एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

सोमवार, 15 जून 2020

re: Rank 1st in google with Content Marketing Strategy

hi
Get your business to the next level with a solid Content Marketing strategy
http://www.str8-creative.io/product/content-marketing/


Regards
Charlsie Chavers  












Unsubscribe option is available on the footer of our website
कोरोना की कोपदृष्टी

सारी फुर्ती फुर्र हो गयी आलस ने डाला डेरा
कोरोना की कोपदृष्टी से ,बैठ गया भट्टा  मेरा
सारा बेड़ा गर्क कर दिया ,ऐसा मारा मंदी ने
कामो पर कसदी लगाम,इस लम्बी तालाबंदी ने
लकवे जैसा मार गया कुछ ,जोश गया पानी लेने
मालगाड़ी की चाल चल रही थी जो एक्सप्रेस ट्रेने
कोई सांप सा सूंघ गया है ,ऐसी मन में दहशत है
हुये हौंसले पस्त, बची ना ,थोड़ी सी भी हिम्मत है
हर कोई है खौफ़जदा और सहमा सहमा सा मन में
कभी कल्पना भी ना थी वो, हुआ हादसा जीवन में
बार बार भूकम्प आरहे ,सीमा पर हड़कंप  मचा
किये गुनाह कौनसे हमने ,जिनकी मिलती हमें सजा
पिछले तीन माह में हमको ,क्याक्या ना दिखलाया है
हे प्रभु क्या है ,तेरे मन में ,ये  तेरी  क्या  माया है
तूफानों में ,फसी नाव है ,डगमग डगमग भटक रही
तू ही इसको पार लगा दे ,दिखा रास्ता ,सही सही
या फिर ले अवतार मिटा दे ,कोरोना की हस्ती को
पहले सा खुशहाल बना दे ,नगर ,गाँव हर बस्ती को

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 14 जून 2020

अब तो खैर करो भगवान

कैसा आया यह तूफ़ान
संकट में है सबके प्राण
दया दिखा दो ,दयानिधान
अब तो खैर करो भगवान
सब पर आयी विपद हरो
कोरोना को ध्वंस  करो

हम सब अब भयभीते है
हर पल डर कर जीते है
सांस सांस में दहशत है
आयी ऐसी  आफत है
हर इन्सां है ख़ौफ़ज़दा
सहमा सहमा रहे सदा
कोरोना की  महामारी
दिन दिन फ़ैल रही भारी
सूक्ष्म वाइरस ,अति बलवान
अब तो खैर  करो भगवान
सब पर आयी विपद हरो
कोरोना को ध्वंस  करो

पहले कितनी मस्ती थी
मन में खुशियां बसती थी
हर दिन होता जोश भरा
मन में था संतोष भरा
जब कि काम ही पूजन था
रहता व्यस्त हरेक जन था
अब हम बैठ निठल्ले से
घर घुस रहते  झल्ले से
नहीं जिंदगी ये आसान
अब तो खैर करो भगवान
सब पर आयी विपद हरो
कोरोना को  ध्वंस  करो

कब तक रोवें हम रोना
हो के रहेगा ,जो होना
फिर भी कोरोना का डर
घुस बैठा मन के अंदर
बुरे ख्याल है जब आते
तो हम तड़फ तड़फ जाते
क्या होगा कुछ अगर हुआ
तुमसे मांगें यही दुआ
स्वस्थ रहे सब ,दो वरदान
अब तो खैर करो भगवान
सब पर आयी विपद हरो
कोरोना को ध्वंस करो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
फुरसत का असर

वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी
किसी के हुस्न ,हुनर सादगी और उल्फत की
थोड़ी तारीफ़ कर दें ,इतनी शराफत नहीं थी

काम के बोझ से इतना  अधिक  लदे  रहते ,
वक़्त मिलता न था ,निपटायें कैसे और क्या करें
लॉक डाउन  के कारण , हुई है  ये हालत ,
इतनी फुरसत है ,समझ आता नहीं है  क्या करें
पहले हम काम से थक जाया करते थे इतना,
बड़ी मुश्किल से ही ,आराम थोड़ा  कर पाते
अब तो  आराम करते करते थक गए इतना
काम को आतुर ,पर बाहर निकल नहीं पाते
अपना सब प्यार लुटा देते अपनी बीबी पर
पहले थकते थे इतना ,बचती ही हिम्मत नहीं थी
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की  फुरसत नहीं थी

पहले थाली में जो भी पुरस देती थी बीबी ,
फटाफट खा लिया करते थे ,पेट भरते थे
कितना भी अच्छा और लज्जत भरा हो वो खाना ,
मुंह से तारीफ़ के दो लफ्ज़ ना निकलते थे
और अब बैठ के फुरसत में जो  खाते  खाना ,
स्वाद देते है एक एक ग्रास उनकी थाली के
इतना लज्जत भरा खाना कि खा के जी करता ,
चूम लूं हाथ मैं ,जाकर  पकाने वाली के
मोहब्बत का मसाला होता उनके खाने में ,
प्यार के तड़के बिना ,आती ये लज्जत नहीं थी
वक़्त एक वो भी था हम व्यस्त रहते थे इतना ,
ठीक से सांस भी ले सकने की फुरसत नहीं थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चौदह दिन का क्वारंटाइन

एक केस कोरोना का मोहल्ले में हो गया ,
सब वासिंदों के मन को एक दहशत से भर दिया
बीमार भरती हो गया जा अस्पताल में ,
चौदह दिनों को मोहल्ले को सील कर  दिया
बाहर निकल न सकता कोई ,घर में कैद है ,
सब बेक़सूर लोगों को भी मिल रही सजा ,
बारिश कहीं पे हुई थी ,कीचड कहीं पे है ,
कोविद ने ऐसा जीवन को तब्दील कर दिया

बदल गया है मिजाज थोड़ा मौसम का ,
हमारे जीने का अंदाज नहीं बदला है
धुन में थोड़ा सा बदलाव आ गया लेकिन ,
वो ही साजिंदे है और साज नहीं बदला है
एक मनहूसियत सी फैला दी हवाओं ने ,
एक दहशत सी गयी पसर पूरे मंजर में ,
ऐसे हालातो ने है कैद कर रखा हमको ,
सज़ा मासूम को ,रिवाज नहीं बदला है

घोटू 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-