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बुधवार, 20 जनवरी 2016

जो माँ का प्यार ना मिलता

         जो माँ का प्यार ना मिलता

जो माँ  का प्यार ना मिलता ,तो हम जो हैं ,वो ना होते
पिता की डाट ना  पाते ,तो हम जो हैं ,वो ना होते
हमें  माँ ने  ही पैरों  पर,खड़े होना सिखाया है
हमारी थाम कर ऊँगली ,सही रस्ता दिखाया है
आये जब आँख में आंसूं ,तो आँचल से  सुखाया है
सोई गीले में खुद,सूखे में ,पर हमको सुलाया  है
जरा सा हम टसकते थे ,तो वो बेचैन  होती  थी
हमें तकलीफ होती थी ,दुखी होकर वो रोती  थी
पिलाया दूध छाती से ,हमें पाला ,किया पोषण
रखा चिपटा के सीने से ,हमारा ख्याल रख हर क्षण
पुष्प ममता का ना खिलता ,तो हम जो है ,वो ना होते
जो माँ का प्यार ना मिलता ,तो हम जो है ,वो ना होते 
 पिताजी प्यार करते पर ,अलग अंदाज था उनका
डरा करते से हम उनसे और चलता  राज था उनका
वो बाहर सख्त नारियल थे,मगर अंदर मुलायम थे
बड़ा था संतुलित जीवन ,महकते जैसे चन्दन थे
उन्ही का आचरण ,व्यवहार ,हरदम कुछ सिखाता था
उन्ही का सख्त अनुशासन ,भटकने से बचाता  था
उन्होंने धर्म ,धीरज की ,हमें शिक्षा  सिखाई  थी
लक्ष्य पाने को जीवन का ,राह उनने  बताई  थी
अगर वो पाठ ना पाते ,तो हम जो है ,वो ना होते
पिता की डाट ना पाते ,तो हम जो है ,वो ना होते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'             
             
 


वाह वाही

         वाह वाही

मैंने कुछ अर्ज किया ,तुमने वाह वाह किया ,
तबज्जो जब कि दी बिलकुल भी नहीं गैरों ने
बताना सच कि तूने दोस्ती निभाई सिरफ़ , 
या असल में भी था , दम कोई  मेरे  शेरों  में
ये तेरी तारीफे ,दुश्मन मेरी बड़ी निकली ,
तेरी वाह वाही ने  , रख्खा मुझे  अंधेरों में
पता लगा ये ,निकल आया जब मैं  महफ़िल से ,
मुशायरा लूट लिया ,और ही  लुटेरों ने

घोटू 

नाम कम्बल होता है

           नाम कम्बल होता है

लड़ाई लड़ता है सैनिक,जान पर खेल कर अपनी ,
मगर जब जीत होती है ,नाम 'जनरल 'का होता है
रोज खटता है ,मेहनत कर ,कमाई मर्द करता है ,
मगर घर को चलाने में ,नाम औरत  का होता  है
सिरफ़ ये रोकते है ,गर्मी बाहर जा नहीं सकती ,
मगर इस पहरे दारी का ,उठाते फायदा पूरा ,
हमारे जिस्म की गर्मी ,हमीं को गर्म  रखती है,
मगर सरदी बचाने में  ,नाम कम्बल का होता है 

     मदन मोहन बाहेती 'घोटू'       

शिकवे -शिकायत

           शिकवे -शिकायत

मैंने ऐसा क्या कहा और तुमने ऐसा क्यूँ कहा ,
               एक दूजे को यूं ही , इल्जाम हम देते  रहे
इसी शिकवे शिकायत में उमर सारी काट दी ,
             पीठ खुद की थपथपा ,इनाम हम  देते  रहे
देखते एक दूजे की जो खूबियां,अच्छाइयां,
          दो घड़ी मिल बैठते और बात करते प्यार की
होता होली  मिलन हर दिन,दिवाली हर रात को,
         जिंदगी कटती हमारी , रोज  ही  त्योंहार  सी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   
            

शनिवार, 16 जनवरी 2016

देशी खाना

       देशी खाना

रोज रोज तू  नूडल खाये,बर्गर खाये, पीज़ा
जंक फ़ूड पर आज देश का ,बच्चा बच्चा रीझा
        कभी खा देशी खाना लाल
       बढ़ाये सेहत ,स्वाद  कमाल
सोने सी मक्का की रोटी ,सौंधा सरसों का साग
गुड के संग तू खा ले बेटा ,जाग जाएंगे भाग
        साथ में तड़के वाली दाल
         बढ़ाये सेहत ,स्वाद कमाल
मीठा गुड की गरम लापसी, डाल ढेर सा  घी
एक बार खा,बार बार फिर ,ललचायेगा जी
        साथ में गरम कढ़ी तू डाल
         बढ़ाये सेहत, स्वाद  कमाल
सोंधी सोंधी खुशबू वाली ,प्यारी बाटी ,दाल
और साथ में चाख चूरमो ,घी से माला माल
         साथ में हो चटनी की झाल
          बढ़ाये सेहत स्वाद  कमाल
महाराष्ट्र का झुनका भाकर ,दक्षिण, इडली,डोसा 
 बहुत भायेगा तुझे बिहारी, प्यारा  लिट्टी चोखा
         और फिर रसगुल्ला, बंगाल
           बढ़ाये सेहत ,स्वाद कमाल
उबले ताजे गन्ना रस में ,चावल वाली खीर
सबका मन सदियों से मोहे,क्या रांझा ,क्या हीर
         स्वाद की इसके नहीं मिसाल
          बढाए सेहत, स्वाद  कमाल
नयी उमर की नयी फसल तुम,हम है बीते कल के
देख आज भी फौलादी है,हम भी उसी  नसल के
          हवा पश्चिम की,तुम  बेहाल
           बदल लेगा तू अपनी चाल 
          कभी खा देशी खाना  लाल 
           बढ़ाये सेहत ,स्वाद  कमाल  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
             

 
एक बार खा ,याद आएगी ,तुझे देश की मिट्टी
              
                 

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