दूर की सोचो
भले तितलियाँ आये ,फुदके हजारों ,
भले सैकड़ों ही भ्रमर गुनगुनाये
मधुमख्खियों को न दो पर इजाजत ,
कभी भूल कर भी ,चमन में वो आये
ये आकर के चूसेगी पुष्पों के रस को ,
दरख्तों की डालों पर छत्ते बनेगें
मज़ा हम महक का उठा ना सकेगें,
अगर शहद का हम जो लालच करेंगे
इन्ही छत्तों से मोम तुमको मिलेगा ,
इसी मोम से बन शमा जब जलेगी
कितने ही परवाने ,जल जल मरेंगे ,
बरबादियों का सबब ये बनेगी
इसी वास्ते आज बेहतर यही है ,
कोई मधुमख्खी यहाँ घुस न पाये
हमेशा महकता रहे ये गुलिश्तां ,
सभी की बुरी हम नज़र से बचाये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'