आरक्षण के पौधे
वर्ण व्यवस्था के चक्कर में ,बरसों तलक गये रौंदे है
हम आरक्षण के पौधे है
अब तक दबे धरा के अंदर , कहलाते कंद मूल रहे हम
खाद मिला आरक्षण जब से ,तब से ही फल फूल रहे हम
फ़ैल गई जब जड़ें हमारी, तो क्यों कोई हमे रौंदे है
हम आरक्षण के पौधे है
सत्तर प्रतिशत ,सरकारी पद, परअब तो अपना कब्जा है
कौन उखाड़ सकेगा हमको,किसमे अब इतना जज्बा है
दलितों के उत्थान हेतु ,हम किये गए समझौते है
हम आरक्षण के पौधे है
कुछ मांग समय की ऐसी थी ,दलितों को उन्हें उठाना था
राजनीति के भवसागर में अपनी नाव चलाना था
वोटों के खातिर चुनाव में ,किये सियासी सौदे है
हम आरक्षण के पौधे है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
वर्ण व्यवस्था के चक्कर में ,बरसों तलक गये रौंदे है
हम आरक्षण के पौधे है
अब तक दबे धरा के अंदर , कहलाते कंद मूल रहे हम
खाद मिला आरक्षण जब से ,तब से ही फल फूल रहे हम
फ़ैल गई जब जड़ें हमारी, तो क्यों कोई हमे रौंदे है
हम आरक्षण के पौधे है
सत्तर प्रतिशत ,सरकारी पद, परअब तो अपना कब्जा है
कौन उखाड़ सकेगा हमको,किसमे अब इतना जज्बा है
दलितों के उत्थान हेतु ,हम किये गए समझौते है
हम आरक्षण के पौधे है
कुछ मांग समय की ऐसी थी ,दलितों को उन्हें उठाना था
राजनीति के भवसागर में अपनी नाव चलाना था
वोटों के खातिर चुनाव में ,किये सियासी सौदे है
हम आरक्षण के पौधे है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'