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सोमवार, 14 जुलाई 2014

पुराना माल -तीन चतुष्पद

           पुराना माल -तीन चतुष्पद
                              १
पुराने माल है लेकिन,ढंग से रंग रोगन कर ,
         किया 'मेन्टेन 'है खुद को ,चमकते ,साफ़ लगते है
कमी जो भी है अपनी ,हम,उसे ऐसा छिपाते है,
          लोग ये कहते है तंदरुस्त कितने   आप लगते है
हरेक अंग आजकल नकली ,हमें बाज़ार में मिलता ,
           आप  इम्प्लांट करवा लो,लगालो बाल भी नकली , 
विटामिन और ताक़त की ,गोलियां खूब बिकती है,
           जवाँ खुद ना ,जवानो के ,मगर हम बाप  लगते  है
                          २    
तीन ब्लेडों के रेज़र से,सफाई गाल की करते ,
           लगा कर 'फेयर एंड लवली'रूप अपना निखारा  है
रँगे  है बाल हमने 'लोरियल'की हेयर डाई से,
            कराया 'फेसियल' सेलून' में ,खुद को संवारा है 
 आज भी जब कलरफुल 'ड्रेस में सज कर निकलते है,
            लड़कियां 'दादा' ना  कहती, हमें 'अंकल'बुलाती है,
बूढ़ियाँ भी हमें नज़रें बचाके देख लेती है ,
                 कहे कोई हमें बूढा ,ये  हमको ना गंवारा है 
                           ३
'सेल'है 'एंड सीजन 'का,माल ये सस्ता हाज़िर है ,
          है डिस्काउंट भी अच्छा , ये मौका फिर न पाएंगे
पके है पान खा  लो तुम,न सर्दी ना जुकाम होगा ,
         बहल कुछ तुम भी जाओगे ,बहल कुछ हम भी जाएंगे
पुराना माल है इसको,समझ एंटीक ही ले लो,
       समय के साथ 'वेल्यूं' बढ़ती जाती ऐसी चीजों की,
उठाओ लाभ तुम इसका,ये ऑफर कुछ दिनों का है,
         हाथ से जाने ना दो तुम   ,ये मौका फिर न पाएंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 13 जुलाई 2014

मृतसागर

         मृतसागर

आकुल,व्याकुल,कल कल करती ,कितनी नदियां ,मिलने आती
छोड़ सभी खारापन अपना ,बादल  बनती  और उड़ जाती
मैं चुपचाप,मौन बेचारा ,दिन दिन होता जाता   खारा
सारी पीड़ाये लहरों सी,ढूंढा करती ,कोई किनारा
मुझसे विमुख सभी जलचर है,इतना एकाकीपन सहता
डूब न जाए कोई मुझ में, इतना पितृ भाव है रहता
मन का भारीपन गहराता,घनीभूत होता जाता मैं
सभी भावना,मृत हो जाती,और मृतसागर कहलाता मैं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्रियतम ,मैं आटा ,तुम पानी

घोटू के पद

प्रियतम ,मैं आटा ,तुम पानी
पूरी,परांठा या जैसी भी,रोटी हमें बनानी
बहुत जरूरी ,गुंथे ढंग से ,आटा मिल संग पानी
और पलेथन ,लगे प्यार का ,रोटी अगर फुलानी
गरम गृहस्थी के चूल्हे पर ,जल्दी से सिक जानी
तब ही तो स्वादिष्ट बनेगी,रोटी,नरम सुहानी
जितनी प्रीत मुझे है तुमसे,उतनी तुम्हे दिखानी
तालमेल हो सही ख़ुशी से ,काट जाए जिंदगानी

घोटू

अपनी अपनी दास्ताँ

         अपनी अपनी  दास्ताँ

हिन्दू कोई,कोई मुस्लिम
बौद्ध कोई है ,कोई क्रिस्चन
सिख है कोई,बहाई कोई ,
              सबकी अलग आस्था है
कोई इडली ,कोई डोसा
कोई जलेबी और समोसा
पूरी कोई परांठा  खाता ,
           सबका अलग नाश्ता है
कोई भूखा करता है व्रत
और खोलता कोई सदाव्रत
मोक्ष को  पाने  सभी का ,
         अपना अलग रास्ता है
दुखी निसंतान इन्सां
कोई बच्चों से परेशां
सबके है अपने अपने दुःख,
           सबकी अलग दास्ताँ है

घोटू

याद तुम्हारी

               याद तुम्हारी

ये चंदा और ये तारे ,और उसपे रात ये कातिल
ये सबके सब ही काफी थे ,जलाने को हमारा दिल
बड़ी खामोशी पसरी  थी दर्द देती थी तन्हाई
और उसपे याद तुम्हारी ,सितम ढाने चली आई
हवा के झोकें भी आ खटखटाते द्वार, दे दस्तक
मुझे लगता है तुम आयी ,मगर नाहक ही होता शक
बड़ा दिल को दुखाता है ,सताता तुम्हारा गम है
दो घड़ी चैन से भी सो नहीं सकता ,ये आलम है
लगाईं आँख क्या तुमसे ,आँख ही लग नहीं पाती
लगी है आग कुछ ऐसी ,बुझाए बुझ नहीं पाती
कभी दिल के समंदर में,है उठते ज्वार और भाटे
कभी है काटने को दौड़ते ,सुनसान सन्नाटे
न जाने कब सुबह होगी,जिंदगी जगमगाएगी
न जाने लौट फिर किस दिन ,खुशी घर मेरे आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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