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मंगलवार, 30 अगस्त 2022

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रविवार, 28 अगस्त 2022

जय गणेश गणपति गजानन 
करूं आपका, मैं आराधन 

तुम सुत महादेव के प्यारे 
प्रथम पूज्य तुम देव हमारे 
एक दंत और कर्ण विशाला 
अरुण कुसुम की धारे माला
कर में कमल ,माथ पर चंदन 
भव्य रूप ,गौरी के नंदन 
तुम हो रिद्धि सिद्धि के दाता
हम सबके तुम बुद्धि प्रदाता
लाभ और शुभ, पुत्र तुम्हारे
हरते सबके संकट सारे
सुख सरसाते, कष्ट निकंदन 
 जय गणेश गणपति गजानन 
 
लक्ष्मी साथ तुम्हारा पूजन 
दिवाली पर करें सभी जन 
सरस्वती संग साथ तुम्हारा 
सबको ही लगता है प्यारा 
दो देवी को बुद्धि बल से 
तुमने साध रखा कौशल से 
रखो संतुलन बना विनायक 
महाकाय ,पर वाहन मूषक 
जब हो घर में कुछ आयोजन 
देते तुमको प्रथम निमंत्रण 
मिलता आशीर्वाद तुम्हारा 
काम विध्न बिन होता सारा 
सूज बूझ है बड़ी विलक्षण 
जय गणेश ,गणपति गजानन

मदन मोहन बाहेती घोटू 
गई शान,अभिमान पस्त है ,
फूटी किस्मत अब रोती है 
कभी मूसलाधार बरसता ,
अब तो बस रिमझिम होती है 

बादल आते हैं मंडराते ,
फिर भी सूखा पड़ा हुआ है 
ना बरसेगा ये बादल भी,
अपनी जिद पर अड़ा हुआ है 
बहती कभी हवाएं ठंडी 
लेकिन सौंधी गंध न आती 
अब बगिया में फूल खिलते
 जिन पर थी तितली मंडराती
 इस मौसम में सूखी बगिया ,
 अपनी सब रौनक होती है 
 कभी मूसलाधार बरसता,
 अब तो बस रिमझिम होती है 
 
कभी उमंगों के रंगों में ,
रंगा हुआ था सारा जीवन 
पंख लगा कर हम उड़ते थे ,
मौज मस्तियों का था आलम 
पहले थे पकवान उड़ाते ,
अब खाते हैं सूखी रोटी 
काम न आती, जो जीवन भर 
करी कमाई हमने मोटी
बोझिल मन और बेबस आंखें, 
बरसाती रहती मोती है
कभी मूसलधार बरसता,
अब तो बस रिमझिम होती है

मदन मोहन बाहेती घोटू

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

चंदन की हो या बबूल की,
 हर लकड़ी के अपने गुण है 
 लेकिन जब वह जल जाती है 
 सिरफ राख ही रह जाती है 
 
मैली बहती गंदी नाली ,
जब मिल जाती है गंगा से 
अपनी सभी गंदगी खो कर ,
वह भी गंगा बन जाती है  

अगर फूल गिरता माटी पर,
 मिट्टी भी खुशबू दे देती ,
 सज्जन संग सत्संग हमेशा 
 मन को शुद्ध किया करता है 
 
अच्छे कर्म किए जीवन के 
आया करते काम हमेशा 
मानव देव पुरुष बन जाता
 घड़ा पुण्य का जब भरता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कटी जवानी लाड़ लढाते,
 कटा बुढ़ापा लड़ते लड़ते 
 गलती कोई ने भी की हो ,
 दोष एक दूजे पर मढ़ते

 रस्ते में कंकर पत्थर थे,
  ठोकर खाई संभल गए हम
  सर्दी धूप और बरसाते,
   झेले कई तरह के मौसम
  लेकिन जब तक रही जवानी ,
  हर मौसम का मजा उठाया 
  मस्ती के कोई पल को भी,
   हमने होने दिया न जाया 
   खाया पिया मौज उड़ाई ,
   घूमे पूरी दुनिया भर में 
   थे जवान हम पंख लगे थे,
   उड़ते फिरते थे अंबर में 
   जोश भरा था और उमंग थी
   पैर नहीं धरती पर पड़ते
   कटी जवानी , लाड़ लढाते,
   कटा बुढ़ापा लड़ते-लड़ते 
     
फिर धीरे-धीरे चुपके से,
 दबे पांव आ गया बुढ़ापा 
 घटने लगी उमंग जोश सब,
 संदेशा लाया विपदा का 
 लाड़ प्यार सब फुर्र हो गया ,
 जब तन था कमजोर हो गया
  तानाकशी एक दूजे पर,
  नित लड़ाई का दौर हो गया 
  किंतु लड़ाई जो भी होती,
   प्यार छुपा रहता था उसमें 
   वक्त काटने का एक जरिया
   यह झगड़ा होता था सच में 
  और जीवन का सफर कट गया 
   अपनी जिद पर अड़ते अड़ते 
   कटी जवानी लाड़ लढाते,
   कटा बुढ़ापा, लड़ते-लड़ते

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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