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सोमवार, 3 जून 2013

शुक्रिया

             शुक्रिया 
        
आपने हमको दिये  ,दो पल ख़ुशी के ,
                            तहे दिल से आपका है शुक्रिया 
चंद  लम्हे ,मुस्कराहट और खुशी के,
                              तहे दिल से आपका है शुक्रिया 
पोंछ आंसू सभी डाले  ,बेबसी के,
                               तहे दिल से आपका है शुक्रिया 
और  बिखेरे रंग सुन्दर जिन्दगी के ,
                                 तहे दिल से आपका है शुक्रिया 
हम हैं जो भी,आपकी ही है बदौलत ,
                                 तहे दिल से आपका है  शुक्रिया 
आप ही जीवन की पूँजी और दौलत,
                                  तहे दिल से आपका है  शुक्रिया 
आपने दी है हमें सच्ची  महोब्बत ,
                                  तहे दिल   से आपका है  शुक्रिया 
आपका अहसान हम पर उमर भर तक,
                                   तहे दिल से आपका है शुक्रिया 

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'

उलझनों में फंसा जीवन

       उलझनों में फंसा जीवन 
        
बिना भोजन ,भजन कोई क्या करेगा 
ह्रदय चिंतित,कोई चिंतन क्या  करेंगा 
 आग की है तपन जब तन को तपाती,
हाथ जलते,  हवन कोई क्या  करेगा 
मूर्तियां परसाद जो खाने लगे तो,
चढ़ा व्यंजन,कोई पूजन  ,क्या करेगा 
पास ना धन और यदि ना कोई साधन ,
तीर्थ में जा ,कोई वंदन  क्या करेगा 
गंगा में डुबकी लगा कर पाप धुलते ,
पुण्य और सत्कर्म कोई  क्या करेगा 
आजकल के गुरु,गुरुघंटाल है सब,
कोई निज सर्वस्व अर्पण क्या करेगा 
हाथ में माला ,सुमरनी , पढ़े गीता,
मगर चंचल ,भटकता मन ,क्या करेगा 
इधर जाऊं,उधर जाऊं,क्या करूं मै ,
उलझनों में फंसा जीवन,क्या करेगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

रविवार, 2 जून 2013

अंगूठा -सबसे अनूठा


बंद कर मुट्ठी को,ऊपर अंगूठा करो,
                      इसे कहते  थम्स अप ,मतलब सब ठीक है 
बंद  कर  मुट्ठी को,नीचे अंगूठा करो,
                       लिफ्ट तुमको चाहिए ,ये  इसका प्रतीक है 
उंगली ,अंगूठे साथ ,होता जब चोडा हाथ,
                        या तो मारे झापट या फिर मांगे भीख  है 
काम निकल जाने पर,अंगूठा दिखाते सब,
                        किसी पे भरोसा नहीं करो ये ही सीख  है 

'घोटू ' 

स्वर

       स्वर 
      
       हर उमंग में स्वर होता है 
       हर तरंग में स्वर  होता है 
उड़ पतंग ऊपर जाती है 
बीच हवा में इठलाती  है 
आसमान में चढ़ी हुई है 
पर डोरी से बंधी  हुई है 
डोर थाम देखो तुम कुछ क्षण 
उंगली पर तुम उसकी थिरकन 
       कर महसूस ,जान पाओगे ,
       हर  पतंग में   स्वर होता है 
जब आती यौवन की बेला 
ये मन रह ना पाए अकेला 
प्यार पनपता  है  जीवन में 
कोई  बस जाता है मन में 
जीवन में छा जाते रंग  है 
और मन में उठती तरंग है 
       प्रीत किसी से कर के देखो,
        प्रियतम संग में ,स्वर होता है 
 छोटी  ,लम्बी लोह सलाखें 
अगर ढंग से रखो सजाके 
या फिर लेकर सात कटोरी 
पानी से भर भर कर थोड़ी 
अगर बजाओगे ढंग से तुम 
उसमे से निकलेगी सरगम 
         लोहे में,जल में, बसते स्वर,
          जलतरंग  में स्वर होता है 
नन्ही जूही,श्वेत चमेली 
पुष्पों की खुशबू अलबेली 
मस्त मोगरा,खिलता चम्पा 
रात महकती ,रजनीगन्धा 
और गुलाब की खुशबू मनहर 
मन में देती है  तरंग  भर   
          किसी भ्रमर के दिल से पूछो ,
           हर सुगंध  में स्वर होता  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अंगूठा

      अंगूठा
    
उंगलिया  छोटी बड़ी है
साथ मिल कर  सब खड़ी है
          मगर गर्वान्वित  अकेला,
            है नज़र  आता  अंगूठा
उंगलियाँ पहने अंगूठी
जड़ी रत्नों से   अनूठी
            नग्न सा ,सबसे अलग पर,
             हमें  दिखलाता  अंगूठा
एक जैसे दिखे   सब है
मगर रेखायें  अलग है
               हरेक दस्तावेज ऊपर ,
               लगाया जाता  अंगूठा
 तिलक मस्तक पर लगाता
उँगलियों के संग   उठाता
                चुटकी भर सिन्दूर लेकर ,
                  मांग   भर  जाता अंगूठा
स्वार्थ हो तब किये जाते
कई कसमे ,कई  वादे
                   निकल जब जाता है मतलब ,
                     दिखाया  जाता  अंगूठा
उँगलियों का साथ पाता
तब कलम वो पकड़ पाता
                        गीत,कवितायें ,कथाएं,
                         तभी  लिख पाता अंगूठा
 गुरु गुड़ ,चेले है शक्कर
शिष्य ना एकलव्य बनकर
                           दक्षिणा में है  चढ़ाता ,
                            मगर दिखलाता अंगूठा
बंधी मुट्ठी लाख की है
खुल गयी तो खाक की है
                       एकता और संगठन का ,
                        पाठ सिखलाता ,अंगूठा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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