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बुधवार, 31 जुलाई 2019

यह युग रिकमंडेशन का है

यह युग रिकमंडेशन का है
पुश ,रेकमंडेशन या जरिया ,चांदी  के बल पर चलते है
रिश्तेदारी का भोजन कर ,पैसों के साये पलते है
मख्खन की मालिश होती है ,ये चमकीले चमक रहे है
दौलत के बल दाल दल रहे ,दिन दिन दूने दमक रहे है
दुनिया के चप्पे चप्पे में , चारों  और नज़र आते है
पुश पाकर पापी से पापी ,बेतरणी को तर जाते है
जर के बल पर जरिया होता ,पर्स देख कर पुश मिलता है
है प्रचंड रिकमंड ,फंड गर ,नहीं काम कैसे चलता है
रिकमंडेशन ही फैशन है,आज जमाना फैशन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
भारत की प्रगति में देखो ,कितना बड़ा साथ है इसका
बेकारी के उन्मूलन में ,कितना बड़ा हाथ है  इसका  
जितने थे बेकार भतीजे ,भाई मामा चाचा बेटे
रिकमंडेशन की महिमा है ,आज सभी कुर्सी पर बैठे
यह जरिये का ही जादू है ,आज धूल में फूल खिले है
उनके साले के साले ने ,डाली कितनी दाल मिलें है
उस सफ़ेद बंगले के अंदर ,छुपी हुई काली कमाई है
नेता ठेकेदार आफिसर ,चोर चोर सब ,भाई भाई है
क्या क्या होता है मत पूछो ,अजब ढंग यह जीवन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
लोग आदमी नहीं देखते ,आमदनी देखा करते है
बटुवे के भारीपन को लख ,दाव  बहुत फेंका करते है
अब बस मख्खन बाजी चलती ,रिश्वत आम रिवाज हो गया
पत्रपुष्प जो अगर चढ़ा तो ,पुश भी पाया ,पास हो गया
अब शादी से रिश्तेदारी तक रिकमंडेशन चलती है
बिना शिफारिश की चिट्ठी के ,दाल किसी की ना गलती है
चपरासी रिकमंड न करदे ,तो साहब ना मिल सकते है
तुम्ही बताओ गर्मी के बिन ,कच्चे आम कभी पकते है
रिश्वत का बाजार गरम है ,गूँज रहा उसका डंका है
ये युग रिकमंडेशन का है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 दीपक अभिनन्दन

जो जल कर भी जगमग करता ,जन जीवन के आंगन को
भू के ऐसे एक दीप  पर ,सौ सौ चाँद निछावर है

थका बटोही ठहरे ,उसको चैन मिले
रात हुई ,चकवा चकवी के नैन मिले
बया घोसले में बच्चों के साथ रहे
जहाँ हमेशा सरगम की बरसात रहे
कलरव गूंजे,गए विहंग भी नहीं थके
एक डाल पर ,काग कोकिला बैठ सके
जो पत्थर के उत्तर में भी ,फल दे मीठे रसवाले ,
भू का ऐसा एक वृक्ष ,सौ कल्पतरु से बढ़ कर है
भू के ऐसे एक दीप पर सौ सौ चाँद निछावर है

माना नभ में रोज दिवाली होती है
पर निर्धन की कुटिया काली होती है
जिसके मन में घोर अँधेरा छाया है
वहीँ प्रेम का दीपक भी मुस्काया है  
कड़वा रहता तेल ,कांति पर देता है
घुट घुट जलता हुआ कांति पर देता है
जो तूफानों को सह कर भी ,मुस्काता जलता जाता ,
एक किरण ऐसे दीपक की ,रवि रश्मि से सुन्दर है
भू के ऐसे एक दीप पर ,सौ सौ चाँद  निछावर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
एकता गीत

हाथ में ,हाथ दे
साथ साथ हम चलें
साथ साथ रे ,साथ साथ रे
एक साथ ,साथ साथ ,साथ साथ रे
वाधा से झुके नहीं
हम कभी रुके नहीं
मुश्किलों से खेलते
आँधियों को झेलते
दुःख को भी लगा गले
हम चले,बढे चले
एक लक्ष्य है ,एक साध रे
एक साथ साथ साथ साथ साथ रे
दिल में आग है
प्रेम राग है
जीत के लिए
हम सदा जिये
जब तलक है दम में दम
कदम कदम मिला के हम
बढ़ते जाएंगे ,साथ साथ रे
एक साथ साथ साथ साथ साथ रे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पश्चाताप

मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से

थी बीस बरस की उमर अभी ,मूंछों की रेख न उघड़ी थी
शैशव का साथ  छोड़ मैंने ,यौवन की  ऊँगली पकड़ी थी
पर प्रथम चरण में यौवन के ,मैं बुरी तरह से भटक गया
जो आसमान से टपका तो आकर खजूर में लटक गया
जाने क्यों मेरी शादी का ,एक  ऑफर मिला रावले  से
तगड़े दहेज़ की बात सुनी ,घर वाले  हुए  बावले  से
मुझ से बिन बोले ,बिन पूछे ,मेरी शादी करदी पक्की
और मैं कुछ बोला  तो बोले ,राजा बेटा ,तू है लक्की
सुनते है बहू साहजी की ,प्यारी इकलौती बेटी है  
आ करे निहाल ,हमें ,उसके ,पैरों में लक्ष्मी बैठी है
उनके मुनीमजी कहते थे ,वो तुझको फॉरेन  भेजेंगे
यदि नयी नहीं सेकंड हैंड मोटर दहेज़ में वो देंगे
अच्छा बंगला है ,इज्जत है ,दो दो अंग्रेजी कारे है
तेरी तक़दीर तेज  बेटा ,अब तो बस वारे न्यारे है
मैं बोला वो सब ठीक मगर मुझसे भी तो पुछवा लेते
लड़की न दिखाई ,कम से कम ,फोटो ही तो दिखला देते
'फोटो को, क्या चाटेगा ,वो सुन्दर भोली भाली  है
है सभी बात में अच्छी ,बस कुछ लम्बी है कुछ काली है
लम्बी तो तेरी माँ भी है और काले कृष्ण कन्हैया थे
हमको क्या जब वो दहेज़ में क्रीम पाउडर सब देंगे
है बूढ़े ससुर और बेटी उनकी इकलौती   वारिस है
अब ना मत करो लाल मेरे ,बस मेरी यही गुजारिश है
फादर को न बहू लेकिन ,था प्यार दहेजी पेटी  से
मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से

इतनी चिकनी चुपड़ी बातें सुन मेरा मन भी डोल गया
फॉरेन जाने के चक्कर में ,मैं ख़ुशी ख़ुशी हाँ बोल गया
फिर महीने भर के अंदर ही गूंजी शादी की शहनाई
पहने सुधारवादी चोगा ,सारी रस्मो की भरपाई
शादी थी हुई बिना परदे  ,पर वह परदा ना तो क्या था
उनके मुख पर परदा न मगर मेरी आँखों पर परदा था
वह झीना झीना परदा था ,मोटे  दहेज़ और मोटर का
फॉरेन जाने की आशा का ,दौलत पाने के चक्कर का
होगयी खैर शादी मेरी ,लेकिन दहेज़ में क्या पाया
नखरे,ताने देनेवाली ,है धन्य प्रभु तेरी  माया
मिल गया एक हेलिकॉफ्टर ,जो पग जमीन पर नहीं रखे
बीबी न रेडियो एक मिला ,जो दिन भर बोले ,नहीं थके
कार दहेजी नहीं मिली ,लेकिन सरकार मिली मुझको
पहले थी आँखें चार और फिर आँखे चार मिली मुझको
यार दोस्त ये कहते है बीबी तो बड़ी हसीन मिली
जो स्वयं रेडियो ,हेलिकॉफ्टर ,ऐसी एक मशीन मिली
एक ऐसी मैना मिली मुझे जो मैका मैका जाती है
ससुराल पिंजरा लगता है ,अम्मा की याद सताती है
चूल्हा फूंके ,आंसू आवे ,रोटी सेके तो हाथ जले
क्या खूब मिली बीबी मुझको ये पूर्व जनम के कर्म फले
खोदा पहाड़ निकली चुहिया ,अपनी करनी पर पछताए
अब राम भला करदे मेरा ,अबके से तो गंगा नहाये
जला दूध का ,रहूँ छाछ से ,एक हाथ की  छेटी  से
मैं  शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(यह रचना १९६२ में लिखी गयी थी )

मंगलवार, 30 जुलाई 2019

ओ डैडी !

मैं तो बडा निराश हो गया ओ डैडी
अब दहेज़ बिल पास हो गया ओ डैडी

कितना दुखी है आफत का मारा मै
बीस बरस की उमर हुई पर कंवारा मैं
कितने ऑफर आये कितने भाव बढे
लेकिन तुम तो अपनी जिद पर रहे अड़े
एक लाख से कम दहेज़ के ऑफर पर ,
दिया नहीं कुछ ध्यान आपने ओ डैडी
किया न मम  कल्याण आपने ओ डैडी

अब तक चेक समझ कर मुझको बैठे थे
चढ़ते शंकर जी को, मावे के पेठे थे
ऐसी बहू दिला बेटे को ए शंकर
भैंस सरीखी देवे दूध बाल्टी भर
दूध दहेजी कम दे लेकिन सुन्दर हो ,
मै तो उजली गाय मांगता ओ डैडी
यही आपसे राय मांगता ओ डैडी

मैं अब भी कहता हूँ मेरा ख्याल करो
मेरी शादी ओ फादर अगले साल करो
जितना मिले दहेज़ वही लो ,मत अकड़ो
भाग रहा है भूत लंगोटी ही पकड़ो
अगर फंसे जो कहीं दहेजी चक्कर में ,
डर लगता बहुत बड़े घर से अब ओ डैडी
मित्र हुए मेरे मैरिड सब ओ डैडी

घोटू 

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