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बुधवार, 7 नवंबर 2012

बोलती आँखें


अकसर देखा है,
कई बार
निःशब्द हो जाते हैं
जुबान हमारे,
कुछ भी व्यक्त करना
हो जाता है दुष्कर,
अथक प्रयास पर भी
शब्द नहीं मिलते;
कुछ कहते कहते 
लड़खड़ा जाती है जिह्वा,
हृदय के भाव
आते नहीं अधरों तक ।
पर 
ये बोलती आँखें 
कभी चुप नहीं होती ,
खुली हो तो 
कुछ कहती ही है;
अनवरत करती हैं 
भावनाओं का उद्गार,
आवश्यक नहीं इनके लिए 
शब्दों का भण्डार ,
भाषा इनकी है 
हर किसी से भिन्न ।
जो बातें 
अटक जाती हैं
अधरों के स्पर्श से पूर्व,
उन्हें भी ये 
बयाँ करती बखूबी;
ये बोलती आँखें 
कहती हैं सब कुछ,
कोई समझ है जाता 
को अनभिज्ञ रह जाता,
पर बतियाना रुकता नहीं,
हर भेद उजागर करती
ये बोलती आँखें ।

जो मेरी तकदीर होगी

        जो मेरी तकदीर होगी

दाल रोटी खा रहे हम,रोज ही इस आस से,

               सजी थाली में हमारी ,एक दिन तो खीर होगी
मर के जन्मा ,कई जन्मों,आस कर फरहाद ये,
                 कोई तो वो जनम होगा,जब कि उसकी हीर होगी
उनके दिल में जायेगी चुभ,प्यार का जज्बा जगा,
                  कभी तो नज़रें हमारी,वो नुकीला तीर होगी
इंतहां चाहत की मेरी,करेगी एसा असर,
                    जिधर भी वो नज़र डालेंगे,मेरी तस्वीर  होगी  
मेरे दिल के चप्पे चप्पे में हुकूमत आपकी,
                     मै,मेरा दिल,बदन मेरा, आपकी जागीर  होगी
रोक ना पायेगा कोई,कितना ही कोशिश करे,
                     मुझ को वो सब,जायेगा मिल,जो मेरी तकदीर होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

हस्त शक्ति-दे भक्ति

    हस्त शक्ति-दे  भक्ति

श्री विष्णु ,जग के पालनहार

एकानन है,मगर भुजाएं चार
   याने सर और हाथ का अनुपात
           एक पर चार
श्री ब्रह्माजी
जिन्होंने ये सृष्टि  रची
चतुरानन है,और भुजाएं भी चार
     याने सर और हाथ का अनुपात
               एक पर एक
और भगवान् शंकर
हर्ता है जो हरिहर
     एकानन है और भुजाये है  दो
     याने सर और हाथ का अनुपात
             एक पर दो
रावण,लंका का स्वामी
बुद्धिमान पर अभिमानी
      उसके थे दस सर और भुजाएं बीस
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर दो
लक्ष्मी और सरस्वती माता
धन और बुद्धि की दाता
दोनों के एक एक आनन और चार भुजाएं
      याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर चार
श्री दुर्गा या काली माँ का स्वरूप
 शक्ति का साक्षात्  रूप
     एक आनन पर अष्ट भुजाधारी
        याने सर और हाथ का अनुपात
              एक पर आठ
यदि उपरोक्त आंकड़ों पर आप गौर फरमाएंगे
तो सांख्यिकी के नियम अनुसार ,ये पायेंगे
कि प्रति सर सबसे ज्यादा हस्त शक्ति
देवी दुर्गा या काली माँ है रखती
जिसका अनुपात
है एक पर आठ
उसके बाद,विष्णु,लक्ष्मी और सरस्वती माता है
जिनका एक पर चार का अनुपात आता है
और क्योंकि हाथों से ही,
उपकार और आशीर्वाद दिए जाते है
इसीलिये ये ज्यादा हाथों के,
 औसत वाले ,पूजे जाते है
और सबसे कम औसत पर,
एक सर पर एक हाथवाले ब्रह्माजी आते है
इसीलिए वो सबसे कम पूजे जाते है
और उनके मंदिर ,एक दो जगह ही दिखलाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


सोमवार, 5 नवंबर 2012

लेखा जोखा


           लेखा जोखा

पिछले कितने ही वर्षों का,

इस जीवन के संघर्षों का ,
                  आओ करें हम लेखा जोखा
किसने साथ दिया बढ़ने में,
मंजिल तक ऊपर चढ़ने में,
                    और रास्ता  किसने  रोका
किसने प्यार दिखा  कर झूंठा,
दिखला कर अपनापन ,लूटा,
                   और किन किन से खाया धोका
बातें करके  प्यारी प्यारी,
काम निकाल,दिखाई यारी,
                    और पीठ में खंजर  भोंका 
देती गाय ,दूध थी  जब तक,
उसका ख्याल रखा बस तब तक,
                     और बाद में खुल्ला  छोड़ा
उनका किया भरोसा जिन पर,
अपना  सब कुछ ,कर न्योछावर,
                       उनने ही है दिल को तोड़ा
खींची टांग,बढे जब आगे
साथ छोड़,मुश्किल में भागे,
                    बदल गए जब आया मौका
टूट गए जो उन सपनो का ,
बिछड़े जो उन सभी जनों का
                    सभी परायों और अपनों का
नहीं आज का,कल परसों का
विपदाओं का, ऊत्कर्षों  का,
                       आओ करें हम लेखा जोखा
 पिछले कितने ही वर्षों का,
इस जीवन के संघर्षों का,
                         आओ करें  हम लेखा जोखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

    
                   
 

शनिवार, 3 नवंबर 2012

छोटी-सी गुड़िया


छोटी-सी वो गुड़िया थी गुड़ियों संग खेला करती थी,
खेल-कूद में, विद्यालय में सदा ही अव्वल रहती थी ।

भोली थी, नादान थी वो पर दिल सबका वो लुभाती थी,
मासूमियत की मूरत थी, बिन पंख ही वो उड़ जाती थी ।

बचपन के उस दौर में थी जब हर पल उसका अपना था,
दुनिया से सरोकार नहीं था, उसका अपना सपना था ।

यूँ तो सबकी प्यारी थी पर पिता तो 'बोझ' समझता था,
एक बेटी है जंजाल है ये, वो ऐसा ही रोज समझता था ।

शादी-ब्याह करना होगा, हर खर्च वहन करना होगा,
लड़के वालों की हर शर्तें, हर बात सहन करना होगा ।

कन्यादान के साथ में कितने 'अन्य' दान करने होंगे,
घर के साथ इस महंगाई में, ये देह गिरवी धरने होंगे ।

छोटी-सी एक नौकरी है, ये कैसे मैं कर पाउँगा,
रोज ये रोना रोता था, मैं जीते जी मर जाऊंगा ।

जितनी जल्दी उतने कम दहेज़ में काम बन जायेगा,
किसी तरह शादी कर दूँ, हर बोझ तो फिर टल जायेगा ।

इस सोच से ग्रसित बाप ने एक दिन कर दी फिर मनमानी,
बारह बरस की आयु में गुडिया की ब्याह उसने ठानी ।

सोलह बरस का देख के लड़का करवा ही दी फिर शादी,
शादी क्या थी ये तो थी एक जीवन की बस बर्बादी ।

छोटी-सी गुड़िया के तो समझ से था सबकुछ परे,
सब नादान थे, खुश थे सब, पर पीर पराई कौन हरे ।

ब्याह रचा के अब गुड़िया को ससुराल में जाना था,
खेल-कूद छोड़ गृहस्थी अब उस भोली को चलाना था ।

उस नादान-सी 'बोझ' के ऊपर अब कितने थे बोझ पड़े,
घर-गृहस्थ के काम थे करने, वो अपने से रोज लड़े ।

इसी तरह कुछ समय था बीता फिर एक दिन खुशखबरी आई,
घर-बाहर सब खुश थे बड़े, बस गुड़िया ही थी भय खाई ।

माँ बनने का मतलब क्या, उसके समक्ष था प्रश्न खड़ा,
तथाकथित उस 'बोझ' के ऊपर आज एक दायित्व बढ़ा ।

कष्टों में कुछ मास थे गुजरे, फिर एक दिन तबियत बिगड़ा,
घर के कुछ उपचार के बाद फिर अस्पताल जाना पड़ा ।

देह-दशा देख डॉक्टर ने तब घरवालों को धमकाया,
छोटी-सी इस बच्ची का क्यों बाल-विवाह है करवाया ?

माँ बनने योग्य नहीं अभी तक देह इसका है बन पाया,
खुशियाँ तुम तो मना रहे पर झेल रही इसकी काया ।

शुरू हुआ ईलाज उसका पर होनी ही थी अनहोनी,
मातम पसर गया वहां पर सबकी सूरत थी रोनी ।

बच्चा दुनिया देख न पाया, माँ ने भी नैन ढाँप लिए,
चली गई छोटी-सी गुड़िया, बचपन अपना साथ लिए ।

साथ नहीं दे पाया, उसके देह ने ही संग छोड़ दिया,
आत्मा भी विलीन हुई, हर बंधन को बस तोड़ दिया ।

एक छोटी-सी गुड़िया थी वो चली गई बस याद है,
ये उस गुड़िया की कथा नहीं, जाने कितनों की बात है ।

ऐसे ही कितनी ही गुड़िया समय पूर्व बेजान हुई,
कलुषित सोच और कुरीत के, चक्कर में बलिदान हुई ।

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