ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ
कहा धरा ने आसमान से,ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ
मेरा अंतर सूख रहा है,तेरा प्यार मिले तो जी लूँ
तेरे मन की पीर घुमड़ती ,
बन कर काले काले बादल
कभी रुदन कर गरजा करती ,
कभी कड़कती बिजली चंचल
बूँद बूँद कर आंसूं जैसी ,
बरसा करती है रह रह कर
मैं भी अपनी प्यास बुझालूं,कर थोड़ी अपने मन की लूँ
कहा धरा ने आसमान से , ला मैं तेरे आंसू पी लूँ
तिमिर हटे ,छंट जाएँ बादल,
जीवन में उजियारा छाये
तेरे प्यारे सूरज ,चन्दा ,
मेरे आँगन को चमकाएं
मेरी माटी,पिये प्रेम रस,
सोंधी सोंधी सी गमकाये
फूल खिले मन की बगिया में ,महके,मैं उनकी सुरभि लूँ
कहा धरा ने आसमान से ,ला ,मैं तेरे आंसूं पी लूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कहा धरा ने आसमान से,ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ
मेरा अंतर सूख रहा है,तेरा प्यार मिले तो जी लूँ
तेरे मन की पीर घुमड़ती ,
बन कर काले काले बादल
कभी रुदन कर गरजा करती ,
कभी कड़कती बिजली चंचल
बूँद बूँद कर आंसूं जैसी ,
बरसा करती है रह रह कर
मैं भी अपनी प्यास बुझालूं,कर थोड़ी अपने मन की लूँ
कहा धरा ने आसमान से , ला मैं तेरे आंसू पी लूँ
तिमिर हटे ,छंट जाएँ बादल,
जीवन में उजियारा छाये
तेरे प्यारे सूरज ,चन्दा ,
मेरे आँगन को चमकाएं
मेरी माटी,पिये प्रेम रस,
सोंधी सोंधी सी गमकाये
फूल खिले मन की बगिया में ,महके,मैं उनकी सुरभि लूँ
कहा धरा ने आसमान से ,ला ,मैं तेरे आंसूं पी लूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।