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मंगलवार, 8 जनवरी 2013

आज ये मन

      आज ये मन
प्यार करने को तड़फता ,आज ये मन 
गिरायेगा ,आज किस पर ,गाज ये मन 
क्या हुआ यदि बढ़ गयी ,थोड़ी उमर है
क्या हुआ यदि हो गयी ,धुंधली नज़र है
क्या हुआ यदि बदन ढीला हो चला  है,
बुलंदी पर मगर फिर भी होंसला  है
इस कदर बेचैन और बेकल हुआ है,
शरारत से आएगा ना बाज ये मन
प्यार करने को तडफता आज ये मन 
एक तो मौसम बड़ा है आशिकाना
सामने फिर रूप का मनहर  खजाना
बावला सा हो गया है दिल दीवाना
है बड़ा मुश्किल ,इसे अब रोक पाना
प्रणय के मधुमिलन की उस मधुर धुन के ,
सजा कर बैठा हुआ है ,साज ये मन
प्यार करने को  तडफता ,आज ये मन
इश्क पर चलता किसी का नहीं बस है
आज फिर वेलेंटाईन का  दिवस है
पुष्प देकर ,प्रेम का करता प्रदर्शन
दे रहा ,अभिसार का तुमको निमंत्रण
मान जाओ,आज तुमको दिखायेगा ,
प्रेम  करने के नए अंदाज ये मन 
प्यार करने को तडफता आज ये मन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बेक बेंचर

             बेक बेंचर

स्कूल के दिनों में ,मै बड़ा बेफिकर  था 
क्योंकि मै बेक बेंचर था
आगे की सीटों पर बेठने वाले बच्चे
कहलाते है  ,होंशियार और अच्छे
 पर हमेशा उनको सतर्क रहना पड़ता है  
हर एक सवाल का जबाब देना पड़ता है 
पर पीछे की बेंच वाला आराम से सो सकता है
जरासा ध्यान दे तो दूर बैठ कर भी पास हो सकता है
कई जगह,बेक बेंचर होने के कई फायदे दिखते है
जैसे सिनेमा में पीछे वाली सीटों के टिकिट मंहगे बिकते है 
और अक्सर पीछे की सीटें आरक्षित होती है
क्योंकि प्रेमी जोड़ों के लिए वो सुरक्षित होती है
कार में पिछली सीट पर बैठनेवाला ,अक्सर ,मालिक  होता है
और आगे बैठ कर ,कार चलाता है ड्रायवर ,
शादी के जुलुस आगे आगे चलते है बाराती ,
और पीछे घोड़ी पर बैठता है दूल्हा यानि  वर
सेना में जवान आगे रहते है ,
और पीछे रहता है कमांडर
कुर्सी हो या बिस्तर
शरीर का पिछला भाग ही ,डनलप के मज़े लेता है अक्सर
बेकवर्ड होने से ,फायदा ये मोटा होता है
 बेकवर्ड लोगो के लिए रिज़र्वेशन का कोटा होता है
आगे वाले लोग फायदे में तभी रहते है
जब वो बाईक चलाते है
और पीछे कमर पकड़ कर बैठी हुई ,
गर्ल फ्रेंड का मज़ा उठाते है
वर्ना मैंने तो ये देखा है अक्सर
फायदे में ही रहा करते है बेक बेंचर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 7 जनवरी 2013

Akbaruddin Owaisi's hate speech at Nirmal, Adilabad Dist - Full Length V...

देखो हिन्दूओ तुम्महारे कतल की तैयारी किस तरह हो रही है

जिव्हा और दांत -मिया और बीबी वाली बात

     जिव्हा और दांत -मिया और बीबी वाली बात

जिव्हा और दांत
दोनों रहते है साथ साथ
एक सख्त है ,एक मुलायम है
मगर दोनों सच्चे हमदम है
इनका रिश्ता है ऐसे
मियां और बीबी हो जैसे
जिव्हा ,पत्नी सी ,कोमल और नाजुक
 दांत,पति से ,स्ट्रोंग और मजबूत
दांत चबाते है ,जिव्हा स्वाद पाती है
पति कमाता है,बीबी मज़ा उठाती  है
जिव्हा,चंचल चपल और चुलबुली है
बातें बनाती रहती,जब तक खुली है     
दांत, स्थिर ,थमे हुए और सख्तजान है
चुपचाप ,बिना शिकायत के ,करते काम है
बस जब थक जाते है तो किटकिटाते है
और जीभ जब ज्यादा किट किट करती है,
उसे काट खाते है
जैसे कभी कभी अपनी पत्नी पर ,
पति अंकुश लगाता है
मगर फिर भी ,दांतीं की तरह,
उसे अपने आगोश में छुपाता  है
दांतों के बीच में जब भी कुछ है फंस  जाता
 जिव्हा को झट से ही इसका पता चल जाता
और वह इस फंसे हुए कचरे को निकालने ,
सबसे पहले पहुँच जाती है
और जब तक कचरा निकल नहीं जाता ,
कोशिश किये जाती है
जैसे पति की हर पीड़ा ,पत्नी समझती है
और उसकी हर मुश्किल में ,
आगे बढ़ कर मदद करती है
पति पत्नी जैसे ही इनके हालत होते है
दिन भर अपना अपना काम करते है ,
पर रात को चुपचाप ,साथ साथ  सोते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

सभी को है आता-बुढ़ापा ,बुढ़ापा

    सभी को है आता-बुढ़ापा ,बुढ़ापा

सभी को है आता ,सितम सब पे ढाता
देता है तकलीफ ,सबको  सताता
हंसाता तो कम है,अधिकतर  रुलाता 
बड़े ही बुरे दिन ,सभी को दिखाता 
परेशानियों में है होता  इजाफा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
कभी दांत हिलते है खाने में दिक्कत
चबा कुछ न पाओ ,रहो टूंगते बस 
अगर खा भी लो जो कुछ ,तो पचता नहीं है
 मज़ा जिंदगानी का बचता नहीं है 
ये दुःख इतने देता है,क्यों ये विधाता
बुढ़ापा,बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा
चलने में,फिरने में आती है दिक्कत
जरा सा भी चल लो ,तो आती थकावट
हरेक दूसरे दिन ,बिगडती तबियत
उम्र जैसे बढती है,बढती मुसीबत
नहीं चैन मिलता है हमको जरा सा 
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा 
न चेहरे पे रौनक ,न ताकत बदन में
तमन्नाएँ  दब जाती,सब मन की मन में
बुढ़ापे ने ऐसा जुलम कर दिया है
 गयी सब लुनाई ,पड़ी झुर्रियां है 
मुरझा गया फूल ,जो था खिला सा
बुढ़ापा,बुढ़ापा बुढ़ापा बुढ़ापा
हुई धुंधली आँखें ,नज़र कम है आता
है हाथों में कम्पन,लिखा भी न जाता
करो बंद आँखें तो यादें ,सताती
नहीं ढंग से नींद भी तो  है आती
सपनो में यादों का खुलता लिफाफा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा 
न तो पूछे बच्चे,न पोती न पोते
उमर कट रही है यूं ही रोते रोते
नहीं वक़्त कटता  है,काटें तो कैसे
दुःख दर्द अपना ,हम बांटें  तो कैसे
अपनों का बेगानापन है रुलाता
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
उपेक्षित,अवांछित,अकेले अकेले
बुढ़ापे की तकलीफ,हर कोई झेले
कोई प्यार से बोले,दिल है तरसता
धुंधलाती आँखों से ,सावन बरसता
नहीं देता कोई है आकर दिलासा
बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा
उमर जब भी बढती ,ये होता अधिकतर
होती है हालत ,बुरी और बदतर
नहीं बाल बचते है ,उड़ जाते अक्सर
या फिर सफेदी सी छा  जाती सर पर 
हसीनाएं कहती है ,दादा या बाबा
बुढ़ापा ,बुढ़ापा,बुढ़ापा,बुढ़ापा

मदनं मोहन बाहेती'घोटू'


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