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सोमवार, 1 जुलाई 2013

पुराने दिनो की याद

                   पुराने दिनो की याद 
                 
     दिन मस्ताने,शाम सुहानी,रात दीवानी होती थी 
     हमे याद आते वो दिन ,जब,हममे जवानी होती थी 
तेरी हुस्न,अदा ,जलवों पर,तब हम इतना मरते थे 
जैसे होती सुबह,रात का,   इंतजार हम करते थे  
       छेड़छाड़ चलती थी दिन भर, यही कहानी होती  थी 
       हमे याद आते वो दिन ,जब हममे  जवानी होती थी 
शर्माती थी तो गुलाब से ,गाल तुम्हारे हो जाते 
लाल रंग के होठ लरजते,मधु के प्याले हो जाते 
       और तुम्हारी,शोख अदाएं ,भी मरजानी  होती थी 
       हमे याद आते वो दिन जब ,हममे  जवानी होती थी 
रिमझिम बारिश की फुहारों मे हम भीगा करते थे 
तुम्हें पता है,मुझे पता है,फिर हम क्या क्या करते थे 
        बेकल राजा की बाहों मे,पागल रानी होती थी 
        हमे याद आते वो दिन ,जब हममे जवानी होती थी 
रात चाँदनी मे जब छत पर ,हम तुम सोया करते थे 
मधुर मिलन की धुन मे बेसुध होकर  खोया करते थे 
          चाँद देखता ,तुम शर्मा कर,पानी पानी  होती थी 
          हमे याद आते वो दिन ,जब हममे जवानी होती थी 
पर अब ना वो मधु,मधुशाला ,ना मतवाला साकी है 
उस मयखाने,की रौनक की ,केवल यादें बाकी है 
           जब मदिरा से ज्यादा मादक,तू मस्तानी होती थी 
           हमे याद आते वो दिन जब ,हममे जवानी होती थी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

कहर के बाद

          
          कहर के बाद 
मै तुम्हें मंद मंद मंथर गति से ,
बहने वाली मंदाकिनी कहता था 
तुम्हारे शिखरों की तारीफ करता रहता था 
तुम्हारी जुल्फों को कहता था काली घटायें
और लगती थी बिजली गिराती हुई ,
मुझे तुम्हारी सारी अदायें
पर जब से ,
मन्दाकिनी ने उमड़ कर ,
बादलों ने फट कर ,
पहाड़ों के शिखरों ने ढह कर,
बिजलियों ने कडक कर ,
उत्तराखंड मे ढाया है कहर 
खंड खंड हो गयी है मेरी उपमायें
और मैंने बंद कर दिया है,
तुम्हारी तारीफ मे ये सब कहना 
मुझको तो तुम,
जैसी हो ,वैसी ही अच्छी लगती हो,
और हरदम ,एसी ही रहना 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   ,
   
   

शुक्रवार, 28 जून 2013

संगत का असर


    संगत का असर 
हम रहते है जिनके संग मे 
हमे रंगना पड़ता है,उनही के रंग मे 
हमारे सोचने का ढंग,
उनके जैसा ही हो जाता है 
और उनके सुख दुख का ,
हम पर भी असर आता है 
नेताओं के साथ साथ ,चमचे भी पूजे जाते है 
पति और पत्नी ,
एक दूसरे के साथ,हँसते गाते है 
आपने देखा होगा ,मंदिर मे,
शिवलिंग पर जब लोग जल चढ़ाते है 
तो पास मे बैठी हुई ,
अच्छी ख़ासी चूनरी ओढ़े ,
पार्वती जी  को भी भिगाते है
और तो और ,उनके बेटे गणेशजी और 
कार्तिकेय के साथ साथ,
उनके वाहन नंदी को भी नहलाते है 
सारा परिवार जब साथ साथ रहता है 
तो सारे सुख और दुख,संग संग सहता है 
इसलिए ये बात हमे ठीक ठीक समझना चाहिए 
हमे किसी का भी साथ,
सोच समझ कर ही करना चाहिए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

एक कवि पत्नी की व्यथा


     एक कवि पत्नी की व्यथा 

एक हनुमान जी थे,
जो अपने बॉस के दोस्त की,
 बीबी को ढूँढने के लिए  
समुंदर भी लांघ गए थे 
एक तुलसी दास जी थे,
जो बीबी से मिलने को बेकल हो,
उफनती नदी को पार कर,
साँप को रस्सी समझ लटक गए थे 
और एक हमारे हनुमान भक्त ,
कविराज पति जी है,
जो करते तो है बड़ी बड़ी बातें 
पर रात को बिस्तर पर पड़ा ,
एक तकिया तक नहीं लांघ पाते 
कविजी की पत्नी ने ,
अपनी व्यथा सुनाई,शर्माते,शर्माते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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