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शुक्रवार, 21 मार्च 2014

फाइव स्टार डिनर

         फाइव स्टार डिनर

जा फाइव स्टार में ,खरचो तीन हज़ार
फिर भी खाते तुम वही ,लूखी रोटी,दाल
लूखी रोटी,दाल,खरच कर इतना पैसा
फिर भी स्वाद नहीं मिल पाता घर के जैसा
वोही भिन्डी और वोही बेंगन का भड़ता 
खाली होती जेब पेट मुश्किल से भरता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तीन राजनैतिक व्यंग

     तीन राजनैतिक व्यंग

          

    जंगल का क़ानून

'युकिलिप्टिस 'के पेड़ की तरह ,

एकदम तेजी से मत बढ़ो,

एकदम सीधे मत रहो ,

वर्ना पांच सात साल बाद ,

काट दिए जाओगे ,

जंगल का ये ही क़ानून है      

               2

      पतझड़ के पत्ते
पतझड़ के पत्ते ,
जब अपनी डाल  को छोड़ कर,
हवा के झोंकों के संग ,
इधर उधर राजमार्गों पर भटक जाते है
इकट्ठे कर,जला दिए जाते है
और जो पेड़ के नीचे ही ,
गड्ढों  में दबे रह जाते है ,
कुछ समय बाद,खाद बन जाते है
नयी फसल को उगाने के काम आते है

                      3

    जरुरत--शहादत  की
राजनीती के गलियारे,
अपनी संकीर्ण  मानसिकता के कारण
बहुत सकड़े रह गए है
और अब आवश्यकता हो गयी है,
उन्हें चोडा करने की
और सड़कों को चोडा करने के लिए
पुराने बड़े बड़े वृक्षों को
शहादत देनी पड़ती है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 20 मार्च 2014

क्या बतलाऊँ ?

    क्या बतलाऊँ ?

मुझको कितना सुख मिलता है,तेरे साथ मिलन में
                                                   क्या बतलाऊँ ?
कितनी मस्ती  छाई  रहती है  उस  पागलपन  में
                                                     क्या बतलाऊँ?
होता भाव विभोर बावला सा ये मन पागल सा
तैरा करता ,साथ चाँद के ,अम्बर में  बादल सा
या फिर जैसे विचरण करता है चन्दन के वन में
मतवाला ,मदमस्त ,घूमता ,ज्यों नंदन कानन में
तुम राधा सी रास रचाती ,मन के वृन्दावन में ,
                                                क्या बतलाऊँ?
तेरी साँसे,मेरी साँसे ,टकराती आपस मे
शहनाई सी बजती मन में,हो जाता बेबस मैं
अपने आप ,यूं ही बंध जाता है बाहों का बंधन
तुम कलिका सी,और भ्रमर मैं ,हो जाता अवगुंठन
मन कितना आनंदित होता ,तेरे आलिंगन में
                                            क्या बतलाऊँ?
मुझको कितना सुख मिलता है ,तेरे साथ मिलन में
                                             क्या बतलाऊँ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पाक स्थल

             पाक स्थल

जहाँ प्रातः उठ ,सबसे पहले ,जाने करता मन है
और जगते ही ,जहाँ आदमी ,रखता प्रथम कदम है
जहाँ अवांछित ,जल और पृथ्वी तत्व विसर्जित होता
जहाँ प्रतीक्षित ,जब आ जाता ,मन आनंदित होता
 कई बार ,इस स्थल जाने ,मन होता बेकल सा
मन में भर जाती उमंग ,तन  लगता ,हल्का हल्का
हो जाता निर्वस्त्र आदमी  बिना झिझक ,शरमाये
चिंतन और विचार उभरते,जन्मे नव कवितायें
तन का हर एक अंग जहाँ निर्मल,पवित्र हो जाता
खुलजाते नव द्वार,जहाँ पर चोला बदला जाता
बैठ जहाँ अहसास शांति का करता है तन और मन
करता आत्मनिरीक्षण मानव,मूल रूप के दर्शन
जहाँ हमेशा,जल की धारा ,फंव्वारे बहते है
उस प्यारे पावन स्थल  को ,'बाथरूम'कहते है

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

मंगलवार, 18 मार्च 2014

चर्चित की मानो नशा मत ही छानो.....



होली का रंग है
मिली इसमे भंग है
बुरा मानना मत
निश्छ्ल उमंग है

पीकर के पौवा
बना शेर कौवा
नशे मे खड़ा कर
दिया एक हौवा

किसी का दुपट्टा
जो लै भागा पट्ठा
दिया खींच करके
है गोरी ने चट्ठा

फिर भी न हारा
कीचड्‍ दे मारा
कहा प्राणप्यारी
मैं प्रियतम तुम्हारा

वो बोली जाओ
हमें ना फंसाओ
उल्लू हो उल्लू
मुंह धो के आओ

बड़ा ढीठ बंदा
पकड़ करके कंधा
पहलवान माइन्ड
दिया एक रंदा

गर्दन अकड़ गई
चंडी सी चढ़ गई
बाला तो हाय कर
वहीं सीधी पड़ गई

जनता इकट्ठी
लिये हाथ लट्ठी
मजनूं की गीली
हुई अब तो चड्ढी

बड़ी मार खाई
पड़ा चारपाई
मुहब्बत ने हड्डी
की भूसी बनाई

सबक ये मिला है
कि जो मनचला है
उसी का मुसीबत
में हरदम गला है

चर्चित की मानो
नशा मत ही छानो
नहीं तो फंसोगे
बुरे खूब जानो...

/// होली मुबारक ///

- विशाल चर्चित 

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