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बुधवार, 20 अक्टूबर 2021

नया दौर 

उम्र का कैसा गणित है 
भावनाएं भ्रमित हैं 
शांत रहता था कभी जो,
 बड़ा विचलित हुआ चित है
 पुष्प विकसित था कभी, मुरझा रहा है 
 जिंदगी का दौर ऐसा आ रहा है 
 
ना रही अब वह लगन है 
हो गया कुछ शुष्क मन है 
लुनाई गायब हुई है,
शुष्क सा सारा बदन है 
जोश और उत्साह बाकी ना रहा है
 जिंदगी का दौर एसा आ रहा है 
 
जवानी जो थी दिवानी
 बन गई बीती कहानी 
 एक लंगडी भिन्न जैसी,
  हो गई है जिंदगानी 
 प्रखर सा था सूर्य, अब ढल सा रहा है 
 जिंदगी का दौर एसा आ रहा है

मदन मोहन बाहेती घोटू
मुझे डायबिटीज है

 मैं ,जलेबी सा टेढ़ा मेढ़ा,
  गुलाब जामुन सा रंगीला 
  गजक की तरह खस्ता,
  चिक्की की तरह चटकीला 
  
  बर्फी की तरह सादा ,
  पेड़े की तरह घोटा हुआ
   रबड़ी की तरह लच्छेदार 
   कढ़ाई दूध की तरह ओटा हुआ 
   
   मोतीचूर सा सहकारी ,
   रसगुल्ले सा मुलायम 
   बालूशाही सा शाही,
    हलवे सा नरम गरम 
    
    मीठी मीठी बातें हैं,
     मीठी सी मुस्कान है 
     मेरा यह मन तो ,
     हलवाई की दुकान है 
     
     पर मेरे मन में एक टीस है
      कि मुझे डायबिटीज है

मदन मोहन बाहेती घोटू
हम हैं अस्सी ,मीठी लस्सी

 हम तो भुट्टे ,सिके हुए हैं 
 तेरे प्यार में बिके हुए हैं 
 तू टॉनिक सी ताकत देती,
  बस दवाई पर टिके हुए हैं 
  मन की पीड़ा किस संग बांटे 
  साठे थे जब ,हम थे पाठे
 उम्र भले ही अब है अस्सी
  हम अब भी है मीठी लस्सी 
  
हाथ पाव सब ही ढीले हैं 
पर तबीयत के रंगीले हैं 
खट्टे मीठे कितने अनुभव ,
कुछ सुख के, कुछ दर्दीले हैं 
देखी रौनक और सन्नाटे 
साठे थे जब , हम थे पाठे 
उम्र भले ही अब है अस्सी
हम अब भी है मीठी लस्सी

ढलने को अब आया है दिन 
आभा किंतु शाम की स्वर्णिम 
रह रह हमें याद आते हैं ,
गुजरे वो हसीन पल अनगिन
बाकी दिन अब हंसकर काटे
 साठे थे जब, हम थे पाठे
 उम्र भले ही अब है अस्सी
 हम अब भी है मीठी लस्सी 

मदन मोहन बाहेती घोटू
चालिस पार ,ढलती बहार

लगा उड़ने तन से , जवानी का पालिश 
उमर भी है चालिस,कमर भी है चालिस

 कनक की छड़ी सी कमर आज कमरा 
 रहा पहले जैसा ,नहीं नाज नखरा 
 गए दिन मियां फाख्ता मारते थे 
 बचाकर नजर जब सभी ताड़ते थे 
 नहीं मिलने की कोई करता गुजारिश 
 उमर भी है चालिस, कमरभीहै चालिस
 
बेडौल सा तन,हुआ ढोल जैसा 
बुढ़ापे का आने लगा है अंदेशा 
हंसी की खनक भी बची है नहीं अब 
वो रौनक वो रुदबा, हुआ सारा गायब 
मोहब्बत की घटने लगी अब है ख्वाइश 
उमर भी है चालिस, कमर भी है चालिस

हनुमान चालीसा पढ़ना पढ़ाना 
और राम में मन अपना रमाना 
चेहरे की रौनक खिसकने लगी है 
जाती जवानी सिसकने लगी है 
गए चोंचले सब ,झप्पी नहीं किस 
उमर भी यह चालिस, कमरभी है चालिस

न मौसम बसंती ,न मौंजे न मस्ती
जुटो काम में और संभालो गृहस्थी
नहीं अब बदन में बची वो लुनाई 
सफेदी भी बालों में पड़ती दिखाई 
जलवे जवानी के हैं टाय टाय फिस
 उमर भी है चालिस, कमर भी है चालिस

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

नेता मेरे देश के 

मेरे देश में नेताओं की इतनी सारी किस्मे है 
रत्ती भर भी देशभक्ति पर ना उसमें ना इसमें है 
ये सब के सब जहरीले हैं और तरबतर विष में है 
गिने चुने हैं देशभक्ति का थोड़ा जज्बा जिसमें है 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे 
मस्जिद में अल्ला कहते है और मंदिर में राम हैं 
इनका कोई धरम नहीं है, ना कोई ईमान है 
ये मन के अंदर काले हैं बस उजला परिधान हैं 
इन पर नहीं भरोसा करना ये तो नमक हराम है 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे
अरे देश को गिरवी रख दें, ये लालच में अंधे हैं 
लूट खसोट, रिश्वतें लेना ,इनके गोरखधंधे हैं 
इनका मन भी साफ नहीं है और इरादे गंदे हैं 
जहां रहे दम ,वही रहे हम, ये तो बस ऐसे बंदे हैं 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बचकर रहना रे 
नहीं वतन के रक्षक है ,ये वतन लूटने वाले हैं 
तुम्हें सफेदी पोते दिखते पर यह कौवे काले हैं 
खुद ही की सेवा करने का भाव हृदय में पाले हैं 
इतने सालों इनकी करतूतें हम देखे भाले हैं 
मेरा है यह कहना रे 
इनसे बचकर रहना रे
एक बार जो राजनीति में जैसे तैसे सेट हुए 
रिश्वत और दलाली खाकर ,इनके मोटे पेट हुए 
कल गरीब थे, कुर्सी पाई, अब ये धन्ना सेठ हुए
बाइसिकल पर चलने वालों के अब अपने जेट हुए 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 नहीं भरोसे काबिल है ये बातें कोरी करते हैं 
 वोट मांगने तुम्हें मनाने हाथाजोड़ी करते हैं 
 कट्टर से कट्टर दुश्मन से भी गठजोड़ी करते है
 कैसे भी सत्ता हथियालें, भागादोड़ी करते हैं 
 मेरा है यह कहना रे
 इनसे बचकर रहना रे 
 आते नजर चुनाव दिनों में ये मेंढक बरसाती है 
 नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को जाती है 
 इनकी जाति धर्म की चाले लोगों को भड़काती है
 ये मतलब के यार हैं केवल,नहीं किसी के साथी हैं 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 मुफ्त मुफ्त की खैरातें दे ये तुमको ललचाएंगे 
 साम दाम और दंड भेद से ,अपना चक्र चलाएंगे 
 कैसे भी दंद फंद करेंगे ,वोट आपका पाएंगे 
 और जो कुर्सी पाएंगे तो भूल तुम्हें यह जाएंगे 
 मेरा है यह कहना रे
 इनसे बचकर रहना रे
 जाए भाड़ में देश तरक्की,पहले अपनी करते हैं
 जनता भूखी रहे पेट ये पहले अपना भरते हैं 
 छुपी बगल में छुरी भले ही मुख से राम सुमरते हैं 
 सत्ता पाकर बने निरंकुश नहीं किसी से डरते हैं 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 रंगे हुए सियार है ये सब इनसे बचकर रहना रे 
 इनकी मीठी मीठी बातें ,वादों में मत बहना रे 
 बाकी समझदार तो सब है हमको इतना कहना रे 
 पांच साल तक वरना मुश्किल तुम्हें पड़ेगी सहना रे
  इसीलिए यह कहना रे
  इन से बच कर रहना रे
 जब भी आएगा चुनाव
 तुम वोट समझ कर देना रे

मदन मोहन बाहेती घोटू

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