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सोमवार, 27 जुलाई 2015

मॉल कल्चर

          मॉल कल्चर

बड़े बड़े मालों के ,शोरूमों की शॉपिंग ,
                      प्लास्टिक की  थैली के भी पैसे लगते है
वही चीज सेल लगा ,दे आधे दामो में ,
                      तभी पता लगता है,वो कितना ठगते है
ब्रांड की चिप्पी से ,दाम बहुत बढ़ जाते ,
                      बिन चिप्पी के उनकी ,कीमत बस आधी है
गाँवों में वही चीज ,लाला  की गुमटी पर,
                       मोलभाव करने पर    सस्ती मिल जाती है
असल में मालों का ,अपना ही खर्चा है ,
                         सेल्स गर्ल,ऐ.सी. है, बिजली जलाते है
इन  सबकी कीमत भी,सौदे में जुड़ती है ,
                           इन सबका खर्चा भी ,हम ही चुकाते है
 पर जब भी होता है ,घर घर में पॉवरकट,
                            मज़ा लेने ऐ ,सी. का,लोग यहाँ जुटते है
समय काटने को हम,फिर शॉपिंग करते है,
                           मंहगी है चीजें पर ,ख़ुशी  ख़ुशी  लुटते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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