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गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

विवाह की वर्षगाँठ पर

मैं अठत्तर ,तुम तिहत्तर ,ख़ुशी का उत्सव मनायें
पर्व पावन ,ये मिलन का ,प्यार की ज्योति जलायें
मिलन का संयोग अपना ,लिखा ऐसा विधाता ने
एक दूजे की ,उमर भर ,रहेंगे हम बांह थामे
परिस्तिथियाँ ,कठिन से भी कठिन हो ,देंगे सहारा
हृदय में तुमको बिठा कर , उदेलेंगे प्यार सारा
दो बदन एक जान है हम ,दो हृदय पर एक धड़कन
प्रेम अपना ,एक दूजे को रहें करते समर्पण
हँसते हँसते ,यूं ही जीवन ,काट दे ,रूठें ,मनाये
पर्व आया है मिलन का ,प्यार की ज्योति जलाये

घोटू 
घोटू के पद

कोरोना ,जाओ तुम्हे हम जाने
 चमगादड़ के जाये हो तुम ,लोग तुम्हे पहचाने
चीन देश ने भेजा तुमको ,अपना जाल बिछाने
फ़ैल रहे तुम ,दिन दिन दूने ,सबको लगे सताने
कितनो के ही प्राण गमाये ,तुम्हारी विपदा ने
बच कर रहे सभी अब तुमसे,पास नहीं दे आने
घर में रहे,मुंह ढक घूमे ,कितने लोग सयाने
अपनों का स्पर्श न करते ,अपने अब  बेगाने
कोरोना ,जाव तुम्हे हम जाने

घोटू 
घोटू के पद

कोरोना की मार -विरहन की पुकार

प्रिय तुम ,कोरोना डर भागे
जबसे तुमसे नयन मिले है ,प्रेम भाव मन जागे
मिलन प्रतीक्षा में व्याकुल है ,प्यासे नयन अभागे
मैं तुम्हारी प्रेम पुजारन , सब जग बंधन त्यागे
करूं समर्पित ,निज सरवस मैं ,अगर पियाजी मांगे
तुम आये ,दूरी से देखा ,दो पग बढे न आगे
विरह पीड़ से तप्त बदन लख,गरम गरम सी साँसे
घोटू  तुम कोरोना डर से ,उलटे पैरों   भागे

घोटू    

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

सम्भावनाये

बड़े अरमान से बेटे की ,शादी सब किया करते ,
मगर ये जिंदगी का रुख किधर भी मोड़ सकती है
भाग्य पे होता ये निर्भर कि मिलती है बहू कैसी ,
अगर मिल जाए अच्छी तो वो रिश्ते जोड़ सकती है
सपन जो पोती पोते को ,खिलाओगे तुम गोदी में ,
भरे अरमान जो मन में ,वो सपने तोड़ सकती है
बुढ़ापे में सहारे  को  ,बनेगा बेटा एक लाठी ,
उसी लाठी से तुम्हारा ,वो सर भी फोड़ सकती है

कभी भी मत रखो ज्यादा ,किसी से आस तुम कोई ,
अपेक्षा  जब ,उपेक्षा  बनती है, दिल टूट जाता है
बसा लेता वो घर अपना ,अलग तुमको या कर देता ,
तुम्हारा लाडला बेटा ,तुम्ही से रूठ जाता है
यूं खट कर जो कमाते हो ,बचत खुद पर खपत करदो ,
नहीं तो वक़्त का डाकू ,सभी कुछ लूट जाता है
जब जाओगे इस दुनिया से ,नहीं कुछ साथ जाएगा ,
रहेंगे हाथ खाली ,सब  यहीं पर छूट जाता है

घोटू 
बुढ़ापे में मज़ा ले लें

अगर आये परेशानी ,तो हंस झेले बुढ़ापे में
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें ,बुढ़ापे में

लचकती चाल तुम्हारी ,कमर के दर्द के कारण ,
चलो इठलाती तुमको मैं ,लचकती कामिनी बोलूं
बदन थोड़ा भरा सा है ,है गदराया मोटापे से ,
चलो अल्हड सी मस्ती में ,तुम्हे गजगामिनी  बोलूं
मेरा भी हाल क्या कम है ,बुढ़ापे का हूँ मैं मारा ,
बची ना देह में फुर्ती ,जो बैठूं ,उठ नहीं  पाता
अधिक है खून  शक्कर ,बड़ा रहता है ,ब्लडप्रेशर ,
फूलने लगती है साँसें ,नहीं ज्यादा  चला जाता
ताश का खेल ,अच्छा है ,चलो खेलें  बुढ़ापे मे
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें बुढ़ापे में

तुम्हारी आँख पर चश्मा हमारी आँख पर चश्मा
चलो चश्मे के अंदर से ,मिलाएं बैठ कर आँखें
है पीड़ा मेरे पैरों में ,दबा दो तुम इन्हे थोड़ा ,
खुजा दूँ पीठ तुम्हारी , नरम से गाल सहला के
तुम्हारे काम मैं आऊं ,करो तुम भी मेरी सेवा ,
बढे नाखून पैरों के ,एक दूजे के हम काटें
बनाऊं चाय मैं और तुम ,पकोड़े तल के ले आओ ,
ले सुख भरपूर ,करदें दूर ,हम जीवन के सन्नाटे
यूं ही सुख एक दूजे को ,चलो दे लें बुढ़ापे में
मज़ा हम जिंदगानी का ,चलो ले लें बुढ़ापे में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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