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रविवार, 5 फ़रवरी 2023

बड़ी खुशनुमा जिंदगी थी हमारी 
कटी जा रही थी खरामा खरामा
किसी की नजर पर ,लगी ऐसी हम पर,
गए भूल सारा ही, हंसना हंसाना 

न तुम ही थके थे ,ना हम ही थके थे,
 बड़ा जिंदगी का सफर था सुहाना
 न लेना किसी से ,न देना किसी को,
 सभी से मोहब्बत का रिश्ता निभाना 
 बड़ी खुशनुमा जिंदगी थी हमारी,
 कटी जा रही थी खरामा खरामा
 किसी की नजर पर, लगी ऐसी हम पर
 गए भूल सारा ही हंसना हंसाना 

दुनिया को देखा,समझ में ये आया,
गया है बदल किस क़दर ये जमाना
सभी को पड़ी है ,बस अपनी अपनी,
भुलाया है लोगों ने रिश्ते निभाना 
 सदा ढूंढते हैं ,कमी दूसरों की 
 कैसा है कोई फलाना ढिकाना 
  भरा मैल कितना है मन में हमारे ,
  नहीं साफ करते हैं हम वो ठिकाना
  
   रिश्तों की करना ,कदर जानते वो,
   देखा है जिनने, पुराना जमाना 
   सुख-दुख सभी भोगना पड़ रहा है ,
   चुकाते हैं कर्मों का कर्जा पुराना
   कभी तो हंसी है लबों पर थिरकती,
   कभी आंख से आंसुओ का बहाना
   कभी डगमगाते,कभी खिलखिलाते,
   इतना सा है बस हमारा फसाना

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 23 जनवरी 2023

कुछ चेहरे 

मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
यादों में आ आकर ठहरे 

पहला चेहरा पिताश्री का 
अनुशासन है जिन से सीखा 
मिलनसार कर्मठ और हंसमुख 
धर्मनिष्ट,सेवा को उन्मुख 
बाहर सख्त ,मुलायम था मन 
जिनके कारण संवरा जीवन 
मैंने जिनके आदर्शों से ,
संस्कार पाये हैं गहरे 
मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
यादों में आ आकर ठहरे 

याद बहुत आती है मां की 
जो एक मूरत थी ममता की 
नयनो से था नेह उमड़ता 
और विचारों में थी दृढ़ता 
जिसने हर पल मुझे संभाला 
लाड़ दुलार प्यार से पाला 
जिसके आशीर्वादो से ही ,
पूर्ण हुए सब स्वप्न सुनहरे 
मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
यादों में आ आकर ठहरे 

याद आती वह प्यारी दादी 
भोली भाली ,सीधी सादी 
कार्य कुशल ,साहस की मूर्ति 
उम्र अधिक पर कायम फुर्ती 
सब बच्चों पर प्यार लुटाती
सुना कहानी ,मन बहलाती 
जिसके संरक्षण में बीते,
 बचपन के वो दिन सुनहरे 
 मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
 यादों में आ आकर ठहरे 
 
 भाई बहन का रिश्ता प्यारा 
 बचपन जिनके साथ गुजारा
 प्यारी पत्नी, प्यार लुटाती 
 हर सुख दुख में साथ निभाती
 प्यारा बेटा ,प्यारी बिटिया 
 ले आए जीवन में खुशियां 
 जिनने, सबने सदा निभाए,
 परिवार के रिश्ते गहरे 
 मेरे जीवन में कुछ चेहरे 
 यादों में आ आकर ठहरे 
 
फिर कुछ अपने और पराए 
कार्यक्षेत्र में जो टकराए  
कोई मोहब्बत ,कुछ मतलब के 
अलग-अलग है किस्से सबके 
कुछ प्रति मन में प्यार जगा भी
उनमें कुछ ने मुझे ठगा भी
कभी किसी ने प्यार लुटाया,
 घाव दे गया कोई गहरे 
 मेरे जीवन के कुछ चेहरे 
 यादों में आ आकर ठहरे

मदन मोहन बाहेती घोटू 
सर्दी की सीख 

जाते-जाते सीख दे गया ,
मौसम सर्दी भरा भयंकर 
कोई कुछ न बिगाड़ सकेगा ,
अगर रखोगे खुद को ढक कर

चाहे हवा हो चुभने वाली ,
या फिर ठिठुराता मौसम हो
 चाहे कोहरा कहर ढा रहा,
 और हो गया सूरज गुम हो 
 भले धूप ने फेर लिया हो ,
 इस दुख की बेला में मुख हो
 परिस्थिति अनुकूल नहीं हो,
 उल्टा अगर हवा का रुख हो 
 ऐसे में अपना बचाव तुम ,
 करो यही है अति आवश्यक
 शीत शत्रु से बदन बचाओ ,
 कंबल और रजाई से ढक 
 और यह सबसे बेहतर होगा,
  छुपे रहो तुम घर के अंदर 
  जाते-जाते सीख दे गया 
  मौसम सर्दी भरा भयंकर 
  
 जीवन सुख दुख का संगम है 
 कभी सर्द है,कभी गरम है 
 नहीं जरूरी, हर स्थिति में ,
 टक्कर लेना ही उत्तम है 
 कभी-कभी अज्ञातवास में ,
 पांडव जैसा रहना छुप कर 
 जीवन के संघर्ष काल में,
 अक्सर हो सकता है हितकर 
 यह कमजोरी नहीं तुम्हारी 
 किंतु खेल का एक दाव है 
 शत्रु अगर हावी है तुम पर,
 तो झुक जाने मे बचाव है 
 बिना लड़े ही जीत जाओगे,
 अगर रहोगे थोड़ा बचकर 
 जाते जाते सीख दे गया ,
  मौसम सर्दी भरा भयंकर 

मदन मोहन बाहेती घोटू
  

सोमवार, 9 जनवरी 2023

दिल्ली की सरदी

यह दिल्ली की सर्दी है 
जुल्मी और बेदर्दी है 
चुभती सर्द हवाओं ने ,
हालत पतली कर दी है 

तड़फाती है शीतलहर 
कोहरा भी ढा रहा कहर 
हाथ न सूझे हाथों को 
नींद ना आती रातों को 

गिरती बर्फ पहाड़ों में 
दिल्ली कांपे जाड़ों में 
है प्रचंड सर्दी पड़ती 
सितम ठंड ढाने लगती 

सूरज ने हड़ताल करी 
और धूप है डरी डरी 
इतनी ज्यादा ठिठुरन है 
थरथर कांप रहा तन है 

शाल ,स्वेटर ,कार्डिगन 
इससे बचने के साधन 
लोग अलाव जलाते हैं 
थोड़ी राहत पाते हैं 

मत निकलो घर से बाहर
 दुबक रहो ,ओढ़ो कंबल 
 गरम पकोड़े तलवाओ
 गाजर का हलवा खाओ
 
 गर्म चाय के प्याले  ने,
  थोड़ी उर्जा भर दी है 
  यह दिल्ली की सर्दी है 
  जुल्मी और बेदर्दी है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 8 जनवरी 2023

यह जीवन है कितना विचित्र 
है शत्रु कभी तो कभी मित्र 

लगता फूलों की सेज कभी,
 सुंदर प्यारा और महक भरा 
 तो लगता कभी कि जैसे हो 
 सर पर कांटों का ताज धरा 
 यह पल पल रूप बदलता है 
 है स्वर्ग कभी तो नर्क कभी 
 जब जीते तब मालूम पड़ता 
 सुख का और दुख का फर्क तभी
 कैसा होता दुख की कीचड़ 
 कैसी सुख की गंगा पवित्र
  यह जीवन है कितना विचित्र
   है शत्रु कभी तो कभी मित्र 
   
   कुछ सुख के साथी होते हैं 
   ना पास फटकते जो दुख में 
   कुछ छुपा बगल में रखे छुरी 
  रटते हैं राम नाम मुख में 
  व्यवहार बदलता लोगों का
   वैभव में और कंगाली में 
   देते हैं साथ मित्र सच्चे 
   दुख में हो या खुशियाली में 
   संकट में ही मालूम पड़ता 
   लोगों का है कैसा चरित्र 
   यह जीवन है कितना विचित्र 
   है शत्रु कभी तो कभी मित्र 
   
जग जंजालो में फंसा कभी 
उड़ता उन्मुक्त बिहंग कभी
 यह संगम खुशियों का गम का 
 बदले मौसम सा रंग कभी
 हालात बदलते पल पल में 
 है गरल कभी तो सुधापान 
 वीरानापन ,तनहाई कभी
 शहनाई कभी तो मधुर गान 
बहता गंदा नाले जैसा,
बन जाता गंगा का पवित्र 
यह जीवन है कितना विचित्र
है शत्रु कभी तो कभी मित्र

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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