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रविवार, 2 जून 2013

अंगूठा -सबसे अनूठा


बंद कर मुट्ठी को,ऊपर अंगूठा करो,
                      इसे कहते  थम्स अप ,मतलब सब ठीक है 
बंद  कर  मुट्ठी को,नीचे अंगूठा करो,
                       लिफ्ट तुमको चाहिए ,ये  इसका प्रतीक है 
उंगली ,अंगूठे साथ ,होता जब चोडा हाथ,
                        या तो मारे झापट या फिर मांगे भीख  है 
काम निकल जाने पर,अंगूठा दिखाते सब,
                        किसी पे भरोसा नहीं करो ये ही सीख  है 

'घोटू ' 

स्वर

       स्वर 
      
       हर उमंग में स्वर होता है 
       हर तरंग में स्वर  होता है 
उड़ पतंग ऊपर जाती है 
बीच हवा में इठलाती  है 
आसमान में चढ़ी हुई है 
पर डोरी से बंधी  हुई है 
डोर थाम देखो तुम कुछ क्षण 
उंगली पर तुम उसकी थिरकन 
       कर महसूस ,जान पाओगे ,
       हर  पतंग में   स्वर होता है 
जब आती यौवन की बेला 
ये मन रह ना पाए अकेला 
प्यार पनपता  है  जीवन में 
कोई  बस जाता है मन में 
जीवन में छा जाते रंग  है 
और मन में उठती तरंग है 
       प्रीत किसी से कर के देखो,
        प्रियतम संग में ,स्वर होता है 
 छोटी  ,लम्बी लोह सलाखें 
अगर ढंग से रखो सजाके 
या फिर लेकर सात कटोरी 
पानी से भर भर कर थोड़ी 
अगर बजाओगे ढंग से तुम 
उसमे से निकलेगी सरगम 
         लोहे में,जल में, बसते स्वर,
          जलतरंग  में स्वर होता है 
नन्ही जूही,श्वेत चमेली 
पुष्पों की खुशबू अलबेली 
मस्त मोगरा,खिलता चम्पा 
रात महकती ,रजनीगन्धा 
और गुलाब की खुशबू मनहर 
मन में देती है  तरंग  भर   
          किसी भ्रमर के दिल से पूछो ,
           हर सुगंध  में स्वर होता  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अंगूठा

      अंगूठा
    
उंगलिया  छोटी बड़ी है
साथ मिल कर  सब खड़ी है
          मगर गर्वान्वित  अकेला,
            है नज़र  आता  अंगूठा
उंगलियाँ पहने अंगूठी
जड़ी रत्नों से   अनूठी
            नग्न सा ,सबसे अलग पर,
             हमें  दिखलाता  अंगूठा
एक जैसे दिखे   सब है
मगर रेखायें  अलग है
               हरेक दस्तावेज ऊपर ,
               लगाया जाता  अंगूठा
 तिलक मस्तक पर लगाता
उँगलियों के संग   उठाता
                चुटकी भर सिन्दूर लेकर ,
                  मांग   भर  जाता अंगूठा
स्वार्थ हो तब किये जाते
कई कसमे ,कई  वादे
                   निकल जब जाता है मतलब ,
                     दिखाया  जाता  अंगूठा
उँगलियों का साथ पाता
तब कलम वो पकड़ पाता
                        गीत,कवितायें ,कथाएं,
                         तभी  लिख पाता अंगूठा
 गुरु गुड़ ,चेले है शक्कर
शिष्य ना एकलव्य बनकर
                           दक्षिणा में है  चढ़ाता ,
                            मगर दिखलाता अंगूठा
बंधी मुट्ठी लाख की है
खुल गयी तो खाक की है
                       एकता और संगठन का ,
                        पाठ सिखलाता ,अंगूठा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 1 जून 2013

बुढ़ापे ने है निकम्मा कर दिया ...

     

आशिकी का वो ज़माना याद है ,
                       हम रसीले,स्वाद,मीठे  आम थे 
रोज मियां ,मारते थे ,फ़ाक़्ता ,
                       बड़े ही दिलफेंक  और बदनाम थे 
थी जवानी की महक और ताजगी ,
                       जिन्दगी गुलज़ार थी,गुलफाम थे 
बुढापे ने है निकम्मा कर दिया ,
                        वरना हम भी  आदमी थे काम के 
'घोटू '

घोटू की घंटी

         घोटू की घंटी 
       
जब होती पूजा मंदिर में ,बजती घंटी 
जब होती छुट्टी स्कूल में ,बजती घंटी 
जब घर में है कोई आता,  बजती घंटी 
फोन किसी का जब भी आता,बजती घंटी 
चपरासी को साहब बुलाते,  बजती घंटी 
आग बुझाने ,दमकल आते ,बजती घंटी 
जग जाते हम,जब अलार्म की,बजती घंटी 
सुलझे उलझन ,जब दिमाग की,बजती घंटी
जब कोई दिल में जाता बस, बजती घंटी 
शादी करते और गले में  ,बंधती  घंटी 
इसकी टनटन ,करे टनाटन ,बजती घंटी 
और बाद में,जब जाती ठन  ,बजती घंटी 
बिल्ली गले ,बाँधना है जो ,तुमको घंटी 
एक बार,देखो पढ़ कर ,'घोटू की घंटी'
घोटू  

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