एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 7 नवंबर 2021

Re:

Wah tauji :D

Ekdum zaikedar poem hai 

On Sun, Nov 7, 2021, 12:13 PM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
आयुष का इंदौरी प्यार 

नाश्ते में प्यार के पोहे जलेबी,
 सेव मिक्चर जीरावन नींबू मिलाके 
 लंच में उल्फत के घी में तरमतर जो ,
 वो मुलायम बाफले खाता दबाके 
 साथ में मीठा तेरी बातों के जैसा,
 चूरमा है केसरी मन को लुभाता 
 शाम को मैं मोहब्बत से भरी पेटिस,
  नर्म भुट्टो का सुहाना किस मैं पाता 
  बहुत दिन के बाद ये पकवान पाए 
  प्यारा का मौसम त्योंहारी हो गया है 
  चाह छप्पन भोग की पूरी हुई है,
  आजकल यह मन इंदौरी हो गया है

घोटू
आयुष का इंदौरी प्यार 

नाश्ते में प्यार के पोहे जलेबी,
 सेव मिक्चर जीरावन नींबू मिलाके 
 लंच में उल्फत के घी में तरमतर जो ,
 वो मुलायम बाफले खाता दबाके 
 साथ में मीठा तेरी बातों के जैसा,
 चूरमा है केसरी मन को लुभाता 
 शाम को मैं मोहब्बत से भरी पेटिस,
  नर्म भुट्टो का सुहाना किस मैं पाता 
  बहुत दिन के बाद ये पकवान पाए 
  प्यारा का मौसम त्योंहारी हो गया है 
  चाह छप्पन भोग की पूरी हुई है,
  आजकल यह मन इंदौरी हो गया है

घोटू

शनिवार, 30 अक्टूबर 2021

नटखट

सब कहते जब मैं बच्चा था ,मैं शैतान बड़ा नटखट था
कभी चैन से नहीं बैठता, करता रहता उलट पलट था
सभी चीज कर जाता था चट
मैं था नटखट, नटखट नटखट
बढ़ा हुआ पत्नी  कहने पर नाचा करता बनकर नट मैं
नहीं चैन पलभर भी पाया,फंसा गृहस्थी की खटपट में  
काम सभी करता था झटपट
मैं था नटखट ,नटखट नटखट
अब बूढ़ा हूं ,मेरे अस्थिपंजर के ढीले हैं सब नट 
लेटा रहता पड़ा खाट पर, मुझसे ना होती है खटपट
 हर एक उम्र में झंझट झंझट 
 रहा उमरभर,नटखट नटखट

मदन मोहन बाहेती घोटू
आलू 

आलू आलू आलू मसाले वाले आलू 
आलू बिन ना भावे, मैं कैसे खाना खा लूं 

आलू है बेटे धरती के 
आलू शालिग्राम सरीखे
 गोलमोल है प्यारे प्यारे 
 इन्हें प्यार करते हैं सारे 
 घुंघट जैसे पतले छिलके
अंदर गौर वर्ण तन झलके
बसे हुए जन जन जीवन में 
मौजूद है हर एक भोजन में 
गरम परांठा, आलू वाला 
संग बेड़मी, स्वाद निराला 
आलू भरा मसाला डोसा 
आलू बिन ना बने समोसा 
बड़ा पाव ,आलू के दम पर 
पावभाजी में आलू जी भर
आलू युक्त बटाटा पोहा 
खाने वाले का मन मोहा 
बड़े ठाठ से रहते आलू 
हरेक चाट में रहते आलू 
गरम करारी ,आलू टिक्की 
दही सोंठ संग लागे निक्की
गोलगप्पों में भर लो आलू 
फ्राय तवे पर करलो आलू
आलू टिक्की वाला बर्गर 
आलू है पेटिस के अंदर 
आलू का कटलेट निराला
फ्रेंच फ्राय में आलू आला
भुने हुऐआलू सबसे बढ़
 स्वाद लगे,आलू के पापड़ 
बीकानेरी आलू भुजिया 
मन भाता,आलू का हलवा 
हर मौसम में मिलते आलू 
हर सब्जी संग खिलते आलू 
मटर साथ रस्से के आलू 
दही डाल लो,खट्टे आलू 
मेथी आलू ,सूखी सब्जी 
आलू पालक, हर लेता जी 
बैंगन के संग ,आलू बैंगन 
आलू गोभी खा हरसे मन 
सूखे आलू, जीरा आलू 
आलू दम,कश्मीरा आलू 
चख कर देखो, आलू अचारी
आलू सब पर पड़ते भारी
आलू सबसे मिलकर राजी
स्वाद भरी है,पूरी भाजी
चिप्स बना कर , खाओ जी भर
बहुत स्वाद,आलू के वेफर
राज हर तरफ है आलू का
बिन आलू के भोजन सूखा
जित देखो आलू ही आलू
आलू खा ,भोजन सुख पालूं
आलू की कचौड़ी,पकोड़े बना लूं 
आलू आलू आलू, मसाले वाले आलू

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

मेरी बुजुर्गियत

मेरी बुजुर्गियत
बन गई है मेरी खसूसियत
और परवान चढ़ने लगी है ,
मेरी शख्सियत 
हिमाच्छादित शिखरों की तरह मेरे सफेद बाल 
उम्र के इस सर्द मौसम में ,लगते हैं बेमिसाल 
पतझड़ से पीले पड़े पत्तों की तरह ,
मेरे शरीर की आभा स्वर्णिम नजर आती है 
आंखें मोतियों को समेटे ,मोतियाबिंद दिखाती है 
नम्रता मेरे तन मन में इस तरह घुस गई है 
कि मेरी कमर ही थोड़ी झुक गई है 
मधुमेह का असर इस कदर चढ गया है 
कि मेरी वाणी का मिठास बढ़ गया है 
अब मैं पहाड़ी नदी सा उछलकूद नहीं करता हूं
मैदानी नदी सा शांत बहता हूं
मेरा सोच भी नदी के पाट की तरह,
विशाल होकर ,बढ़ गया है
मुझ पर अनुभव का मुलम्मा चढ़ गया है
अब मैं शांत हो गया हूं
संभ्रांत हो गया हूं
कल तक था सामान्य
अब हो गया हूं गणमान्य
बढ़ गई है मेरी काबलियत
मेरी बुजुर्गियत
निखार रही है मेरी शक्सियत
मुझमें फिर से आने लगी है,
वो बचपन वाली मासूमियत

मदन मोहन बाहेती घोटू

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-