एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

नेता मेरे देश के 

मेरे देश में नेताओं की इतनी सारी किस्मे है 
रत्ती भर भी देशभक्ति पर ना उसमें ना इसमें है 
ये सब के सब जहरीले हैं और तरबतर विष में है 
गिने चुने हैं देशभक्ति का थोड़ा जज्बा जिसमें है 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे 
मस्जिद में अल्ला कहते है और मंदिर में राम हैं 
इनका कोई धरम नहीं है, ना कोई ईमान है 
ये मन के अंदर काले हैं बस उजला परिधान हैं 
इन पर नहीं भरोसा करना ये तो नमक हराम है 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बच कर रहना रे
अरे देश को गिरवी रख दें, ये लालच में अंधे हैं 
लूट खसोट, रिश्वतें लेना ,इनके गोरखधंधे हैं 
इनका मन भी साफ नहीं है और इरादे गंदे हैं 
जहां रहे दम ,वही रहे हम, ये तो बस ऐसे बंदे हैं 
मेरा है यह कहना रे
इनसे बचकर रहना रे 
नहीं वतन के रक्षक है ,ये वतन लूटने वाले हैं 
तुम्हें सफेदी पोते दिखते पर यह कौवे काले हैं 
खुद ही की सेवा करने का भाव हृदय में पाले हैं 
इतने सालों इनकी करतूतें हम देखे भाले हैं 
मेरा है यह कहना रे 
इनसे बचकर रहना रे
एक बार जो राजनीति में जैसे तैसे सेट हुए 
रिश्वत और दलाली खाकर ,इनके मोटे पेट हुए 
कल गरीब थे, कुर्सी पाई, अब ये धन्ना सेठ हुए
बाइसिकल पर चलने वालों के अब अपने जेट हुए 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 नहीं भरोसे काबिल है ये बातें कोरी करते हैं 
 वोट मांगने तुम्हें मनाने हाथाजोड़ी करते हैं 
 कट्टर से कट्टर दुश्मन से भी गठजोड़ी करते है
 कैसे भी सत्ता हथियालें, भागादोड़ी करते हैं 
 मेरा है यह कहना रे
 इनसे बचकर रहना रे 
 आते नजर चुनाव दिनों में ये मेंढक बरसाती है 
 नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को जाती है 
 इनकी जाति धर्म की चाले लोगों को भड़काती है
 ये मतलब के यार हैं केवल,नहीं किसी के साथी हैं 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 मुफ्त मुफ्त की खैरातें दे ये तुमको ललचाएंगे 
 साम दाम और दंड भेद से ,अपना चक्र चलाएंगे 
 कैसे भी दंद फंद करेंगे ,वोट आपका पाएंगे 
 और जो कुर्सी पाएंगे तो भूल तुम्हें यह जाएंगे 
 मेरा है यह कहना रे
 इनसे बचकर रहना रे
 जाए भाड़ में देश तरक्की,पहले अपनी करते हैं
 जनता भूखी रहे पेट ये पहले अपना भरते हैं 
 छुपी बगल में छुरी भले ही मुख से राम सुमरते हैं 
 सत्ता पाकर बने निरंकुश नहीं किसी से डरते हैं 
 मेरा है यह कहना रे 
 इनसे बच कर रहना रे 
 रंगे हुए सियार है ये सब इनसे बचकर रहना रे 
 इनकी मीठी मीठी बातें ,वादों में मत बहना रे 
 बाकी समझदार तो सब है हमको इतना कहना रे 
 पांच साल तक वरना मुश्किल तुम्हें पड़ेगी सहना रे
  इसीलिए यह कहना रे
  इन से बच कर रहना रे
 जब भी आएगा चुनाव
 तुम वोट समझ कर देना रे

मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 4 अक्टूबर 2021

उड़ परिंदे उड़

उड़ परिंदे उड़ 
रोज होने वाली जीवन की
गतिविधियों से जुड़
उड़ परिंदे उड़ 

देख है कितना दिन चढ़ा
सोच रहा क्या पड़ा पड़ा 
 पंख तू अपने फड़फड़ा 
 कदम लक्ष्य की और बढ़ा
  अपना आलस झाड़ कर 
  दाना पानी जुगाड़ कर 
  जीने को ये करना पड़ता 
 और पेट है भरना पड़ता 
  कोई मदद को ना आएगा 
  तू भूखा ही मर जाएगा 
  इसलिए ऊंची उड़ान भर,
  तू पीछे मत मुड़
  उड़ परिंदे उड़

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 3 अक्टूबर 2021

तुम इज्जत करो बुजुर्गों की

कुछ खाने से परहेज नहीं ,कुछ पीने से परहेज नहीं उल्टी-सीधी हरकत करने से भी है कोई गुरेज नहीं करती परहेज बुजुर्गों से, क्यों नई उमर की नई फसल 
जबकि मालूम उन्हें उनकी भी ये ही हालत होनी कल

आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गो की

जो सोचे सदा तुम्हारा हित, हैं खेरख्वाह सोते जगते
जिनके कारण तुम काबिल हो, वो नाकाबिल तुमको लगते 
उनके विचार संकीर्ण नहीं उनकी भी सोच आधुनिक है 
वो है भंडार अनुभव का,और प्यार भरा सर्वाधिक है दिल उनका अब भी है जवान, मत देखो बूढ़ी हुई शकल 
करती परहेज बुजुर्गों से क्यों नई उमर की नई फसल

आवश्यक बहुत हिफाजत है,संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की
 
 यह सच है कि उनमें तुमने अंतर आया एक पीढ़ी का 
पर ऊंचा तुम्हें उठाने उनने, काम किया है सीढ़ी का 
 वह संरक्षक है, शिक्षक है ,वह पूजनीय सन्मान करो 
उनके आशीर्वादो से तुम, निज जीवन का उत्थान करो 
तुम खुश किस्मत हो कि उनका साया है तुम्हारे सर पर 
करती परहेज बुजुर्गों से ,क्यों नई उमर की नई फसल

आवश्यक बहुत हिफाजत है संस्कृति के इन दुर्गों की 
तुम इज्जत करो बुजुर्गों की

मदन मोहन बाहेती घोटू
 क्या होगा
 
जब डॉक्टर ही बिमार पड़े तो फिर मरीज का क्या होगा जब पत्नीजी दिन रात लड़े तो पति गरीब का क्या होगा

 जब मुंह के दांत ही आपस में, हरदम टकराते रहते हैं, तो दो जबड़ों के बीच फंसी, मासूम जीभ का क्या होगा 
 
हमने उनपे दिल लुटा दिया और उनसे मोहब्बत कर बैठे  पर उनने ठुकरा दिया हमेअब इस नाचीज़ का क्या होगा

 वह दूर दूर बैठे, घंटों , जब आंख मटक्का करते हैं किस्मत ने मिला दिया जो तो,मंजर करीब का क्या होगा
 
अरमानों से पाला जिनको, कर रहे तिरस्कृत वह बच्चे बूढ़े होते मां बाप दुखी, उनकी तकलीफ का क्या होगा

कहते हाथों की लकीरों में, किस्मत लिखता ऊपरवाला मेहनत से घिसें लकीरे तो, उनके नसीब का क्या होगा

 महंगाई से तो ना लड़ते,लड़ते कुर्सी खातिर नेता ,
होगा कैसे उन्नत यह देश , इसके भविष्य का क्या होगा

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 30 सितंबर 2021

लकीरे 

चित्रकार के हाथों जब लकीरे उकरती है 
तो कैनवास पर जागृत हो जाती है एक सूरत 
किसी नक्शे की लकीरे,जब दीवारें बन कर उगती है 
तो खड़ी हो जाती है एक इमारत 
लकीरों की ज्यामिति के बल पर ही ,
इंसान चांद तक पहुंच पाता है 
पगडंडी सी लकीरे ,जब प्रगति करती है
 तो राजमार्ग बन जाता है 
 नारी की मांग में सिंदूर की लकीर 
 उसके सुहागन होने की निशानी है 
 परंपरा की लकीरों पर चलकर ही,
 हमें अपनी संस्कृति बचानी है 
 महाजनों के पदचिन्हों की लकीरें 
 हमारी प्रगति के लिए पथ प्रदर्शक है 
 नारी के तन की वक्ररेखाएं 
 उसे बनाती बहुत आकर्षक है 
 परेशानी में आदमी के माथे पर 
 चिंता की लकीरें खिंच जाती है 
 हमारे सलोने चेहरे पर झुर्रियों की लकीरें 
 बढ़ती हुई उम्र का अहसास कराती है 
 हमारी हथेली में लकीरों में 
 भगवान ने लिख कर भेजी हमारी तकदीर है 
 आप माने ना माने मगर यह सच है 
 कि हर बंदा लकीर का फकीर है

मदन मोहन बाहेती घोटू

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-