एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 13 जनवरी 2013

वक़्त वक़्त की बात

  वक़्त वक़्त की बात

एक जवां मच्छर ने,कहा एक बूढ़े से,
                              आपके जमाने में ,बड़ी सेफ लाइफ थी 
ना 'हिट 'ना' डी .डी .टी .'न ही 'आल आउट 'था,
                              और ना धुवां देती ,कछुवे की कोइल थी
एक आह ठंडी भर,बोला बूढा मच्छर,
                               वो तो सब ठीक मगर ,मौज तुम उड़ाते हो
आज के जमाने में ,है इतना खुल्लापन ,
                               जहाँ चाहो मस्ती से ,चुम्बन ले पाते हो
हमारे जमाने में,एक बड़ी मुश्किल थी,
                               औरतों का सारा तन,रहता था ,ढका ,ढका
तरस तरस जाते थे ,मुश्किल से कभी,कहीं,
                                 चूमने का मौका हम,पाते थे यदा कदा
समुन्दर के तट पर या फिर स्विमिंग पूलों पर ,             
                                  खतरा भी कम है और रौनक भी ज्यादा है
तुम तो हो खुश किस्मत ,इस युग में जन्मे हो ,
                                   तुम्हे मौज मस्ती के,मौके भी ज्यादा  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कल और आज

      कल और आज

याद हमें आये है वो दिन ,
                            जब ना होते थे कंप्यूटर
चालीस तक के सभी पहाड़े,
                          बच्चे रटते रहते दिन भर
ना था इंटरनेट उन दिनों ,
                          और न होते थे मोबाईल
कभी ताश या फिर अन्ताक्षरी ,
                           बच्चे ,खेला करते सब मिल
ना था टी वी ,ना एम .पी ,थ्री ,
                           ना ही मल्टीप्लेक्स ,माल थे
ना ही को- एजुकेशन था ,
                            हम सब कितने मस्त हाल थे
हाथों में स्कूल बेग और ,
                             कोपी ,कलम, किताबें होती
रामायण के किस्से होते ,
                             देश प्रेम की बातें होती
रहता था परिवार इकठ्ठा,
                            पांच ,सात  होते थे बच्चे
घर में चहल पहल रहती थी ,
                             सच वो दिन थे कितने अच्छे
अब तो छोटे छोटे से ,बच्चों,,
                                    के हाथों में है मोबाईल
कंप्यूटर और लेपटोप के ,
                                  बिना पढाई करना मुश्किल
नन्हे बच्चे जो कि अपना ,
                               फेस तलक ना खुद धो सकते
खोल फेस बुक,सारा दिन भर,
                                   मित्रों  से  है बातें  करते  
अचरज,छोटे बच्चों में भी ,
                                 पनप रहा ये नया ट्रेंड  है
उमर दस बरस की भी ना है ,
                                 दस से ज्यादा गर्ल फ्रेंड है
मेल भेजते फीमेलों को,
                                  बात करें स्काईप पर मिल
ट्वीटर  पर ट्विट करते रहते ,
                                  हरदम ,हाथों में मोबाईल
हम खाते थे लड्डू,मठरी ,
                                   ये खाते है पीज़ा ,बर्गर
ईयर फोन लगा कानों में,
                                   गाने सुनते रहते दिन भर
क्योकि अब ,एक बेटा ,बेटी ,
                                     एकाकी वाला बचपन है
मम्मी,पापा ,दोनों वर्किंग ,
                                   भाग दौड़ वाला जीवन है
'हाय'हल्लो 'की फोर्मलिटी में,
                                  अपनापन  हो गया गौण है
इतना 'आई' हो गया हावी ,          
                                  'आई पेड 'है ,'आई फोन 'है
ये ही अगर  तरक्की है तो ,
                                    इससे हम पिछड़े अच्छे थे
मिलनसार थे,भोलापन था ,
                                        प्यार मोहब्बत थी,सच्चे थे   

  मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                    

संक्रांति पर

      संक्रांति पर
आया सूर्य मकर में ,आये नहीं तुम मगर
 पर्व उत्तरायण का आया ,पर दिया न उत्तर
तिल तिल कर दिल जला,खिचड़ी  बाल हो गये
और गज़क जैसे हम खस्ता हाल  हो गये
अगन लोहड़ी की है तपा रही ,इस तन को
अब आ जाओ ,तड़फ रहा मन,मधुर मिलन को

मकर संक्रांति की शुभ कामनाये 
घोटू 
 

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

आज ये मन

      आज ये मन
प्यार करने को तड़फता ,आज ये मन 
गिरायेगा ,आज किस पर ,गाज ये मन 
क्या हुआ यदि बढ़ गयी ,थोड़ी उमर है
क्या हुआ यदि हो गयी ,धुंधली नज़र है
क्या हुआ यदि बदन ढीला हो चला  है,
बुलंदी पर मगर फिर भी होंसला  है
इस कदर बेचैन और बेकल हुआ है,
शरारत से आएगा ना बाज ये मन
प्यार करने को तडफता आज ये मन 
एक तो मौसम बड़ा है आशिकाना
सामने फिर रूप का मनहर  खजाना
बावला सा हो गया है दिल दीवाना
है बड़ा मुश्किल ,इसे अब रोक पाना
प्रणय के मधुमिलन की उस मधुर धुन के ,
सजा कर बैठा हुआ है ,साज ये मन
प्यार करने को  तडफता ,आज ये मन
इश्क पर चलता किसी का नहीं बस है
आज फिर वेलेंटाईन का  दिवस है
पुष्प देकर ,प्रेम का करता प्रदर्शन
दे रहा ,अभिसार का तुमको निमंत्रण
मान जाओ,आज तुमको दिखायेगा ,
प्रेम  करने के नए अंदाज ये मन 
प्यार करने को तडफता आज ये मन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बेक बेंचर

             बेक बेंचर

स्कूल के दिनों में ,मै बड़ा बेफिकर  था 
क्योंकि मै बेक बेंचर था
आगे की सीटों पर बेठने वाले बच्चे
कहलाते है  ,होंशियार और अच्छे
 पर हमेशा उनको सतर्क रहना पड़ता है  
हर एक सवाल का जबाब देना पड़ता है 
पर पीछे की बेंच वाला आराम से सो सकता है
जरासा ध्यान दे तो दूर बैठ कर भी पास हो सकता है
कई जगह,बेक बेंचर होने के कई फायदे दिखते है
जैसे सिनेमा में पीछे वाली सीटों के टिकिट मंहगे बिकते है 
और अक्सर पीछे की सीटें आरक्षित होती है
क्योंकि प्रेमी जोड़ों के लिए वो सुरक्षित होती है
कार में पिछली सीट पर बैठनेवाला ,अक्सर ,मालिक  होता है
और आगे बैठ कर ,कार चलाता है ड्रायवर ,
शादी के जुलुस आगे आगे चलते है बाराती ,
और पीछे घोड़ी पर बैठता है दूल्हा यानि  वर
सेना में जवान आगे रहते है ,
और पीछे रहता है कमांडर
कुर्सी हो या बिस्तर
शरीर का पिछला भाग ही ,डनलप के मज़े लेता है अक्सर
बेकवर्ड होने से ,फायदा ये मोटा होता है
 बेकवर्ड लोगो के लिए रिज़र्वेशन का कोटा होता है
आगे वाले लोग फायदे में तभी रहते है
जब वो बाईक चलाते है
और पीछे कमर पकड़ कर बैठी हुई ,
गर्ल फ्रेंड का मज़ा उठाते है
वर्ना मैंने तो ये देखा है अक्सर
फायदे में ही रहा करते है बेक बेंचर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-