सेल्फ़ी
कोई दूसरा जब लेता है ,फोटो खिंच जाना कहते है
खुद अपनी फोटो जब लेते,उसे सेल्फ़ी हम कहते है
अपना काम कोई जब करता,नहीं किसी पर हो अवलम्बित
मदद दूसरों की लेने की ,नहीं जरुरत पड़ती किंचित
सेल्फ़ी जैसे मन मर्जी से ,खुद ही पकाओ ,खुद ही खाओ
औरों से फोटो खिंचवाना , जैसे होटल में जा खाओ
अपने आसपास वाले भी ,सब निग्लेक्ट हुआ करते है
खुद कैसे हो बस ये दिखता,आप आत्म दर्शन करते है
फेमेली फोटो होती था ,जब सब रहते संग में मिलजुल
अब एकल परिवार सिमट कर,हुआ सेल्फ़ी जैसा बिलकुल
सेल्फ़ी में वो ही आ पाता ,जितनी दूर हाथ है जाते
सेल्फ़ी बड़ी सेल्फिश होती ,आस पास वाले कट जाते
होता है संकीर्ण दायरा ,सेल्फ़ी के कुछ लिमिटेशन है
आत्मकेंद्रित हम होते है,फिर भी सेल्फ़ी का फैशन है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
कोई दूसरा जब लेता है ,फोटो खिंच जाना कहते है
खुद अपनी फोटो जब लेते,उसे सेल्फ़ी हम कहते है
अपना काम कोई जब करता,नहीं किसी पर हो अवलम्बित
मदद दूसरों की लेने की ,नहीं जरुरत पड़ती किंचित
सेल्फ़ी जैसे मन मर्जी से ,खुद ही पकाओ ,खुद ही खाओ
औरों से फोटो खिंचवाना , जैसे होटल में जा खाओ
अपने आसपास वाले भी ,सब निग्लेक्ट हुआ करते है
खुद कैसे हो बस ये दिखता,आप आत्म दर्शन करते है
फेमेली फोटो होती था ,जब सब रहते संग में मिलजुल
अब एकल परिवार सिमट कर,हुआ सेल्फ़ी जैसा बिलकुल
सेल्फ़ी में वो ही आ पाता ,जितनी दूर हाथ है जाते
सेल्फ़ी बड़ी सेल्फिश होती ,आस पास वाले कट जाते
होता है संकीर्ण दायरा ,सेल्फ़ी के कुछ लिमिटेशन है
आत्मकेंद्रित हम होते है,फिर भी सेल्फ़ी का फैशन है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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