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सोमवार, 23 जनवरी 2023

सर्दी की सीख 

जाते-जाते सीख दे गया ,
मौसम सर्दी भरा भयंकर 
कोई कुछ न बिगाड़ सकेगा ,
अगर रखोगे खुद को ढक कर

चाहे हवा हो चुभने वाली ,
या फिर ठिठुराता मौसम हो
 चाहे कोहरा कहर ढा रहा,
 और हो गया सूरज गुम हो 
 भले धूप ने फेर लिया हो ,
 इस दुख की बेला में मुख हो
 परिस्थिति अनुकूल नहीं हो,
 उल्टा अगर हवा का रुख हो 
 ऐसे में अपना बचाव तुम ,
 करो यही है अति आवश्यक
 शीत शत्रु से बदन बचाओ ,
 कंबल और रजाई से ढक 
 और यह सबसे बेहतर होगा,
  छुपे रहो तुम घर के अंदर 
  जाते-जाते सीख दे गया 
  मौसम सर्दी भरा भयंकर 
  
 जीवन सुख दुख का संगम है 
 कभी सर्द है,कभी गरम है 
 नहीं जरूरी, हर स्थिति में ,
 टक्कर लेना ही उत्तम है 
 कभी-कभी अज्ञातवास में ,
 पांडव जैसा रहना छुप कर 
 जीवन के संघर्ष काल में,
 अक्सर हो सकता है हितकर 
 यह कमजोरी नहीं तुम्हारी 
 किंतु खेल का एक दाव है 
 शत्रु अगर हावी है तुम पर,
 तो झुक जाने मे बचाव है 
 बिना लड़े ही जीत जाओगे,
 अगर रहोगे थोड़ा बचकर 
 जाते जाते सीख दे गया ,
  मौसम सर्दी भरा भयंकर 

मदन मोहन बाहेती घोटू
  

सोमवार, 9 जनवरी 2023

दिल्ली की सरदी

यह दिल्ली की सर्दी है 
जुल्मी और बेदर्दी है 
चुभती सर्द हवाओं ने ,
हालत पतली कर दी है 

तड़फाती है शीतलहर 
कोहरा भी ढा रहा कहर 
हाथ न सूझे हाथों को 
नींद ना आती रातों को 

गिरती बर्फ पहाड़ों में 
दिल्ली कांपे जाड़ों में 
है प्रचंड सर्दी पड़ती 
सितम ठंड ढाने लगती 

सूरज ने हड़ताल करी 
और धूप है डरी डरी 
इतनी ज्यादा ठिठुरन है 
थरथर कांप रहा तन है 

शाल ,स्वेटर ,कार्डिगन 
इससे बचने के साधन 
लोग अलाव जलाते हैं 
थोड़ी राहत पाते हैं 

मत निकलो घर से बाहर
 दुबक रहो ,ओढ़ो कंबल 
 गरम पकोड़े तलवाओ
 गाजर का हलवा खाओ
 
 गर्म चाय के प्याले  ने,
  थोड़ी उर्जा भर दी है 
  यह दिल्ली की सर्दी है 
  जुल्मी और बेदर्दी है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 8 जनवरी 2023

यह जीवन है कितना विचित्र 
है शत्रु कभी तो कभी मित्र 

लगता फूलों की सेज कभी,
 सुंदर प्यारा और महक भरा 
 तो लगता कभी कि जैसे हो 
 सर पर कांटों का ताज धरा 
 यह पल पल रूप बदलता है 
 है स्वर्ग कभी तो नर्क कभी 
 जब जीते तब मालूम पड़ता 
 सुख का और दुख का फर्क तभी
 कैसा होता दुख की कीचड़ 
 कैसी सुख की गंगा पवित्र
  यह जीवन है कितना विचित्र
   है शत्रु कभी तो कभी मित्र 
   
   कुछ सुख के साथी होते हैं 
   ना पास फटकते जो दुख में 
   कुछ छुपा बगल में रखे छुरी 
  रटते हैं राम नाम मुख में 
  व्यवहार बदलता लोगों का
   वैभव में और कंगाली में 
   देते हैं साथ मित्र सच्चे 
   दुख में हो या खुशियाली में 
   संकट में ही मालूम पड़ता 
   लोगों का है कैसा चरित्र 
   यह जीवन है कितना विचित्र 
   है शत्रु कभी तो कभी मित्र 
   
जग जंजालो में फंसा कभी 
उड़ता उन्मुक्त बिहंग कभी
 यह संगम खुशियों का गम का 
 बदले मौसम सा रंग कभी
 हालात बदलते पल पल में 
 है गरल कभी तो सुधापान 
 वीरानापन ,तनहाई कभी
 शहनाई कभी तो मधुर गान 
बहता गंदा नाले जैसा,
बन जाता गंगा का पवित्र 
यह जीवन है कितना विचित्र
है शत्रु कभी तो कभी मित्र

मदन मोहन बाहेती घोटू 
आती है मां याद तुम्हारी 

स्नेह उमड़ता था आंखों से,
 तुम ममता की मूरत प्यारी 
 आती है मां ,याद तुम्हारी
 
 हमने पकड़ तुम्हारी उंगली ,
 धीरे धीरे चलना सीखा 
 आत्मीयता और प्रेम भाव से,
  सब से मिलना जुलना सीखा 
  सदाचार, सन्मान बड़ों का ,
  और छोटो पर प्यार लुटाना 
  मुश्किल और परेशानी में ,
  हरदम काम किसी के आना 
  तुम्हारी शिक्षा दिक्षा से ,
  झोली भर ली संस्कार की 
  सत्पथ पर चलना सिखलाया
  मूरत थी तुम सदाचार की 
   संस्कृती का ज्ञान कराकर 
   तुमने सब की बुद्धि संवारी
   आती है मां याद तुम्हारी 
    
भाई बहन और परिवार को ,
एक सूत्र में रखा बांधकर 
अब भी अनुशासन में रहते
 हैं हम सब ही,तुम्हें याद कर 
 जीवन जिया स्वाभिमान से
  हमको भी जीना सिखलाया 
  ईश्वर के प्रति श्रद्धा भक्ति 
  धर्म ज्ञान तुमने करवाया 
  रीति रिवाज पुराने जिंदा
   तुमने रखे, पालते हैं हम 
   चल तुम्हारे चरण चिन्ह पर,
   आज जी रहे सुखमय जीवन 
   तुम्हारे ही आदर्शों ने 
   हमें बनाया है संस्कारी 
   आती है मां याद तुम्हारी 
   
माता तुम वात्सल्य मूर्ति थी 
नयनों में था नेह उमड़ता
दिखने में थी भोली-भाली ,
किंतु विचारों में थी दृढ़ता 
तुमने हमें सिखाई नेकी ,
धीरज और विवेक सिखाया 
परोपकार का पाठ पढ़ा कर
 एक भला इंसान बनाया 
सदा प्रेरणा देती रहती 
आती रहती याद हमें तुम 
अब भी दूर स्वर्ग में बैठी 
देती आशीर्वाद हमें तुम
 तुम्हारे पद चिन्हों पर चल 
 जीवन आज हुआ सुखकारी 
 आती है मैं याद तुम्हारी

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

नींद

जब मैं नन्हा शिशु होता था 
लगती भूख बहुत रोता था 
दूध पिला ,मां देती थपकी 
तब मुझको आती थी झपकी
 सुख दायक मां की गोदी थी 
 वह मासूम नींद होती थी 
 
बड़ा हुआ ,कर दिनभर मस्ती
 जब थक जाता ,छाती सुस्ती 
 नाश्ते में जो भी मिल जाता 
 खा लेता, थक कर सो जाता 
 ना चिंता ना कोई फिकर थी 
 वह निश्चिंत नींद सुख कर थी
 
 शुरू हुआ फिर स्कूल जाना 
 बस्ता लाद, सुबह रोजाना 
 करो पढ़ाई स्कूल जाकर 
 होमवर्क करना घर आकर 
 जब हो जाती पलके भारी 
 आती नींद बड़ी ही प्यारी 
 
आई जवानी, उम्र बढ़ गई 
और किसी से नजर लड़ गई 
डूबा  रह उसके ख्वाबों में 
रस आता उसकी यादों में 
आती नींद ,न पर सोता था 
उसके सपनों में खोता था 

पूर्ण हुए जब सपने मेरे 
उसके साथ ले लिए फेरे 
हम पति-पत्नी प्रेमी पागल 
रहते डूब प्रेम में हर पल 
मधुर प्रेम क्रीड़ा मनभाती
हमें रात भर नींद ना आती 

बीत गए दिन मस्ती के फिर 
बोझा पड़ा गृहस्थी का सिर 
जिम्मेदारी मुझ पर आई 
करने  मैं लग गया कमाई 
धन अर्जन में मन उलझाता
नहीं ठीक से ,मैं सो पाता 

जब धन दौलत युक्त हुआ मैं
 जिम्मेदारी मुक्त हुआ मैं
 कितनी बार भले दिल टूटा 
 माया से पर मोह न छूटा 
 नहीं चैन मिल पाता दिन भर 
 सोता करवट बदल बदल कर 
 
अब जीवन अंतिम पड़ाव पर 
जीने का ना गया चाव पर 
यात्रा का आ गया छोर है 
पर जीने की चाह और है 
पास ईश्वर जब बुलायेगा 
चिर निद्रा में चैन आएगा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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