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सोमवार, 20 जनवरी 2014

ममता की दौलत

        ममता की दौलत

सिवा मेरे और कोई से महोब्बत नहीं थी
आधी आधी बंट गयी जो,ऐसी चाहत नहीं थी
हमको अपनी आशिक़ी के,याद आते है वो दिन,
प्यार करने के अलावा ,हमको फुर्सत नहीं थी
तेरे जीवन में मै ही था,तेरा तनमन था मेरा ,
कम ही मौके आते ,तू करती शरारत  नहीं थी
जब से तुझको जिंदगी में ,खुदा की रहमत मिली,
इससे पहले तुझ में ये ,ममता की दौलत नहीं  थी
नूर तुझपे छा गया है,चेहरे पे आया निखार ,
जवानी में भी ,तेरे मुख पे ये रंगत नहीं थी
थी कनक की छड़ी जैसी ,छरहरी काया  तेरी ,
तेरे गदराये बदन पे,ऐसी रौनक नहीं थी
यूं तो अपनी हर अदा से ,सताती थी तू मुझे ,
इस  अदा से सताने की ,तेरी आदत नहीं थी

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गाँठ से पैसे खरच कर,हम ने दारू ली नहीं

  गाँठ से पैसे खरच  कर,हम ने दारू ली नहीं

जब भी यारों ने पिलाई ,ना ना कर थोड़ी चखी ,
हम नहीं भरते है ये दम,हमने दारू पी नहीं
जब भी फ़ोकट में मिली है,प्रेम से गटकायी है,
रम,बीयर जो मिली पीली,मिली जो व्हिस्की नहीं
जब भी फॉरेन फ्लाईट में ,मुफ्त में  ऑफर हुई,
व्योमबाला ने पिलाई ,और हम ने ली नहीं    
भैरोबाबा का समझ ,परसाद ,चरणामृत पिया ,
उस जगह ना गए मदिरा ,जहाँ पर थी फ्री नहीं
सर्दी और जुकाम में पी ,ब्रांडी को समझा दवा ,
गम गलत करने ,खुशी में,हमने दारू पी नहीं
'घोटू'हम ना तो पियक्कड़ ,ना ही दारूबाज है,
गाँठ से पैसे खरच कर ,हमने दारू  ली नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 18 जनवरी 2014

माया उस परमेश्वर की

      माया उस परमेश्वर की

आसमान में बिजली कड़की,घर की बिजली चली गयी,
और जब बादल लगे गरजने ,घर का टी वी मौन हुआ
थोड़ी सी प्रगती क्या करली ,हम खुद पर इतराते है ,
पर 'वो'सारा कर्ता  धर्ता ,हम सब मानव गौण हुए
इतना विस्तृत है उसका घर ,पाना पार बड़ा मुश्किल,
एक हाथ में मरुस्थल है,एक हाथ में हरियाली
कहीं पहाड़ है ऊंचे ऊंचे ,कहीं समुन्दर लहराते ,
कहीं प्रखर रवि,कहीं निशा है,कहीं उषा की है लाली
उसके एक इशारे पर ही,पवन हिलोरे मार रही,
वृक्षों के पत्ते लहराते,खिल कर पुष्प महकते है
वो ही भरता है गेंहू की बाली में अन्न के दाने ,
आसमान में विचरण करते ,पंछी सभी चहकते है
नीर बरसता है बादल से ,भरे सरोवर लहराते,
नदियांये कल कल बहती है,लहरें उठे समंदर की
जन्म ,मरण,दिन रात सभी कुछ ,चले इशारों पर उसके,
आओ उसका नमन करें हम,ये माया उस ईश्वर  की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बेटा बेटी सदा बराबर

         बेटा  बेटी  सदा बराबर

नर नारायण कहलाते है ,नारी देवी स्वरूपा है,
दोनों ही पूजे जाते है ,दोनों ही परमेश्वर है
उदधि कहाता है रत्नाकर,तो है धरा रत्न गर्भा,
दोनों में ही रत्न भरे है ,दोनों गुण के सागर है
बेटा होता ,खुशी मनाते,उसको पुत्र रत्न कहते,
बेटी होती,दुःख करते हो,दोनों में क्यों अंतर है?
बेटा बेटी सदा  बराबर ,दोनों ही आवश्यक है ,
दोनों से ही जगती चलती ,यह तो सत्य उजागर है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

क्रांति दूत से

               क्रांति दूत से

उंगली मिली अंगूठे के संग ,सदा कलम को गति भरती  है
और प्रत्यंचा तान लक्ष्य पर ,षर संधान  किया करती   है
सागर में भूकम्पी हलचल ,जन्म सुनामी को है देती
नन्ही छोटी सी लहरों को  ,ऊंचाई तक पंहुचा  देती
हो जाते है ध्वंस सभी जो ,आते पथ में बाधा बन के
और तिनके से बह जाते है ,कितने ही सपने जीवन के
तो उस हलचल को पहचानो,तद अनुसार,उचित निर्णय लो
 रहे सुरक्षित,सब तन ,मन ,धन,और सभी जीयें निर्भय हो
तुम नेता हो ,तुम्ही प्रणेता ,किन्तु विजेता तभी बनोगे
स्वार्थ सिद्धि हित ,साथ आये जो,उन तत्वों को पहचानोगे
याद रखो,तुम्हारा यह घर,स्थित एक  घने  जंगल में
लाख प्रयत्न करोगे फिर भी ,नहीं बचेगा ,दावानल में
आवश्यक इसलिए चौकसी ,रहना चिंगारी से बच कर
दुश्मन लिए ,मशाल खड़े है ,आग लगाने  को है तत्पर
कौरव दल के कई शकूनी ,उलटे पांसे  फेंक रहे है
दे दें मात ,हरा दे तुमको,ऐसा मौक़ा देख रहे है
अभिमन्यु से ,चक्रव्यूह तुम ,तोड़ ,घुस गए तो हो अंदर
लेकिन अबकी बार जीत कर  ,तुमको आना होगा बाहर
बन कर कृष्ण ,करो संचालन,महासमर ये परिवर्तन का
हाथ हजारों,साथ तुम्हारे ,आशीर्वाद  तुम्हे जन जन का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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