाय ,
तो बन जाता घोर हलाहल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुपूर्णिमा -दो दोहे

       गुरुपूर्णिमा -दो दोहे
                    १
ट्यूशन ,कोचिंग कर रहे ,कमा रहे है माल
पहले  होते  थे  गुरु, पर  अब  गुरुघंटाल
                     २
शिक्षा कुछ   देते नहीं,पैसे सिरफ़  कमाय
चेले गुड़ के गुड़ रहे ,गुरु शक्कर बन जाय

घोटू

गुरुपूर्णिमा पर दो कवितायेँ

      गुरुपूर्णिमा पर दो कवितायेँ
                       १
कहते है शक्कर
हमेशा होती है गुड़ से बेहतर
इसीलिये ,जब चेले लाखों कमाते है
और गुरुजी अब भी अपनी पुरानी,
 स्कूटर पर कॉलेज जाते है
लोग कहते है अक्सर
गुरूजी गुड़ ही रहे ,
और चेलेजी हो गए शक्कर
पर वो ये भूल जाते है कि गुड़ ,
सेहत के लिए बड़ा फायदेमंद होता है
और ज्यादा शकर खानेवाला ,
डाइबिटीज का मरीज बन,
जीवन भर रोता है
इसलिए लोग जो कहते है ,कहने दें
गुरु को लाभकारी ,गुड़ ही रहने दें
क्योंकि वो हमें देतें है ज्ञान
कराते है भले बुरे की पहचान
बनाते है एक अच्छा इंसान
इसलिए ऐसे गुरु को ,
हमारा कोटि कोटि प्रणाम
                   २
सच्ची निष्ठां से हमें शिक्षित किया ,
               हम है जो कुछ ,गुरु का अहसान है
कभी मारी छड़ी,दुलराया कभी,
                तभी मिल पाया हमें ये ज्ञान  है
सच्चे मन और समर्पण से पढ़ाते ,
                वो  गुरु, बीते  हुए  कल  हो गए 
कभी ट्यूशन ,कभी कोचिंग कराते ,
             आज गुरु कितने कमर्शियल हो गए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

शहजादे से

         शहजादे से

ओ बिन गद्दी के शहजादे
हो बड़े अधूरे,तुम आधे
ना तो कुर्सी पर चढ़ पाये
ना ही घोड़ी पर चढ़ पाये
जनता ने दिया नकार तुम्हे
और किया नहीं स्वीकार तुम्हे
इसलिए की तुम नाकारा हो
एक फूला सा गुब्बारा हो
पर गयी हाथ से जब सत्ता
 जनता ने काट दिया  पत्ता
तो तुम उनके घर जाते हो
और हमदर्दी दिखलाते हो
ये कर दूंगा ,वो कर दूंगा
मैं साथ तुम्हारा पर दूंगा
लेकिन जब तुम थे पॉवर में
बस बैठे रहते  थे घर  में
पर जब कुछ करवा सकते थे 
तो कुछ करने से भगते थे
जब मिली हार ,हो बेकरार
अब भी भगते हो बार बार 
हो जाते  लुप्त अचानक हो
सचमुच तुम नन्हे बालक हो
कोई दुर्घटना हुई कहीं
जाते दलबल के संग वहीँ
निज सहानुभूती दिखलाते हो
पब्लिसिटी  करवाते हो
खाते खाना गरीब के घर
कुछ चमचे ,कुछ गुर्गे लेकर
पदयात्राएं  करते  रहते 
कुछ रटे  हुए जुमले कहते
तुम्हारी ये जो कसरत  है
केवल फिजूल की मेहनत है
संसद में जा चिल्लाते हो
अपना मखौल उड़वाते हो 
जनता ने तुमको जाना  है
अब मुश्किल वापस आना है

घोटू

मैं ढूंढ रहा उस लड़की को

               मैं ढूंढ रहा उस लड़की को

मैं कल अपनी पत्नी जी को,था बड़े गौर से ताक रहा
उनकी आँखों में आँख ड़ाल ,उनके अंतर में झांक रहा
वो बोली क्या करते हो जी,क्यों देख रहे हो घूर घूर
मैं वो ही तुम्हारी बीबी हूँ  ,ना कोई  अप्सरा, नहीं हूर
अब नहीं हमारी उमर रही ,ऐसे यूं आँख लड़ाने की
धुँधली आँखे,ढलता चेहरा ,जरुरत क्या नज़र गड़ाने की 
मैं बोला ढूंढ रहा हूँ मैं ,एक लड़की, बदन छरहरा था
जिसकी आँखों में लहराता ,उल्फत का सागर गहरा था
जब हंसती थी तो गालों पर ,डिम्पल पड़ जाया करते थे
जिसके रक्तिम से मधुर अधर,मुझको तड़फ़ाया करते थे
रेशम से बाल बादलों से,हिरणी सी आँखें चंचल थी
जो भरी हुई थी मस्ती से ,मदमाती,प्यारी ,सुन्दर थी
हंसती थी फूल खिलाती थी,वह भरी  हुई थी यौवन से
मैं ढूंढ रहा वह प्रथम प्यार,जिसको मैंने चाहा  मन से
जिस यौवन रस में डूब डूब ,मैंने जीवन भरपूर जिया
वह कहाँ खो गयी इठलाती , मनभाती मेरी प्राणप्रिया
क्या वो तुम ही थी,नहीं,नहीं,वो लड़की तुम ना हो सकती
नाजुक पतली कमनीय कमर ,ऐसा कमरा ना हो सकती
वह कनकछड़ी इतनी थुल थुल ,ना ना ये है मुमकिन नहीं
क्या सचमुच वो लड़की तुम हो, ये आता मुझे यकीन नहीं
तुम तो कोई की नानी माँ,  कोई की लगती दादी हो
अम्मा हो या फिर किसी बहू की सासू सीधी  सादी हो
उलझी इस तरह गृहस्थी में ,तुमको अपना ही होश नहीं
तुम अस्त व्यस्त और पस्त रहो,तुममे वो वाला जोश नहीं
सेवा में पोते पोती की  ,तुम पति की सेवा भूल गयी
अपना कुछ भी ना ख्याल रखा ,तुम दिन दिन दूनी फूल गयी
मैं ढूंढ रहा उस लड़की को ,मैं जिसे ब्याह कर लाया था
जिसने तन मन से प्यार किया ,अपना सर्वस्व लुटाया था
क्या बतला सकती तुम मुझको,खो गयी कहाँ,वो कहाँ गयी
पत्नीजी हंस कर यूं बोली, मैं वही ,सामने  खड़ी ,यहीं
ये सब करतूत तुम्हारी है ,जो मेरी  है ये  हालत कर दी
आहार प्यार का खिला खिला ,इतनी खुशियां मुझ में भरदी
मेरा स्वरूप जो आज हुआ  ,ये  सब  गलती तुम्हारी है
क्या कभी आईने में तुमने,अपनी भी शकल निहारी है
उड़ गए बाल आधे सर के ,ढीले ढाले से लगते हो
पर तुम जैसे भी हो अब भी ,उतने ही प्यारे लगते हो
सच तो ये है ,मैं ना बदली,नज़रें तुम्हारी बदल गयी
 अब भी मुझमे ढूँढा करते ,सकुचाती दुल्हन नयी
ये मत भूलो  बढ़ रही उमर ,यौवन ढलान पर है आया
ना तुममे जोश बचा उतना,मेरा स्वरूप भी कुम्हलाया
,पर मैं ही तो हूँ वो लड़की ,जिससे तुमने की थी शादी
तुम ही वो प्रेमी हो जिन संग,थी जीवन डोर कभी बाँधी
यदि वो ही दिवाने आशिक़ बन ,कर करीब तुम आओगे
तुम वही पुरानी प्यार भरी , लड़की मुझमे  पा जाओगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ईश्वर की मेहरबानी

     ईश्वर की मेहरबानी

चलाया ए.सी.तो कमरा ,एक  ही ठंडा हुआ,
                    चलाई तूने हवा,ठंडक भी आयी साथ में
नलों में पानी नहीं था ,हर तरफ सूखा पड़ा,
                     लगे बहने नदी नाले ,एक ही बरसात में
बल्ब बिजली के कई ,जल एक घर रोशन करे,
                    तेरा एक सूरज उजाला ,करता कायनात में
लाख कोशिश करले इन्सां ,तेरे आगे कुछ नहीं ,
                      बात ही कुछ और है ,ईश्वर तेरी हर बात में

घोटू

चाय और बिस्किट

             चाय और बिस्किट

रिश्ता मेरा तुम्हारा ,बिस्किट और चाय का है
चाय के  साथ  बिस्किट     ,देते बड़ा मज़ा  है
तुम चाय सी गुलाबी ,बिस्किट मैं  कुरकुरा हूँ
तुम गर्म गर्म मीठी ,   मैं  स्वाद से भरा  हूँ
अलबेली,नित नवेली तुम हो,न  मैं भी कम हूँ
तुम्हारा प्यार  रस  पी,  होता नरम नरम हूँ
आता है स्वाद दूना ,  जब होता ये मिलन है
चाय के साथ बिस्किट ,सबका लुभाते मन है
ये दोस्ती हमारी  ,कायम  सदा सदा  है
चाय के साथ बिस्किट ,देते बड़ा मज़ा है

घोटू

चाय और बिस्किट

             चाय और बिस्किट

रिश्ता मेरा तुम्हारा ,बिस्किट और चाय का है
चाय के  साथ  बिस्किट     ,देते बड़ा मज़ा  है
तुम चाय सी गुलाबी ,बिस्किट मैं  कुरकुरा हूँ
तुम गर्म गर्म मीठी ,   मैं  स्वाद से भरा  हूँ
अलबेली,नित नवेली तुम हो,न  मैं भी कम हूँ
तुम्हारा प्यार  रस  पी,  होता नरम नरम हूँ
आता है स्वाद दूना ,  जब होता ये मिलन है
चाय के साथ बिस्किट ,सबका लुभाते मन है
ये दोस्ती हमारी  ,कायम  सदा सदा  है
चाय के साथ बिस्किट ,देते बड़ा मज़ा है

घोटू

लम्हों ने खता की थी

        लम्हों ने खता की थी

पहले मैं सोचता था,कि 'एकला चालो रे '
                  जीवन का सफर तन्हा ,लगने लगा दुखदायी
शादी के लेने फेरे ,कुछ लम्हे ही लगे थे ,
                   लम्हों ने खता की थी,सदियों ने सज़ा  पायी
जैसे ही सर मुंडाया ,ओले लगे बरसने ,
                    घर के न घाट के अब , हालत है ये बनायी
ना तो रहे इधर के ,ना ही रहे उधर के ,
                    ना चैन ही मिला और ना शांति ही मिल पायी

घोटू    

बच्चा-बच्चा तुम्हें याद करता रहे...


जब जुड़े विज्ञान से तो
अग्नि मिसाइल बना डाली,
जब बच्चों को पढ़ाने चले तो
जोड़ दिये कई नये अध्याय...
जब जुड़े देश की सेवा से तो
कायम कर दीं कई नई मिसालें,
बन बैठे जनता के राष्ट्र्पति
और आपसे सम्मानित होने लगे
देश के सारे के सारे सम्मान...
बहुत खूबसूरत नहीं थे तो क्या
खूबियां इतनी पैदा की कि
खूबसूरती खुद तरसा करे
आपके करीब आने के लिये,
व्यवहार इतना सीधा और सरल
कि बचपना देखे सपने
आप जैसा बन पाने के लिये...
सच में आप थे हैं और रहेंगे
एक ऐसे खूबसूरत कलाम
जिसको गर्व से गुनगुना रहा है
और गुनगुनाता रहेगा पूरा देश
आपको दिल से करते हुए सलाम...
आपकी शान में एक शेर कि -

एक ऐसी कहानी से तुम बन गये
बच्चा-बच्चा तुम्हें याद करता रहे

हार्दिक नमन एवं श्रद्धांजलि के साथ

- विशाल चर्चित

सोमवार, 27 जुलाई 2015

दो बद्दी वाली चप्पल

  दो बद्दी वाली चप्पल

यह दो बद्दी वाली चप्पल
सस्ती,टिकाऊ,नाजुक,मनहर
चाहे  बजार या  बाथरूम,
ये साथ निभाती है हरपल
चाहे नर हो चाहे नारी ,
सबको लगती प्यारी,सुन्दर
ना मन में कोई भेदभाव ,
सब की ही सेवा में तत्पर
सब को आजाती ,कोई भी,
पावों में डाला,देता चल
गन्दी होती तो धुल जाती,
और बहुत दिनों तक जाती चल
हम भी इसके गुण  अपनायें ,
और काम आएं सब के प्रतिपल
वो ही मृदु सेवाभाव  लिए,
सबकी  सेवा में रह तत्पर
गर्मी में पैर न जलने दें,
उनको ना  चुभने दें पत्थर
हम साथ निभाएं,काम आएं
यह जीवन होगा तभी सफल

घोटू

बुढ़ापे में नींद कहाँ है आती

  
 
कुछ तो बीबी खर्राटे भरती है , 
                     और कुछ बीते दिन की याद सताती 
यूं ही बदलते इधर उधर हम करवट,
                        बुढ़ापे  में  नींद  कहाँ  है   आती 
कभी पेट में गैस बना करती है ,
                         और कभी  सिर में होता भारीपन 
कंधे ,गरदन कभी दर्द करते है,
                          पैरों या पिंडली में होती तड़फन 
अंग अंग को दर्द  कचोटा करता ,
                          कभी  काटने लगता है सूनापन 
बार बार प्रेशर बनता  ब्लेडर में,
                          बाथरूम जाने को करता है मन 
कभी हाथ तो कभी  पैर दुखते है ,
                            एक अजीब सी तड़फन है तड़फ़ाती 
यूं ही बदलते  इधर उधर हम करवट,
                                बुढ़ापे   में  नींद  कहाँ  है  आती 
भूले  भटके यदि लग जाती झपकी,
                                तो फिर सपने आकर हमें सताते 
बार बार मन में घुटती रहती है,
                                कुछ अनजान ,अधूरी मन की बातें 
जब यादों के बादल घुमड़ा करते ,
                                आंसू   की  होने  लगती  बरसातें
मोह माया के बंधन को अब छोडो,
                                 यूं ही बस हम है खुद को समझाते 
ऐसी नींद उचटती है आँखों से ,
                                भोर तलक फिर नहीं लौट कर आती 
यूं ही बदलते इधर उधर हम करवट ,
                                 बुढ़ापे   में नींद   कहाँ है  आती 

मदन मोहन  बाहेती'घोटू' 
                                 

गोलगप्पे

     
एक बड़े माल के ,नामी रेस्तराँ में,
छह गोलगप्पे खाने के लिये 
हमने पूरे साठ  रूपये खर्च किये 
कूपन देकर ,इन्तजार करने के बाद 
एक प्लेट आयी हमारे हाथ 
जिसमे एक कटोरी में पुदीने का पानी डाला था 
दूसरी में छह गोलगप्पे ,
और उबले हुए आलू का मसाला था 
खुद ही गोलगप्पे में ,हमने जब छेद किये 
उसमे ही एक दो तो ,बेचारे टूट गये 
बाकी में भर कर आलू का मसाला 
धीरे धीरे चम्मच से ,पानी था डाला 
तब जाकर मुश्किल से गोलगप्पे खा पाये 
ऐसे में वो गली के ठेले वाले के ,
वो प्यारे गोलगप्पे याद आये 
वो ठेले वाला ,आपको प्रेम से बुलाता है 
दोना पकड़ाता है ,
फिर आपकी मर्जी के मुताबिक़ ,
आटे  के या सूजी के गोलगप्पे खिलाता है 
 छेद  वो ही करता है ,आलू भी भरता है 
 फिर आपके स्वादानुसार ,खट्टा मीठा पानी भर ,
एक एक गोलगप्पा ,दोने में धरता है 
जब तक आपके मुंह में ,
पहले गोलगप्पे का जायका घुलता है 
तब तक ही आपको ,दूसरा गोलगप्पा  मिलता है 
आखिर में दोना भर ,खट्टा मीठा पानी भी ,
मुफ्त  देता है 
उस पर छह गोलगप्पों के ,
सिर्फ दस रूपये लेता है 
माल में ,छह गुने पैसे भी खर्च करो 
फिर खुद ही चम्मच से ,गोलगप्पे में पानी भरो 
फिर बड़े अनुशासन में ,धीरे धीरे खाओ 
भले ही पानी,खट्टा या तीखा है 
अरे ये भी कोई चाट खाने का तरीका है 
चाट खाओ और चटखारे  ना लो,
ऐसे भी कोई चाट खाता है 
गोलगप्पे का असली मज़ा तो ,
ठेले पर खड़े होकर ,
चटखारे ले लेकर ,खाने में आता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मॉल कल्चर

          मॉल कल्चर

बड़े बड़े मालों के ,शोरूमों की शॉपिंग ,
                      प्लास्टिक की  थैली के भी पैसे लगते है
वही चीज सेल लगा ,दे आधे दामो में ,
                      तभी पता लगता है,वो कितना ठगते है
ब्रांड की चिप्पी से ,दाम बहुत बढ़ जाते ,
                      बिन चिप्पी के उनकी ,कीमत बस आधी है
गाँवों में वही चीज ,लाला  की गुमटी पर,
                       मोलभाव करने पर    सस्ती मिल जाती है
असल में मालों का ,अपना ही खर्चा है ,
                         सेल्स गर्ल,ऐ.सी. है, बिजली जलाते है
इन  सबकी कीमत भी,सौदे में जुड़ती है ,
                           इन सबका खर्चा भी ,हम ही चुकाते है
 पर जब भी होता है ,घर घर में पॉवरकट,
                            मज़ा लेने ऐ ,सी. का,लोग यहाँ जुटते है
समय काटने को हम,फिर शॉपिंग करते है,
                           मंहगी है चीजें पर ,ख़ुशी  ख़ुशी  लुटते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 25 जुलाई 2015

मैं तुम्हारा मीत रहूंगा

                मैं तुम्हारा मीत  रहूंगा

चाहे तुम मुझको अपना समझो ना समझो,
                पर जीवन भर ,मैं तुम्हारा मीत  रहूंगा
तुम बरबस ही अपने होठों से छू लगी ,
                मधुर मिलन का प्यारा प्यारा गीत रहूँगा
जिसकी सरगम दूर करेगी सारे गम को ,
               मैं मन मोहक,वही मधुर संगीत रहूँगा  
जिसकी कलकल में हरपल जीवन होता है,
               मै गंगा सा पावन  और पुनीत  रहूँगा
पहना तुमको हार गुलाबी वरमाला का ,
             मैं कैसे भी , ह्रदय तुम्हारा जीत रहूँगा
निज सुरभि से महका दूंगा तेरा जीवन ,
              सदा तुम्हारे दिल में बन कर प्रीत रहूँगा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हम कितने पागल है

         हम कितने पागल है

बुढ़ापे में अपने को परेशान करते हैं 
बीते हुए जमाने को  याद करते हैं 
संयम से संभल संभल ,रहते  हरपल हैं  
सचमुच  हम कितने पागल हैं 
अरे बीते जमाने में क्या था ,
दिन भर की खटपट
गृहस्थी का झंझट
कमाई के लिए भागदौड़
आगे बढ़ने की होड़
उस जमाने में हमने जो भी जीवन जिया
अपने लिए कब जिया
सदा दूसरों के लिए जिया
इसलिए वो ज़माना औरों का था ,
हमारा ज़माना आज है
आज हमें किसी की परवाह  नहीं ,
घर में अपना राज है
एक दूसरे को अर्पित
पूर्ण रूप से समर्पित
हमारा प्यार करने का निराला अंदाज है
न किसी की चिता ,न किसी का डर
मौज मस्ती में  डूबे हुए,बेखबर
एक दुसरे का है सहारा
आज ही तो है,ज़माना हमारा
प्यार में डूबे हुए ,रहते हर पल है
फिर भी बीते जमाने को याद करते है,
सचमुच ,हम कितने पागल है
जवानी भर,मेहनत कर ,जमा की हुई पूँजी
अपने पर खर्च करने में,दिखाते कंजूसी
ऐसी आदत पड़  गयी है,पैसा बचाने की
अरे ये ही तो उमर है ,
अपना कमाया पैसा ,अपने पर खर्च करके ,
मौज और मस्ती मनाने की
क्योंकि अपने पर कंजूसी कर के ,
तुम जो ये पैसा बचा रहे है जिनके लिए 
वो तुम्हारे,क्रियाकर्म के बाद ,
आपस में झगड़ेंगे ,इसी पैसे के लिए
 तुम जिनकी चिंता कर रहे हो  ,
उन्हें आज भी तुम्हारी परवाह नहीं ,
तो तुम क्यों उनकी परवाह करते हो
उनके भविष्य के लिए बचा कर ,
क्यों अपना आज तबाह करते हो
तुम्हे उनके लिए जो करना था ,कर दिया,
आज वो अपने पैरों पर खड़े है
अपनी अपनी गृहस्थी में मस्त है
उनके पास ,तुम्हारे लिए कोई समय नहीं ,
वो इतने व्यस्त है
तो अपनी बचत,अपने ऊपर खर्च करो ,
खूब मस्ती में जियो ,
उनकी चिता मत व्यर्थ करो
मरने के बाद ,स्वर्ग जाने के लालच में ,
यहाँ पर नरक मत झेलो
अरे स्वर्ग के मजे यहीं है ,
खुल कर खाओ,पियो और खेलो
ये  बुढ़ापे की उमर ही ,
एक ऐसी उमर होती है ,
जब आदमी अपने लिए जीता है
बिना रोकटोक के ,अपनी ही मर्जी का ,
खाता और पीता है
क्या पता फिर ये ख़ुशी के पल ,हो न हो
क्या पता,कल,हो न हो
आदमी दुनिया में उतने दिन ही जीता है
जितना अन्न जल है
फिर भी हम परेशान रहते है,
सचमुच,हम कितने पागल है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

नफरत की दीवारें

        नफरत की दीवारें

तुम भी इन्सां ,हम भी इन्सां ,हम  में कोई फर्क नहीं है 
अलग अलग रस्तों पर चलते,आपस में संपर्क नहीं है 
सब है हाड मांस के पुतले ,एक सरीखे ,सुन्दर प्यारे
कोई हिन्दू ,कोई मुसलमां ,खड़ी बीच में क्यों दीवारें
ध रम ,दीन ,ईमान हमेशा,  फैलाता  है  भाईचारा
तो क्यों नाम धरम का लेकर ,आपस में होता बंटवारा
ठेकेदार धरम के है कुछ, जो है ये नफरत फैलाते
भाई भाई आपस में लड़वा ,है अपनी दूकान चलाते

घोटू

सड़ी गर्मी

      सड़ी गर्मी

जेठ की तपती धूप -कँवारापन
शादी--बारिशों का मौसम
शादी के बाद बीबी का मइके जाना -
विरह की आग में तपना ,आंसू बहाना
जैसे बारिश के बाद की सड़ी गर्मी -
उमस और पसीना आना

घोटू

गुलाब जामुन और रसगुल्ला

गुलाब जामुन और रसगुल्ला

जब रहा उबलता गरम दूध,उसने निज तरल रूप खोया
अग्नि ने इतना तपा दिया ,वो आज बंध  गया,बन खोया
वह खोया जब गोली स्वरूप ,था तला गया देशी घी  में
सुन्दर गुलाब सी  हुई देह , फिर डूबा गरम चाशनी में
वह नरम,गुलाबी और सुन्दर था गरम गरम सबको भाया
सबने जी भर कर लिया स्वाद ,गुलाब जामुन वो कहलाया
था दूध वही पर जब फाड़ा ,तो  रेशा  रेशा  बिखर गया
जब छाना ,पानी अलग हुआ ,वो छेना बन कर निखर गया
जब बनी गोलियां छेने की ,चीनी के रस में जब उबला
इतना डूबा वह उस रस में ,एक नया रूप लेकर निकला
वह श्वेत ,रस भरा ,स्पोंजी,जब प्लेटों में  मुस्काता है
स्वादिष्ट बहुत,मन को भाता,वह रसगुल्ला कहलाता है
रसगुल्ला और गुलाबजामुन ,ये दोनों भाई भाई  है
है  बेटे एक ही माता के  ,पर  अलग   सूरतें पायी है
है एक गुलाबी ,एक श्वेत ,एक गरम ,एक ठंडा  अच्छा
दोनों ही बड़े रसीले है, दोनों का स्वाद  बड़ा अच्छा
एक नरम मुलायम टूट जाए ,एक निचुड़ जाए पर ना टूटे
हर दावत और पार्टी में , दोनों ही वाही वाही  लूटे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

धरम का चक्कर

         धरम का चक्कर 

हमेशा जली कटी सुनाने वाली बहू ने ,
अपनी जुबान में मिश्री घोली
और अपनी सास से बड़े प्रेम से बोली
अपने शहर में आ रहे है ,
एक नामी गिरामी संत
जो करेंगे सात दिन तक,
भागवत कथा और सत्संग 
 सुना है उनके सत्संग में ,
भक्तिरस की गंगा बहती है
इसीलिये लाखों लोगों की,
भीड़  उमड़ती रहती है
अम्माजी,आप भी पुण्य कमालो,
ऐसा मौका बार बार नहीं आएगा
ड्राइवर सुबह आपको छोड़ आएगा ,
और शाम को ले आएगा
बहू के मुख से ,ये मधुर वचन सुन ,
सासूजी  हरषाई
सोचा ,थोड़ी देर से ही सही,
बहू को सदबुद्धि तो आई
इसी बहाने हो जाएगी थोड़ी ईश्वर की भक्ती
और कुछ रोज मिलेगी ,
गृहकलह और किचकिच से मुक्ती
सास ने हामी भर दी ,
तो बहू की बांछें खिल गयी
वो भी बड़ी खुश थी ,
सात दिन की पूरी आजादी मिल गयी
न कोई रोकने वाला,न कोई टोकने वाला,
हफ्ते भर की मौज मस्ती और बहार
इसे कहते है ,एक तीर से करना दो शिकार
सास भी खुश,बहू भी खुश ,
हर घर में ऐसी ही राजनीती चलती है
अब तो आप समझ ही गए होंगे ,
आजकल सत्संगों में और तीर्थों में
,इतनी भीड़ क्यों  उमड़ती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

अब क्या करे भगवान ?

       अब क्या करे भगवान ?

सूरज तपा रहा था-बड़ी गर्मी थी
अब तो जल बरसा -भगवान से प्रार्थना की
बादल छाये -अच्छा लगा
ठंडी  हवा चली -अच्छा लगा
बारिश आयी -अच्छा लगा
दूसरे दिन भी बारिश आयी -अच्छा लगा
तीसरे दिन भी पानी बरसा-बोअर हो गए
चौथे दिन भी बारिश आयी -उकता  गए 
पांचवें दिन भी बारिश आयी -खीज आने लगी
छटवें दिन की बारिश से -परेशानी छाने लगी
सातवें दिन की बारिश पर -भगवान से प्रार्थना की
अब तो बहुत हो गया-रोक दे ये झड़ी
अजीब है -हम इंसान
वो नहीं देता -तो भी  परेशान
वो देता है-तो भी परेशान
अब क्या करे भगवान ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

करलें थोड़ा आराम प्रिये !

          करलें थोड़ा आराम प्रिये !

अब नहीं रहे दिन यौवन के ,उड़ते थे आसमान में जब
फिर काम काज में फंसे रहे ,फुर्सत मिल ही पाती थी कब
था बचा कोई रोमांच नहीं ,बन गया प्यार था नित्यकर्म
हम रहे निभाते पति पत्नी ,बन कर अपना ग्राहस्थ्य धर्म
दुनियादारी के चक्कर में ,हम रहे व्यस्त,कर भागदौड़
अब आया दौर उमर का ये,हम तुम दोनों हो गए प्रौढ़ 
आया ढलान पर है यौवन ,अब वो वाला उत्थान नहीं
ना कह सकता तुमको बुढ़िया,पर अब तुम रही जवान नहीं
 धीरे धीरे  हो रहा शांत  , वो यौवन  का तूफ़ान प्रिये
अब उमर ढल रही है अपनी ,करलें थोड़ा आराम प्रिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

इत्ती सी बात

           इत्ती सी बात

पंडित और मौलवी ने ,अपनी बसर चलाने
लोगों को कर दिये बस,सपने यूं ही दिखाने
दो दान तुम यहाँ पर,जन्नत तुम्हे मिलेगी
हूरें और अप्सराएं, खिदमत  वहां  करेगी
जन्नत की हक़ीक़त को ,कोई न जानता है
मरने के बाद क्या है,किसको भला पता है
सब खेल सोच का है,मानो जो तुम अगर ये
दुनिया बहिश्त है ये,देखो जो उस नज़र से
हर रोज ईद समझो,हर दिन दिवाली मानो
बरसेगी रोज खुशियां ,जन्नत यहीं ये जानो
इत्ती सी हक़ीक़त तुम,लेकिन जरूर समझो
घर ही लगेगा जन्नत,बीबी को हूर समझो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

    कंधे से कन्धा मिला कर काम करो

 नेता बार बार यह कहते है ,
कि यदि देश के नर और नारी
अगर कंधे से कन्धा मिलाकर काम करे,
तो निश्चित ही होगी प्रगति हमारी
मैंने  उनसे प्रेरित होकर ,
राह  में जाती एक युवती से कन्धा मिलाया
तो प्रगति तो नहीं,मेरी दुर्गती हो गयी,
जब उसने मुझ पर अपना सेंडिल उठाया
मैं भागा और अबकी बार ,
एक लड़के के जाकर मिलाया कन्धा
वो बोला ,अबे क्या तू है अँधा
मैं बोला चलो ,
कंधे से कन्धा मिला कर काम करते है
वो बोला किसी और को ढूंढो ,
हम छोटी लाइन पर नहीं चलते है
फिर मैंने सोचा ,छोडो ये चक्कर
काम करने के लिए पहुँच गया दफ्तर
वहां ,अपने एक सहकर्मी के साथ,
बैठ  गया , कन्धा मिला कर
और बोला की अब हम ऐसे ही ,
कंधे से कन्धा मिला कर ,काम करेंगे
वो बोला  सीधे सीधे क्यों ना कहते ,
न खुद काम करेंगे  ,न तुमको करने देंगे
बॉस  ने  देखा तो बोला ये चिढ
क्यों लगा रखी है ,यहाँ पर ये भीड़
गुस्से में आकर ,बोला झल्ला कर
काम करो अपनी अपनी सीटों पर जाकर
कहीं पर भी जब हम ,कर कुछ न पाये
तो सोचा कि घर पर ही ये नुस्खा आजमाये
हमने पत्नीजी से बोला कि अगर ,
प्रगति की ओर हमें होना है अग्रसर
तो  काम करना होगा,कंधे से कन्धा मिलाकर
 इसलिए मुझे अपने कंधे से कन्धा मिलाने दो
पत्नी बोली ,बड़े रोमांटिक मूड में लग रहे हो,
थोड़ी देर रुको,बच्चों को सो जाने दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


नारी जीवन

            नारी जीवन

                                       कितना मुश्किल नारी जीवन
उसे बना कर रखना पड़ता,जीवन भर ,हर तरफ संतुलन
                                       कितना मुश्किल नारी जीवन
जिनने जन्म दिया और पाला ,जिनके साथ बिताया  बचपन
उन्हें त्यागना पड़ता एक दिन,जब परिणय का बंधता बंधन 
माता,पिता,भाई बहनो की , यादें  आकर  बहुत  सताए
एक पराया , बनता  अपना , अपने बनते ,सभी  पराये
नयी जगह में,नए लोग संग,करना पड़ता ,जीवन व्यापन
                                       कितना मुश्किल नारी जीवन
कुछ ससुराल और कुछ पीहर ,आधी आधी वो बंट  जाती
नयी तरह से जीवन जीने में कितनी ही दिक्कत   आती
कभी पतिजी  बात  न माने , कभी  सास देती है ताने
कुछ न  सिखाया तेरी माँ ने ,तरह तरह के मिले उलाहने
कभी प्रफुल्लित होता है मन, और कभी करता है क्रंदन 
                                     कितना मुश्किल नारी जीवन
इसी तरह की  उहापोह में ,थोड़े  दिन पड़ता  है  तपना
फिर जब बच्चे हो जाते तो,सब कुछ  लगने लगता अपना
बन कर फिर ममता की मूरत,करती है बच्चों का पालन
कभी उर्वशी ,रम्भा बन कर,रखना पड़ता पति का भी मन
 किस की सुने,ना सुने किसकी ,बढ़ती ही जाती है उलझन    
                                        कितना मुश्किल नारी जीवन
बेटा ब्याह, बहू जब आती  ,पड़े सास का फर्ज निभाना
तो फिर, बेटी और बहू में ,मुश्किल बड़ा ,संतुलन लाना
बेटा अगर ख्याल रखता तो, जाली कटी है बहू सुनाती
पोता ,पोती में मन उलझा ,चुप रहती है और गम खाती
यूं ही बुढ़ापा काट जाता है  ,पढ़ते गीता और  रामायण
                                 कितना मुश्किल नारी जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 15 जुलाई 2015

         मैं रहा छीलता घांस प्रिये 

मैं तो यूं ही सारा जीवन,बस रहा छीलता घांस प्रिये 
शायद तुमने खाई होगी ,तुम ही थी मेरे पास  प्रिये
                                       मैं हूँ तुम्हारा  दास   प्रिये 
वो घांस भैंस यदि खा लेती ,तो देती दूध ढेर सारा ,
तुम हुई भैस जैसी मोटी ,चढ़ गया बदन पर मांस प्रिये 
                                      मुझ पर करलो विश्वास प्रिये 
तुम्हारी काया कृष्ण वर्ण ,इस तरह फूल कर फैलेगी ,
मैं तुम्हे डाइटिंग करवाता ,यदि होता ये आभास प्रिये 
                                       तुम तो मेरी ख़ास प्रिये 
तुम स्विमिंग पूल मे मत जाना,मारेंगे लोग मुझे ताना ,
लो गयी भैंस पानी में कह,मेरा होगा  उपहास  प्रिये 
                                     आये  ना मुझको रास प्रिये 
 आधे से ज्यादा डबलबेड ,पर तुम कब्जा कर सोती हो,
उस पर तुम्हारे खर्राटे ,   देतें है मुझको   त्रास  प्रिये 
                                       मैं  आ ना पाता पास प्रिये 
 मैं क्षीणकाय ,दुबला पतला ,तुम राहु केतु सी छा जाती,
मैं होता लुप्त  ग्रहण मुझ पर ,लग जाता है खग्रास प्रिये 
                                          मैं ले ना पाता सांस  प्रिये 
तुम्हारा खाने पर ना बस ,तुम्हारे आगे मैं  बेबस ,
तुमने अपने संग मेरा भी ,कर डाला सत्यानाश प्रिये 
                                        फिर भी  जीने की आस प्रिये 
 
  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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