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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ

         ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ

कहा धरा ने आसमान से,ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ
मेरा अंतर सूख रहा है,तेरा प्यार मिले तो जी लूँ
तेरे मन की पीर घुमड़ती ,
                   बन कर काले काले बादल
कभी रुदन कर गरजा करती ,
                   कभी कड़कती बिजली चंचल
बूँद बूँद कर आंसूं जैसी ,
                    बरसा  करती है रह रह कर
मैं भी अपनी प्यास बुझालूं,कर थोड़ी अपने मन की लूँ
कहा धरा   ने आसमान  से , ला मैं  तेरे  आंसू  पी  लूँ
तिमिर हटे ,छंट जाएँ बादल,
                         जीवन में उजियारा छाये
तेरे प्यारे सूरज ,चन्दा ,
                         मेरे आँगन  को चमकाएं
मेरी माटी,पिये  प्रेम रस,
                         सोंधी सोंधी सी गमकाये
फूल खिले मन की बगिया में ,महके,मैं उनकी सुरभि लूँ
कहा धरा ने आसमान   से  ,ला ,मैं  तेरे   आंसूं   पी लूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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