यह जीवन है कितना विचित्र
है शत्रु कभी तो कभी मित्र
लगता फूलों की सेज कभी,
सुंदर प्यारा और महक भरा
तो लगता कभी कि जैसे हो
सर पर कांटों का ताज धरा
यह पल पल रूप बदलता है
है स्वर्ग कभी तो नर्क कभी
जब जीते तब मालूम पड़ता
सुख का और दुख का फर्क तभी
कैसा होता दुख की कीचड़
कैसी सुख की गंगा पवित्र
यह जीवन है कितना विचित्र
है शत्रु कभी तो कभी मित्र
कुछ सुख के साथी होते हैं
ना पास फटकते जो दुख में
कुछ छुपा बगल में रखे छुरी
रटते हैं राम नाम मुख में
व्यवहार बदलता लोगों का
वैभव में और कंगाली में
देते हैं साथ मित्र सच्चे
दुख में हो या खुशियाली में
संकट में ही मालूम पड़ता
लोगों का है कैसा चरित्र
यह जीवन है कितना विचित्र
है शत्रु कभी तो कभी मित्र
जग जंजालो में फंसा कभी
उड़ता उन्मुक्त बिहंग कभी
यह संगम खुशियों का गम का
बदले मौसम सा रंग कभी
हालात बदलते पल पल में
है गरल कभी तो सुधापान
वीरानापन ,तनहाई कभी
शहनाई कभी तो मधुर गान
बहता गंदा नाले जैसा,
बन जाता गंगा का पवित्र
यह जीवन है कितना विचित्र
है शत्रु कभी तो कभी मित्र
मदन मोहन बाहेती घोटू
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