नया बरस -पुरानी बातें
इस नए बरस की बस ,इतनी सी कहानी है
कैलेंडर नया लटका ,पर कील पुरानी है
महीने है वो ही बारह,लेकिन कुछ वारों ने ,
कुछ तारीखों के संग ,की छेड़ा खानी है
सर्दी में ठिठुरना है,ट्रेफिक में फंसना है ,
होटल है बड़ी मंहगी ,बस जेब कटानी है
दो पेग चढ़ा कर के ,दो पल मस्ती कर लो,
सर भारी सुबह होगा ,'एनासिन' खानी है
बीबी से नज़र बचा ,खाया गाजर हलवा
लग गया पता उसको अब डाट भी खानी है
कितने ही 'रिसोल्यूशन 'नव वर्ष में तुम कर लो,
संकल्पो की बातें ,दो दिन में भुलानी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
वाह. बहुत खूब.
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