करलें थोड़ा आराम प्रिये !
अब नहीं रहे दिन यौवन के ,उड़ते थे आसमान में जब
फिर काम काज में फंसे रहे ,फुर्सत मिल ही पाती थी कब
था बचा कोई रोमांच नहीं ,बन गया प्यार था नित्यकर्म
हम रहे निभाते पति पत्नी ,बन कर अपना ग्राहस्थ्य धर्म
दुनियादारी के चक्कर में ,हम रहे व्यस्त,कर भागदौड़
अब आया दौर उमर का ये,हम तुम दोनों हो गए प्रौढ़
आया ढलान पर है यौवन ,अब वो वाला उत्थान नहीं
ना कह सकता तुमको बुढ़िया,पर अब तुम रही जवान नहीं
धीरे धीरे हो रहा शांत , वो यौवन का तूफ़ान प्रिये
अब उमर ढल रही है अपनी ,करलें थोड़ा आराम प्रिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अब नहीं रहे दिन यौवन के ,उड़ते थे आसमान में जब
फिर काम काज में फंसे रहे ,फुर्सत मिल ही पाती थी कब
था बचा कोई रोमांच नहीं ,बन गया प्यार था नित्यकर्म
हम रहे निभाते पति पत्नी ,बन कर अपना ग्राहस्थ्य धर्म
दुनियादारी के चक्कर में ,हम रहे व्यस्त,कर भागदौड़
अब आया दौर उमर का ये,हम तुम दोनों हो गए प्रौढ़
आया ढलान पर है यौवन ,अब वो वाला उत्थान नहीं
ना कह सकता तुमको बुढ़िया,पर अब तुम रही जवान नहीं
धीरे धीरे हो रहा शांत , वो यौवन का तूफ़ान प्रिये
अब उमर ढल रही है अपनी ,करलें थोड़ा आराम प्रिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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