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रविवार, 13 जुलाई 2014

याद तुम्हारी

               याद तुम्हारी

ये चंदा और ये तारे ,और उसपे रात ये कातिल
ये सबके सब ही काफी थे ,जलाने को हमारा दिल
बड़ी खामोशी पसरी  थी दर्द देती थी तन्हाई
और उसपे याद तुम्हारी ,सितम ढाने चली आई
हवा के झोकें भी आ खटखटाते द्वार, दे दस्तक
मुझे लगता है तुम आयी ,मगर नाहक ही होता शक
बड़ा दिल को दुखाता है ,सताता तुम्हारा गम है
दो घड़ी चैन से भी सो नहीं सकता ,ये आलम है
लगाईं आँख क्या तुमसे ,आँख ही लग नहीं पाती
लगी है आग कुछ ऐसी ,बुझाए बुझ नहीं पाती
कभी दिल के समंदर में,है उठते ज्वार और भाटे
कभी है काटने को दौड़ते ,सुनसान सन्नाटे
न जाने कब सुबह होगी,जिंदगी जगमगाएगी
न जाने लौट फिर किस दिन ,खुशी घर मेरे आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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