एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 23 जुलाई 2016

अब तक यह जीवन बीत गया

अब तक यह जीवन बीत गया

मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे को कहते सुनते ,अब तक यह जीवन बीत  गया
घर में यदि होते कुछ बरतन ,तो आपस में टकराते  पर ,
उनके टकराने से आता  है  जीवन में  संगीत  नया
सोचो यदि तुम चुपचाप रहो ,और मैं भी दिन भर चुप बैठूं ,
हम दोनों गुमसुम मौन रहें,तो अपनी क्या हालत होगी
इसके विपरीत लड़ेंगे हम,और एक दूजे पर चीखेंगे ,
आनन्द पड़ोसी लेंगे ,घर में रोज महाभारत  होगी
इससे तो ज्यादा बेहतर है ,जब तुम बोलो तो मैं सुनलूँ ,
मै कुछ बोलूं तो तुम सुन लो,तुम जीती,मैं भी जीत गया 
 मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो ,
इक दूजे को कहते ,सुनते,अब तक ये जीवन बीत गया
मियां बीबी में कहा सुनी, और छोटे मोटे ये झगड़े ,
जब चलते है तो वैवाहिक ,जीवन का आनंद आता है
ये रूठा रूठी ,मान मनोवल, प्यार बढ़ाया करते है ,
झगड़े के बाद समर्पण का ,सुख भी दूना हो जाता है
मैं कभी मान लूँ निज गलती,तुम कभी मानलो निज गलती,
तब ही घर में गूंजा करता ,संगीत,मिलन का गीत नया
मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे को कहते सुनते, अब तक ये जीवन बीत गया
बीबी यदि जो जिद नहीं करे ,तो फिर वह बीबी ही कैसी  ,
तुम भाव खाव ,फिर मान जाव,इसमें तुम्हारा पतिपन है
तुम ना ना कर उसकी मानो,वो ना कह माने  तुम्हारी ,
इस नोकझोंक में ख़ुशी ख़ुशी ,कट जाता सारा जीवन है
तुम कभी समर्पण कर देते ,वो कभी समर्पण कर देती,
सुख मिलता ,एक दूजे में हम,जब खोजा करते मीत नया
मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे की कहते सुनते ,अब तक ये जीवन बीत गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक

        किन्तु  सठियाया नहीं हूँ आजतक

पार कर ली उम्र मैंने साठ  की,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
पहले जैसी ताजगी तो ना रही ,किन्तु मुरझाया नहीं हूँ आजतक 
वृद्धि अनुभव की हुई है इसलिए , लोग कहते हो गया मै वृद्ध हूँ
निभाने कर्तव्य अपना आज भी ,पहले जैसा पूर्ण ,मै कटिबद्ध हूँ
बड़ी कंकरीली डगर थी उम्र की ,राह में ठोकर लगी,कांटे मिले
कभी कोई ने दुलारा प्यार से ,तो किसी की डाट और चांटे मिले
झेलता झंझावतें तूफ़ान की ,नाव अपनी मगर मै खेता गया
 कभी धारा के चला विपरीत मै ,कभी धारा साथ मैं बहता गया
कई भंवरों में फंसा ,निकला मगर ,डूब मै पाया नहीं हूँ आजतक
पार करली उम्र मैंने साठ  की ,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
सौंप दी पतवार तुमको इसलिए ,क्योंकि तुममे लगन थी,उत्साह था
 देख कर जज्बा तुम्हारे जोश का ,करके कुछ दिखलानेवाली चाह का
इसका मतलब कदाचित भी ये नहीं,हो गए है  पस्त मेरे  हौंसले
उतर सकता आज भी मैदान में ,वही फुर्ती और पुराना जोश ले
पोटली ,यह पुरानी तो है मगर ,अनुभव के मोतियों से है भरी
नहीं मन में मैल या दुर्भाव है ,इसलिए ही बात करता हूँ खरी
पीढ़ियों के सोच की यह भिन्नता,मैं समझ पाया नहीं हूँ आजतक
पार कर ली उम्र मैंने साठ की ,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
प्रगति तुमने की,करो ,करते रहो ,प्रगति का पोषक हमेशा मैं रहा
संस्कृति ,संस्कार से भटके अगर,उसका आलोचक हमेशा मैं  रहा
तुम्हारी हर सफलता में खुश हुआ ,तुम्हारी पीड़ा लगी दुखदायिनी
किसी ने टेढ़ी नज़र तुमपर करी ,उस तरफ थी भृकुटियां मेरी तनी
कौन माली ,भला खुश होगा नहीं ,देख फलते ,फूलते उद्यान को
भूलना लेकिन न तुमको चाहये ,बागवाँ के किये उस अहसान को
है बड़ी मजबूत इस तरु की जड़ें,तभी हिल पाया नहीं हूँ आजतक
पार कर ली उम्र मैंने साठ की,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                   

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

आओ ,जीमें

आओ ,जीमें
तुम भी खाओ ,मैं भी खाऊं ,लेकिन धीमे धीमे
आओ,जीमें
बहुत खिलाई है लोगों को ,हमने हलवा पूरी
पर क्या करते ,आवष्यक था  ,थी थोड़ी मजबूरी 
अब वसूल करना सब खरचा ,हमको हुआ जरूरी
बीबी बच्चों की हसरत  भी करनी  हमको  पूरी 
अब तो हम इस पोजिशन में है ,पाँचों ऊँगली घी में
आओ,जीमें
खानपान में ,बड़ी चौकसी ,लेकिन रखनी होगी
खाने की हरचीज संभल  कर,हमको चखनी होगी
जल्दी जल्दी अगर खा लिया ,पेट  बिगड़  सकता  है
ज्यादा गरम खा लिया तो फिर ,मुंह भी जल सकता है
तीखी नज़रें रखे है हम पर  ,विजिलेंस की टीमें
आओ जीमें
जब तक खानपान आसन पर ,बैठें ,मौज उडाले
ख्याल रखें ,उतना ही खाएं,जितना सहज पचाले
पता नहीं कब ,नज़र किसी की ,लगे,जाय कट पत्ता
इसीलिये हम ,मजे उठाले,जब तक हाथ में  सत्ता
इतना जमा करें कि  जीवन ,कट जाए मस्ती में
आओ ,जीमें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पति के जन्मदिवस पर

पति के जन्मदिवस पर

अगर आज का दिन ना होता ,
जन्म आपका ना हो पाता
तो फिर कोई पुरुष दूसरा ,
शायद मेरा पति कहलाता
हो सकता है तुम सा हंसमुख ,
और रंगीन मिजाज न होता
अपनी पत्नी को खुश रखने ,
का तुम सा अंदाज न होता
हो सकता है नहीं नाचता ,
तुम सा ,एक इशारे भर पर
और तुम सा शायद ना रखता ,
मुझे बिठा कर ,अपने सर पर
तो फिर थोड़े से ही दिन में ,
जब चल जाता मेरा जादू
अपनी सारी भूल हेकड़ी ,
वो आ जाता मेरे काबू
'यस सर ' जो सुनता दफ्तर में ,
पर घर पर 'यस मेडम'कहता
छोटे मोटे हर कामो में ,
मुझ पर सदा आश्रित  रहता
तुम जैसे आज्ञाकारी पति तो,
अब मिलते ही है मुश्किल से
जो पत्नी की ख़ुशी देख कर,
खुश होते है सच्चे दिल से
तुम कितने प्यारे ,भोले हो ,
मेरी मन माला के मोती
वो अच्छा भी हो सकता था ,
लेकिन तुमसी बात न होती
हो सकता है कि वह थोड़ा ,
चालू और उच्श्रंखल  होता
ताक झाँक कर दिल बहलाता ,
 मन का थोड़ा चंचल होता
तो मै ऐसी नाथ ,नाथती ,
कर ना पाता ,बात फालतू
और धीरे धीरे बन जाता ,
तुम्हारी ही तरह पालतू
निज कमाई ,सारी की सारी ,
सीधा मुझको ला पकड़ाता
मेरा सच्चा अर्द्धांगी बन ,
काम काज में हाथ  बटाता
तुम जैसा सीधा ,शरीफ ना,
यदि वो टेढ़ा मेढ़ा  होता
तो फिर त्रियाचरित दिखला कर,
मैंने उसे उधेड़ा  होता
तुम सा भोलाभाला  ना हो ,
कोई सिरफिरा जो मिल जाता
तो महीने दो महीने में ही ,
दे तलाक ,मै करती टा टा
ज्यादा ही बिगड़ैल किसम का,
यदि मिल जाता जीवनसाथी
तो दहेज़ के उत्पीड़न का ,
ठोक मुकदमा,जेल भिजाती
उसके साथ ,सात फेरे खा,
मै जीवनभर उसे घुमाती
शादी से तौबा कर लेता ,
उसको ऐसा पाठ पढ़ाती
 मेरा कहना नहीं मानता ,
सुख से सांस नहीं ले पाता
यदि जो कोई पुरुष दूसरा ,
यदि जो मेरा पति बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नारी ,तेरे रूप अनेक

नारी ,तेरे रूप अनेक

सुबह सुबह भ्रमण और व्यायाम
फिर योग क्रियाएं और प्राणायाम
दुबली पतली,अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत
 चिरयौवना , नारी तेरे रूप अनेक
एक हाथ में बच्चे की ऊँगली थामे
दूसरे हाथ से देती उसे कुछ खाने
बस पकड़ाने भागती,टांग स्कूल का बेग
ममतामयी माँ,नारी तेरे रूप अनेक
घर की सफाई और सुन्दर सजाना
स्वादिष्ट नाश्ता और भोजन बनाना
सबको खिलाना और करना घर की देख रेख
कुशल गृहणी ,नारी तेरे रूप अनेक
बूढ़े सास ससुर की सेवा और सम्भाल
घर के  सदस्यों का रखना पूरा ख्याल 
 मृदुल व्यवहार करती हुई,कुशल  और नेक
आदर्श बहू ,नारी तेरे रूप  अनेक
हर समस्या में पति को सही सलाह देना
परिवार हित में ,सदा उचित निर्णय लेना
तन मन से  पूर्ण समर्पण  ,निष्ठां  और विवेक
सच्ची सलाहकार ,नारी तेरे रूप अनेक
रात को सजीधजी ,रम्भा सी रमणी
पति की परमप्रिया ,प्रेममयी पत्नी
पति पर अपना प्यार लुटाती हुई विशेष
अभिसारिका,नारी तेरे रूप अनेक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-