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शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

बेझिझक आनंद लें हम

      बेझिझक आनंद लें हम

दोस्ती मेरी तुम्हारी       ,दुग्ध जैसी ,शुद्ध पावन
पर झिझक कि खटाई का,ज़रा सा पड़ गया जावन
जम गया है दूध सारा ,बन गया है दही सुन्दर
शीघ्र इसका स्वाद ले लें ,कहीं खट्टा जाय ना पड़
दूध का तो ले न पाये ,दही का ही स्वाद ले लें
मधुर सी लस्सी बनाकर ,क्यों न हम आल्हाद ले लें
नहीं तो मथनी समय की,बिलो कर घृत छीन लेगी
और फिर तो छाछ खट्टी ,सिर्फ ही बाकी बचेगी
और तुमको कढ़ी बनने ,उबलना फिर से पडेगा
दूध के गुण ना मिलेंगे,स्वाद थोडा सा बढ़ेगा
क्यों नहीं फिर दूध का ही ,बेझिझक आनंद लें हम
या दही उसका जमा दें,नहीं फटने ,मगर दें हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्नियां भारी पड़े है

          
          पत्नियां भारी पड़े है
आप माने या न माने बात पर ये है हकीकत ,
पतियों पर हमेशा ही,पत्नियां भारी पड़े है
बात मेरी ना तुम्हारी ,हरेक घर का है ये किस्सा ,
हार जाते सूरमा भी,इनसे जब नयना लड़े है
चाहते है आप गर ये ,शांति हो,सदभाव घर में ,
बात बीबी कि हमेशा ,मानना तुमको पडेगा
उनकी सब फरमाइशों की,पूर्ती करना है जरूरी ,
राज़ सुखमय गृहस्थी का ,जानना तुमको पडेगा
पत्नीजी के हर कथन को ,श्लोक गीता का समझना ,
होता है चौपाई मानस की वचन जो भी कहे वो
उनकी हाँ में हाँ मिलाओ,गहने लाओ ,गिफ्ट लाओ ,
ग़र्ज ये है करो वो सब ,जिससे खुश हरदम रहे वो
अगर वो खुश,खुशी घर में,वो दुखी तो घर दुखी है,
वो है भूखी तो तुम्हे भी ,भूखा ही रहना पडेगा
बात उनकी गलत भी हो,मानना तुमको पड़ेगी ,
रात को वो दिन कहे तो,तुम्हे भी कहना पडेगा
एक समझौता है शादी ,मगर ये होता हमेशा ,
पत्नियां झुकती नहीं है,पति ही है नमा करता
पति कि यह दुर्गति क्यों,सताया जाता पति क्यों ,
बलि का बकरा हमेशा ,पति ही क्यों बना करता
जरा सी टेढ़ी भृकुटी कर,देखती जब वो पति को ,
तो बिचारे आदमी का ,सदा ब्लड प्रेशर  बढे है
आप माने या न माने ,बात पर ये है हक़ीक़त ,
पतियों पर हमेशा ही,पत्नियां भारी पड़े है
पति की सारी कमाई ,की प्रथम अधिकारिणी वो,
क्योंकि फेरे सात लेकर ,उनके संग बंधन बंधा है
यदि कोई दिन अचानक ,वो दिखाये प्यार ज्यादा ,
समझलो कि आज तुमको ,लूटने की ये अदा है
कैसा भी हो रूप उनका ,दिखाना तुमको पडेगा ,
दुनिया की सबसे हसीं ,औरत वो तुम्हारी नज़र में
भूल कर भी ,किसी औरत ,की कभी तारीफ़ न करना ,
वरना फिर ये तय समझ लो,खैर तुम्हारी न घर में
उन्हें अच्छी चाट लगती ,आलू टिक्की ,गोलगप्पे ,
तुम भी अपना स्वाद बदलो ,उनके संग जा,खाओ बाहर
जाओ होटल में भी पर ये,बात कहना भूलना मत ,
तुम्हारे हाथों के खाने की नहीं लज्जत यहां पर
औरतों को समझ पाना ,दुनिया में सबसे कठिन है ,
खुदा भी ना समझ पाया ,समझेंगे क्या खाक ,हम तुम
ऱाज की एक बात लेकिन,बताता हूँ ,कोई औरत ,
अगर शरमा कर कहे 'ना'तो उसे 'हाँ'समझना तुम
खुशियों की  बरसात होगी ,सुहानी हर रात होगी ,
प्यार से औरत पिघलती ,भले ही तेवर कड़े है
आप माने या न माने ,बात पर ये है हक़ीक़त ,
पतियों पर हमेशा ही,पत्नियां भरी पड़े है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'




घर की मुर्गी

          घर की  मुर्गी

बिन बीबी के तो एक दिन भी,लगता हमको साल बराबर
फिर भी क्यों कहते बीबी को,घर की  मुर्गी ,दाल बराबर
घर कि मुर्गी अंडे देती ,बीबी देती है सुख प्यारा
सुबह नाश्ता,लंच ,डिनर फिर,करती घर का काम तुम्हारा
और दाल क्या,एक बार जो ,उबल गयी तो छौंक लगा कर
हम खुश होकर ,खा लेते है,रोटी उसके साथ लगा कर
बीबी रोज रोज सुख देती,दाल एक दिन,पक कर,खा कर
फिर भी क्यों कहते बीबी को,घर की  मुर्गी दाल बराबर
भले चना हो,मूंग,उरद या अरहर ,टूट दाल है बनती
मुर्गी से अंडा बनता है,     अंडे से है मुर्गी  बनती
मगर दाल से चना बने ना ,पिसती दाल,बने है बेसन
मुर्गी और दाल में अंतर ,दालें जड़ है ,मुर्गी चेतन
दालें मौन,बोलती बीबी,और खिलाती,माल बनाकर
फिर भी क्यों कहते बीबी को ,घर की  मुर्गी ,दाल बराबर
मुर्गी और दाल कि आपस में तुलना है क्यों की जाती
दाल न खा सकती मुर्गी को,मुर्गी मगर दाल खा जाती
मुर्गी प्रातः करे 'कुकडूँ कूँ ',बीबी बातें करती दिन भर
बीबी होती भारीभरकम ,और दाल होती रत्ती भर
रहे बराबर दिल के बीबी,जीवन को खुश हाल बनाकर
फिर भी क्यों कहते बीबी को,घर की  मुर्गी ,दाल बराबर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लक्ष्मी जी और वाहन

          लक्ष्मी जी और वाहन
                         १
कारों  के मॉडल नये , आते है हर साल
लक्ष्मी पति है बदलते ,निज वाहन हर बार
निज वाहन हर बार ,देख कर के ये फेशन
लक्ष्मीजी ने भी सोचा बदलूं निज वाहन
बोली'बहुत दिनों तक ,तुमने ली सेवा कर
अब बूढ़े हो,तुम उलूक ,हो जाओ रिटायर '
                          २
उल्लू ने विनती करी ,निज हाथों को जोड़
माँ ,इतनी सेवा करी ,कहाँ जाउंगा छोड़
कहाँ जाउंगा छोड़ ,चलाऊंगा घर कैसे
ना पगार ही मिले ,पेंशन के ना पैसे
लक्ष्मी बोली सेवा व्यर्थ न जाने दूंगी
केबिनेट में ,मंत्री का पद दिलवा दूंगी

घोटू

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

दीवाली पर एक नवगीत



क्यों रे दीपक
क्यों जलता है,
क्या तुझमें
सपना पलता है...?!

हम भी तो
जलते हैं नित-नित
हम भी तो
गलते हैं नित-नित,
पर तू क्यों रोशन रहता है...?!

हममें भी
श्वासों की बाती
प्राणों को
पीती है जाती,
क्या तुझमें जीवन रहता है...?!

तू जलता
तो उत्सव होता
हम जलते
तो मातम होता,
इतना अंतर क्यों रहता है...?!

तेरे दम
से दीवाली हो
तेरे दम
से खुशहाली हो,
फिर भी तू चुप - चुप रहता है...?!

चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है...!!

- विशाल चर्चित

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