एक सन्देश-

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सोमवार, 17 अगस्त 2020

दसवां रस

रसीली आँखे हमे लुभाती है
रसीले अधर हमे ललचाते है
हम सब रसिक हृदयवाले है ,
रूप रस में डूबे चले जाते है
नवरसों के जाल में हमने
जिंदगी को उलझा कर रखा है  
पर उस दसवें रस की बात नहीं करते ,
जिसे हम रोज करते चखा है
जिसके बिना जिंदगी फीकी है ,
नीरस है  बेमानी है
वो रस जो आँखों में चमक
 और मुंह में लाता पानी है
वो रस जिसमे मधुरता है ,मिठास है
वो रस जो  हमारी जिंदगी में ख़ास है
वो रस जिसके लिए हमेशा ,
मन में दीवानगी रहती बनी है
जिव्हा को तृप्त करता वह रस चासनी है
ये चासनी वाला रस ,सबको सुहाता है
बेसन की बूंदियों को मोतीचूर बनाता है
टेढ़ीमेढ़ी जलेबी ,तले हुए खमीर का
एक फीका सा जाल है
पर ये रस ,जब उसकी आत्मा में प्रवेश होता है ,
तो कर देता कमाल है
उसे रसभरी ,स्वादिष्ट ,लज़ीज
मनमोहिनी जलेबी बना देता है
हर कोई रीझ जाए ,इतना स्वाद ला देता है
चासनी रुपी यह रस गजब करता है
इमरती में अमृत भरता है
गुलाबी रंग के गोलगोल गुलाबजामुन ,
जब चासनी में अठखेलियां करते नज़र आते है
कितनो के ही मुंह में पानी भर लाते है
फटे हुए दूध की गोलियां, जब इसमें स्नान करती है
तो उनके रूप और स्वाद की गरिमा निखरती है
इस रस को पीकर इतनी इठलाती है
कि स्वाद भरा रसगुल्ला बन जाती है
चमचम कहो या राजभोग
चाहने लगते  है सब लोग
मैदे की तली हुई बाटी ,
जब इस रस में रम जाती है
शहंशाही अंदाज से बालूशाही कहलाती है
खोखले जालीदार घेवर
इस रस को पीकर ,दिखलाने लगते है तेवर
रसभीने मालपुवे ,कमाल के नज़र आते है
सबके मन को ललचाते है
शकर को पानी में गला ,
प्यार की ऊष्मा से बनाई गयी ये चाशनी
होती है स्वाद की धनी
खुशबू और रंग मिलालो शर्बत बन जाती है
गर्मी में गले को तर करती हुई ठंडक लाती है
दुनिया के सारे रस
इस रस के आगे है बेबस
क्योंकि जो तृप्ति और स्वाद इसमें आता है
अन्यत्र कही नहीं पाया जाता है
चासनी महान है
मिष्ठानो की जान है
हे रसीली ,मुंह में पानी लाती हुई सुंदरी ,
तुम्हे रसिक रसप्रेमी 'घोटू' का प्रणाम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
नयी पीढ़ी का पुरानी पीढ़ी को सन्देश

ये दादा दादी भी अजीब चीज होते है
बार बार हमें ये अहसास दिलाते रहते है ,
कि हम उनके पोती या पोते है
जब हम छोटे थे ,उन्होंने हमारे वास्ते ,
ये किया था ,वो किया था दम  भरते है
बार बार हमें अपना अपनापन दिखा कर ,
भावात्मक रूप से 'एक्सप्लॉइट 'करते है
जब कभी मिलते है ,'सेंटीमेंटल 'हो जाते है
हमें छोटा सा बच्चा समझ कर प्यार जताते है
अरे भाई माना कि परिवार में सबसे बुजुर्ग आप है
आप हमारे बाप के भी बाप है
हमारे बचपन में आपने हमें संभाला था ,
खिलाया था ,हमारे नखरे उठाये थे
हमारे लिए आप घोड़े बने थे
और रहते घंटों गोदी में उठाये थे
ठीक है आपने बहुत कुछ किया ,
पर उस समय ये आपका फर्ज बनता था
जो आपने प्रेम से निभाया था
पर हमारी प्यारी प्यारी बचपन की
हरकतों का सुख भी तो आपने ही  उठाया था
ऐसा कोई बड़ा अहसान भी तो नहीं किया था ,
ये तो हर दादा दादी करते है और करते आ रहे है
आप ये क्यों भूल जाते है कि ये हम ही तो है ,
जो आपकी वंशबेल को आगे बढ़ा रहे है
अब हम बढे हो गए है ,समझदार हो गए है
और  हम अपने दिल की मानते है
हमे क्या करना है और क्या नहीं करना है
,ये हम अच्छी तरह जानते है
और आप चाहते है कि हम उसी रास्ते पर चले ,
जिस पर आप चलते आये उम्र भर है
तो ये तो हो नहीं सकता क्योंकि ,आपकी
और हमारी सोच में ,पीढ़ियों का अंतर् है
जमाना कहाँ  से कहाँ पंहुच गया है और
आप वही पुराने ढर्रे पर अटके हुए है
और हमारे आधुनिक विचारों पर ,
हमे कहते कि हम भटके हुए है
आप तो बड़े धार्मिक है और करते रहते है
भगवान कृष्ण की लीलाओं का गुणगान
बचपन में नन्द यशोदा ने उनपर कितना
प्यार लुटाया था ,अपना बेटा मान
पर बड़े होकर जब हो मथुरा गए ,
तो क्या रखा था नन्द यशोदा का ज़रा भी ध्यान
तो ये तो दुनिया की रीत है ,चक्र है ,
ऐसा ही चलता है और चलता ही रहेगा
आज की पीढ़ी का व्यवहार देख ,
पुरानी पीढ़ी का दिल जलता ही रहेगा
तो दादा दादी प्लीज ,जितनी भी जिंदगी बची है ,
अपने ढंग से आराम से बिताओ
हम पर अपने विचार मत थोंपो और
हमे 'सेंटिमेंटली एक्सप्लॉइट 'कर ,
अपना जिया मत जलाओ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 15 अगस्त 2020

फूलबदन पत्नी

कल रात पलंग हिला झट से ,मैं उठ बैठा था घबराया
मुझको कुछ ऐसा लगा कहीं भूकंप नहीं कोई आया
मैंने उठ इधर उधर देखा ,डर मारे हालत पतली थी
मालूम बाद में मुझे हुआ ,ये उनने करवट बदली थी

मैं  बोला लड्डू लाओ जरा ,वो बोली चूहे चाट गए
मै बोला इस घर में चूहे ,मुझको न दिखाई कभी दिए
वो बोली कि घर में ना ,चूहे थे मेरे पेट में दौड़ रहे
थी भूख लगी लड्डू स्वाद ,जिव्हा  पर काबू कहाँ रहे

तुमने मेरे पीछे पड़ पड ,करदी ये खड़ी मुसीबत है
कहते थे घूमो ,हवा खाओ ,तो अच्छी रहती सेहत है
भरने से हवा जिस तरह से ,फ़ुटबाल फूलती गोलमोल
वैसे ही खा खा करके हवा ,फूला है मेरा डीलडौल

घोटू  
 

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

कैसे मनायें पंद्रह अगस्त

कोरोना ने कर दिया त्रस्त
सारा जीवन है अस्तव्यस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो ,
कैसे मनायें पंद्रह अगस्त

यह आजादी का पुण्यपर्व ,
हम कैद मगर बैठें है घर
ले सकते खुलकर सांस नहीं ,
पट्टी है बंधी हुई मुंह पर
प्रतिबंध लगे इतने हम पर ,
हम बुरी तरह हो गए पस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो ,
कैसे मनायें पंद्रह अगस्त

कंधे से कंधा मिला साथ ,
ना चल सकते ,ना करे काम
कम से कम दो गज दूरी की ,
है लगी हुई हम पर लगाम
सब मेलजोल अब बंद हुआ ,
भाईचारा हो गया ध्वस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो
कैसे मनाये पंद्रह अगस्त

ना समारोह ,कोई उत्सव ,
ना खेलकूद की आजादी
हो गए दबा सा ,घुटन भरा ,
जीवन जीने के हम आदी
त्योंहार ,धार्मिक पर्वों पर ,
भी पाबंदी है जबरजस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो ,
कैसे मनायें पंद्रह अगस्त

एक तरफ चीन है उत्तर में ,
झगड़ा करने ,बैठा तैयार
एक तरफ पाक के आतंकी ,
घुसपैठ कर रहे बार बार
दंगों से बाज नहीं आते ,
घर में बैठे फिरकापरस्त
इस परिस्तिथि में तुम्ही कहो ,
कैसे मनाये पंद्रह अगस्त

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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