मैं रहा छीलता घांस प्रिये
मैं तो यूं ही सारा जीवन,बस रहा छीलता घांस प्रिये
शायद तुमने खाई होगी ,तुम ही थी मेरे पास प्रिये
मैं हूँ तुम्हारा दास प्रिये
वो घांस भैंस यदि खा लेती ,तो देती दूध ढेर सारा ,
तुम हुई भैस जैसी मोटी ,चढ़ गया बदन पर मांस प्रिये
मुझ पर करलो विश्वास प्रिये
तुम्हारी काया कृष्ण वर्ण ,इस तरह फूल कर फैलेगी ,
मैं तुम्हे डाइटिंग करवाता ,यदि होता ये आभास प्रिये
तुम तो मेरी ख़ास प्रिये
तुम स्विमिंग पूल मे मत जाना,मारेंगे लोग मुझे ताना ,
लो गयी भैंस पानी में कह,मेरा होगा उपहास प्रिये
आये ना मुझको रास प्रिये
आधे से ज्यादा डबलबेड ,पर तुम कब्जा कर सोती हो,
उस पर तुम्हारे खर्राटे , देतें है मुझको त्रास प्रिये
मैं आ ना पाता पास प्रिये
मैं क्षीणकाय ,दुबला पतला ,तुम राहु केतु सी छा जाती,
मैं होता लुप्त ग्रहण मुझ पर ,लग जाता है खग्रास प्रिये
मैं ले ना पाता सांस प्रिये
तुम्हारा खाने पर ना बस ,तुम्हारे आगे मैं बेबस ,
तुमने अपने संग मेरा भी ,कर डाला सत्यानाश प्रिये
फिर भी जीने की आस प्रिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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