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मंगलवार, 26 जनवरी 2016

माँ की पीड़ा

                      माँ की पीड़ा              

बेटे ,जब तू रहा कोख में ,बहुत सताया करता था
मुझको अच्छा लगता था जब लात चलाया करता था
और बाद में ,लेट पालने में,जब भरता  किलकारी
जैसे साईकिल चला रहा ,लगती थी ये हरकत प्यारी
या फिर मेरी गोदी में चढ़,जब जिद्दी पर आता था
बहुत मचलता था ,रह रह कर,मुझ पर लात चलाता था
सोते सोते ,लात चलाने की, भी  थी ,आदत तेरी
बार बार तू ,हटा रजाई , कर देता  आफत   मेरी
तेरी बाल सुलभ क्रीड़ाएं, बहुत मोहती थी जो मन
नहीं पता था ,एक दिन ऐसे ,उभरेगी वो आफत बन
कभी न सोचा ,लात मारना ,ऐसा   रंग  दिखायेगा
लात मार कर ,अपने घर से ,एक दिन मुझे भगायेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



अपहरण

                           अपहरण

मैंने थाने में लिखाई  ये रपट , चार  दिन से  हुआ सूरज  लापता
दरोगा ने मुझसे ये दरयाफ्त की ,अकेला या गया कुछ लेकर, बता
मैंने बोला' क्या बताऊँ तभी से ,'धूप 'भी गायब है,मन में क्लेश है
दरोगा बोले,नहीं गुमशुदाई ,अपहरण का ये तो लगता  केस  है
अच्छा ये बतला ,उमर क्या धूप की,कहीं नाबालिग तो ना थी छोकरी
कब से दोनों का था चक्कर चल रहा ,और कहाँ था ,सूर्य करता  नौकरी
फिरौती का कहीं तेरे पास तो,कहीं से कुछ फोन तो  आया  नहीं
मैंने बोला ,नहीं,पर उस रोज से ,नज़र मुझको आ रही 'छाया'कहीं
दरोगा जी बोले 'तू मत कर फिकर ,झेल दो दो लड़कियां ना पायेगा
एक मुश्किल से संभलती ,दो के संग,परेशां हो लौट खुद ही आएगा '

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 20 जनवरी 2016

भुनना

        भुनना

हमने थोड़ी करी तरक्की ,वो जल भुन  कर खाक हो गए
थोड़े नरम ,  स्वाद हो जाते ,पर वो तो गुस्ताख़ हो  गए
कड़क अन्न का एक एक दाना ,भुनने पर हो जाय मुलायम
स्वाद मूंगफली में आ जाता ,उसे भून जब  खाते  है हम
मक्की दाने सख्त बहुत है,ऐसे  ना खाए  जा सकते
बड़े प्रेम से सब खाते जब ,भुन  कर'पोपकोर्न' वो  बनते
जब भी आती नयी फसल है ,उसे भून कर हम है खाते
चाहे लोढ़ी हो या होली ,खुश  होकर त्योंहार  मनाते
होता नोट एक कागज़ का ,मगर भुनाया जब जाता है
चमकीले और खनखन करते ,सिक्कों की चिल्लर लाता है
जिनकी होती बड़ी पहुँच है ,उसे भुनाया  वो करते है
लोग भुनाते  रिश्तेदारी  ,मौज  उड़ाया  वो करते है
भुनना ,इतना सरल नहीं है, अग्नि में सेकें जाना  है
लेकिन भुनी चीज खाने का ,हर कोई ही दीवाना  है
गली गली में मक्की भुट्टे ,गर्म और भुने मिल जाते है
शकरकंदियां , भुनी आग में ,बड़े शौक से सब खाते  है    
ना तो तैल ,नहीं चिकनाई,अन्न आग में जब भुनता है
होता 'क्लोस्ट्राल फ्री' है,और स्वाद  दूना  लगता  है
लइया ,खील ,भुनो चावल से ,लक्ष्मी पर परसाद चढ़ाओ
है प्रसाद बजरंगबली का ,भुने चने ,गुड के संग  खाओ
औरों की तुम देख तरक्की ,बंद करो अब जलना ,भुनना
आगे बढ़ने का उनसे तुम,सीखो  सही रास्ता  चुनना
अगर आग में अनुभवों की ,भुन कर तुम सके जाओगे
बदलेगा व्यक्तित्व तुम्हारा ,सबके मन को तुम भाओगे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चने से बनो

           चने से बनो

चने को चबाना ,बड़ा यूं तो  मुश्किल,
मगर भून लो ,स्वाद आये  करारा
चने को दलों तो ,बने दाल  प्यारी ,
अगर पीसो ,बनता है ,बेसन निराला 
ये  बेसन कि जिससे ,बनाते पकोड़े,
कभी भुजिया बनती या आलूबड़े है 
कभी ढोकला है ,कभी खांडवी है ,
कभी गांठिया है ,कभी फाफडे है
बनाते है कितने ही पकवान इससे ,
कभी बेसन चक्की,कभी बूंदी प्यारी ,
उसी से ही बनते है बेसन के लड्डू ,
कितनी  ही प्यारी ,मिठाई निराली
अगर बनना है कुछ ,चने से बने हम,
हमें सिकना होगा या पिसना पड़ेगा
तभी बन सकेंगे ,मिठाई से प्यारे ,
तभी प्यार लोगों का ,हमसे  बढ़ेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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